31.1.11
अन्याय के खिलाफ हर सम्भव संघर्ष ही सत्याग्रह
अन्याय के खिलाफ हर सम्भव संघर्ष ही सत्याग्रह
अरविन्द विद्रोही
महात्मा गॉंधी ने सत्य क्या है,इसके उत्तर में कहा था-यह एक कठिन प्रश्न है,किन्तु स्वयं अपने लिए मैने इसे हल कर लिया है।तुम्हारी अन्तरात्मा जो कहती है,वही सत्य है।गॉंधी जी के ही शब्दों में -कायरता और अहिंसा,पानी और आग की भॉंति एक साथ नहीं रह सकते।सत्याग्रह को स्पष्ट करते हुए महात्मा गॉंधी ने कहा था-अपने विरोधियों को दुःखी बनाने के बजाए,स्वयं अपने पर दुःख डालकर सत्य की विजय प्राप्त करना ही सत्याग्रह है।सत्याग्रह तो सत्य की विजय हेतु किये जाने वाले आध्यात्मिक और नैतिक संघर्ष का नाम है।महात्मा गॉंधी यह मानते थे कि अहिंसा वीरों का धर्म है और अपनी कायरता को अहिंसा की ओट में छिपाना निन्दनीय तथा घृणित है।यदि कायरता और हिंसा में से किसी एक का चुनाव करना हो तो गॉंधी जी हिंसा को स्वीकार करते थे।उन्होंने कहा था,-यदि आपके ह्दय में हिंसा भरी है तो हम अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए अहिंसा का आवरण पहनें,इससे हिंसक होना अधिक अच्छा है।महात्मा गॉंधी कायरता के पक्षधर नहीं थे।महात्मा गॉंधी अमेरिकन अराजकतावादी लेखक हेनरी डेबिट थोरो से बहुत प्रभावित थे।थोरो की पुस्तक वद जीम कनजल व िबपअपस कपेवइमकपमदबम ने गॉंधी जी पर प्रभाव डाला।महात्मा गॉंधी पर बाइबिल के पर्वत प्रवचन-ेमतउवद वद जीम उवनदज का बड़ा प्रभाव था।पर्वत प्रवचन से ही कि,‘‘अत्याचारी का प्रतिकार मत करो,वरन जो तुम्हारे दॉंये गाल पर चॉंटा मारे उसके सामने बॉंया गाल भी कर दो,अपने शत्रु से प्रेम करो।‘‘महात्मा गॉंधी ने ग्रहण किया था।लेकिन गॉंधी जी के ही शब्दों में,‘‘अहिंसा का तात्पर्य अत्याचारी के नम्रतापूर्ण समर्पण नहीं है,वरन् इसका तात्पर्य अत्याचारी की मनमानी इच्छा का आत्मिक बल के आधार पर प्रतिरोध करना है।
महात्मा गॉंधी ने स्पष्ट किया था कि प्रत्येक व्यक्ति सत्याग्रही नहीं हो सकता।उनके अनुसार सत्याग्रही के लिए यह आवश्यक है कि वह सत्य पर चले,अनुशासित रहे,मन से,वचन से,कर्म से अहिंसा में विश्वास रखे।सत्याग्रही को कभी भी अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छल,कपट,झूठ,हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहिए।हिन्द स्वराज्य में सत्याग्रही के लिए 11व्रतों का पालन आवश्यक बताया है,ये व्रत क्रमशः अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह,शारीरिक श्रम,अस्वाद,निर्भयता,सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखना,स्वदेशी तथा अस्पृश्यता निवारण हैं।
महात्मा गॉंधी के अनुसार किसी भी तरह से अपने विरोधियों को कष्ट नहीं देना चाहिए परन्तु जब सत्याग्रही अपनी मांगों को लेकर सत्याग्रह करता है,तब निश्चित रूप से विरोधी को मानसिक परेशानी तो होती ही है।इसी लिए आर्थर मूर ने सत्याग्रह के आत्मिक बल प्रयोग को मानसिक हिंसा उमदजंस अपवसमदबम कहा है।सत्याग्रह का एक रूप उपवास भी विरोधी पक्ष के मन में भय व आतंक ही भरता है,अतःयह आतंकवाद का ही एक रूप कहा जा सकता है,इसे राजनैतिक दबाव चवसपजपबंस इसंबाउंपसपदह भी कहा जा सकता है।गॉंधी जी के बताये सत्याग्रह से भी विपक्षी को कष्ट तो होता ही है,फिर किसी को दुःख न पहुॅंचाने का सिद्धान्त भी खण्डित ही होता है।तात्पर्य यह है कि जब अन्यायी के अन्याय का विरोध करना है,सत्य का पालन करना है,सत्य का आग्रह करना है तब सिर्फ आत्मिक बल का प्रयोग क्यों??क्या आजादी की जंग में सशस्त्र संघर्ष के राही गलत राह पर थे?क्या जनता को अपने हक के लिए,आजादी के लिए,अन्याय के खिलाफ संघर्ष के जो उदाहरण हमारे 1857 के शहीदों ने प्रदत्त किये,वो अनुकरणीय नहीं है? क्या हमें चाफेकर बन्धुओं से लेकर भगत सिंह और उनके साथियों के विचार,त्याग व बलिदानों से हमें कोई प्रेरणा नहीं लेनी चाहिए,यह तो सशस्त्र संघर्ष के ही राही थे।आजाद हिन्द फौज के नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को कौन भूल सकता है?1929 लाहौर कांग्रेस में दुर्गा भाभी और अन्य क्रान्तिकारियों द्वारा वितरित भगत सिेह और भगवतीचरण वोहरा द्वारा लिखित हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के घोषणा पत्र में लिखा गया था,-‘‘आजकल यह फैशन हो गया है कि अहिंसा के बारे में अन्धाधुन्ध और निरर्थक बात की जाये।जब दुनिया का वातावरण हिंसा और गरीब की लूट से भरा हुआ है,तब देश को अहिंसा के रास्ते पर चलाने का क्या तुक है?हम अपने पूरे जोर के साथ कहते हैं कि कौम के नौजवान कच्ची नींद के एैसे सपनों से रिझाये नहीं जा सकते।‘‘
दरअसल समझने की बात यह है कि महात्मा गॉंधी के बताये सत्याग्रह के रूप से भी विरोधी को कष्ट तो होता ही है।विपक्षी को मानसिक तथा कभी कभी शारीरिक कष्ट भी होता है,इस तरह तो गॉंधी जी का आदर्श कि शत्रु को भी कष्ट नहीं पहुॅंचाना चाहिए,उनके ही एक आदर्श सत्याग्रह से खण्ड़ित हो जाता है।आत्मिक बल के प्रयोग से विरोधी को मानसिक कष्ट तो होता ही है।शत्रु को कष्ट न पहुॅंचे यह सिद्धान्त भी अस्तित्व हीन व निरर्थक है।महात्मा गॉंधी जी का मन्तव्य सिर्फ यह था कि सीधे लड़ाई न लड़ी जाये,शारीरिक बल प्रयोग न किया जाये और न ही सशस्त्र आन्दोलन किया जाये।सशस्त्र संघर्ष को गॉंधी जी हिंसा मानते थे।बडी दुविधापूर्ण स्थिति है कि क्या अन्यायी,अत्याचारी,शोषकों के विरूद्ध सशस्त्र युद्ध न्याय संगत नहीं है?मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्राी राम द्वारा लंकेश रावण से युद्ध व संहार क्या राम को हिंसक की श्रेणी में लाता है?क्या राम को लंका में उपवास करना चाहिए था?राम को क्या आमरण अनशन करना चाहिए था?भगवान श्राी कृष्ण ने तो पाण्ड़वों के हक के लिए उनका सारथी बनना तक स्वीकार कर महाभारत में अर्जुन का रथ चलाया।अपना चक्र धारण कर अपनी प्रतिज्ञा तोडी।अपने अत्याचारी मामा कंस,फुफेरे भाई दुष्ट शिशुपाल तक का वध कृष्ण ने किया।क्या ये श्रद्धेय जन हिंसक प्रवृत्ति के थे?क्या समाज के लिए जो बलिदान सशस्त्र संघर्ष करते हुए नौजवानों ने दिया,वे गलत राह पर थे?आज भी देश की सीमाओं पर युद्ध में शस्त्रों का ही प्रयोग होता है।और यही वास्तविकता भी है कि आत्म रक्षा हेतु सिर्फ आत्मिक बल व नैतिक बल ही नहीं,शारीरिक बल का प्रयोग भी न्याय संगत और सत्याग्रह का ही रूप है।अन्याय करने के लिए किया गया बल प्रयोग ही हिंसा कहलाना चाहिए।आत्म गौरव,सम्मान,हक,आजादी के लिए संघर्ष करने वाले तो वीर होते हैं।आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सशस्त्र संग्राम के योद्धाओं ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए,सत्य की स्थापना के लिए,आत्मिक-नैतिक-शारीरिक बल का प्रयोग कर सत्याग्रह का वास्तविक रूप स्थापित किया है।विरोधी को कष्ट तो होता ही है चाहे शारीरिक बल का प्रयोग हो या न हो।अन्याय व शोषण के खिलाफ लड़ने वाले हिंसक नहीं कहे जा सकते,वे तो वीरोचित धर्म का पालन करने वाले,अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले अपनी महान बलिदानी परम्परा के पालनकर्ता मात्र व सच्चे जन सेवक होते हैं।ये कायर नहीं होते,निश्चित रूप से एैसे वीर जन सत्य-अहिंसा-सत्याग्रह के सही मायनों में सच्चे अनुयायी होते हैं।
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सूरजकुंड मेले से एक दिन पहले पत्रकारों की चांदी. पार्टी के साथ जाम भी छलके...
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सीलबंद लिफाफा
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प्यार का पहला एहसास (तुम्हारे जाने के बाद)……......(सत्यम शिवम)
Posted by Er. सत्यम शिवम 2 comments
साला मै तो करोडपती बन गया ...........
रोज सुबह ऑफिस आना ...अपनी मेल चेक करना .... आने वाली मेल का जवाब देना ...हर आदमी के जीवन की रोजमर्रा में सामील है
पर कभी कभी कुछ मेल ऐसी आ जाती है जिससे आदमी का दिमाग भन्ना जाता है .. ऐसी ही कुछ मेल आजकल मेरे पीछे पड़े हुए है
न जाने उन नामुराद कंपनी वाले को मेरी मेल आई दी कहा से मिल गयी है .... रोज वो मेरे मेल पर लाखो डालर और करोडो पौंड भेज
रहे है ...आप फलाना लाटरी में एक मिलियन डालर जीत गए है ...आप धिमका लाटरी में ७५०००० हजार पौंड जीत गए है इस टाईप के ढेरो
मेल मेरे इन्बोक्स में पड़े हुए है ... कल मैंने तंग आकर एक मेल का जवाब दे डाला और आज सुबह ही मेरे मोबाईल पर उनका एक sms आ
गया की डीयर मनीष जी आप मैक्रोसोफ्ट लाटरी में १ मिलियन डालर जीत गए है और मै kelly stone intarnational airport पर आपका पार्सल
और १ मिलियन डालर का ड्राफ्ट लेकर पड़ा हुआ हूँ आप आइये और कस्टम का भुगतान कर के अपने पैसे ले जाइये ...और ये बात किसी को नहीं
बताइयेगा ... अप मै ठहरा पत्रकार आदमी बागवान ने जब मेरी रचना की तो कहा की जा बेटा तू धरती पर और तेरी खासियत ये रहेगी तेरे पेट में
कोई बात नहीं पचेगी अगर तुझे कोई गोपनीय बात पता चल गयी तू तू जब तक चिल्ला चिल्ला कर पूरी दुनिया को नहीं बता दोगे तुम कोई और
काम नहीं कर पाओगे .... अतः मै यहाँ आकर पत्रकार बन गया ....और ये नामुराद लाटरी वाले मुझे कह रहे है आप करोडपती बन गए है आप आइये
और पैसा ले जाइये और अपने करोडपती बनने की बात किसी को बताइयेगा नहीं , भला ये बात मेरे पेट में कैसे पच सकती है ... बस मै बैठ गया अपने कंप्यूटर पर और सोचा की क्यों न ये बात मै अपने सारे पत्रकार दोस्तों को बता दू .....और अपने ब्लॉग से अच्छा कोई माद्यम नहीं है जिसके आलावा मै लोगो को अपने करोडपती बनने की जानकारी दू ...
पर यहाँ एक समस्या और आ गयी है वो मुझसे कस्टम के नाम पर २५००० रूपये की मांग कर रहे है पर मै ठहरा गरीप टाइप का पत्रकार
मेरे पास इतने पैसे है नहीं की मै इनकी ये सर्त पूरी कर सकू ...फ़िलहाल मेरा करोडपति बनने का सपना तो टूट गया ....पर क्या करू ये साला
दिल नहीं मान रहा ....... ऐसी स्थिति में अगर आप लोग होए तो क्या करते ........क्या करोडो के नाम पर पैसा लेकर अपना इनाम लेने जाते
या कुछ ऐसा करते की जिससे फिर ये नामुराद कम्पनी वाले किसी को एक झटके को करोडपति बना कर उसकी नीद नहीं खराब करते ..............
आप पत्रकार भाइयो के जवाब के इंतजार में
आपका भाई
मनीष कुमार पाण्डेय
mani655106@gmail.com
Posted by MANISH PANDEY LUCKNOW 3 comments
संग से बनाम तक
Posted by Dharmesh Tiwari 0 comments
महाराष्ट्र में अतिरिक्त जिला कलक्टर को जिन्दा जला देने की घटना हमारे पूरे देश की व्यवस्था पर जोरदार तमाचा है .अगर ईमानदार व्यक्ति के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जायेगा तो कौन ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य को अंजाम देगा? लेकिन एक बात जो माफियाओं को समझ लेनी चाहिए वो यह है क़ि ईमानदारी को तुम न तो जला सकते हो ;न काट सकते हो -तुम केवल एक व्यक्ति के शरीर को चोट पहुंचा सकते हो .आज हम सब के दिलों में आग लगी हुई है और ये तब तक नहीं बुझेगी जब तक ज़िम्मेदार अपराधी अपनी करनी क़ा फल नहीं पा लेते .ऐसी घटनाओं से हम सहम जाने वाले नहीं ;ये घटनाएँ तो हम में सोये हुए जज्बातों को और भी ज्यादा झकझोर कर जगा देते है .भगत सिंह के देश में अब भी शहादत देने वालों की कमी नहीं है .मुनाफाखोरी कर देश के साथ गद्दारी करने वाले देशद्रोहियों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए .आजादी से पहले हम विदेशियों से टकराए थे पर अब हमे अपने ही देश में पल रहे इन साँपों क़ा सिर कुचलना होगा .हमारी इस चुनौती को स्वीकार करने को तैयार हो जाओ -
''तुम जला सकते हो मुझको ;काट सकते हो मुझे ,
पर मेरे ईमान को हरगिज डिगा न पाओगे , ''
Posted by Shikha Kaushik 1 comments
30.1.11
श्री हनुमत शक्ति (मंत्र प्रयोग)........(राज शिवम)
हमारे सनातन धर्म मे रुद्रा अवतार हनुमान सदैव विराजमान है,मनुष्य हो या देवी,देवता सभी के कार्य को सम्पन्न करते है हनुमान जी। राम भक्त,दुर्गा भक्त हो या शिव भक्त,सभी मार्गो मे परम सहायक होते है हनुमान। ये शिव अंश भी,शिव पुत्र भी है राम के भक्त भी वही सीता के पुत्र हैं।ये कपि मुख है,वही पंचमुख,सप्तमुख,और ग्यारहमुख धारण करने वाले है।ये सभी जगह सूपूजित है कारण ये संकटमोचन है।माता,पिता के लिए अपने संतान से प्यारा कोई नही होता ,जैसै गौरी पुत्र गणेश है,वही शिवांश देवी पुत्र बटुक भैरव है वही शिवांश राम भक्त हनुमान जी है।कहा गया है कि बिना गुरु ज्ञान नही होता है वही बिना कुल देवता के कृपा बिना किसी अन्य देव की कृपा प्राप्त नहीं होती है। प्रथम श्री गणेश को स्मरण पूजन किए बिना पूजा प्रारम्भनहीं होता हैं।महाविद्या की साधना करनी हो,वहाँ बिना बटुक कृपा आगे बढ़ना कठिन है।असली माता पिता के पास ये पुत्र ही पहुँचा सकते है,परन्तु अपने इस जीवन के माता पिता की सेवा तथा आदर किए बिना यह संभव ही नहीं है।जीवन के बाधा,संकट का निवारण न हो तो धर्म मार्ग में बढ़ना दुष्कर है।मूर्ति पूजा हो या निंरकार,परन्तु सत्य यही है कि परमात्मा एक हैं,तभी तो कहा गया है कि सत्यम,शिवम, सुन्दरम। सत्य ही शिव है,शिव ही सुन्दर है बाकी सब गौण।एक शिव ही सृष्टि में सत्य है,वही क्रिया शक्ति,चित शक्ति एवं इच्छा शक्ति के रुप में अर्धनारीश्वर है,शिव के बायें भाग में शक्ति हैं,वही शिव के एक रुप है हरि हरात्मक आधा शिव आधा विष्णु,ये शिव की अलग अलग लीला एंव रुप है।शिव सुन्दर है वही उनकी शक्ति सुन्दरी के नाम से विख्यात है,फिर तो शिव के द्वारा रचित श्री रामायण का हनुमत कान्ड को उन्होंने सुन्दर कान्ड का नाम रखा,यह विशेष रहस्यपूर्ण है।सुन्दर कान्ड के प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझेगे तो उस शिव के सुन्दर रुप का मर्म समझ में आ जायेगा।सुन्दर कान्ड का पाठ जहाँ होता है सारे अभाव,पाप,रोग विकार स्वतःनष्ट होने लगता है,हमे सिर्फ पूर्ण श्रद्धा से होकर पाठ करना चाहिए।पाठ से पूर्व हमें क्या करना चाहिए यह भी महत्वपूर्ण है। सुन्दर कान्ड मे शिवशक्ति,सीताराम,वरदान,बल,धन,शुभ,दमन,अहंकार का विसर्जन,भक्ति की परकाष्टा,प्रेम,मिलन विश्वास,धैर्य,बौद्धिक विकास क्यों नहीं प्राप्त किया जा सकता हैं।हमारे हनुमान जी वे सत्यम शिव के सुन्दर,लीलाधर हैं,सभी उनके कृपा से प्राप्त हो जाता है।हनुमत उपासना व्यापक है,हर कार्य सुलभ है।प्रथम गुरु,गणेश का पूजन कर राम परिवार ऋषि पूजन कर हनुमत उपासना करने से ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।मैं हनुमत का विशेष पाठ प्रयोग लिख रहा हूँ,जो चमत्कारिक है और पूर्ण फल प्रदान करनें मे सक्षम । श्री रामायण के प्रथम रचनाकार शिव है फिर ऋषि बाल्मिकी,फिर गोस्वामी तुलसीदास जी है ।मंत्र कवच के ऋषि देवता भिन्न भिन्न है।बजरंग बाण जो प्राप्त होता है वह भी अधुरा हैं।फिर भी लोगों को लाभ मिलता है। एक एक अक्षर शक्ति सम्पन्न है।श्री हनुमान जी शिवांश है परन्तु वैष्णव परिवार से है इस कारण इनके पूजा में मांस,मदिरा,स्त्री भोग वर्जित है।गृहस्थ आश्रम के भक्त इन्हें अधिक प्रिय है परन्तु साधना काल में नियम का पालन अवश्य करे।स्त्री भक्त मासिक धर्म में इनकी साधना न करें।श्री हनुमान चालीसा बहुत प्रभावी एवं प्रचलित हैं, शनिग्रह से प्रभावित हो या राहुकेतु से भूत पिशाच हो या रोग व्याधि नित्य१,३,७,११,२१,३१,५१,१०८ बार पाठ करने से कामना पूर्ण होती है।यह परिक्षित है।श्री शिव पार्वती सहित गणेश नमस्कार कर,सीताराम,सपरिवार का ध्यान कर श्री गोस्वामी तुलसीदास जी को प्रणाम करे,।विशेष लाभ के लिए तिल का तेल और चमेली का तेल मिलाकर लाल बती का दीपक लगा लें,पूर्व,उतर मुख करके थोड़ा गुड़,का लड्डू या किशमिश का प्रसाद अर्पण कर पाठ आरम्भ करें।कुछ विशेष मंत्र का विधि प्रयोग दे रहा हूँ,इससे अवश्य कामना या संकट का निवारण होता है।
१. भयंकर,आपति आने पर हनुमान जी का ध्यान करके रूद्राक्ष माला पर १०८ बार जप करने से कुछ ही दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाता है।
मंत्र त्वमस्मिन् कार्य निर्वाहे प्रमाणं हरि सतम।
तस्य चिन्तयतो यत्नों दुःख क्षय करो भवेत्॥
२. शत्रु,रोग हो या दरिद्रता,बंधन हो या भय निम्न मंत्र का जप बेजोड़ है,इनसे छुटकारा दिलाने में यह प्रयोग अनूभुत है।नित्य पाँच लौंग,सिनदुर,तुलसी पत्र के साथ अर्पण कर सामान्य मे एक माला,विशेष में पाँच या ग्यारह माला का जप करें।कार्य पूर्ण होने पर १०८बार,गूगूल,तिल धूप,गुड़ का हवन कर लें।आपद काल में मानसिक जप से भी संकट का निवारण होता है।
मंत्र मर्कटेश महोत्साह सर्व शोक विनाशनं,शत्रु संहार माम रक्ष श्रियम दापय में प्रभो॥
३. अनेकानेक रोग से भी लोग परेशान रहते है,इस कारण श्री हनुमान जी का तीव्र रोग हर मंत्र का जप करनें,जल,दवा अभिमंत्रित कर पीने से असाध्य रोग भी दूर होता है। तांबा के पात्र में जल भरकर सामने रख श्री हनुमान जी का ध्यान कर मंत्र जप कर जलपान करने से शीघ्र रोग दूर होता है।श्री हनुमान जी का सप्तमुखी ध्यान कर मंत्र जप करें।
मंत्र ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय षष्ट गोमुखाय,सूर्य रुपाय सर्व रोग हराय मुक्तिदात्रे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ॥
ॐ शिव माँ:- श्री हनुमत शक्ति (मंत्र प्रयोग)
Posted by राज शिवम 0 comments
Report To Publish
गांधी,भीमसेन जोशी और श्रीकांत देशपांडे को श्रृद्धांजली
एक ही दिन में देश के तीन दिग्गज जानकारों को स्पिक मैके आन्दोलन के बैनर तले आयोजित श्रृद्धांजली सभा के बहाने याद किया गया.तीस जनवरी,रविवार की शाम चित्तौड़गढ़ शहर के गांधी नगर स्थित अलख स्टडीज़ शैक्षणिक संस्थान में आपसी विचार विमर्श और ज्ञानपरक वार्ता के ज़रिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,भारत रत्न स्व. पंडित भीमसेन जोशी के साथ ही शनिवार को ही दिवंगत हुए किराना घराना गायक श्रीकांत देशपांडे को हार्दिक श्रृद्धांजली दी गई.आयोजित सभा के सूत्रधार 'अपनी माटी' वेब पत्रिका के सम्पादक माणिक ने विषय का आधार रखते हुए महात्मा गांधी के हित रामधारी सिंह दिनकर की लिखी कुछ कविताओं का पाठ किया.बाद में कविताओं के अर्थ भी बहुत देर तलक विमर्श का हिस्सा रहे
प्रमुख वक्ता के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता भंवर लाल सिसोदिया ने इस अवसर पर गांधी दर्शन को आज के परिप्रेक्ष में किस तरह से अपनाया जा सकता है पर विचार रखे.देश की आज़ादी के पहले से लेकर बाद के बरसों में गांधी दर्शन की ज़रूरत पर कई बिन्दुओं से विचार विमर्श हुआ.सिसोदिया ने कहा कि गांधी ने अपने काम के ज़रिए वर्ण व्यवस्था पर बहुत पहले से प्रहार करना शुरू कर दिया था. आज समाज में समानता और स्त्री अधिकारों की बातचीत का जितना भी माहौल बन पाया है, ये उसी विचारधारा की देन हैं. गांधी की दूरदर्शिता में ग्राम स्वराज्य का सपना उनके प्रमुख और लोकप्रिय ग्रन्थ 'हिंद स्वराज' के पठन से भलीभांती समझा जा सकता है.सिसोदिया ने वर्ष में एक बार किसी आश्रम में पांच-छ; दिन का समय बिताने पर भी जोर दिया और कहा कि उन्होंने भीमसेन जोशी को भी देवधर आश्रम,मुंगेर,बिहार में ही लगातार सात दिन तक सुना था,जो आज तक अदभुत और यादगार क्षण लगता है.
एच.आर. गुप्ता ने अपने उदबोधन में अपने बाल जीवन से ही स्वयं सेवा के आन्दोलन में मिले अनुभव बताते हुए गांधीवादी विचारकों के साथ की गई संगत को याद किया.उन्होंने यहाँ-वहाँ विचार-विमर्श की जुगाली करते रहने के बजाय अपने घर से विचार और कर्म में समानता लाने की पहल पर जोर दिया.
सभा के दूजे सत्र में सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी एस.के.झा ने लब्ध प्रतिष्ठित गायक भीमसेन जोशी पर अपना विस्तृत पर्चा पढ़ा.उन्होंने उनके गाए भजन,अभंग और रागों के बारे में अपने अनुभव सुनाए.साथ ही झा ने संगीत को सुनने और समझने के लिए लगातार अच्छी संगत की ज़रूरत व्यक्त की.गुरु शिष्य परम्परा की बात पर संगीत प्राध्यापिका भानु माथुर ने भी अपने महाविद्यालयी जीवन के बहुत से अनुभव सुनाए.इस आयोजन में मुकेश माथुर.सामजसेवी नित्यानंद जिंदल और युवा फड़ चित्रकार दिलीप जोशी ने भी अपने विचार रखे.अंत में स्पिक मैके संस्था समन्वयक जे.पी.भटनागर ने आभार ज्ञापित किया. दिवंगत आत्माओं के लिए मौन रख रखने के बात सभा पूरी हुई.
आदर सहित,
Posted by ''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल 0 comments
क्षमा करना बापू तुम हमको-ब्रज की दुनिया
बापू तुमने आजादी के तत्काल बाद हमसे से कांग्रेस को भंग कर देने को कहा था.तुम समझ गए थे कि हमने तुम्हारा उपयोग भर किया है और आजादी मिल जाने के बाद तुम्हें व तुम्हारे विचारों को किसी कोने में फेंक देंगे.हमने ऐसा किया भी.लेकिन तुम खुद भी तो सत्ता से दूर,किनारे हो गए थे.क्यों किया था तुमने ऐसा?तुम जिद पर अड़ जाते तो कांग्रेस बिना भंग हुए रह जाता क्या?लेकिन तुमने इस मुद्दे पर न तो धरना दिया और न ही अनशन की घोषणा ही की.
बापू हम तो साधारण इन्सान हैं इसलिए जैसे ही सत्तासुख भोगने का मौका मिला बेईमानी पर उतर आए.हमारे फाइनेंसरों ने जैसा कहा हम वैसी ही नीतियाँ बनाते गए.अब तुम्हारा गांधीवाद इस बारे में क्या कहता है यह तो तुम्हीं जानो.हमारा स्वार्थवाद तो यही कहता है कि जो लक्ष्मी के दर्शन कराए उसी का समर्थन करो.तुम कहते थे कि साधन की पवित्रता जरुरी है लेकिन हमने सिर्फ रूपये को ही पवित्र समझा है और उसकी पवित्रता को और बढ़ाने के लिए ही हमने तुम्हें भी रूपये पर बिठा दिया है.हम उम्मीद करते हैं कि इससे तुम्हारी आत्मा को शांति मिली होगी.
बापू तुम कभी सत्ता में रहे हो?नहीं न?फ़िर तुम्हें तो यह पता भी नहीं होगा कि सत्ता का नशा क्या होता है?जब देश या राज्य का सबकुछ किसी खास आदमी के हाथों में आ जाता है,तब उस पर और उसके दिलो-दिमाग पर एक नशा जैसा तारी हो जाता है.वह चौबीसों घन्टे उसी नशे में रहता है,होश में कभी रहता ही नहीं.फ़िर वह जिस तरह के काम करने से उसका और उसके अपनों का फायदा होता है,करता जाता है.तुम नहीं जानते हो,हमने कभी जानबूझकर चारा नहीं खाया और न ही पेट्रोल पिया,सब सत्ता के नशे ने हमसे करवाया.फ़िर भी गलती तो गलती होती है यही सोंचकर माफ़ी मांग रहा हूँ.
बापू जब तक आजादी की लड़ाई जारी थी तब तक तो हमें लग रहा था कि आजादी बहुत बड़ी चीज है लेकिन जब आजादी मिल गई तब पाया कि यह आजादी तो आजादी है ही नहीं.चारों ओर से कानून के बंधन.इसलिए शुरू में हमें छुप-छुपकर देश से बाहर श्यामालक्ष्मी को भेजना पड़ा.तुम्हारी नैतिकता का पाठ पढ़कर तब की जनता बेईमानी के खिलाफ हो रही थी इसलिए करता भी क्या?यहाँ मैं अपनी गलती नहीं मानता इसलिए माफ़ी नहीं मांगूंगा.अगर तुमने निजी जीवन में पवित्रता बनाए रखने का समर्थन नहीं किया होता तो आज हमारा जो धन स्विस बैंक में जमा है अपने देश में ही होता.
बापू तुम आज भी हमें दिलोजान से प्यारे हो.यह हमारी तुम्हारे प्रति मोहब्बत ही है जो हम तुम्हारी तस्वीर ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में घर में और अपने बैंक खाते में इकठ्ठा करने के लिए अपनों तक का भी खून कर डालते हैं.जब अहिंसा यानी साम,दाम और दंड से बात नहीं बने तो अंत में हिंसा यानी भेद का विकल्प ही तो बचता है.हम भी क्या करें कुछ ईमानदारी की खुजलीवाले लोग बिना बल प्रयोग के मानते ही नहीं;वैसे हम भी नहीं चाहते कि कहीं हिंसा हो.हमें भी पता है अहिंसा का महत्व.बापू तुमने ही तो कहा था जीओ और जीने दो.कोई हमें अपने मतलब की सार्थक जिंदगी नहीं जीने दे तो हम क्या करें?तब तो हमीं जियेंगे न बांकी दुनिया चाहे जीये या मरे.तुम्हारा ही तो कहना था कि अधिकार के लिए संघर्ष करना चाहिए.
रही बात सत्य की तो सत्य है ही क्या?यह दुनिया ही माया है फ़िर अगर हम माया के पीछे भागते हैं तो इसमें बुरा ही क्या है?जब कुछ भी सत्य नहीं है तो फ़िर हम सत्य को कहाँ ढूंढें और क्यों ढूंढें?दिन-रात झूठ बोलनेवाले लोग कार पर चलते है और सत्य के पीछे भागनेवाले दाने-दाने को मोहताज हैं.तुम्हारे युग में भी ऐसा होता था लेकिन कम था.तुम भले ही अभाव में जी ले सकते थे सब लोग तो नहीं जी सकते.पूरे घर-परिवार का दबाव रहता है इसलिए हम भारतीयों में से ९९ प्रतिशत से भी ज्यादा भारतीयों ने तुम्हारे सत्य को भी छोड़ दिया है चाहो तो इसके लिए तुम हमें माफ़ करो या नहीं करो.चाहो तो इसे कायरता भी कह सकते हो.
बापू सीधे लोगों का जमाना नहीं रहा रे.अब देखो न तेरे मरे हुए कितने साल हो गए लेकिन लोग तुझे आज भी गालियाँ देते हैं.कहते हैं कि देश की यह दुरावस्था तेरे कारण हुई हैं.कैसे?पूछने पर कहते हैं कि नेहरु को तुमने ही प्रधानमंत्री बना दिया था.तुम्हीं जानो सच्चाई क्या है और यह आरोप कहाँ तक सही है?लेकिन जो लोग तुम्हें गरियाते हुए नहीं थकते वे कौन-से देशहित में कर्म कर रहे हैं?शायद वे तेरे द्वारा स्थापित आदर्शों के आगे हीनभाव महसूस करते हैं,इसलिए यह वाचिक हिंसा करते हैं.उन्हें भी माफ़ कर देना तुम.मैं उन लोगों में से नहीं हूँ रे.मैं आज भी गांधीवादी हूँ और कोई मेरा साथ नहीं भी दे तो भी गांधीवादी ही रहूँगा,एक अकेला गांधीवादी.तूने भी देश की आजादी की धुन में घर-परिवार की कीमत चुकाई थी.वो तेरे बेटे हरिलाल ने तो बगावत ही कर दी थी न.मैं भी अपने घर में बगावत झेल रहा हूँ.क्या करुँ तेरी ही तरह जिद्दी हूँ न,चाहकर भी झुक नहीं सकता!?
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 0 comments
पहले तो हम अपनी पीठ थपथपाएं
यह बताने से पहले कि क्या कर रहे है, पहले तो हम अपनी पीठ थपथपालें। अब कुछ लिखता हूं।
प्रज्ञा दी, प्रखरता दी और दिया सम्मान, वाकई भैया रायपुर है महान। मैं इस शहर का आभारी हूं, जिसने मुझे वो सबकुछ दिया है, जो यह सबको देता है। मैं इसका और ज्यादा आभारी हो जाऊंगा अगर यह मुझे वो और दे देगा जो मुझे इससे अब चाहिए। जी हां अखबार की नौकरीनुमा रचनात्मकता में कहीं हम अपनी क्रियाशीलता तो बढ़ी पाते हैं, लेकिन रचनाशीलता को सिकुड़ा और पारंपरिक खांचों में फंसे जज्बात। इसी बात को ध्यान में रखकर हम कुछ लोगों ने गांधी पर एक अलग ढंग की फिल्म बनाने का फैसला किया है। यह काम कुछ-कुछ उसी तरह से है जैसे एक उद्योगपति के घर पर काम करने वाला माली उसकी हर अच्छी बुरी बात जानता है, लेकिन उस बात का इस्तेमाल नहीं। लेकिन अगर एकाध माली ऐसा कुछ जानने लग जाए तो उसे अतिरिक्त प्रज्ञा का धनी कहा जा सकता है। हम लोग भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। गांधी की प्रतिमा के नीचे खड़े होकर हम सबने इस फिल्म पर आज से औपचारिक रूप से काम करने का संकल्प लिया है। इसमें स्क्रिप्ट स्तर का काम रोहित और विनीत जी 5 फरवरी तक फाइनल कर देंगे। 15 फरवरी तक रोहित वरुण और नीरज कॉलेजों से इसके लिए पात्रों को खोजकर लाएंगे। 25 फरवरी तक वरुण इसकी पूरी शूटिंग रूप रेखा तैयार करके 26 फरवरी से शूटिंग स्टार्ट करेंगे। यह जिम्मा वरुण के पास ही रहेगा, कि कौन कैमरा चलाएगा, कौन एडिटिंग करेगा। साजसज्जा, फिल्म सेट्स, लोकेशन आदि की प्लानिंग। वहीं इस पुनीत और रचना के शुभ कार्य में हमारे सीनियर प्रसून जी का भी विशेष सहयोग मिल रहा है। विश्वविद्यालय में रावण के रूप में फैमस रहे हमारे साथी रंजीत की फिल्मी और नाटकीय प्रतिभा के इस्तेमाल की उनसे एसएमएस और मेल से बात हुई है। मित्रो यह कार्य ब्रम्हांड को अपने पैरों के नीचे रखने का बराबर है। यह फिल्म लोगों के बीच 1 अप्रैल तक होगी। इसकी संभावित रिलीज भी यही तारीख या रामनवमीं रहेगी। स्क्रिप्टिंग, शूटिंग, एक्टिंग, कोरियोग्राफी, फिल्मांकन, लोकेशन, इवेंट मैनेंिजग, एडिटिंग, पब्लिसिटी से लेकर सबकुछ काम हमारी यह टीम देखेगी। इस फिल्म के निर्माण से लेकर बहुत कुछ प्लानिंग है। दोस्तों संभव भी हो कि हम अपने मकसद में सफल न हो सकें। संभव भी है, कि हम इस प्रॉजेक्ट पर चंद कदमों पर ही ढेर हो जाएं। लेकिन आखिरी और आखिरी शब्द यही है, फिल्म तो बनकर रहेगी, और यह फिल्म जरूर बनेगी। गांधी जी से हमारा वायदा है दोस्त कि यह फिल्म जरूर बनेगी।
अंत में: फिल्म तो बनेगी भैया चाहे फिर कैसे भी बने। रचना यज्ञ में आहुति देने आप सभी पधारें। जय हे::::::::वरुण, ९००९९८६१७९
इनका आभार: श्री प्रसून जी, श्री विनीत जी, श्री रोहित जी, श्री नीरज जी, श्री श्याम जी, श्री भगत जी, श्री वो सब जो इस प्रॉजेक्ट से अबतक जुड़े हैं, और जो जुडऩे वाले हैं, या जो जुड़ेंगे ही जुड़ेंगे। और वो भी जो इसे हल्के से लेकर अंडर एस्टिमेट कर रहे हैं। इसके साथ ही वर्दी कमेंट्स भी हमें आपके चाहिए, जो आपको देने ही देने हैं।
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राष्ट्रपिता को शहीदी दिवस पर सूखे श्रद्धा सुमन
Posted by डॉ. नवीन जोशी 1 comments
गांधी की प्रासंगिकता
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पत्रकारिता में बदलाव: कल, आज और कल
इतिहास गवाह है की मनुष्यों का भाग्य बदल देने वाली लड़ाइयो बन्दुखो और तोपों ने उतना गोला बारूद नहीं उगले जितने की कालमो ने शब्द उगले है
जंगे आजादी की लड़ाई में जो काम हमारे क्रांतिकारियों की बन्दुखो से निकली गोलिया नहीं कर पाई वो काम कालमो से निकले शब्दों ने किया है
चाहे वो आजादी का लम्बा संघर्ष हो रास्ट्र निर्माण सभी में मिडिया का अतुलनीय योगदान रहा है
भारतीय मिडिया अभी ताकि अपने तीन दौरों से गुजर चुकी है आजादी के संघर्ष के दौरान आम जनमानस में लोगो की जनजाग्रति की वाहक
बनी, आजादी के बाद देश के नवनिर्माण में अपना योगदान दिया ,और आपात कल में लोकतंत्र की प्रहरी बनी पर आज मीडिया अपने व्यावसायिकता
के चौथे दौर से गुजर रही है आज पत्रकारिता के लिए सबसे बड़ी चुनौती का दौर है और वो चुनौती है आम लोगो के बीच अपनी विस्वसनीयता
को बनाये रखना
भारतीय मीडिया का पहला दूसरा और तीसरा दौर कफ्ही सराहनीय रहा है लेकिन वर्तमान में मीडिया की स्थिति अपनी वास्तविकता से दूर होती
जा रही है कभी मीडिया का नाम आते ही लोगो के जहाँ में क्रांति, विस्फोट, तख्तापलट, परिवर्तन, जागरूकता जैसे सब्द लोगो के जहाँ में आने
लगते थे आज मीडिया में स्टिंग आपरेसन, पेड़ न्यूज़ , टी आर पी, जैसे शब्द जुड़ गए है आज की मीडिया का रूप मिशन से बदल कर प्रोफेसन हो
गया है राजकीय संस्थानों से मीडिया समूहों से बड़ी नजदीकिया, स्टिंग आपरेसन के सच, ब्रेकिंग न्यूज़ के पीछे छिपे सच किसी से छुपे नहीं रह
गए है पैसा कमाने की होड़ मी पत्रकारों और मीडिया घरानों के बीच बढती गलाकाट प्रतिस्पर्धा, न्यूज़ वैल्यू के नाम पर नंगापन परोसने की प्रवीत्ति
से भी आज लोग अनजान नहीं है. इसलिए जनता का विश्वास धीरे धीरे मीडिया से उठता जा रहा है
आज मीडिया संस्थानों में संपादको से ज्यादा जलवे विज्ञापन व्यस्थापको के होते है उदारीकरण के बाद समाचारों के बाजारीकरण को आसानी से समझा
जा सकता है लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कही जाने वाली पत्रकारिता आज अपना ही आस्तित्व अपने ही लोगो के बीच तलासने में लगी हुई है लेकिन आज
का सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है की आखिर मीडिया के गिरते हुए स्तर को कैसे बचाया जाये ये सवाल हमें काफी मुस्किल में डाल देता है
जहा तक मै सोच पाता हूँ वो है की जब तक एक बार हम फिर इस प्रोफेसन को मिसन में ना बदल दे तबतक इसका उद्धार संभव नहीं है अगर आप मेरे विचार
से सहमत है या कोई अन्य विचार आपके जहन में है तो मुझे जरुर अवगत कराये और एक बार फिर पत्रकारिता को मिसन समझ कर सुरु करे यकीन माने
हमारी वर्तमान मीडिया निश्चीत रूप से अपने पाचवे दौर में प्रवेश करेगी जो हमारी आने वाली पीढियों के लिए आदर्श होगी
अगर आप के ये लेख अच्छा लगा हो तो आप अपनी राय आप मुझे जरुर भेजे
मनीष कुमार पाण्डेय
mani655106@gmail.com
Posted by MANISH PANDEY LUCKNOW 0 comments
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लग रहा है यूँ लाजबाब कोई
लग रहा है यूँ लाजबाब कोई,
जैसे खिलता हुआ गुलाब कोई ।
चौदवीं रात बादलों में छुपा
झांकता है ज्यों माहताब कोई ।
मखमली दूब पे पसरता ज्यों
सुबह- सुबह का आफताब कोई ।
मेरी आँखों में यूँ उतरता है
दिल में ज्यों मचलता हो ख्वाब कोई ।
लग रहा है यूँ लाजबाब कोई
जैसे खिलता हुआ गुलाब कोई ।
Posted by Dr Om Prakash Pandey 0 comments
नो वन किल्ड महात्मा गांधी?
यह शायद बड़ा संयोग है कि यह मेरी 150 वीं पोस्ट है और आज ही महात्मा गाँधी को राष्ट्र आज उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दे रहा है. गांधी की चौक-चौराहों पर लगी प्रतिमाओं पर जी भरकर श्रद्धासुमन अर्पित किये जा रहे हैं, देश गांधी मय हो गया है, मगर उनका क्या जो अब गांधी का चित्र केवल करारी करेंसी में ही देखने के आदी हो चुके हैं. यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि जिस गांधी ने देश की आज़ादी के लिए अपने शरीर के सारे वस्त्रों का त्याग कर महज़ एक लंगोटी को अपनाया, जिनकी सच्चाई की कसमें खाईं जाती हों उसी बापू के चित्र वाले नोटों ने आज आदमियत खत्म कर दी है, यही नोट आदमी के गरीबी की रेखा के ऊपर-नीचे होने की सीमाएं तय करते हैं. आज़ादी का सबसे ज़्यादा सुख भोग रहे नेता भी अब गांधी को नोटों में छपा देखकर ही खुश होते हैं. ..........शर्म करें आज के दिन.....आखिर कितनी बार गांधी की ह्त्या करेंगे? पूरी पोस्ट देखें- http://aidichoti.blogspot.com/
Posted by उपदेश सक्सेना 0 comments
सी.एम.ऑडियो क्विज़
सभी साथियों/पाठकों/प्रतियोगियों को सप्रेम नमस्कार
'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 7' कार्यक्रम में आप का स्वागत है।
दो ऑडियो क्लिप सुनवा रहे रहे हैं। दोनों ही गाने 'ब्लैक एंड व्हाईट' फिल्मों के दौर के
'सुपर-हिट' गाने हैं। आप नीचे दी हुयी दोनों आडियो क्लिप्स को बहुत ध्यान से
सुनकर पूछे गए प्रश्नों के सही जवाब दीजिये।
प्रतियोगिता स्थल पर जाने के लिए क्लिक करें
Posted by प्रकाश गोविंद 0 comments
Labels: Quiz Program
29.1.11
DUKHAD SANDESH
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प्रदेश ही नहीं मानसिकता भी है बिहार-ब्रज की दुनिया
जब ६ साल पहले नीतीश कुमार जैसा सुलझा हुआ नेता बिहार की सत्ता पर काबिज हुआ तब माना गया कि अब बिहार के दिन फिरने ही वाले हैं.लेकिन आज भी बिहार भारत के लिए अपशकुन ही बना हुआ है.इन ६ सालों में प्रदेश में पूँजी निवेश तो नहीं ही हुआ,इसके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक बिजली की स्थिति भी सुधरने के बजाये बिगड़ी ही है.यहाँ मैं आप पाठकों को कुछ उदाहरणों द्वारा बताना चाहूँगा कि वह बिहारी मानसिकता क्या चीज है जिसके चलते हमारा राज्य प्रत्येक क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है.
मेरे पड़ोस में एक शर्मा जी का परिवार रहता है.शर्मा जी अच्छे वेल्डर हैं.अभी तो वे जयपुर में हैं और मात्र ८ हजार के वेतन पर किसी फैक्टरी में काम कर रहे हैं.जब वे यहाँ थे तब मैंने उनसे कहा था कि आप हाजीपुर में ही एक वेल्डिंग की दुकान खोलिए.जहाँ तक हो सकेगा हमलोग भी मदद करेंगे.हालांकि उन्हें दुकान खोलने में कोई ऐतराज भी नहीं था लेकिन उनके बेटों ने इसका जबरदस्त विरोध कर दिया.उन नौनिहालों का कहना था कि अगर उन्होंने यह दुकान खोली तो उनके सहपाठी उनका मजाक उड़ायेंगे.अंत में बेचारे ने न चाहते हुए भी ५० की ढलती उम्र में फ़िर से जयपुर का रास्ता पकड़ा.निश्चित रूप से वे अपनी दुकान खोल कर ८ हजार रूपये प्रतिमाह से कई गुना ज्यादा कमा लेते लेकिन घर-गाँव में काम करना उनके खुद के घर के लोगों को ही मंजूर नहीं हुआ.कुछ ऐसा ही हाल बिहार से बाहर रह रहे लाखों बिहारियों का है.जो श्रम बिहार की उन्नति में सहायक हो सकता था निरूद्देश्य दिल्ली-पंजाब की ओर पलायन कर रहा है.जीवनभर काम करने के बावजूद इन मजदूरों के हाथ हमेशा खाली रहते हैं क्योंकि इन्हें कभी इतनी मजदूरी नहीं मिल पाती जिसमें वे घर से बाहर रहकर खुद का खर्चा निकाल पाएं और गाँव में परिवार का भी भलीभांति पेट भर सकें.
दूसरा उदाहरण मेरा खुद का ही गाँव है.बिलकुल श्री श्रीलाल शुक्ल के रागदरबारी के शिवपालगंज जैसा.मेरे गाँव के मुखिया जी बड़े हुनरमंद हैं.जब २००६ में शिक्षामित्रों की बहाली का अहम जिम्मा सुशासन बाबू ने मुखियों को दिया तो इन्होंने एक साथ अपने दो-दो बेटों को शिक्षक बना लिया और एक पुत्र को बाद में न्यायमित्र बना लिया.इसके लिए उन्होंने काउंसिलिंग में दो-दो रजिस्टर रखे.एक असली और दूसरा नकली.एक में दिखावे के लिए काउंसिलिंग की और दूसरे रजिस्टर के माध्यम से सारी नौकरियां घर में ही रख लीं.ऐसा भी नहीं है कि सारे मुखियों ने ऐसा ही किया हो.कुछ मुखिया ऐसे भी थे जिन्होंने इन बहालियों में घरवालों पर कृपा करने के बदले जमकर पैसा बनाया.मेरा वार्ड सदस्य भी कम जुगाडू नहीं है.उसने अपने एक परिवार में पॉँच परिवार बना लिए हैं और सबका नाम बी.पी.एल. में दर्ज करवा लिया है.पहले से पक्का मकान होने के बावजूद वह ५ बार अपने ५ परिवारों के नाम पर इंदिरा आवास की राशि उठा चुका है.वह हर महीने क्विंटल के भाव से सरकारी दुकान से सस्ता अनाज लाता है और बेच देता है.ड्रम से किरासन लाता है सो अलग.आपको आश्चर्य होगा कि उसकी २० वर्षीया बहू को इस कमसिन आयु में ही वृद्धावस्था पेंशन मिलता है.अभी कुछ ही दिन पहले मेरे घर के पीछे के टोले में आग लग गई.हालांकि वार्ड सदस्य का उसमें एक तिनका भी नहीं जला था लेकिन फ़िर भी उसने दो-दो घर जलने के नाम पर मुआवजा ले लिया.भ्रष्टाचार और घूसखोरी की असीम अनुकम्पा से मेरे गाँव में ऐसे दो-चार जमींदार परिवार ही होंगे जिनका नाम बी.पी.एल. सूची में नहीं है.वरना सारे धनवान आजकल सरकारी दस्तावेजों में गरीबी रेखा से नीचे की जिंदगी गुजार रहे हैं.उनमें से कईयों ने तो इंदिरा आवास की राशि भी उठा ली है जबकि उनके पास पहले से ही बड़े-बड़े व पक्के मकान थे.हमारा पंचायत समिति सदस्य भी कम करामाती नहीं.फ़िर उसके साथ ही अन्याय क्यों?चलिए थोड़ा उनका भी गुणगान हो जाए.हुआ यूं कि पिछले साल हमारे गाँव की हरिजन टोली में ४५ घर जल गए.लेकिन किसी भी हरिजन को कोई मुआवजा नहीं मिला क्योंकि सबके बदले अकेले मुआवजा उठा लिया सलमान खान से भी कहीं ज्यादा दबंग श्रीमान पंचायत समिति सदस्य जी ने.
अबतक तो आप समझ गए होंगे कि बिहार के गांवों में आकर भारत सरकार की सारी योजनाएं क्यों धूल चाटने लगती हैं जबकि केरल में वही सुपरहिट हो जाती है.हमारे बिहार में बिना तालाब खोदे मछलियाँ पाल ली जाती हैं और उन्हें चारा देने के नाम पर करोड़ों का गबन कर लिया जाता है.खैर ये तो रही स्वनामधन्य, बिहारी शब्द को गली बना देने वाले लालू जी के ज़माने की बात.तब की तो बात ही अलग थी.अब वो समय कहाँ?तब तो मोटरसाइकिल पर भैसें भी ढोयी जाती थीं.अब तो भाई मनरेगा का जमाना है.वैसे तो यह योजना लाई गई थी मजदूरों के लिए.लेकिन चांदी काट रहे हैं मुखिया.बिना वृक्षारोपण किए ही पौधों की सिंचाई के नाम पर मजदूरी के पैसों का घोटाला कर लिया जा रहा है.वैसे तो आधे से ज्यादा मजदूरों का कोई अस्तित्व ही नहीं और अगर मजदूर सही भी हुआ तो उसे घर बैठे आधी राशि दे दी जाती है.
अभी पिछले साल की ही बात है.गाँव में मेरे एक पड़ोसी के दालान पर एक आटा चक्की बिठाई जा रही थी.मेरे पड़ोसी अपनी काहिली और ताश के पत्तों के प्रति दीवानगी के लिए पूरे इलाके में जाने जाते हैं.सो मुझे घोर आश्चर्य हुआ.संपर्क करने पर पता चला कि श्रीमान ने लघु उद्योग विभाग में सत्तू फैक्टरी के नाम पर लोन के लिए आवेदन दे रखा है.सो जिला मुख्यालय से इंस्पेक्शन के लिए अफसरों का दौरा होने वाला है.मैंने कहा कि भाई तुम्हारा तो आलस्य के साथ कई जन्मों का नाता है फ़िर इसी जन्म में यह वेवफाई क्यों?अब मेहनत करने की ठान ही ली है क्या?तो उसने दार्शनिक अंदाज में कहा मियां,इस समय केंद्र सरकार की जो हालत है;किसी से छिपी नहीं है.केंद्र शुद्ध लालू-राबड़ी फ़ॉर्मूला से भारत का शासन चला रहा है और मेरा बिहारी दिमाग कहता है कि अगर यू.पी.ए. को अगला चुनाव जीतना है तो पिछले चुनाव की तरह चुनाव से पहले ऋण माफ़ी तो तय ही समझो.घूम गया न आपका दिमाग भी.अब तो आप भी मान गए होंगे बिहारी दिमाग का लोहा.ईधर इंस्पेक्शन पूरा हुआ और उधर आटा चक्की जिस बनिए के घर से आई थी,पहुंचा दी गई.ऋण के पैसों से बेटी ब्याह दी गई जो सूत्रों के अनुसार अब काफी सुखी भी बताई जा रही है.अब आप ही बताईये ऐसा कहीं और होता है क्या भैया?नहीं होता है न!इसलिए तो बिहार बिहार है.
दरअसल बिहार एक राज्य का नहीं,एक मानसिकता का नाम है.सरकार डाल-डाल चलती है तो बिहारी जनता पात-पात.किसी भी कड़े-से-कड़े कानून का तोड़ जानना हो तो वकील का चक्कर काटने की कोई जरूरत नहीं,बस एक बार बिहार की यात्रा कर लीजिये.चलिए आपको एक डेमो दिखाता हूँ.अभी द्वितीय चरण की शिक्षकों की बहाली चाल रही है.इस बार सरकार ने प्रक्रिया में कई सुधार किए और मान लिया कि अब गड़बड़ी हो ही नहीं सकती.खुदा झूठ न बोलवाए,मानना पड़ेगा बिहारी दिमाग को.इस बार भी करोड़ों रूपये के रिश्वत दांव पर लगे हैं मियां.मेरे गाँव के १०० प्रतिशत लोग विधिवत विद्युत कनेक्शन लेने के बजाए चोरी से बिजली जलाने में यकीन रखते हैं.आप ही बताईये सरकार इन्हें बिजली दे भी तो कहाँ से दे और कब तक और क्यों दे?मुफ्त की बिजली का जमकर इस्तेमाल हमारे यहाँ सिर्फ गांवों में होता हो ऐसा भी नहीं है शहरों में भी तो वही बिहारी दिमागवाले लोग रहते हैं न.
कुल मिलाकर इस पूरे बकवास का लब्बोलुआब यह है कि बिहार सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए कल भी टेढ़ी खीर था और आज भी उतनी ही टेढ़ी खीर है.अब देखना है कि नीतीश जी कुत्ते की दुम इस प्रदेश को सीधा कर पाते हैं या फ़िर खुद ही सीधा हो लेते हैं.बिहार की कहानी इस समय बड़े ही रोचक मोड़ पर है.अब देखना है कि ऐतिहासिक बिहार सुधरेगा या फ़िर भविष्य में भी पिछड़ेपन और अव्यवस्था की कसौटी बना रहेगा.अंत में-पहले जय भारत का फ़िर हो जय बिहार का नारा,पहले भारत फ़िर बिहार को अर्पित नमन हमारा.
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 0 comments
आखिरी खत...
Posted by Atul Shrivastava 0 comments
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ख्वाजा मेरे ख्वाजा...दिल में समा जा !!
Posted by राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) 0 comments
HAMARI AAWAZ: NAREE BNEE AESE
HAMARI AAWAZ: NAREE BNEE AESE: " &n..."
Posted by EARNING HUB 0 comments
28.1.11
"क्यूँ कहते हो हमारे इंडिया का कुछ नही हो सकता "!
कुछ देर तक तो वो फलाना धिम्काना बोलते रहे ,हमारी सरकार निक्कमी ..कलर्क कुत्ते हैं...,सारे अधिकारी घूसकोर ,कोई अपना काम नही करता ...बला बला बला (इंग्लिश वाला )और फिर इक जगह जम के बैठ गये !
क्यूंकि इसमें रहने वाली भारतवासियों का कुछ नही हो सकता ..मतलब हमारा कुछ नही हो सकता !हम सिर्फ चीखते हैं ,बोलते हैं .गलतियाँ निकालते हैं..,इक दूजे की टांग खींचते हैं ,कमी-पेशियाँ ढुंढते हैं बस ! हम क्या करते हैं! हमारी सरकार माना उतना नहीं करती जितना कर सकती है ..पर वो अपने हिस्से का कुछ हिस्सा तो करती है ! पर हम ..हम तो अपने हिस्से का कुछ प्रतिशत भी नही करते !ट्रेफिक लाईट्स हों ,रूल्स फोलो करने हों ,मोरल ड्यूटीस हों ,बडो का आदर सम्मान ,लड़कियों-महिलाओं की इज्ज़त ,अपना काम ,अपनी जिम्मेदारियां ...कुछ भी नही ! जो खाया पिया उसका बचा खुचा सब सड़कों के हवाले ! महज़ २५ रूपये बचाने के लिए घर का दिन भर का कूड़ा पार्क्स में .नुक्कड़ों में ! कुछ लम्हों के रोमांच के लिए बेशकीमती वन्य जंतुओं का शिकार कर लेना ,पेड़ काट डालना , २ रूपये बचाने के लिए सुलभ शोचालयों की जगह पेड़ों ,दीवारों ,इमारतों को भिगोना ! और भी जाने क्या क्या !जवान लड़कों का तो क्या कहना ,उम्र दराज़ अंकलों का लड़कियों और महिलाओं का अशलील व्यंग कसना ,छेड़ना ,गलत हरकते करना ! अगर ऐसे सब बातों का विवरण देने लंगू तो शायद सारा दिन बीत जाए !
और अगर नही तो क्या ...हमे ये कहें का हक है "हमारे इंडिया का कुछ नही हो सकता "!
Posted by VenuS "ज़ोया" 3 comments
ऐसा भी गणतंत्र
ऐसा भी गणतंत्र
Posted by shkatiban 0 comments