महंगाई। कौन कहता है कि देश में महंगाई है। ‘सखी सैंया तो खूब की कमात है, महंगाई डायन खाये जात है...!’ यह गाना भी बेकार लगता है। ऐसा लगता है कि गाना लिखने वाले ने देश का कानून बनाने वालों को ध्यान में नहीं रखा, वरना वो ऐसा गाना नहीं लिखते। देश का कानून बनाने वाले इस गाने की कुछ पंक्तियों पर तो खरे हैं मसलन सखी सैंया तो खूब ही कमात है, लेकिन आगे की पंक्तियों पर लगता है वे चूक गए। किसी डायन की क्या मजाल कि वो संसद में घुस जाए और महंगाई डायन की तो बात ही दूर। छत्तीसगढ राज्य में यहां की सरकार ने राज्य के गरीब परिवारों के लिए एक रूपए और दो रूपए किलो चावल की योजना शुरू की है, यहां के गरीबों का आंकडा तो समय समय पर बदलता रहता है लेकिन यदि हिन्दुस्तान में गरीबों की संख्या पूछा जाए तो जवाब सटीक होगा- 545।
सिर्फ 545। चौंकिए मत। यह आंकडा सच है। जी हां यह संख्या है देश का कानून बनाने वालों का। संसद में बैठने वालों का। छत्तीसगढ की राज्य सरकार की चावल योजना और संसद सदस्यों की तुलना का कारण कहीं से गैर वाजिब नहीं है। इसे करीब से जानने के लिए संसद परिसर में स्थापित कैंटीन हो आईए। पता चला जाएगा। देश में महंगाई डायन कहीं भी हो इस परिसर के भीतर तो इसके लिए कोई जगह नहीं। पूरे देश में चाय की कीमत भले ही पांच रूपए से दस रूपए में एक प्याली आती हो, इस केंटीन में यह एक रूपए में मयस्सर है। सूप का मजा साढे पांच रूपए में लिया जा सकता है। डेढ रूपए में दाल मिल सकती है और यदि दाल के साथ सब्जी, रोटी, चावल, दही और सलाद का मजा लेना हो तो इसके लिए महज साढे बारह रूपए खर्च करने होंगे। अब यदि कोई संसद सदस्य ‘नान वेज’ हो तो उसे 22 रूपए में इसका मजा मिल जाता है। दही भात यानि की दक्षिण का प्रसिध्द ‘कर्ड राईस’ 11 रूपए में उपलब्ध है। वेज पुलाव आठ रूपए में और चिकन बिरयानी 34 रूपए में मिल जाता है। तरी के साथ मछली और चावल 13 रूपए में तो राजमा चावल मात्र या टमाटर चावल सात रूपए में उपलब्ध है। मछली फ्राई 17 तो चिकन करी साढे 20 रूपए में, चिकन मसाला साढे 24 रूपए में और बटर चिकन 27 रूपए में है। रोटी एक रूपए में तो एक प्लेट चावल दो रूपये में मिल जाता है। डोसा चार रूपया और खीर साढं पांच रूपए में उपलब्ध है। फ्रुट केक साढे नौ रूपए और फ्रुट सलाद के मजे महज पांच रूपए में लिया जा सकता है।
ये तो हुआ संसद की केंटीन में मिलने वाले खादय पदार्थों की कीमतें। अब इन ‘गरीबों’ की पगार भी देख लें। हर सांसद को औसतन 80 हजार रूपए मासिक मिलते हैं। अस्सी हजार रूपए लेने वाले गरीबों को इतने कम दामों पर लजीज खादय पदार्थ मिले तो महंगाई कहां से आ गई। तो हे भारत की जनता, महंगाई का रोना छोडो, ये बेकार की बातें हैं। बेकार का प्रलाप है। न ही महंगाई है और न ही महंगाई डायन है। हां सैंया खूबही कमात जरूर है। और यदि महंगाई ‘डायन’ होती है तो हे डायन तुम कहां हो? तुम क्या देश की ‘आम जनता’ को खाने में ही अपनी शान समझती हो? तुम्हे भी क्या संसद से डर लगता है? यदि तुममे हिम्मत है तो अपना रूख संसद की ओर करके दिखाओ फिर पता चलेगा कि तुम्हारी औकात क्या है।
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