संगीत आत्मा की भूख है !
आकाश की विशालता से शब्द ,प्रथ्वी के ह्रदय से स्पंदन ,अग्नि की तपिश से लय ,वायु की गति से गीत ,और जल की शीतलता से रस लेकर संगीत का जन्म हुआ ! एक प्राकृतिक संगीत ने आकार लिया और स्रष्टि का उदगम हुआ !स्रष्टि का प्रारब्ध ही नाद से है !लय और प्रलय दोनों में संगीत है !संगीत के बिना जीवन की कल्पना ही निराधार है !संगीत आत्मा की भूख है ! एक नैसर्गिक भूख ,जिसके बिना शरीर निष्प्राण है ! एक अनिवार्य भूख ,जिसका निवारण नहीं हो सकता !जीवन के भ्रूण से लेकर अंतिम धड़कन तक सभी प्राणियों के ह्रदय में स्पंदन का संगीत है !एक लयात्मक और नैसर्गिक संगीत !नाडी की लय ,सांस के स्वर ,जब ह्रदय के स्पंदन की ताल के साथ जुगल-बंदी करते हें तो प्राण-मय संगीत आँखें खोलता है ,जीवन आकार लेता है !आहत नाद से निकली वह ध्वनि जो कर्ण-प्रिय हो ,संगीत है !और वह भी संगीत है जिसे कान सुनने में सक्षम न हों ,वह है अनाहत नाद अर्थात "मौन "! शून्य का संगीत ही अनाहत नाद है जो गहरे ध्यान में घटता है ! मेडिकल साइंस ने कुछ अनूठे प्रयोग किये हैं जो जीवन में संगीत की सार्थकता को दर्शाते हैं ! रक्त-चाप के रोगियों को कुछ दिन कर्ण-प्रिय संगीत सुनाया गया और बहुत ही उत्साह-वर्धक परिणाम निकले ! सभी रोगियों का रक्त-चाप धीरे-धीरे सामान्य होने लगा ! संगीत वह नहीं जो तुम माता के जगरातों में सुनते हो ,उससे तो स्वस्थ व्यक्ति का भी रक्त-चाप उच्च हो जाएगा !संगीत वह है जो तुम अपनी आत्मा के जागरण में सुनते हो ! नि-शब्द का संगीत ,जो तुम्हारी आत्मा को परम-आत्मा से जोड़ता है ! शौर और संगीत में उतना ही अंतर है जितना म्रत्यु और जीवन में है !
लन्दन की एक जेल में वैज्ञानिकों ने अभिनव प्रयोग किये हैं ! संगीन अपराधों के कुछ विचाराधीन कैदियों को उनकी पसंद का संगीत कई महीनों तक सुनवाया गया ! परिणाम-स्वरुप एक विस्मय-कारी लेकिन आशा जनक उपलब्धि हुई ! लगभग सत्तर प्रतिशत कैदियों ने प्रत्यक्ष या अ-प्रत्यक्ष रूप से अपने -अपने अपराध स्वीकार कर लिए !वो अपराधी जो कुछ महीनों पहले अपनी बे-गुनाही के सबूत और तर्क दे रहे थे ,नि-तर्क हो गए ! उन्होंने अपने गुनाहों को छुपाने वाले झूठे मुखोटे स्वयंम ही गिरा दिए !
संगीत से सराबोर व्यक्ति आत्मनुशाषित होता है !आत्मा के जागरण का विषय है संगीत !एक ऐसी विधा है संगीत जो मनुष्य को मनुष्यता के नज़दीक लाता है !संगीत जीवन में प्राक्रतिक सहजता लाकर कृत्रिम आवरण उतार देता है !एक विद्वान् संगीतज्ञ ने संगीत के सात स्वरों को स्रष्टि का आधार मानते हुए कुछ ऐसे आख्यायित किया है --"सा" से साकार ब्रह्म ,"रे" से ऋषी-मुनि ,"ग" से गन्धर्व ,"म" से महीपाल इंद्र ,"प"से प्रजा ,"ध" से धर्म और "नी"से निराकार ब्रह्म !
संगीत सार्वभौमिक सत्य है जो धर्म ,सम्प्रदायों और देशों की सीमा-रेखायों के निरपेक्ष है !शबद हों की प्रेयर ,भजन हों की अजान ,सभी सात स्वरों में बंधे है !अनेकता में एकता का प्रतीक है संगीत ,जो न बोद्ध है न हिन्दू ,न मुसलमान है न ईसाई !सभी द्वीपों और महाद्वीपों में उभय-निष्ठ है संगीत जिसमें सात समुन्दर पर भी सात ही स्वर हैं !
आध्यात्म में वायु को प्राण कहा गया है ,क्यों कि सांसों की सरगम में भी वायु ही है !अगर वायु नहीं तो प्राण कहाँ ?सांसों का रेचक - कुम्भक ही संगीत-मय प्राण के आरोह और अवरोह हें ! प्रकृति का सबसे अनूठा वरदान है संगीत ! गहरे अर्थों में संगीत ही प्रकृति है जो मनुष्य की कृत्रिम धारणायों और अव-धारणायों की जंजीरें तोड़ता है !प्रकृति के संगीत में गहरे उतरे तो ध्यान अवश्य घटेगा !आत्मा का योग परमात्मा से होगा !धर्म, जाति ,वर्ग और सम्प्रदायों की दीवारें गिरेंगी ,प्रेम का उद-भव होगा !प्रेम के संगीत में डूबे तो मनुष्य में केवल मनुष्य को देख पायोगे !वेद की ऋचाएं में मोहम्मद और कुरान की आयतों में बुद्ध के दर्शन कर पायोगे !आत्मा के संगीत का अनुसरण किया तो खोखली परम्परायों की बेड़िया टूटेंगी ! ज़र्ज़र मान्यताएं और बूढ़ी वर्जनाएं धाराशयी होंगी !बुद्धत्व फलीभूत होगा और यथार्थ के उस लोक की नागरिकता मिलेगी जहां केवल प्रेम होगा ,अनंत प्रेम !अपने जीवन को मेरे प्रेम कहें !
आकाश की विशालता से शब्द ,प्रथ्वी के ह्रदय से स्पंदन ,अग्नि की तपिश से लय ,वायु की गति से गीत ,और जल की शीतलता से रस लेकर संगीत का जन्म हुआ ! एक प्राकृतिक संगीत ने आकार लिया और स्रष्टि का उदगम हुआ !स्रष्टि का प्रारब्ध ही नाद से है !लय और प्रलय दोनों में संगीत है !संगीत के बिना जीवन की कल्पना ही निराधार है !संगीत आत्मा की भूख है ! एक नैसर्गिक भूख ,जिसके बिना शरीर निष्प्राण है ! एक अनिवार्य भूख ,जिसका निवारण नहीं हो सकता !जीवन के भ्रूण से लेकर अंतिम धड़कन तक सभी प्राणियों के ह्रदय में स्पंदन का संगीत है !एक लयात्मक और नैसर्गिक संगीत !नाडी की लय ,सांस के स्वर ,जब ह्रदय के स्पंदन की ताल के साथ जुगल-बंदी करते हें तो प्राण-मय संगीत आँखें खोलता है ,जीवन आकार लेता है !आहत नाद से निकली वह ध्वनि जो कर्ण-प्रिय हो ,संगीत है !और वह भी संगीत है जिसे कान सुनने में सक्षम न हों ,वह है अनाहत नाद अर्थात "मौन "! शून्य का संगीत ही अनाहत नाद है जो गहरे ध्यान में घटता है ! मेडिकल साइंस ने कुछ अनूठे प्रयोग किये हैं जो जीवन में संगीत की सार्थकता को दर्शाते हैं ! रक्त-चाप के रोगियों को कुछ दिन कर्ण-प्रिय संगीत सुनाया गया और बहुत ही उत्साह-वर्धक परिणाम निकले ! सभी रोगियों का रक्त-चाप धीरे-धीरे सामान्य होने लगा ! संगीत वह नहीं जो तुम माता के जगरातों में सुनते हो ,उससे तो स्वस्थ व्यक्ति का भी रक्त-चाप उच्च हो जाएगा !संगीत वह है जो तुम अपनी आत्मा के जागरण में सुनते हो ! नि-शब्द का संगीत ,जो तुम्हारी आत्मा को परम-आत्मा से जोड़ता है ! शौर और संगीत में उतना ही अंतर है जितना म्रत्यु और जीवन में है !
लन्दन की एक जेल में वैज्ञानिकों ने अभिनव प्रयोग किये हैं ! संगीन अपराधों के कुछ विचाराधीन कैदियों को उनकी पसंद का संगीत कई महीनों तक सुनवाया गया ! परिणाम-स्वरुप एक विस्मय-कारी लेकिन आशा जनक उपलब्धि हुई ! लगभग सत्तर प्रतिशत कैदियों ने प्रत्यक्ष या अ-प्रत्यक्ष रूप से अपने -अपने अपराध स्वीकार कर लिए !वो अपराधी जो कुछ महीनों पहले अपनी बे-गुनाही के सबूत और तर्क दे रहे थे ,नि-तर्क हो गए ! उन्होंने अपने गुनाहों को छुपाने वाले झूठे मुखोटे स्वयंम ही गिरा दिए !
संगीत से सराबोर व्यक्ति आत्मनुशाषित होता है !आत्मा के जागरण का विषय है संगीत !एक ऐसी विधा है संगीत जो मनुष्य को मनुष्यता के नज़दीक लाता है !संगीत जीवन में प्राक्रतिक सहजता लाकर कृत्रिम आवरण उतार देता है !एक विद्वान् संगीतज्ञ ने संगीत के सात स्वरों को स्रष्टि का आधार मानते हुए कुछ ऐसे आख्यायित किया है --"सा" से साकार ब्रह्म ,"रे" से ऋषी-मुनि ,"ग" से गन्धर्व ,"म" से महीपाल इंद्र ,"प"से प्रजा ,"ध" से धर्म और "नी"से निराकार ब्रह्म !
संगीत सार्वभौमिक सत्य है जो धर्म ,सम्प्रदायों और देशों की सीमा-रेखायों के निरपेक्ष है !शबद हों की प्रेयर ,भजन हों की अजान ,सभी सात स्वरों में बंधे है !अनेकता में एकता का प्रतीक है संगीत ,जो न बोद्ध है न हिन्दू ,न मुसलमान है न ईसाई !सभी द्वीपों और महाद्वीपों में उभय-निष्ठ है संगीत जिसमें सात समुन्दर पर भी सात ही स्वर हैं !
आध्यात्म में वायु को प्राण कहा गया है ,क्यों कि सांसों की सरगम में भी वायु ही है !अगर वायु नहीं तो प्राण कहाँ ?सांसों का रेचक - कुम्भक ही संगीत-मय प्राण के आरोह और अवरोह हें ! प्रकृति का सबसे अनूठा वरदान है संगीत ! गहरे अर्थों में संगीत ही प्रकृति है जो मनुष्य की कृत्रिम धारणायों और अव-धारणायों की जंजीरें तोड़ता है !प्रकृति के संगीत में गहरे उतरे तो ध्यान अवश्य घटेगा !आत्मा का योग परमात्मा से होगा !धर्म, जाति ,वर्ग और सम्प्रदायों की दीवारें गिरेंगी ,प्रेम का उद-भव होगा !प्रेम के संगीत में डूबे तो मनुष्य में केवल मनुष्य को देख पायोगे !वेद की ऋचाएं में मोहम्मद और कुरान की आयतों में बुद्ध के दर्शन कर पायोगे !आत्मा के संगीत का अनुसरण किया तो खोखली परम्परायों की बेड़िया टूटेंगी ! ज़र्ज़र मान्यताएं और बूढ़ी वर्जनाएं धाराशयी होंगी !बुद्धत्व फलीभूत होगा और यथार्थ के उस लोक की नागरिकता मिलेगी जहां केवल प्रेम होगा ,अनंत प्रेम !अपने जीवन को मेरे प्रेम कहें !
प्रशांत योगी ,यथार्थ मेडिटेशन इंटर्नेशनल ,धर्मशाला ( हि. प्र. ) 09418841999
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