क्या आपने कभी यह कल्पना की है कि आपका बॉस कैसा हो सकता है?मैंने आपसे यह बिलकुल भी नहीं पूछा है कि आपका बॉस कैसा होना चाहिए?मैं यहाँ आदर्शवाद की नहीं बल्कि यथार्थवाद की बात कर रहा हूँ.वैसे मैं एक आदर्शवादी इन्सान हूँ लेकिन बॉस को लेकर आदर्शवादी होने का कोई मतलब भी तो नहीं है.हम अपना बॉस चुन नहीं सकते बल्कि यह तो वह शह है जो हम पर थोप दिया जाता है या दूसरे शब्दों में कहें तो हम खुद ही अपने ऊपर थोप लेते हैं.
खैर,आपने भले ही यह कल्पना नहीं की हो लेकिन मैंने तो की है,और खूब की है.चलिए कुछ देर के लिए मैं आपको भी अपनी यथार्थवादी कल्पना की दुनिया में साथ लिए चलता हूँ.मैंने कल्पना की है कि मैं इन दिनों एक प्रसिद्ध अख़बार के डॉट.कॉम. में काम कर रहा हूँ.आप कहेंगे कि जब कल्पना की ही उड़ान भरनी है तो और ऊंची भर लेनी चाहिए थी और खुद को मंत्री-प्रधानमंत्री बना लेना चाहिए था.लेकिन मेरा वर्तमान इतना उज्ज्वल भी तो नहीं है.आप जानते हैं कि मैं एक बेरोजगार आदमी हूँ.इसलिए अपनी औकात के मुताबिक ही कल्पना कर रहा हूँ.
मेरा बॉस जो डॉट.कॉम. का संपादक भी है करीब ५०-५५ की उम्र का है और सेक्स फ्री समाज का प्रबल समर्थक है.वह लगातार डॉट.कॉम. पर समलैंगिकता का अंधसमर्थन करनेवाला लेख लिखता है.वह हमलोगों से तमाम यौनवर्जनाओं को तोड़ देने का आह्वान करता है और अपना उदाहरण देते हुए कहता है कि वह अपनी बेटियों के साथ सेक्स सम्बन्धी बातें भी स्वच्छन्दतापूर्वक करता है.उसके लिए एक पुरुष और एक स्त्री में सिर्फ एक ही सम्बन्ध संभव है और वह सम्बन्ध है शारीरिक सम्बन्ध.वह सिर्फ यह नहीं बताता कि क्या उसने कभी अपनी बेटी पर भी ट्राई किया है और अगर हाँ तो इसमें उसे कितना मजा आया?समलैगिकता के घोर समर्थक मेरे काल्पनिक बॉस से जब यह पूछा जाता है कि क्या वह मुंह से मलत्याग कर सकता है या गुदा से भोजन ग्रहण कर सकता है.यदि नहीं तब फ़िर सेक्स के लिए जो अंग प्रकृति ने निर्धारित किए हैं उनमें वह क्यों बदलाव का प्रयास कर रहा है?तब वह चुप्पी साध लेता है.
मेरा बॉस मातहत लड़कों द्वारा अभिवादन करने पर बिलकुल भी भाव नहीं देता लेकिन लड़कियों द्वारा नमस्ते करने पर कई-कई बात नमस्कार,नमस्कार,नमस्कार कहता है.मेरे बॉस का बस चले तो वह किसी भी लड़के को नौकरी में नहीं रखे और सिर्फ लड़कियों की ही बहाली कर ले.लेकिन इसमें बस एक ही बाधा है कि तब डॉट.कॉम. में सिर्फ प्रेमालाप होगा और डॉट.कॉम. बंद हो जाएगा जो मालिकों को किसी भी सूरत में मंजूर नहीं होगा.फ़िर भी मेरा बॉस इतना तो करता ही है कि लड़कियों को हल्के काम देता है और लड़कों को काम में परफेक्शन यानी पूर्णता लाने को कहता रहता है.शायद वह अज्ञानी यह नहीं जानता कि पूर्णता सिर्फ एक आदर्श है,एक संकल्पना है;किसी भी तरह से यथार्थ नहीं है.
मेरा बॉस एक तरफ तो हमें वेबसाईट के ब्लॉग पर लिखने को प्रोत्साहित करता है वहीँ दूसरी ओर वह हमारे लेखों को इस बुरी तरह से सम्पादित कर देता है कि लेख का अर्थ ही विपरीत हो जाए.ऐसा करने में उसका सबसे बड़ा बहाना होता है यह तर्क कि लेख कंपनी की नीतियों के अनुरूप नहीं है.परिणाम यह होता है कि जब हम ब्लॉग पर लिखना ही बंद कर देते हैं तो वह पाठकों को ब्लॉग पर लिखने के लिए आमंत्रित करता है.वह भी इस पागलपन भरे शर्त के साथ कि जो पाठक उसके डॉट.कॉम. पर लिखेगा वह किसी अन्य अख़बार के डॉट.कॉम. पर नहीं लिख सकेगा.साथ ही वह लेखन के लिए पैसे नहीं देने की बात भी करता है और कहता है कि वह खुद भी ब्लॉग पर लिखने के पैसे नहीं लेता.मियां खुद तो मेरा जो बॉस पैसों के लिए गुलामी करता है पाठकों से बिना पैसों की गुलामी के लिए कहता है.उस पर तुर्रा यह कि वह सिर्फ कुछेक पाठकों को ही मौका देने की हामी भरता है और उसमें भी लड़कियां जो उसकी कमजोरी भी हैं,के लिए आरक्षण की शर्त के साथ.
मेरी कल्पनाओं का बॉस सफलता के पीछे इस कदर पागल है कि इसके लिए गलत साधन अपनाने में भी संकोच नहीं करता.मसलन जब भी डॉट.कॉम. पर हिटों की संख्या में गिरावट आने लगती है तो हमें किसी अश्लील खबर या तस्वीर साईट पर डाल देने को कहता है.उसके इस पागलपन का यह असर हुआ है कि लोग हमारे डॉट.कॉम. की साईट को आधा पोर्न साईट कहने लगे हैं.हालांकि मैं अपनी कल्पनों के बॉस से संतुष्ट नहीं हूँ और जानता हूँ कि वह गलतियों का बदसूरत पुतला है फ़िर भी विरोध नहीं कर पाता क्योंकि मेरे आगे भी वही सत्य-सनातन सवाल अपना गन्दा-सा मुंह फाड़े चौबीसों घन्टे खड़ा होता है,पापी पेट का सवाल.
खैर,आपने भले ही यह कल्पना नहीं की हो लेकिन मैंने तो की है,और खूब की है.चलिए कुछ देर के लिए मैं आपको भी अपनी यथार्थवादी कल्पना की दुनिया में साथ लिए चलता हूँ.मैंने कल्पना की है कि मैं इन दिनों एक प्रसिद्ध अख़बार के डॉट.कॉम. में काम कर रहा हूँ.आप कहेंगे कि जब कल्पना की ही उड़ान भरनी है तो और ऊंची भर लेनी चाहिए थी और खुद को मंत्री-प्रधानमंत्री बना लेना चाहिए था.लेकिन मेरा वर्तमान इतना उज्ज्वल भी तो नहीं है.आप जानते हैं कि मैं एक बेरोजगार आदमी हूँ.इसलिए अपनी औकात के मुताबिक ही कल्पना कर रहा हूँ.
मेरा बॉस जो डॉट.कॉम. का संपादक भी है करीब ५०-५५ की उम्र का है और सेक्स फ्री समाज का प्रबल समर्थक है.वह लगातार डॉट.कॉम. पर समलैंगिकता का अंधसमर्थन करनेवाला लेख लिखता है.वह हमलोगों से तमाम यौनवर्जनाओं को तोड़ देने का आह्वान करता है और अपना उदाहरण देते हुए कहता है कि वह अपनी बेटियों के साथ सेक्स सम्बन्धी बातें भी स्वच्छन्दतापूर्वक करता है.उसके लिए एक पुरुष और एक स्त्री में सिर्फ एक ही सम्बन्ध संभव है और वह सम्बन्ध है शारीरिक सम्बन्ध.वह सिर्फ यह नहीं बताता कि क्या उसने कभी अपनी बेटी पर भी ट्राई किया है और अगर हाँ तो इसमें उसे कितना मजा आया?समलैगिकता के घोर समर्थक मेरे काल्पनिक बॉस से जब यह पूछा जाता है कि क्या वह मुंह से मलत्याग कर सकता है या गुदा से भोजन ग्रहण कर सकता है.यदि नहीं तब फ़िर सेक्स के लिए जो अंग प्रकृति ने निर्धारित किए हैं उनमें वह क्यों बदलाव का प्रयास कर रहा है?तब वह चुप्पी साध लेता है.
मेरा बॉस मातहत लड़कों द्वारा अभिवादन करने पर बिलकुल भी भाव नहीं देता लेकिन लड़कियों द्वारा नमस्ते करने पर कई-कई बात नमस्कार,नमस्कार,नमस्कार कहता है.मेरे बॉस का बस चले तो वह किसी भी लड़के को नौकरी में नहीं रखे और सिर्फ लड़कियों की ही बहाली कर ले.लेकिन इसमें बस एक ही बाधा है कि तब डॉट.कॉम. में सिर्फ प्रेमालाप होगा और डॉट.कॉम. बंद हो जाएगा जो मालिकों को किसी भी सूरत में मंजूर नहीं होगा.फ़िर भी मेरा बॉस इतना तो करता ही है कि लड़कियों को हल्के काम देता है और लड़कों को काम में परफेक्शन यानी पूर्णता लाने को कहता रहता है.शायद वह अज्ञानी यह नहीं जानता कि पूर्णता सिर्फ एक आदर्श है,एक संकल्पना है;किसी भी तरह से यथार्थ नहीं है.
मेरा बॉस एक तरफ तो हमें वेबसाईट के ब्लॉग पर लिखने को प्रोत्साहित करता है वहीँ दूसरी ओर वह हमारे लेखों को इस बुरी तरह से सम्पादित कर देता है कि लेख का अर्थ ही विपरीत हो जाए.ऐसा करने में उसका सबसे बड़ा बहाना होता है यह तर्क कि लेख कंपनी की नीतियों के अनुरूप नहीं है.परिणाम यह होता है कि जब हम ब्लॉग पर लिखना ही बंद कर देते हैं तो वह पाठकों को ब्लॉग पर लिखने के लिए आमंत्रित करता है.वह भी इस पागलपन भरे शर्त के साथ कि जो पाठक उसके डॉट.कॉम. पर लिखेगा वह किसी अन्य अख़बार के डॉट.कॉम. पर नहीं लिख सकेगा.साथ ही वह लेखन के लिए पैसे नहीं देने की बात भी करता है और कहता है कि वह खुद भी ब्लॉग पर लिखने के पैसे नहीं लेता.मियां खुद तो मेरा जो बॉस पैसों के लिए गुलामी करता है पाठकों से बिना पैसों की गुलामी के लिए कहता है.उस पर तुर्रा यह कि वह सिर्फ कुछेक पाठकों को ही मौका देने की हामी भरता है और उसमें भी लड़कियां जो उसकी कमजोरी भी हैं,के लिए आरक्षण की शर्त के साथ.
मेरी कल्पनाओं का बॉस सफलता के पीछे इस कदर पागल है कि इसके लिए गलत साधन अपनाने में भी संकोच नहीं करता.मसलन जब भी डॉट.कॉम. पर हिटों की संख्या में गिरावट आने लगती है तो हमें किसी अश्लील खबर या तस्वीर साईट पर डाल देने को कहता है.उसके इस पागलपन का यह असर हुआ है कि लोग हमारे डॉट.कॉम. की साईट को आधा पोर्न साईट कहने लगे हैं.हालांकि मैं अपनी कल्पनों के बॉस से संतुष्ट नहीं हूँ और जानता हूँ कि वह गलतियों का बदसूरत पुतला है फ़िर भी विरोध नहीं कर पाता क्योंकि मेरे आगे भी वही सत्य-सनातन सवाल अपना गन्दा-सा मुंह फाड़े चौबीसों घन्टे खड़ा होता है,पापी पेट का सवाल.
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