आज सुबह-सुबह अखबार लेकर मेरे एक मित्र आ धमके और उन्होंने लगभग सभी अखबारों की खबरों में छपी एक मात्र बात को बढ़ा-चढ़कर छापने के लिए उस खबर के पीछे के गुरु व्यक्तित्व वाले शख्स की ओर इशारा किया.
मैंने उनकी उतावली को समझते हुए उनसे कहा चलो चलते है अपने अड्डे पर
और फिर हम पहुच गए रद्धू की दूकान पर..... चाय के आर्डर देने के पहले ही हमारे इन मित्र ने अपनी व्यथा कहनी शुरू कर दी और बोले - "सुर्खियों में आने के लिए लोग अच्छा-बुरा सब कुछ करते रहते है. स्वयं को महिमामंडित करने के लिए तथा क्षेत्र में अपनी शक्ति के एहसास के लिए कोई सांसद के आगे-पीछे हो रहा है तो कोई कथाओं के माध्यम से अपनी उपस्थिति तथा स्वयं का समाज में रसूख को दर्शाता फिर रहा है".
मैंने चाय उनके हाथ में थमा दी फिर भी वे रुकने का नाम नहीं ले रहे थे चाय की ओर ध्यान दिए बिना ही अपनी बात को आगे बढाते हुए बोले -
"ऐसे में होता यह है की इन गलत लोगो के चेलो की संख्या लगातार बढ़ती जाती है क्योकि कुछ लोग भैया से इसलिए जुड़ना चाहते है क्योकि भैया तो जिले और तहसील के बड़े-बड़े लोगो से जुड़े हुए है.
जबकि चेलो को पता नहीं की भैया अकेले में जाकर कई-कई बार उन्ही बड़े नेताओं की चरण बंदना करते है और भैया आधी रात में भी अपनी सेवा देने के लिए इन तथाकथित नेताओं के लिए पलक पावडे बिछाए रहते है.
तब तक पान वाले ने पान आगे बढाते हुए पान लेने को आवाज लगाई लेकिन हमारे मित्र तो जैसे आज समाज में गलत लोगो को उखाड़ फेकने की ठानकर ही आये थे बड़े गुस्सेल अंदाज में वे आगे कहते है
"फिर देखो इनके इस गलत काम के लिए क्षेत्र के सारे चोर लोग एक मंच पर इक्कट्ठे होकर अपने आप को समाजसेवक दिखाने की होड़ सी लगाते है.
न जाने क्यों इन लोगो की सारी काली-पीली बाते जानते हुए भी लोग इनको सहयोग देते है और इनके बुलावे पर दौड़े चले आते है."
मेरे इन मित्र ने उस खबर में छपे एक-एक नाम का पोस्ट मार्टम करना शुरू किया वे कहते है
"यह पहला नाम ले यह शिक्षा विभाग का अधिकारी इसमें इसलिए शामिल होता रहा क्योकि इसको सारे स्व सहायता समूह से प्रति समूह पांच सौ रूपये दिए जाते रहे",
दुसरे नंबर के प्रभारी एस डी ओ का नाम लेते हुए वे बोले "अपनी पत्रकारिता की धौस पर इनके सारे काले कारनामे छापने के बदले इस इंजिनीअर से हर कथा में भैया कम से नहीं लेते होगे तो पच्चीस हजार तो जरूर लेते होगे"
तहसील विभाग के कर्मचारियों को इसलिए महत्व दिया जा रहा है क्योकि भैया खसरा-नक्शा इन कर्मचारियों से तो मुफ्त में बनवा लेते है लेकिन गरीब से दूना पैसा साहब के नाम पर ऐठते है.
रोज-रोज इन भैया की खबर छपने वाले जिले के सारे पत्रकार इन भैया के गुणगान करते थकते नहीं क्योकि सभी को इनने कही न कही दलाली का अवसर दिलाकर उनको और स्वयं को लाभ पहुचाया है.
पंचायत के सरपंच, सचिव भैया की सेवा में इसलिए लगे है क्योकि अभी तक जनपद के सी ई ओ की दम देकर इनके काले कारनामे से भैया ब्लेकमेल करके जनपद के कर्मचारियों को लाभ दिलाते रहे है.
व्यापारी भैया से इसलिए जुड़े है क्योकि भैया सरकारी विभागों में इनके सामान की खपत करवाते रहे है यह बात और है की भैया ने इसमें कितनी दलाली खाई यह वह व्यापारी भी नहीं जान पाया.
पुलिस वाले बहिय से इसलिए जुड़े है की भैया उनको झूठे सीधे केस बताकर उल्टी सीधी रिपोर्ट दर्ज कराने का भय दिखाकर खाकी वर्दी वालो को पैसा दिलाते रहे है. लेकिन खाकी वर्दी वाले भी इन भैया की बुद्धी नहीं समझ सके क्योकि साहब के नाम पर यदि भैया ने दस हजार वसूले है तो साहब को पाच ही दिए है.
सेठजी इनसे इसलिए जुड़े है क्योकि सोसईटी में आने वाला गरीबो के लिए चावल और गेहू सेठजी कालाबाजारी करते है और भैया को सब पता है. सुना है वर्षो से भैया उनके पार्टनर भी बने हुए है.
बहुत से ऐसे सेवक है जो भैया की इस चहुओर की पहुच से ही प्रभावित है और भैया के करीबी बनकर स्वयं को समाज में इज्जतदार समझ रहे है.
लेकिन शायद उनको मालूम नहीं की भैया को लोग पीठ पीछे गालिया क्यों देते है....?
मैंने उनकी सारी व्यथा को सुना और कहा की भैया आप भले आदमी हो इसलिए आपको इन भैया में बुराई ही बुराई नजर आ रही है और उनके द्वारा किये गए गबन को सभी अधिकारी और राजनेता ढाकने के लिए सिफारिस करके स्वयं को धन्य समझ रहे है. तो तुम किस खेत की मूली हो जी.
मैंने उनको स्पष्ट शब्दों में समझा दिया-"तुम भैया का कुछ भी नहीं उखाड़ सकोगे "
इसलिए भैया मेरी ओर से एक चाय और पीयो और इस विषय पर चिंतन बंद करो.
16.1.11
-"तुम भैया का कुछ भी नहीं उखाड़ सकोगे "
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