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29.1.11

प्रदेश ही नहीं मानसिकता भी है बिहार-ब्रज की दुनिया

मैं जबसे दिल्ली से लौटा हूँ इस विषय पर लिखने को उत्सुक हूँ लेकिन हर बार कोई न कोई नया विषय मेरी विचारवीणा के तारों को झंकृत कर जाता है और यह विषय लिखने को शेष रह जाता है.आज कहने को तो बिहार में सुशासन बाबू की सरकार है जिसकी निष्ठा बिहार के विकास के प्रति निश्चित रूप से पिछली किसी भी सरकार से ज्यादा है.फ़िर भी यह अश्लील वास्तविकता है कि आज भी जब किसी भारतीय राज्य के पिछड़ेपन और अराजकता की चर्चा होती है तो पैमाना बिहार को ही बनाया जाता है.बिहार आज भी गणित के प्रश्न के उस बन्दर के समान है जो प्रत्येक पहले मिनट में बांस पर ५ मीटर चढ़ता है तो दूसरे ही मिनट में ४ मीटर फिसल भी जाता है.बिहार आजादी के बाद से ही भारत और दुनिया के लिए एक अबूझ,अनुत्तरित पहेली बना हुआ है जिसे समझने और सुलझाने का प्रयास प्रत्येक आने-जानेवाली सरकारों ने किया किन्तु परिणाम वही ढाक के तीन पात रहा.
                         जब ६ साल पहले नीतीश कुमार जैसा सुलझा हुआ नेता बिहार की सत्ता पर काबिज हुआ तब माना गया कि अब बिहार के दिन फिरने ही वाले हैं.लेकिन आज भी बिहार भारत के लिए अपशकुन ही बना हुआ है.इन ६ सालों में प्रदेश में पूँजी निवेश तो नहीं ही हुआ,इसके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक बिजली की स्थिति भी सुधरने के बजाये बिगड़ी ही है.यहाँ मैं आप पाठकों को कुछ उदाहरणों द्वारा बताना चाहूँगा कि वह बिहारी मानसिकता क्या चीज है जिसके चलते हमारा राज्य प्रत्येक क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है.
                   मेरे पड़ोस में एक शर्मा जी का परिवार रहता है.शर्मा जी अच्छे वेल्डर हैं.अभी तो वे जयपुर में हैं और मात्र ८ हजार के वेतन पर किसी फैक्टरी में काम कर रहे हैं.जब वे यहाँ थे तब मैंने उनसे कहा था कि आप हाजीपुर में ही एक वेल्डिंग की दुकान खोलिए.जहाँ तक हो सकेगा हमलोग भी मदद करेंगे.हालांकि उन्हें दुकान खोलने में कोई ऐतराज भी नहीं था लेकिन उनके बेटों ने इसका जबरदस्त विरोध कर दिया.उन नौनिहालों का कहना था कि अगर उन्होंने यह दुकान खोली तो उनके सहपाठी उनका मजाक उड़ायेंगे.अंत में बेचारे ने न चाहते हुए भी ५० की ढलती उम्र में फ़िर से जयपुर का रास्ता पकड़ा.निश्चित रूप से वे अपनी दुकान खोल कर ८ हजार रूपये प्रतिमाह से कई गुना ज्यादा कमा लेते लेकिन घर-गाँव में काम करना उनके खुद के घर के लोगों को ही मंजूर नहीं हुआ.कुछ ऐसा ही हाल बिहार से बाहर रह रहे लाखों बिहारियों का है.जो श्रम बिहार की उन्नति में सहायक हो सकता था निरूद्देश्य दिल्ली-पंजाब की ओर पलायन कर रहा है.जीवनभर काम करने के बावजूद इन मजदूरों के हाथ हमेशा खाली रहते हैं क्योंकि इन्हें कभी इतनी मजदूरी नहीं मिल पाती जिसमें वे घर से बाहर रहकर खुद का खर्चा निकाल पाएं और गाँव में परिवार का भी भलीभांति पेट भर सकें.
                    दूसरा उदाहरण मेरा खुद का ही गाँव है.बिलकुल श्री श्रीलाल शुक्ल के रागदरबारी के शिवपालगंज जैसा.मेरे गाँव के मुखिया जी बड़े हुनरमंद हैं.जब २००६ में शिक्षामित्रों की बहाली का अहम जिम्मा सुशासन बाबू ने मुखियों को दिया तो इन्होंने एक साथ अपने दो-दो बेटों को शिक्षक बना लिया और एक पुत्र को बाद में न्यायमित्र बना लिया.इसके लिए उन्होंने काउंसिलिंग में दो-दो रजिस्टर रखे.एक असली और दूसरा नकली.एक में दिखावे के लिए काउंसिलिंग की और दूसरे रजिस्टर के माध्यम से सारी नौकरियां घर में ही रख लीं.ऐसा भी नहीं है कि सारे मुखियों ने ऐसा ही किया हो.कुछ मुखिया ऐसे भी थे जिन्होंने इन बहालियों में घरवालों पर कृपा करने के बदले जमकर पैसा बनाया.मेरा वार्ड सदस्य भी कम जुगाडू नहीं है.उसने अपने एक परिवार में पॉँच परिवार बना लिए हैं और सबका नाम बी.पी.एल. में दर्ज करवा लिया है.पहले से पक्का मकान होने के बावजूद वह ५ बार अपने ५ परिवारों के नाम पर इंदिरा आवास की राशि उठा चुका है.वह हर महीने क्विंटल के भाव से सरकारी दुकान से सस्ता अनाज लाता है और बेच देता है.ड्रम से किरासन लाता है सो अलग.आपको आश्चर्य होगा कि उसकी २० वर्षीया बहू को इस कमसिन आयु में ही वृद्धावस्था पेंशन मिलता है.अभी कुछ ही दिन पहले मेरे घर के पीछे के टोले में आग लग गई.हालांकि वार्ड सदस्य का उसमें एक तिनका भी नहीं जला था लेकिन फ़िर भी उसने दो-दो घर जलने के नाम पर मुआवजा ले लिया.भ्रष्टाचार और घूसखोरी की असीम अनुकम्पा से मेरे गाँव में ऐसे दो-चार जमींदार परिवार ही होंगे जिनका नाम बी.पी.एल. सूची में नहीं है.वरना सारे धनवान आजकल सरकारी दस्तावेजों में गरीबी रेखा से नीचे की जिंदगी गुजार रहे हैं.उनमें से कईयों ने तो इंदिरा आवास की राशि भी उठा ली है जबकि उनके पास पहले से ही बड़े-बड़े व पक्के मकान थे.हमारा पंचायत समिति सदस्य भी कम करामाती नहीं.फ़िर उसके साथ ही अन्याय क्यों?चलिए थोड़ा उनका भी गुणगान हो जाए.हुआ यूं कि पिछले साल हमारे गाँव की हरिजन टोली में ४५ घर जल गए.लेकिन किसी भी हरिजन को कोई मुआवजा नहीं मिला क्योंकि सबके बदले अकेले मुआवजा उठा लिया सलमान खान से भी कहीं ज्यादा दबंग श्रीमान पंचायत समिति सदस्य जी ने.
              अबतक तो आप समझ गए होंगे कि बिहार के गांवों में आकर भारत सरकार की सारी योजनाएं क्यों धूल चाटने लगती हैं जबकि केरल में वही सुपरहिट हो जाती है.हमारे बिहार में बिना तालाब खोदे मछलियाँ पाल ली जाती हैं और उन्हें चारा देने के नाम पर करोड़ों का गबन कर लिया जाता है.खैर ये तो रही स्वनामधन्य, बिहारी शब्द को गली बना देने वाले लालू जी के ज़माने की बात.तब की तो बात ही अलग थी.अब वो समय कहाँ?तब तो मोटरसाइकिल पर भैसें भी ढोयी जाती थीं.अब तो भाई मनरेगा का जमाना है.वैसे तो यह योजना लाई गई थी मजदूरों के लिए.लेकिन चांदी काट रहे हैं मुखिया.बिना वृक्षारोपण किए ही पौधों की सिंचाई के नाम पर मजदूरी के पैसों का घोटाला कर लिया जा रहा है.वैसे तो आधे से ज्यादा मजदूरों का कोई अस्तित्व ही नहीं और अगर मजदूर सही भी हुआ तो उसे घर बैठे आधी राशि दे दी जाती है.
                            अभी पिछले साल की ही बात है.गाँव में मेरे एक पड़ोसी के दालान पर एक आटा  चक्की बिठाई जा रही थी.मेरे पड़ोसी अपनी काहिली और ताश के पत्तों के प्रति दीवानगी के लिए पूरे इलाके में जाने जाते हैं.सो मुझे घोर आश्चर्य हुआ.संपर्क करने पर पता चला कि श्रीमान ने लघु उद्योग विभाग में सत्तू फैक्टरी के नाम पर लोन के लिए आवेदन दे रखा है.सो जिला मुख्यालय से इंस्पेक्शन के लिए अफसरों का दौरा होने वाला है.मैंने कहा कि भाई तुम्हारा तो आलस्य के साथ कई जन्मों का नाता है फ़िर इसी जन्म में यह वेवफाई क्यों?अब मेहनत करने की ठान ही ली है क्या?तो उसने दार्शनिक अंदाज में कहा मियां,इस समय केंद्र सरकार की जो हालत है;किसी से छिपी नहीं है.केंद्र शुद्ध लालू-राबड़ी फ़ॉर्मूला से भारत का शासन चला रहा है और मेरा बिहारी दिमाग कहता है कि अगर यू.पी.ए. को अगला चुनाव जीतना है तो पिछले चुनाव की तरह चुनाव से पहले ऋण माफ़ी तो तय ही समझो.घूम गया न आपका दिमाग भी.अब तो आप भी मान गए होंगे बिहारी दिमाग का लोहा.ईधर इंस्पेक्शन पूरा हुआ और उधर आटा चक्की जिस बनिए के घर से आई थी,पहुंचा दी गई.ऋण के पैसों से बेटी ब्याह दी गई जो सूत्रों के अनुसार अब काफी सुखी भी बताई जा रही है.अब आप ही बताईये ऐसा कहीं और होता है क्या भैया?नहीं होता है न!इसलिए तो बिहार बिहार है.
                    दरअसल बिहार एक राज्य का नहीं,एक मानसिकता का नाम है.सरकार डाल-डाल चलती है तो बिहारी जनता पात-पात.किसी भी कड़े-से-कड़े कानून का तोड़ जानना हो तो वकील का चक्कर काटने की कोई जरूरत नहीं,बस एक बार बिहार की यात्रा कर लीजिये.चलिए आपको एक डेमो दिखाता हूँ.अभी द्वितीय चरण की शिक्षकों की बहाली चाल रही है.इस बार सरकार ने प्रक्रिया में कई सुधार किए और मान लिया कि अब गड़बड़ी हो ही नहीं सकती.खुदा झूठ न बोलवाए,मानना पड़ेगा बिहारी दिमाग को.इस बार भी करोड़ों रूपये के रिश्वत दांव पर लगे हैं मियां.मेरे गाँव के १०० प्रतिशत लोग विधिवत विद्युत कनेक्शन लेने के बजाए चोरी से बिजली जलाने में यकीन रखते हैं.आप ही बताईये सरकार इन्हें बिजली दे भी तो कहाँ से दे और कब तक और क्यों दे?मुफ्त की बिजली का जमकर इस्तेमाल हमारे यहाँ सिर्फ गांवों में होता हो ऐसा भी नहीं है शहरों में भी तो वही बिहारी दिमागवाले लोग रहते हैं न.
                             कुल मिलाकर इस पूरे बकवास का लब्बोलुआब यह है कि बिहार सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए कल भी टेढ़ी खीर था और आज भी उतनी ही टेढ़ी खीर है.अब देखना है कि नीतीश जी कुत्ते की दुम इस प्रदेश को सीधा कर पाते हैं या फ़िर खुद ही सीधा हो लेते हैं.बिहार की कहानी इस समय बड़े ही रोचक मोड़ पर है.अब देखना है कि ऐतिहासिक बिहार सुधरेगा या फ़िर भविष्य में भी पिछड़ेपन और अव्यवस्था की कसौटी बना रहेगा.अंत में-पहले जय भारत का फ़िर हो जय बिहार का नारा,पहले भारत फ़िर बिहार को अर्पित नमन हमारा.

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