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18.1.11

'ध्रुवतारा'

तारा टूटा है दिल तो नही 
चहरे पर छाई ये उदासी क्यों 
इनकी तो है बरात अपनी 
तुम पर छाई ये विरानी क्यों 


न चमक अपनी इन तारों की 
न रोशनी की  राह दिखा सके 
दूर टिमटिमाती इन तारों से 
तुम अपना मन बहलाती क्यों 


कहते है ये टूटते तारे 
मुराद पूरी करता जाय 
पर नामुराद मन को तेरी 
टूटते हुए छलता  जाए क्यों 


मत देखो इन नक्षत्रों को 
इसने सबको है भरमाया 
गर देखना ही है देखो उसे 
जो अटल अडिग वो है 'ध्रुवतारा'

3 comments:

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

Dr Om Prakash Pandey said...

wah!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत अच्छी और प्रभावी भावाभिव्यक्ति ......