आज सुबह-सुबह हमारे मित्र का फोन आया. उनकी बाते सुनकर तबसे ही मस्तिष्क में बबाल मचा है.
हुआ यो की वे भले मानुष है और एक इज्जतदार सरकारी पद पर है. भगवान् का दिया उनके पास सब कुछ है इसलिए उनने सोचा चलो अपने क्षेत्र के लोगो के लिए कुछ किया जाए. इसलिए उनने अपनी पत्नी को चुनाव लडवा दिया और उनकी तथा उनके परिवार की बेदाग़ छवि के कारण वे जीत भी गयी और अध्यक्ष भी बन गयी.
उनकी इस जीत से पढ़े लिखे लोगो को बड़ी राहत सी महसूस हुई क्योकि आजकल राजनीती में कुत्षित मानसिकता के भ्रष्ट लोग आ रहे है इसलिए उनकी जीत से आम आदमी को एक आशा की किरण बंधी.
अपने वादे के अनुरूप उन्होंने पद संभालने के बाद से क्षेत्र के उन दलालों पर शिकंजा कसना शुरू किया जो हमेशा से किसी के भी पद पर आने पर चाटुकारिता की दम पर नजदीकिया बनाकर अपना उल्लू सीधा करते थे.
इस कीचड को समाप्त कंरने में उनको समय तो लगा लेकिन उनके इस अच्छे काम से चोर कंपनी घबरा गयी. उनके हर अच्छे काम की आलोचना करना शुरू कर दिया. कुछ लोगो ने तो अविश्वास तक की धमकी भी दाए-बाए से भिजवाई लेकिन ये भले मानुष अपनी दम डेट रहे.
धीरे-धीरे दलाला कंपनी ने अपनी हार मानना शुरू कर दिया.
क्षेत्र के लोगो को अच्छे से अच्छा कर दिखाने तथा भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने के लिए उनकी पत्नी ने गाँव-गाँव प्रत्येक पंचायत का दौरा शुरू किया, सरपंच, सचिव से पिछले पांच साल का हिसाब जनता के सामने चौपाल लगाकर पूछना चालू किया. अब तो हालत खराब है भ्रष्ट कर्मचारियों और दलालों की.........
क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्ट कर्मचारियों की कारगुजारियो का काला चिटठा जहा खोलना शुरू किया इससे जिला कलेक्टर तक घबरा गया क्योकि उनके हर दौरे को समाचार पत्र अगले दिन प्रमुखता से छाप देते.
अपने दौरों में पाई गयी विसंगति से जिला कलेक्टर को कार्रवाई करने के लिए भी लिखा जाता. बड़े दुःख एवं शर्म की बात तो यह है की जिला में बैठे अधिकारी अपनी कुर्सी छोड़ कर गांवो और योजनाओं की गतिविधियों में किये गए कार्य का व्योरा लेने नहीं निकलते. वे तो अपना तय कमीशन लेकर छु होकर बैठ जाते है.
जो काम कलेक्टर को करना है वह काम जब जनप्रतिनिधि करने लगे तो जिले के आला अधिकारी को अपनी पोल पट्टी खुलते देख शर्म और घबराहट तो होगी ही.
और वही हुआ....... अपने दौरों में देखी गयी अनियमितता से जब कलेक्टर को अवगत कराया गया और उस पर कार्रवाई करने को कहा गया तो उसने हमारे मित्र को फोन पर धमकाना शुरू किया की तुम तो स्वयं शासकीय कर्मचारी हो और इस तरह से शासकीय कामो को सार्वजनिक तौर पर उजागर करने तथा वितीय अभिलेख देखने का अधिकार आपकी पत्नी को नहीं है.
परोक्ष अपरोक्ष रूप से कलेक्टर ने हमारे मित्र को समझाया की आप चुप होकर बैठ जाओ, हमें भ्रस्टाचार करने दो और मलाई खाने दो.
तब से ही मेरा भेजा आउट है की देखो तो इन बेशर्म कलेक्टर और उच्च अधिकरियो की मजाल ....जो न खुद कुछ काम करना चाहते और यदि कोई अच्छा व्यक्ति जनता के मुद्दे उठाता है और गरीबो के हित की बात करता है तथा समाज से भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए सर पर कफ़न बाँध कर मैदान में उतरता है तो उनको धमकाया जाता है.
क्या मध्यप्रदेश में भी गुंडाराज आ गया है. क्या आई ऐ एस पद पर बैठा कोई अधिकारी ऐसा कह सकता है.
की "यह बड़े दुःख की बात है की मुझे आप जैसे छोटे पद पर बैठे जनप्रतिनिधि से बात करना पड़ रही है". एक कलेक्टर का यह कहना की उसे उसके क्षेत्र और जिले से कोई लेना देना नहीं है. यह कोई जिम्मेदार अधिकारी का बयान है लेकिन ऐसा कहा जा रहा है.
तो फिर किसे जिले से लेना-देना है. इसका मतलब कलेक्टर ने चुनिन्दा मलाईदार विभाग पकड़ रखे है जिसका कमीशन मुख्मंत्री, और अन्य बड़े नेताओं को जाता है इसलिए तो इतनी लापरवाही से गैर्जिमीदार वक्तव्य देकर धमकाया जा रहा है
क्या ऐसे कलेक्टर को जिले में रहने का अधिकार है....?
धिक्कार है इस देश की जनता को जो मूक होकर मुर्दे की भाती अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को झेल रही है....
तभी तो देश को चंद होशियार और चाटूकार लोग खाए जा रहे है.......
19.1.11
क्या ऐसे कलेक्टर को जिले में रहने का अधिकार है....?
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2 comments:
कलेक्टर द्वारा महिला जनप्रतिनिधि के सरकारी सेवक पति को धमकाना तो यही बताता है कि 'धोबी से नहीं जीते तो गधे के कान उमेठने लगे'। यह स्थिति कमोबेश हर राज्य में होगीा हालांकि यहां स्थिति उल्टी हैा आम तौर पर जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को डराया धमकाया जाता है और उनके साथ मारपीट की जाती हैा
ये जानकर बहुत खुशी हुई कि आपके मित्र की जीवनसाथी ईमानदारी से अपना काम कर रही हैं जो उन्हे करना चाहिए। उन्हे मेरा प्रणाम कहिएगा।
जब हमारे देश के आईएएस ही ऐसा करने लगेंगे तो बाकी लोगों से क्या उम्मीद करूँ।
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