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31.12.13

मैं कुतिया हूँ!-ब्रज की दुनिया


मैं दुनिया की कथित रूप से सबसे सभ्य प्रजाति आदमी की भाषा में एक कुतिया हूँ। मैं जानती हूँ कि उनकी भाषा में यह एक गाली है यानि मैं दुनिया के लिए एक गाली हूँ। इंसानों को क्या पता कि मेरा जीवन कितना दुःखमय रहा है। जबसे पैदा हुई जाड़ा,गर्मी और बरसात सब मैंने नीले आसमान के तले गुजारी है। कभी किसी ने रोटी दे दी तो किसी ने लात मार दी। रोटी देनेवाले को मैंने पूँछ हिलाकर हमेशा शुक्रिया कहा मगर लात मारनेवाले को कभी काटा नहीं। मैं खुदमुख्तार और आजाद हूँ इसलिए भी मुझे दुःख के थपेड़ों का ज्यादा सामना करना पड़ा। कई बार इंसान हम जैसे स्वतंत्रता पसंद कुत्तों को आवारा भी कह डालते हैं लेकिन हम आवारा नहीं हैं हम तो समय के मारे हैं। इतना कष्ट उठाने के बावजूद मुझे अपनी जिंदगी को लेकर तब तक कोई शिकायत नहीं थी जब तक कि मैं माँ नहीं बनी थी।
                        यही कोई एक महीना पहले मैंने 8 छोटे-छोटे बच्चों को जन्म दिया। 5 काले,दो भूरे और एक चितकबरा। उनमें से चितकबरे को मेरे निवास-स्थान यानि जिस खुले मैदान में मैं रहती हूँ के सामनेवाले घर ने अपना लिया और इस तरह मेरे पास बच गए 7 बच्चे। जब भी कोई इंसान हमारे बच्चों को अपनाता है तो एक साथ हमें दुःख और सुख दोनों होता है। दुःख होता है अपने बच्चे से बिछुड़ने का और सुख होता है यह सोंचकर कि मेरे एक बच्चे का जीवन अब सुरक्षित हो गया। उसी घर के बगल के घर में एक बुढ़िया रहती है जो जब-तब मेरे बच्चों को डंडे और लात से मारती रहती है। बच्चों का क्या वे चले ही जाते हैं उसके कैंपस में रोटी के लालच में।
                                           अभी दस दिन भी नहीं बीते थे मुझे माँ बने कि ठंड पड़नी शुरू हो गई। आप इंसान तो रजाई ओढ़कर आराम से ठंड गुजार लेते हो हम पर इस मौसम में क्या बीतती है यह हमीं जानते हैं। गाँव में तो बुझे हुए अलाव के गड्ढ़ों में बैठकर या घास-भूसे के ढेर में घुसकर हमारे रिश्तेदार गर्मी प्राप्त कर लेते हैं परंतु शहरों में तो खुले आसमान के तले ठिठुरने के सिवाय कोई रास्ता ही नहीं बचता। अकेली थी तो कोई चिंता नहीं थी लेकिन इस बार 7-7 बच्चे भी तो थे। मैं सातों बच्चों को अपने तन से ढँक लेती और रातभर अपने शरीर की गर्मी देती रहती जिससे उनको ठंड न लगे और उनकी मृत्यु न हो। सुबह होते ही फिर पेट भरने की जद्दोजहद। अगर खाना न खाऊँ तो दूध कैसे बने और बच्चों को क्या पिलाऊँ? यकीन मानिए मैं कभी अपने अपने बच्चों को अकेले नहीं छोड़ना चाहती मगर एक तो मेरे पेट की आग और फिर बच्चों को भी दूध चाहिए इसलिए जहाँ-जहाँ इंसान कूड़े फेंकता है मैं भटकती रहती हूँ कि कुछ अवशिष्ट-जूठन मिल जाए।
                                            इसी तरह एक दिन मैं बच्चों के पास नहीं थी। बच्चों को आपस में खेलता-कूदता छोड़कर दूर निकल गई थी कि अचानक इंसानों के तीन-चार शरारती बच्चे आए और मेरे एक काले रंगवाले बच्चे को पूँछ से पकड़कर उठाकर ले गए। मैं दूर से ही सबकुछ देख रही थी। फिर उन्होंने उसको जूठी सब्जियों के रस से भरे गड्ढ़े में डूबा दिया। बेचारा तड़प उठा एक तो भीषण ठंड उस पर मिर्च-मसालों की जलन। उन बच्चों का दिल इतने से ही नहीं माना और वे उस पर पत्थर भी बरसाने लगे। तभी उस पर एक देवदूत सरीखे इंसान की नजर पड़ी और उन्होंने बच्चों को भगाकर मेरे बच्चे को अपने हाथों से बाहर निकाला। जब वह देवदूत बच्चे को अन्य बच्चों के पास छोड़ने आ रहा था तब गलतफहमी में मैं उस पर गुर्राई भी थी मगर उसने कुछ भी बुरा नहीं माना। फिर मैं उस बच्चे को देर तक चाटती रही जिससे उसका तन तो सूख ही जाए उसकी थरथराहट भी दूर हो जाए। खैर किसी तरह मेरा वह प्यारा बच्चा जीवित बच गया।
                          लेकिन वो कहते हैं न कि जब विपदा आती है तो अकेली नहीं आती। कल होकर वही क्रूर बच्चे फिर से आए और मेरे एक भूरेवाले बच्चे को साथ लेकर चले गए। उसी दिन शाम में मैंने उसकी लाश बगल के चौराहे पर पड़ी हुई देखी। वो मेरा सबसे बड़ा बच्चा था। भोला था,तुरंत इंसानों पर विश्वास कर लेता था और थोड़ा-सा पुचकारने पर पीछे-पीछे चल देता था। मैं उसके मृत शरीर को दूर से ही देखती रही और रोती रही,अकेली,चुपचाप। फिर भी मैं उन शरारती बच्चों को शाप नहीं दूंगी मैं इंसान थोड़े ही हूँ कि बदले की भावना रखूँ।
                              यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे निवास के पास एनएच नहीं है अन्यथा मेरे कई बच्चे अब तक सड़क-दुर्घटना के शिकार हो चुके होते और इंसानों की मौत मर चुके होते। आज कई दिनों के बाद आसमान पर चटख धूप खिली हुई है। रातभर मेरे छहों बच्चे मुझसे चिपककर ठंड के मारे कराहते रहे लेकिन अभी आपस में खेल-कूद रहे हैं। उनमें से कुछ इतने बड़े हो गए हैं कि खड़े-खड़े ही मेरा दूध पी लेते हैं और मुझे उनको दूध पिलाने के लिए झुकना या बैठना नहीं पड़ता। लगभग सारे-के-सारे बच्चे अब भोजन की तलाश में खुद ही कूड़ों का चक्कर भी लगाने लगे हैं। मैं क्या करूँ बड़ा होने के साथ उनका पेट भी तो बढ़ने लगा है और सिर्फ मेरे दूध से उनकी भूख नहीं मिट पा रही। इंसानों ने भी अब बचा हुआ भोजन फेंकना कम कर दिया है और जो कुछ भी बचता है वे उसे फ्रिज में रख देते हैं। पता नहीं आनेवाले समय में मेरे बच्चों का जीवन कैसे कटेगा? वैसे भी दिन-प्रतिदिन इंसानों का नैतिक पतन होता जा रहा है। वे अब अपनों को भी नहीं बख्श रहे। हमारे बच्चों को भी तो रहना आखिर इंसानों की दुनिया में ही है। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
पुनश्च-11-01-2014, मित्रों कल रात से ही हाजीपुर में बरसात हो रही है। मेरी पड़ोसन कुतिया के तीन काले वाले बच्चे रात की बारिश और ठंड को झेल नहीं सके और रात में ही दम तोड़ दिया। खुले मैदान में वो जीवित रह भी कैसे सकते थे जबकि सबकुछ जमा देनेवाली ठंड पड़ रही हो? सुबह अपने बचे हुए बच्चों को लेकर वो कई परिसरों में गई कि कोई तो ऐसा दयालु इंसान होगा जो उसे और उसके बचे हुए तीनों बच्चों को आश्रय दे देगा लेकिन कहीं तो उस पर डंडों की बरसात की गई तो कहीं लात-जूतों की। बरसात अभी भी जारी है और ठंड लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन वो बेचारी कुतिया अपने बच्चों के साथ लगातार वर्षा में भींग रही है।

30.12.13

सांप सूंघ गया है नमो नमो को ।
पिछले कई माह से जो नमो नमो चल रहा था उसे अब सांप सूंघ गया है । कितने ही दिनों से बीजेपी और इसके नेता नमो मंत्र का जाप कर रहे थे , टीवी पर मोदी मोदी था।  अब सब बदल गया है और बीजेपी को डर  लग गया है।  मुझे लगता है कि जैसे बीजेपी मोदी को ब्रांड बनाकर उनके विकास को बेच रही थी । उन्हें विकास पुरुष कह रही थी । मोदी का विकास माडल चल निकला था । सब विकास माडल की  , गुजरात के विकास की  मार्केटिंग कर रहे थे , अब अरविन्द का ईमानदारी माडल चल निकला है।  अरविन्द केजरीवाल ने अपनी ईमानदारी की  सही मार्केटिंग की  है । और पिछले दो साल से उन्हें एक ऐसा प्लेटफार्म मिला है जिसे उन्होंने भुनाने में कोई कोर कसर  नहीं छोड़ी है । हालाँकि यदि यह देखा जाय कि दिल्ली में क्या हुआ तो वहाँ पर यदि विजय गोयल ही बीजेपी के चीफ मिनिस्टर कैंडिडेट रहते और मोदी न आते तो बीजेपी भी कांग्रेस की  तरह दस बीस सीट्स पर सिमट चुकी होती । और अरविन्द पचास सीट्स ले गए होते । लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि मोदी आड़े आ गए यानि मोदी ने अरविन्द को रोका दिल्ली में , न कि अरविन्द ने मोदी को । खैर , अब अरविन्द केजरीवाल मॉडल मिला है । दिल्ली अधिकाधिक जनसँख्या घनत्व वाला क्षेत्र है और दूसरी सोच के साथ जी रहा है इसलिए आसान था , राष्ट्रीय नीति की  जरूरत नहीं थी लेकिन लोकसभा में बहुत जल्दी बहुत कुछ पा जाने की  आकांक्षा कुछ ज्यादा ही जल्दी है । दिल्ली संभाल लें और मॉडल पेश करें तो बात जमेगी , कितने अरविन्द केजरीवाल मिल पाएंगे ? शीला ने कम विकास नहीं किया था लेकिन दिल्ली सुरसा के मुह की तरह बढ़ रही है इसलिए समस्याएँ घटेंगी नहीं बढ़ेंगी ही । देखना होगा कि क्या क्या गुल खिलाती हैं आप ।
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां ,वाया रायवाला , देहरादून

29.12.13

नैतिक भारत के लिए शिक्षा प्रणाली में बदलाव

नैतिक भारत के लिए शिक्षा प्रणाली में बदलाव 

अंग्रेजों ने जब भारत छोड़ा तो कहा था कि इस देश को भारतवासी नहीं चला पायेंगे
और यह फिर से गुलाम हो जायेगा ,क्यों कहा था उन्होंने ऐसा ?क्योंकि वह जानते
थे हम भारत को ऐसी शिक्षा प्रणाली देकर जायेंगे जिसको पढ़ कर युवा दिशा हिन हो
जायेगा और भटक जायेगा।

आज इस देश के सामने मुख्य दौ समस्याएँ हैं पहली भ्रष्टाचार और दूसरी बेरोजगारी
इन दोनों समस्याओं ने कई नयी समस्याओं को जन्म दिया है जैसे- ध्वस्त होती
संस्कृति,महिला असुरक्षा ,जातिवाद,कर्तव्य बोध का अभाव आदि।

मुख्य समस्या भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से भारत ने निपटने के प्रयास किये और
वे प्रयास असफल होते गये और देशवासी इन समस्याओं से तालमेल बैठाकर जीना
सीख गए हैं और नतीजा यह कि ये बीमारियाँ बढ़ती ही जा रही है।

इन मुख्य समस्याओं से झुंझने का प्रयास सिर्फ फोरी तोर पर समय -समय पर
होता रहा है जैसे -आरक्षण,धरना ,आंदोलन प्रदर्शन या कानून लिख कर। ये उपाय
स्थायी नहीं हैं क्योंकि इससे समस्याओं की जड़ को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
क्या कठोर सजा ही सब समस्याओं का हल है ?समाज विज्ञान इसे नहीं मानता।
हमारे देश में अब बच्चे भी अवैधानिक काम कर के पकडे जा रहे हैं,प्रश्न यह उठता
है कि बच्चों के मन में अपराध को अंजाम देने के भाव आये कहाँ से ?ये अपराध
बच्चा सीखा कैसे ?इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?

विडंबना है कि इन बातों पर हमारे जनसेवक कभी संसद में चर्चा नहीं करते ,ना
सामाजिक सगंठन इस विषय पर चर्चा करते हैं। बड़ा दुःख है कि हम लीव इन
रिलेशन लाते हैं ,हम समलैंगिगो के लिए संवेदना लाते हैं.हम गर्भपात को बढ़ावा
देते हैं,हम महिलाओं कि असामान्य वेशभूषा को प्रोत्साहित करते हैं मगर शिक्षा
पर कभी बृहद चर्चा नहीं करते जो की मुख्य है।

गणतंत्र भारत को कैसी शिक्षा प्रणाली की जरुरत है इस पर कभी कोई NGO
आंदोलन या धरना नही करता।शिक्षा का स्वरुप कैसा हो इस पर कभी जनमत
नहीं लिया जाता ,जबकि अनैतिक जोड़ गणित के लिए जनमत होते रहते हैं
कारण यही की इससे सत्ता नहीं मिलती।

देश के नेता इस पर चर्चा नहीं करते जबकि चुनाव के समय अपने लिए वोट की
गुहार लगाने घर-घर योजना बद्ध तरीके से पहुँच जाते हैं।

KG से कक्षा पाँच तक का सेलेबस क्या हो ?क्योंकि बच्चा इस समय कोमल मन
का होता है उसे जो सिखाया जाता है वह उसे ग्रहण करता है और यही बाल संस्कार
उसके जीवन को गढ़ते हैं। कक्षा 6 से 8 तक का सेलेबस क्या हो ?इस उम्र में बच्चा
सीखता है और सोचता है। हमारी शिक्षा यहाँ आकर किताबी बन जाती है। बच्चा
किताबों में उलझ जाता है और कीड़ा बनने का प्रयास करता है जबकि सर्वांगीण
विकास हमारा लक्ष्य होना चाहिए।हम यहाँ से बच्चे को संविधान का धर्म नहीं
पढाते हैं ,सँस्कार और संस्कृति को लिखना सिखाते हैं मगर उसे जीवन में उतारना
नहीं सिखाते। कक्षा 9 से 12  जिसमे बच्चा बालिग़ होने लगता है तब तक वह
केवल यही जानता है कि तोता रटन्त परीक्षा पास करने के लिये जरुरी है।
अभिभावक भी कुछ नहीं कर पाते और शिक्षा प्रणाली के अनुरूप बच्चों को तोता
रटन्त करवाते हैं नतीजा बच्चा संस्कार, संस्कृति, सदाचार,नैतिकता को जीवन
में उतारने का अवसर खो देता है।

मेरे देश में कक्षा 12 के बाद बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ना छोड़ देते हैं और ये अनगढ़
बच्चे भारत निर्माण में लग जाते हैं ,ये बच्चे कैसा और कितना योगदान श्रेष्ठ
भारत निर्माण के लिए दे पायेंगे ,जरा आप खुद सोचे।

कॉलेज और मास्टर डिग्री के छात्र सिर्फ जीवन यापन के लिए पढ़ते हैं ,वे इस
कर्तव्य से अनजान हैं की उनकी समाज के लिए कोई जबाबदेही है। हमारी
कागजी डिग्रियाँ जब रोजगार का निर्माण नहीं कर पाती तो युवा हताश हो जाता
है और छोटी मोटी सरकारी नौकरी के लिए चक्कर लगाता है और उसे पाने के
लिए भ्रष्टाचार से समझौता कर लेता है और यही से वह खुद भ्रष्ट जीवन जीने
को धकेल दिया जाता है।

शिक्षा स्वावलम्बी हो ,सभ्य समाज का निर्माण करने वाली हो ,संस्कृति और देश
भक्ति प्रधान हो। इस व्यवस्था के बिना सुराज्य संभव नहीं है       

भू-लोक तन्त्र !!

भू-लोक तन्त्र !! 

एक गाँव के प्रवेश द्वार के पास एक कँटीला पेड़ था और उस पेड़ से कुछ दुरी पर
एक साधु की कुटिया थी। पेड़ के बड़े-बड़े काँटों से आये दिन कोई न कोई आदमी
चुभन का शिकार होता रहता।

एक दिन किसी राहगीर को काँटा चुभ गया ,वह दर्द से बिलबिला उठा। उसे लगा
की कुछ ऐसा काम कर दूँ ताकि अन्य राहगीर को काँटे न चुभे। अगले दिन उसने
एक बड़ा बोर्ड बनाया और पेड़ से कुछ फलाँग पहले लगा दिया। उस बोर्ड पर लिखा
था -"सावधान ,आगे काँटे का पेड़ है "
साधू ने उस बोर्ड को देखा और मुस्करा कर कुटिया में चला गया।

कुछ दिन बाद दूसरे राहगीर को काँटा लग गया ,वह राहगीर भी दर्द से बिलबिला
उठा। कुछ समय बाद वह एक कुल्हाड़ी लेकर वापिस आया और पेड़ कि कुछ टहनियाँ
जो रास्ते पर आ रही थी उनको काट डाला।
साधु उस राहगीर के पास आया और मुस्करा के अपनी कुटिया में चला गया।

कुछ दिन बाद फिर तीसरे राहगीर को काँटा चुभ गया ,वह दर्द से चिल्ला उठा और
गुस्से से भरा दौड़ता हुआ घर पर गया और घर से आरा लाकर उस पेड़ के तने को
काट डाला। पेड़ को कटा देख सब गाँव वाले इकट्टे हुये और उसे कंधों पर बिठा कर
उत्साह से नाचने लगे।

साधु गाँव वालों के पास गया और सब तमाशा देख चुपचाप मुस्कराता हुआ कुटिया
में चला आया। गाँव वाले कुछ दिन सुकून से रहे। किसी ने उस बोर्ड को वहाँ से हटा
दिया मगर कुछ ही महिनों में वह पेड़ फिर से फलफूल गया और राहगीर फिर से
घायल होने लग गये।

आने जाने वालों ने फिर से बोर्ड लगा दिया ,किसी ने फिर से बड़ी टहनियों को काटा
तो कोई आरा लेकर फिर से तने को काट डालता। तने को काटने वाले को गाँव वाले
कंधों पर बैठाते और नाचते। साधु हर बार घटना क्रम को देखता और मुस्करा कर
कुटिया में चला जाता।

पेड़ का तना कटने के बाद कुछ दिन गाँव में शान्ति रहती और जैसे ही पेड़ वापिस
फलफूल जाता वापिस वही  चक्र शुरू हो जाता। बार-बार के इस चक्र से गाँव वाले
परेशान हो गये और इस समस्या का स्थायी हल ढूंढने के लिए साधु के पास उपाय
पूछने गये।

साधु ने कहा -"आप सब मिलकर इस पेड़ को जड़ सहित उखाड़ दो ,यह इस समस्या
का स्थायी हल है "

गाँव वालों में से एक बोला -हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि इस उपाय से हम नेता
विहीन हो जायेंगे ,हम में से जो बोर्ड लगाता है वह सेवा भावी कहलाता है जो कुछ
टहनियाँ काटता है वह समाज सुधारक कहलाता है और जो आरा लेकर तना काटता
है वह नेता कहलाता है.इस चक्र ने हमें सेवाभावी ,समाज सुधारक और नेता दिये हैं
इसके रुकने पर सब बराबर हो जायेंगे। यह उपाय नामंजूर है  …
गाँव के सेवा भावी ,समाज सुधारक और नेता इस उपाय से असहमत थे।

उन सबकी बात सुनकर साधू जोर-जोर से हँस पड़ा और बोला -हाय! भू-लोक तन्त्र !!       

28.12.13

                                 जमीन पर रहकर आसमान से जमीन नापना 
 ये आसमान से जमीन नापने या मापने जैसा है।  क्या कभी आपने कल्पना की है कि हेलीकाप्टर से जमीन को नापा जाए।  शायद नहीं।  लेकिन अब ऐसा हो रहा है।  क्या है यह।  दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की विजय इसी का हिस्सा है । चुनाव से पहले अक्सर समीक्षक कहा करते थे कि आप चार पांच सीट्स ही ले पायेगी । भाजपा और कांग्रेस भी भाव देने से कतराते थे सो अब कतरा  कतरा  रो रहे हैं । लेकिन एक बात सही है । अक्सर तमाम राजनैतिक पार्टियां पहले पहल ग्राम प्रधान , पंचायत सदस्य , ब्लाक प्रमुख आदि क्रम से राजनीति में होते हुए विधायक मंत्री सांसद आदि का सफ़र तय करती हैं।  यह भारतीय राजनीति  के इतिहास में पहली बार हुआ है कि कोई सीधे ही अट्ठाइस  विधायकों के साथ दिल्ली का मुखिया बन बैठा है।  है न आकाश से जमीन नापना।  वह भी जमीन पर रहकर । ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था।  लेकिन यह हो चुका  है। अक्सर पार्टियां जमीनी स्तर  पर राजनैतिक कब्ज़ा करती हैं विभिन्न संघटनों , संस्थानो संस्थाओं आदि पर कब्ज़ा करती हैं और फिर ऊपर पकड़ बनाती हैं लेकिन पहली बार ऐसा नहीं हुआ है । कहीं यह दिवास्वप्न तो नहीं है । यकीनन दिवास्वप्न नहीं है ।
लेकिन क्या झांसा दिया जाना जरूरी था । बीजेपी कहती रही कि वह विपक्ष में बैठेगी । कांग्रेस ने पत्ते खोले और सोचा कहीं  ऐसा न हो कि लोकसभाचुनाव  में मोदी ब्रांड के साथ अगर दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए तो बीजेपी इस राज्य में भी सत्ता में न आ जाए । सो केजरीवाल को समर्थन दो । समर्थन दिया । कहा कि दोबारा चुनाव में नहीं धकेल सकते दिल्ली की  जनता को । लेकिन यह नहीं समझाया कि मई २०१४ में तो जनता को मतदान केंद्र जाना ही है । एक और बटन दबा देता मतदाता । दिल्ली विधान सभा के लिए भी वोट दे देता । सो दोबारा चुनाव होने देते । कांग्रेस ने क्या पांच साल के लिए समर्थन दिया है ? कोई गारंटी ? नहीं । तो फिर केजरीवाल को क्या हुआ ? इस से बेहतर तो यह होता कि केजरीवाल बीजेपी को समर्थन देते या बीजेपी से समर्थन लेते । लेकिन हमारे देश में धर्म निरपेक्ष दिखने का एक शौक है सभी को । और इसलिए केजरीवाल ने अपने घोषणा पत्र में लिख दिया कि दिल्ली में उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा । पंजाबी तो है ही द्वितीय राजभाषा । उर्दू भी । वाह । असल में राजनीति बीजेपी और गैर बीजेपी में फांसी है और इसलिए सही मायने में बीजेपी और शिवसेना जैसे दल एक तरफ हैं और शेष दल एक तरफ । केजरीवाल को जल्दी है । दिल्ली संभालेंगे या देश ? एक बिन्नी ने ही रातों की  नींद उड़ा  दी । देश में जिन लोगों को लोकसभा में भेजेंगे उनमे कितने बिन्नी होंगे क्या पता । सत्ता में वहाँ लोकसभा में तो नहीं आयेंगे ? फिर कुछ सीट्स मिल भी गयी तो अपने लोगों को कैसे रोक पाएंगे गाडी बंगला न लेने के लिए । वहाँ तो मिलेगा ही । बवाल नहीं होगा ? बिन्नी नहीं पैदा होंगे ? प्रलोभन न हो सामने तो ईमानदार बने रहना आसान है लेकिन जब सामने करोड़ों होंगे तो ? तब ईमानदार बनना होगा ? क्या वास्तव में सब बुद्धा ही हैं केजरीवाल पार्टी में । नहीं । लेकिन मैं केजरीवाल का विरोधी नहीं । समर्थक हूँ । चाहता हूँ धीरे धीरे बढ़ें ताकि विश्वसनीयता को कोई आंच नहीं आये । अभी जितना मिला है उसे पचाएं , जो कहा है करके दिखाएँ । तब बात जमेगी । और प्रत्याशी ? सभी की  पत्नियां तो नौकरी नहीं करती ? उनका परिवार कौन पालेगा । केजरीवाल की  तो पत्नी उनका अपना परिवार सम्भाल लेगी । लेकिन बाकी  क्या बाबा वैरागी लायेंगे । मिल जायेंगे ? ढूँढिये । बहुत जल्दी भी ठीक नहीं है । दुनिया बहुत बड़ी है और समय का इन्तजार करें । और हाँ , सुरक्षा जरूर लें , क्योंकि राजनीति में हैं । थोडा गोवा के परिकर के बारे में भी सोचें ।

फ्रॉम -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून

भारत एकता: तलवार धार चलकर, है व्यवस्था तुझे बदलना.

भारत एकता: तलवार धार चलकर, है व्यवस्था तुझे बदलना.: तलवार है दुधारी, जिस पथ है तुझको चलना, है तेरे अपने हाथ ही, गिरना और सम्भलना...... सियासत में बहुत शातिर, है ये कॉंग्रेस प्यारे, गिरगिट ...

27.12.13

नो वन किड्नैप्ड नवरुणा-ब्रज की दुनिया


मुजफ्फरपुर से अपने घर से सोते समय खिड़की तोड़ कर 18 सितंबर,2012 की रात में अपहृत कर ली गई नवरुणा के मामले में उस समय दिलचस्प मोड़ आ गया जब केन्द्रीय जाँच एजेंसी सीबीआई ने मामले की जाँच के बिहार सरकार के अनुरोध को ठुकराते हुए केस से संबंधित कागजात वापस कर दिए। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अब इस मामले का होगा क्या? क्या इस मामले का भी हश्र वही होने जा रहा जो कभी जेसिका हत्याकांड का हुआ था कि नो वन हैव किल्ड जेसिका? अगर अपहरण हुआ तो लड़की गई कहाँ और अगर नहीं हुआ तो लड़की कहाँ है? जब तीन-चार घंटे में निर्भया के साथ दुष्कर्मी दरिंदगी की प्रत्येक हद को तोड़ सकते हैं तो अपहर्त्ताओं ने 12 साल के उस मासूम के साथ इतने दिनों में कितनी दरिंदगी की होगी यह सोंचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
नवरुणा अपहरण कांड न सिर्फ बिहार पुलिस,सीआईडी बल्कि पूरी बिहार सरकार की कार्यक्षमता पर लगा हुआ एक बहुत बड़ा प्रश्न-चिन्ह है। इस अपहरण कांड और उसके उद्भेदन में बिहार सरकार के तंत्र की विफलता से यह आशंका भी जन्म लेती है कि इसके पीछे कहीं-न-कहीं बहुत-ही प्रभावशाली लोगों का हाथ है। वे कदाचित मुजफ्फरपुर में पीढ़ियों से बसे बंगालियों को भगाकर उनकी बहुमूल्य जमीन पर कब्जा जमाना चाहते हैं। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि पिछले दिनों कई बंगालियों पर मुजफ्फरपुर में जानलेवा हमले हो चुके हैं। ये लोग इतने अधिक प्रभावशाली हैं कि शायद इनकी सीधी पहुँच न सिर्फ पटना बल्कि दिल्ली के सत्ता प्रतिष्ठानों तक भी है। संदेह तो यह भी उत्पन्न हो रहा है कि क्या सचमुच बिहार सरकार या पुलिस जाँच को लेकर गंभीर है या फिर जाँच का ढोंग मात्र कर रही है? सीबीआई ने हालाँकि जाँच से इन्कार करके बिहारवासियों व नवरुणा के परिजनों को निराश किया है तथापि उसको इसलिए कर्त्तव्यविमुखता के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कानून-व्यवस्था मूल रूप से राज्य का विषय होता है न कि केंद्र का। (हाजीपुर टाईम्स से साभार)

जिसने खींची थी भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की रेखा

जिसने खींची थी भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की रेखा

नयी परिभाषा

नयी परिभाषा 

इस देश के नेता कब क्या कह जाते हैं यह सोच कर की जनता याद नहीं रखती। आये दिन
नयी परिभाषाएँ बनाने की जुगत में हर कोई लगा है चाहे वह अपनी सोसायटी के किसी
पद पर है या फिर समाज,गाँव ,शहर राज्य या देश के किसी नेता पद पर।
कुछ शब्दों कि नयी सीमा रेखाएँ -

सच :- मैं जो कहूँ और जिसे मानू  वही सत्य 

सरलता :- जो व्यक्ति मेरे  गलत इशारे पर भी नाचे वह सरल 

नैतिक :- जो मुझे रूचिकर लगे और लोग उस पर अँगुली ना उठाये 

वादा :- वो शब्द जिसे मेरी मर्जी से तोडा या टुकड़े टुकड़े कर जोड़ा जा सके  

कसम :- लोग तब भी विश्वास करे जब मैं इसे तोड़ मरोड़ दूँ 

वफादार :- जो मेरे काले कारनामों को दबा दे ,मिटा दे 

ईमानदार :- जो व्यक्ति मेरे पक्ष में खड़ा हो सके 

भ्रष्ट :-मेरा विरोधी तथा मेरे पक्ष में रहकर आँखे और कान खुले रखता हो 

व्यवहार :- उचित काम करने पर दी जाने वाली अनुचित राशी 

होशियारी :- मैं कसम तोड़ता जाऊँ और जनता समर्थन देती रहे 

समझदार :-नाव डूबती देख विरोधी का पल्ला थाम ले 

सेवा :- जिस काम को खूब प्रचारित जा किया जाये और आडम्बर भी फैले 

त्याग :- अपराध सिद्ध हो जाने पर पद से लिया गया इस्तीफा 

अहँकार :- विरोधी द्वारा कहा जा रहा कड़वा सच 





26.12.13

कैसे जुटेगा फंड

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कामकाज संभालते ही अपने घोषणापत्र को अमलीजामा पहनाना शुरु कर दिया है, चूंकि वे खुद वित्तमंत्री का दायित्व भी निभाएंगे, ऐसे में बतौर वित्तमंत्री उनके लिए अपनी नई घोषणाओं के लिए फंड जुटाना बड़ी चुनौती होगी। राज्य में वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए 44,169 करोड़ का बजट अनुमान था, जो 2014-15 में बढ़कर करीब 48 हजार करोड़ के पार पहुंच जाएगा।
रमन सिंह ने शपथ लेते ही निर्देश जारी कर दिए हैं कि 1 जनवरी 2014 से 47 लाख परिवारों को 1 रुपए प्रति किलो की दर से चावल दिया जाए। घोषणा पत्र के अपने वादे को पूरा करते हुए समर्थन मूल्य पर धान बेचने वाले किसानों को प्रति क्विंटल 300 रुपए बोनस देने के आदेश भी दे दिया गया है। साथ ही अटल बिहारी बाजपेयी के जन्मदिवस यानि 25 दिसंबर 2013 से अटल बीमा योजना लागू करने के निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं, जिसके तहत प्रदेश के लगभग 17 लाख खेतिहर मजदूरों को जीवन व दुर्घटना बीमा किया जाएगा। आदिवासी और वनवासियों के लिए तेंदूपत्ता की तर्ज पर इमली, चिरौंजी, महुआ, लाख और कोसा को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का फरमान भी जारी कर दिया गया। ये सब सुनने और देखने में सुखद जरूर लग सकता है, लेकिन राज्य सरकार को इसके लिए मोटी कीमत चुकानी होगी। सरकार को पहले से जारी योजनाओं के लिए भी वित्त की पूर्ति करनी है, ऐसे में इन नई रियायतों के लिए राजकोष पर चार से पांच हजार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ने का अनुमान है।
रमन सिंह के अपने तीसरे कार्यकाल के पहले ही दिन लोकलुभावन योजनाओं के क्रियान्वयन की लंबी सूची को आम लोग भले ही सुशासन से जोड़कर देख रहे हैं, लेकिन इसके लिए राज्य सरकार को बड़ी रकम जुटानी होगी, जो कि अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।
राज्य सरकार पर नई घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने में पड़ने वाले वित्तीय भार को हम पिछले बजट से समझ सकते हैं। वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए 44,169 करोड़ का बजट अनुमान प्रस्तुत किया गया था। इसमें खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम के तहत लगभग 42 लाख गरीब परिवारों को दो और तीन रुपए प्रति किलो की रियायती दर पर तथा 8 लाख सामान्य परिवारों को ए.पी.एल. दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने का प्रावधान था। इस पर लगभग 2000 करोड़ का खर्च अनुमानित था अब नए निर्देशों के तहत प्रति परिवार 1 रुपए किलो की दर से चावल उपलब्ध करवाया जाना है यानि योजना पर खर्च दुगुना हो जाएगा।
वहीं वर्ष 2012-13 में खरीदे गए 70 लाख मीट्रिक टन धान के बदले 270 रुपए प्रति क्विंटल की दर से अकेले बोनस देने के लिए 1750 करोड़ का प्रावधान किया गया था। अब नई घोषणा के तहत सरकार को प्रति क्विंटल 300 रुपए बोनस देना है यानि इस मद पर भी राशि दुगुनी ही होनी है। इसका एक कारण ये भी है कि हर साल धान खरीदी का आंकड़ा बढ़ रहा है। राज्य सरकार ने वर्ष 2010-11 में ही 51 लाख  मीट्रिक टन धान खरीद कर  किसानों को 5000 करोड़ रूपए धान की कीमत और बोनस के रूप में दिए थे । 2013 में धान खरीदी का आंकड़ा 70 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गया।
इस मसले पर मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं कि अपनी घोषणाओं को हम हर हाल में पूरा करेंगे। जहां तक बजट का सवाल है, हम अपने वित्तीय अनुशासन से इसकी पूर्ति करेंगे। लेकिन सीएम ये नहीं बताते कि वे किस तरह के वित्तीय अनुशासन की बात कर रहे हैं।
वर्ष 2013-14 में बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा था कि राज्य की कुल प्राप्तियाँ 43,977 करोड़ तथा कुल  व्यय 44,169  करोड़ अनुमानित किया गया है। इन वित्तीय प्राप्ति और व्यय में अंतर के कारण 192  करोड़ का शुध्द घाटा अनुमानित है। साथ ही वर्ष 2012-13 के संभावित घाटे 1,485 करोड़ को शामिल करते हुये कुल बजटीय घाटा 1,677 करोड़ अनुमानित है। इस घाटे की पूर्ति वित्तीय अनुशासन तथा अतिरिक्त आय के संसाधन जुटाकर की जाएगी। यानि 2013-14 में ही 1 हजार 677 करोड़ का घाटा अनुमानित था।
प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता रामचंद्र सिंहदेव तहलका से कहते हैं कि राज्य सरकार तो कंगाल हो चुकी है। पिछले ही साल सरकार ने कामकाज चलाने के लिए अब तक का सबसे बड़ा लोन यानि साढ़े तीन हजार करोड़ रुपया राष्ट्रीयकृत बैंकों से लिया था। इससे ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकारी खजाना बिलकुल खाली हो चुका है। अब कैसे योजनाओं को पूरा किया जाएगा, ये तो मुख्यमंत्री ही जानें
जबकि वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था, तब अविभाजित मध्यप्रदेश के हिस्से के रूप में छत्तीसगढ़ के भौगोलिक क्षेत्र के लिए कुल बजट प्रावधान केवल पांच हजार 704 करोड़ रूपए था, जो अलग राज्य बनने के बाद क्रमशः बढ़ता गया और अब तेरह सालों में 40 हजार करोड़ रूपए से अधिक हो गया है।
हालांकि सूबे के मुखिया को अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने की जल्दी शायद इसलिए भी है कि लोकसभा चुनाव सामने हैं, या फिर रमन सिंह अपनी हैट्रिक से गदगद हैं और जनता का अहसान चुकाना चाहते हैं। किंतु योजनाओं को लागू करने की जल्दबाजी चाहे किसी भी कारण हो, लेकिन इस त्वरित क्रियान्वयन में मुख्यमंत्री एक बात भूल रहे हैं कि इन योजनाओं को लागू करने के लिए राज्य पर पड़ने वाले वित्तीय भार से वे कैसे निपटेंगे। सरकार का खर्च तो हर साल बढ़ रहा है, लेकिन आय कैसे बढ़ेगी, इसका जबाव फिलहाल किसी के पास नहीं है, लेकिन हां, मंत्रालय में घोषणा पत्र के क्रियान्वयन के लिए बैठकों का दौर जारी है।

25.12.13

मानें सब भगवान



     
ईसा ने दिया था प्रेम का पावन यह संदेश।
प्रेम जगत का सार, मानव का धर्म विशेष।।
वह चला गया हम भूल गये उसकी वाणी।
इसीलिए हैं पीड़ित दुनिया के सारे प्राणी।।
मानव सेवा सच्ची सेवा और प्रेम है धर्म।
विश्व सुखी होगा जब समझेगा यह मर्म।।
मानव रूप धर आया, मानें सब भगवान।
दुखियों का बना मसीहा,था ऐसा इनसान।।
दुख झेले पर जिसने दिया प्रेम का साथ।
दीनों की सेवा में जिसने सदा बढ़ाये हाथ।।
                 -राजेश त्रिपाठी

24.12.13

अन्ना ने चलाए केजरीवाल पर ‘व्यंग्य बाण’ | इंडियन न्यूज़ ब्यूरो

अन्ना ने चलाए केजरीवाल पर ‘व्यंग्य बाण’ | इंडियन न्यूज़ ब्यूरो

कहीं यह कांग्रेस-केजरीवाल का फिक्स मैच तो नहीं?-ब्रज की दुनिया

मित्रों,अभी कुछ दिन जब अरविन्द केजरीवाल अपने कथित पूजनीय गुरू अन्ना हजारे पर कांग्रेस के हाथों की कठपुतली होने और दोनों के बीच सबकुछ पूर्वनिर्धारित होने का आरोप लगा रहे थे तब मैं यह सोंचने में लगा था कि कहीं कांग्रेस और केजरीवाल के बीच फिक्स मैच तो नहीं चल रहा है? वरना ऐसा न तो पहले देखा गया था और न ही सुना गया था कि कोई पार्टी उसी पार्टी की सरकार को बिना शर्त समर्थन दे जिसने उसके अस्तित्व पर ही प्रश्न-चिन्ह लगा दिया हो और कांग्रेस जैसी धूर्त पार्टी ऐसा महामूर्खता तो बिना वजह के कर ही नहीं सकती।
                    मित्रों,जहाँ तक मुझे लगता है कि आप पार्टी कांग्रेस की प्रयोगशाला में तैयार तजुर्बा है जो मोदी रथ को रोकने के लिए इस्तेमाल की जा रही है। याद कीजिए कि केजरीवाल को प्रमोट किसने किया-केंद्र की कांग्रेस सरकार ने। अन्ना हों या केजरीवाल दोनों ही कांग्रेस द्वारा फिक्स किए गए मैच को खेल रहे हैं। कहना न होगा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का आप पार्टी प्रयोग बेहद सफल रहा है। सत्ता का जाम भाजपा के होठों तक पहुँचते-पहुँचते दूर हो गया है। सोंचिए,कल्पना कीजिए कि अगर कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन देकर आप को सत्ता में आने का अवसर नहीं दिया होता तो क्या होता? तब केजरीवाल अभी तक मीडिया से सिरे से गायब हो चुके होते और यह चर्चा शुरू ही नहीं होती कि क्या केजरीवाल अब मोदी का रथ रोकेंगे? जाहिर है कि अगर दिल्ली विधानसभा की तरह ही लोकसभा चुनावों में भी त्रिशंकु की स्थिति बनती है तो सबसे ज्यादा संतोष कांग्रेस को होगा। चाहे मुख्यमंत्री केजरीवाल हों या शीला दीक्षित या फिर प्रधानमंत्री अरविन्द केजरीवाल हों या मनमोहन सोनिया गांधी परिवार को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि अल्पसंख्यक तुष्टीकरण सहित अधिकांश मुद्दों पर आप और कांग्रेस की विचारधारा एक है। कांग्रेस को अगर नफरत है तो सिर्फ हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व से जिसके उभार को रोकने के लिए वो केजरीवाल तो क्या ड्रैकुला से भी हाथ मिला सकती है। जो मित्र केजरीवाल के बार-बार जनता के पास जाने और हर काम को जनता की ईच्छा बताकर करने को नई तरह की राजनीति की शुरुआत मान रहे हैं उनको मैं हिटलर का इतिहास पढ़ने की सलाह दूंगा जो केजरीवाल की ही तरह जनता की ईच्छा बताकर बुरे-से-बुरे काम को अंजाम दिया करता था। जनलोकप्रियता की राजनीति हमेशा अच्छा परिणाम नहीं देती बल्कि कई बार शासन को देश-प्रदेश के हित में जनाकांक्षाओं की अनदेखी भी करनी पड़ती है।
                               मित्रों,इस बीच आप पार्टी के नेताओं के सुर भी आरोपों और वादों को लेकर बदलने लगे हैं। पहले जहाँ ये स्वयंभू-स्वघोषित ईमानदार बिजली कंपनियों से कमीशन खाकर कांग्रेस सरकार पर बिजली के दर बढ़ाने के आरोप लगा रहे थे और यह दावा भी कर रहे थे कि वे बिजली कंपनियों का ऑडिट करवाएंगे और अगर जरूरी हुआ तो उनको हटाकर नई कंपनियों को राष्ट्रीय राजधानी में बिजली वितरण का ठेका देंगे अब सरकारी खजाने से सब्सिडी देकर बिजली बिल को आधा करने और प्रत्येक परिवार को 750 लीटर पानी मुफ्त में देने की बातें कर रहे हैं। मियाँ जब सब्सिडी देकर ही वादों को पूरा करना था जो कि एक छोटा-सा बच्चा भी कर सकता है तो फिर चुनाव से पहले हथेली पर दूब जमा देने के वादे किए ही क्यों थे? ये लोग फरमाते हैं कि जनता का पैसा जनता के ऊपर ही खर्च कर देंगे। मगर यह खर्च करना तो हुआ नहीं लुटा देना हुआ जो बाँकी दल पहले से ही टीवी-लैपटॉप-साईकिल जनता के बीच बाँटकर कर रहे हैं। क्या केजरीवाल एंड कंपनी यह बताएगी कि 36000 करोड़ रुपए के कुल वार्षिक बजटवाले दिल्ली राज्य के लिए वो 20-तीस हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी के लिए पैसे कहाँ से लाएगी? इस 36000 करोड़ रुपए में से भी कुछ राशि योजनागत व्यय के लिए होगी जिसमें से वे राशि डाईवर्ट कर नहीं सकते ऐसे में दिल्ली के विकास,नए निर्माण, मेंटनेंस और वेतन के लिए पैसा कहाँ से आएगा? ऐसे में लगता है कि आप पार्टी सरकार बनाने से पहले ही यानि परीक्षा शुरू होने से पहले ही अनुत्तीर्ण हो गई है। केजरीवाल जी चुनाव में मुद्दा बिजली-पानी था न कि यह कि मुख्यमंत्री या विधायकों-मंत्रियों को जेड श्रेणी की सुरक्षा और अन्य सुविधाएँ मिलनी चाहिए या नहीं। (हाजीपुर टाईम्स पर भी एक साथ प्रकाशित)

झोले वालों के ’असली बसन्त’ पर खद्गदर वालों के पतझड़ का फातिया !



                                                                                                                                                                                                                                                                                  
बात युनाईटेड प्रोगेसिव एलायन्स प्रथम (UPA - 1) की पहली बार सरकार बनने और सोनिया गांधी के खुद को सरकार से अलग करते हुये मनमोहन सिंह को प्रधान मन्त्री बनने के लिये आगे करने के समय की है । चूंकि कांग्रेस के लोग इस बात को हजम नहीं कर पा रहे थे कि नेहरु - गांघी परिवार से इतर कोई कुर्सी सम्भाले इसलिए सोनिया गांघी ने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (National Advisory Council - NAC) का गठन कराया और सरकार को विकास एवं जनहित के मुद्दों पर सलाह देने का बीड़ा उठाया ।

इस परिषद में सोनिया ने देश भर के नामचीन समाजिक कार्यकर्ताओं जैसे अरूणा राय, मेधा पाटकर, सन्दीप पाण्डेय आदि को शामिल किया । तब यह कहा गया कि सोनिया ने सरकार को समाज और सामाजिक सरोकारों से जोड़कर चलाने का इन्तजाम किया है । और अखबारों के opinion editorial पन्नों पर छपने लगा कि यह "झोले वालों का बसन्त काल है ।"   सोनिया के रास्ते सीधे तौर पर सामाजिक सरोकारों का सरकार के काम - काज पर प्रभाव रहेगा । सरकारी बैठकों में भी झोलेवाओं से राय - मशविरा किया जाना शुरू हुआ ।  बताते चलें के सामाजिक कार्यकर्ताओं को euphimistically "झोलेवाला" कहा जाता है । साथ ही यह भी बतातें चलें कि UPA - 1 के कार्यकाल की उपलब्धियों में RTI Act और MNREGA सरीखे लोक कल्याणकारी कानून शामिल हैं । राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (FSB) भी इसी NAC के दिमाग की उपज कहा जा सकता है ।

आज जब अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की कुर्सी पर बैठने को तैयार हो गये तो बरबस ही 1999 से आगे का समय जो मैने देखा - एक kaleidoscope की भांति आखों के आगे घूम गया । लखनऊ विश्वविद्यालय में एम.काम. में पढ़ते समय मेरे ईमेल पर पता चलता था कि दिल्ली में परिवर्तननामक गैर सरकारी संस्था (NGO) द्वारा बिजली दफ्तरों के बाहर जनसभाएं करके और कैम्प आदि लगा के जनता की समस्याओं से दो-चार होकर उन्हे सुलझाने का प्रयास किया जा रहा था । और इस संस्था का मुखिया अरविन्द केजरीवाल नाम का व्यक्ति, इनकम टैक्स का एक बड़ा अधिकारी था । परिवर्तनकी ईमेल की खास बात यह होती थी कि वे अपनी सफलताओं और विफलताओं को बेहद साफगोई से रखते थे । केजरीवाल ने इससे पहले अपने इनकम टैक्स कार्यालय से ही समाज सेवा की शुरुआत की थी ।

बाद में केजरीवाल ने परिवर्तनके बैनर के तले ही शुचिता कानून कहे जाने वाले सूचना का अधिकार अधिनियम को पूरे देश में लागू करने के लिये आन्दोलन खड़ा किया ।  2005 में पूरे देश में लागू होने से पहले दिल्ली सहित देश के छ: राज्यों में अलग-अलग अधिनियमों के माध्यम से यह कानून लागू था । RTI पर केजरीवाल रसीखे लोगों के इसी संघर्ष के कारण 2005 में पूरे देश को यह अधिकार मिला । और इसके लागू होने के बाद भी पूरे देश में इसके ट्रेनिंग कार्यक्रम और क्षमता विकास के कार्यक्रम आयोजित किये । मनीष सिसोदिया उसी दौर के साथी हैं ।

शुचिता संवर्धन के उसी दौर में Association for Democratic Reforms (ADRI) नामक संस्था बनी जिसमें IIM - Bangalore के प्रो. त्रिलोचन शास्त्री, IIM - Ahemedabad के एक प्रो. और अनिल बैरवाल आदि शामिल थे । ADRI ने पूरे देश में Election Watch नामक कार्यक्रम की नीवं रखी जिसने चुनावी उम्मीदवारों के हलफनामों का अध्ययन करके उम्मीदवारों के आय - व्यय और आपराधिक मुकदमों को सार्वजनिक करने का बीड़ा उठाया । 

झोलेवालों का जो बसन्त काल तब शुरू हुया था आज वह एक मुक्कमल मुकाम पर पहुँच गया है । अब यह मुकाम किसी सोनिया के रहमों करम पर नहीं है । किसी को सलाह न देकर अब वह खुद अपनी इबारत लिख सकेंगे । मुबारक हो यह बसन्त ! शुचितानीत राजनीति का शैशव-काल मुबारक हो !

पर पूरे प्रकरण से खद्दर वालेतिलमिलाए हुये हैं । समझना मुश्किल नहीं है कि क्यों ? उनकी थाथी में ठेस जो लगी है । शायद राजनीति में उनका पतझड़ काल शुरू हो गया है ? समय रहते नहीं चेते तो जनता फातिया भी पढ़वा देगी । 

22.12.13

जनमत तो श्री राम के साथ भी था …।

जनमत तो श्री राम के साथ भी था  …। 

केजरीवाल के दाँत क्या खाने और दिखाने के अलग हैं ?यह प्रश्न सहज है ,क्योंकि वे युवा
भारत को नैतिकता और ईमानदारी का स्वराज्य देने का सपना दे रहे थे। जिस भ्रष्टाचार
से लड़ने की बात किया करते थे वो केजरीवाल अब कहाँ गायब हो गया ?क्या सत्ता की
भूख हर बार नैतिकता पर भरी पड़ जाती है ?

"आप" कांग्रेस और भाजपा दोनों के खिलाफ वोट माँग रही थी और जब राजा बनने की
बारी आयी तो कांग्रेस से समर्थन पाकर राज जमाने की तैयारी में लग गयी है। क्या
यही नैतिकता है या यही स्वराज्य का स्वरुप था केजरीवाल का। क्या जनता ने इसलिए
केजरीवाल को वोट किया था। नहीं ,जब जनता ने वोट किया था तो उसकी सोच कांग्रेस
के शासन से मुक्ति की थी और "आप"के निर्दोष नए चेहरे थे। जनता ने इस विश्वास के
साथ "आप"को वोट दिया कि उसे नया स्वराज्य मिलेगा।

जब जनता ने केजरीवाल को पूर्ण बहुमत नहीं दिया तो उसे भी भाजपा कि तरह सत्ता
को हाथ जोड़ देना चाहिए था ,लेकिन हाथीके दाँत खाने और दिखने के अलग होते हैं उसी
तरह "आप" ने सत्ता का सुख भोगने का शॉर्ट कट लिया उसका अर्थ यह था कि सत्ता मिल
गयी तो राज करते रहेंगे और काँग्रेस ने हाथ हटाया तो जनता को कह देंगे कि हमने तो
आपके कहने पर यह सब पाप किया।

  मुझे रामायण का वह खंड याद आता है जब राम के वनवास कि बात सुन अयोध्या की
प्रजा ने राजा दशरथ का साथ छोड़ श्री राम को राजा मान लेने का निर्णय कर लिया था।
खुद दशरथ भी राम से कह चुके थे कि -"बेटा ,मुझे कारावास में बंदी बनाकर तुम राज कर
लो "मगर श्री राम ने ऐसा नहीं किया क्योंकि वह जानते थे कि उनके इस आचरण का
दूरगामी प्रभाव प्रजा पर पडेगा और वह भी धीरे -धीरे अनैतिक हो जायेगी। राम ने वनवास
को सुराज्य कि स्थापना के लिए स्वीकार किया था। श्री राम ने उस समय जनमत के
विरुद्ध आचरण करके वन जाना स्वीकार क्यों किया ?उन्होंने जनमत का आदर क्यों नहीं
किया जो उन्हें उसी समय राजा के रूप में स्वीकार कर चूका था।

केजरीवाल जनता कि भावुकता और सरल ह्रदय का फायदा उठाने कि सोच चुके हैं ,अगर
जनता ने भावावेश में कोई निर्णय कर लिया तो इसका मतलब यह नहीं की केजरीवाल
सिंहासन पर बैठ जाये। केजरीवाल और उनकी टीम ने कभी भी जनता से यह प्रश्न नहीं
किया कि हमें वापिस जनता के पास जाना चाहिए ,क्यों ? आप जनता से हाँ या ना क्यों
पूछ रहे थे ?उनको यह क्यों नहीं समझा रहे थे कि काँग्रेस के सहयोग से सरकार बनाना
अनैतिक है ?

इसके जबाब में "आप"यह तर्क दे कि जनता इतना जल्दी चुनाव का खर्च नहीं बर्दास्त
कर पायेगी लेकिन इस बात में कोई दम नहीं है क्योंकि जनता जानती है की उसने सही
बहुमत नहीं दिया इसलिए वापिस चुनाव का खर्च उठाना पडेगा। देश की जनता मौका
परस्त नहीं है ,देश कि जनता नैतिकता के प्याले में अनैतिकता का घोल पसंद नहीं
करती है मगर उससे छद्म और छल से गलत फैसला करवा कर हम किस ढ़ंग की
नैतिकता की स्थापना करने जा रहे हैं यह शोचनीय है

   

21.12.13

दोस्तों से डर लगे







राजेश त्रिपाठी
रहबर कभी थे आजकल राहजन होने लगे।
मूल्य सारे क्यों भला इस तरह खोने लगे।।
स्वार्थ की आग में जल गयी इनसानियत।
दुश्मनों की कौन पूछे दोस्तों से डर लगे।।

जमीं पर था कभी अब आसमां को चूमता।
उसको इनसानियत का पाठ बेमानी लगे।।
झोंपड़ी सहमी हुई है, बंगले तने शान से।
ये तरक्की की तो हमें बस लंतरानी लगे।।

आपने देखा अपना आज का ये हिंदोस्तां।
हर तरफ मुफलिसी औ गम के मेले लगे।।
कोई मालामाल तो कर रहा है फांके कोई।
ख्वाब गांधी का तो अब यहां फानी लगे।।

हर तरफ नफऱत रवां है, आदमी बेजार है।
प्यार लेता सिंसकियां दुश्मनी हंसती लगे।।
हम भला क्या कहें अब सारा जहां बीमार है।
मुल्क में लोग खौफ के ख्वाब हैं बोने लगे।।

पाठ समता का कभी जिसने पढ़ाया खो गया।
सुख की सोये नींद कोई कोई कर रहा रतजगे।।
दुनिया में जो था आला आज वह बदहाल है।
ये खुशी तो है नहीं हंसता आदमी रोने लगे।।



19.12.13

मल्टीपल माइलोमा

मल्टीपल माइलोमा प्लाज्मा सेल्स का कष्टदायक कैंसर है। प्लाज्मा सेल्स अस्थिमज्जा या बोनमेरो में पाये जाते हैं और हमारे रक्षातंत्र के प्रमुख सिपाही हैं। विदित रहे कि हड्डियों के अंदर स्थित गूदे को अस्थिमज्जा या बोनमेरो कहते हैं। यह एक कारखाना है जहां खून में पाई जाने वाली सभी कोशिकाएं तैयार होती हैं। यह रोग 1848 में परिभाषित किया गया। 
रक्षातंत्र में कई तरह की कोशिकाएं होती हैं जो साथ मिल कर संक्रमण या किसी बाहरी आक्रमण का मुकाबला करती हैं। इनमें लिम्फोसाइट्स प्रमुख हैं। ये मुख्यतः दो तरह की होती हैं टी-सेल्स और बी-सेल्स। 
जब शरीर पर किसी जीवाणु का आक्रमण होता है तो बी-सेल्स परिपक्व होकर प्लाज्मा सेल्स बनते हैं। ये प्लाज्मा सेल्स अपनी सतह पर एंटीबॉडीज (जिन्हें इम्युनोग्लोब्युलिन भी कहते हैं) बनाते हैं, जो जीवाणु से युद्ध कर उनका सफाया करते हैं। लिम्फोसाइट्स शरीर के कई हिस्सों जैसे लिम्फ नोड, बोनमेरो, आंतों और खून में पाये जाते हैं। लेकिन प्लाज्मा सेल्स अमूमन बोनमेरो में ही पाए जाते हैं। 

जब प्लाज्मा सेल्स कैंसरग्रस्त होते हैं, तो वे अनियंत्रित होकर तेजी विभाजित होने लगते हैं और गांठ का रूप ले लेते हैं जिसे प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं। यदि एक ही गांठ बनती है तो इसे आइसोलेटेड या सोलिटरी प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं, लेकिन यदि एक से अधिक गांठे बनती हैं तो इसे मल्टीपल माइलोमा कहते हैं। ये गांठें मुख्यतः अस्थिमज्जा में बनती हैं। 

मल्टीपल माइलोमा में तेजी से बढ़ते प्लाज्मा सेल्स बोनमेरो में फैल जाते हैं और दूसरी कोशिकाओं को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है। फलस्वरूप अन्य कोशिकाओं की आबादी कम होने लगती है। यदि आर.बी.सी. का निर्माण कम होने लगे मरीज एनीमिया का शिकार हो जाता है, उसे कमजोरी व थकान होती है और शरीर सफेद पड़ जाता है। प्लेटलेट्स कम (Thrombocytopenia) होने पर रक्तस्त्राव होने का खतरा रहता है। डब्ल्यु.बी.सी. कम (Leucopenia) होने पर संक्रमण हो सकते हैं। 

माइलोमा में हड्डियां भी कमजोर होने लगती है। हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत रखने का कार्य दो तरह की कोशिकाएं करती हैं, जो मिल कर काम करती हैं। जहां ओस्टियोब्लास्ट कोशिकाएं नये अस्थि-ऊतक बनाती हैं, वहीं ओस्टियोक्लास्ट कोशिकाएं पुराने अस्ति-ऊतक को गलाने का काम करती हैं। माइलोमा सेल्स ओस्टियोक्लास्ट एक्टिवेटिंग फेक्टर का स्त्राव करते हैं, जिसके प्रभाव से ओस्टियोक्लास्ट तेजी से हड्डी को गलाने लगते हैं। दूसरी तरफ ओस्टियोब्लास्ट को नये अस्ति-ऊतक बनाने के आदेश नहीं मिल पाते हैं फलस्वरूप हड्डियां कमजोर व खोखली होने लगती हैं, मरीज को दर्द होती है और अनायास हड्डियां चटकने व टूटने लगती है। हड्डियां कमजोर होने से उनका कैल्शियम भी पिघलने लगता है और खून में कैल्शियम का स्तर बढ़ने लगता है। 

असामान्य और कैंसरग्रस्त प्लाज्मा सेल्स संक्रमण से लड़ने लायक एंटीबॉडीज बनाने में असमर्थ होते हैं। अतः ये शरीर
की रक्षा करने में पूरी तरह नाकामयाब रहते हैं। माइलोमा सेल्स एक ही प्लाज्मा सेल की अनेक कार्बन कॉपीज की तरह होते हैं और ये एक ही तरह की मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज या M प्रोटीन बनाते हैं। यह माइलोमा की खास विकृति है। इस प्रोटीन को पेराप्रोटीन या M स्पाइक भी कहते हैं। जब अस्थि-मज्जा, खून में इस प्रोटीन की मात्रा बढ़ने लगती है तो मरीज के कई परेशानियां होती हैं। इम्युनोग्लेब्युलिनेस प्रोटीन चेन्स 2 लंबी (heavy) और 2 छोटी (light) से बने होते हैं। कई बार गुर्दे इस M प्रोटीन का पेशाब में विसर्जन करते हैं। पेशाब में निकलने वाले इस प्रोटीन को लाइट चेन या बेन्स जोन्स प्रोटीन कहते हैं। ये किडनी को क्षति पहुँचा सकते हैं।

अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के अनुसार अकेले अमेरिका में हर वर्ष मल्टीपल माइलोमा के 20,000 नये रोगी पाये जाते हैं। अमेरिका में माइलोमा का आघटन 1% है। अफ्रीकी अमेरिकन्स में आघटन 2% है। यह वृद्धावस्था का रोग है, इसके आघटन की औसत उम्र 68-70 वर्ष है। स्त्रियों की तुलना में यह पुरुषों में ज्यादा होता है। यहां औसत 5 वर्षीय जीवन काल लगभग 35% है। इसके युवा रोगी अपेक्षाकृत ज्यादा जी पाते हैं। सन् 2010 में पूरे विश्व में 74000 लोगों की मृत्यु मल्टीपल माइलोमा से हुई है। नॉन- होजकिन्स लिंफोमा के बाद यह सबसे आम हिमेटोलोजी का कैंसर है। विश्व में कैंसर के 1% रोगी मल्टीपल माइलोमा के होते हैं और कैंसर से मरने वाले 2% रोगी माइलोमा के होते हैं। 

इस रोग का कारण अज्ञात है। लेकिन आनुवंशिक, वातावरण और व्यावसायिक संबंधी कुछ जोखिम घटक चिन्हित किये गये हैं। 

माइलोमा के विभिन्न रूप 


मोनोक्लोनल गेमोपेथी ऑफ अनडिटरमिन्ड सिगनीफिकेंस (MGUS)
इस रोग में असामान्य प्लाज्मा सेल्स बहुत सा मोनोक्लोनल प्रोटीन बनाते हैं, लेकिन इन रोगियों में ट्यूमर या गांठें नहीं बनती और मल्टीपल माइलोमा की तरह इन्हें कोई अलामात भी नहीं होते। खासकर इसमें हड्डियां कमजोर नहीं पड़ती, कैल्शियम नहीं बढ़ता, गुर्दे खराब नहीं होते और रक्ताणु भी कम नहीं होते। मरीज सामान्य जीवन जीता है। इस रोग का पता अचानक तभी पड़ता है जब किसी अन्य बीमारी के लिए हुई खून की जांच में प्रोटीन ज्यादा आता है और फिर दूसरी जांचों से पता चलता है कि यह प्रोटीन मोनोक्लोनल प्रोटीन है। MGUS में प्लाज्मा सेल्स बढ़ते हैं लेकिन इनका प्रतिशत 10 से कम ही रहता है। 
Parameter
Smouldering Myeloma
MGUS
Multiple Myeloma
Monoclonal Proteins
>3 g
< 3 g
>3 g
Bone marrow Plasma cells
> 10%
< 10%
> 10%
Treatment
Wait & Watch
Wait & Watch
Chemo & Bonemarrow Transplantation
CRAB Symptoms
No
No
HyperCalcemia  >2.75 mmol/L
Renal insufficiency
Anemia (hemoglobin <10 g/dL)
Bone lesions (lytic lesions with compression fractures)
स्मोल्डरिंग माइलोमा (Smouldering myeloma)
टूटता  बदन  और  शरीर  में  थकान  है
हर   अँगड़ाई  पे  निकले  मेरी  जान  है 
हड्डियों  में   चटकन,   गुर्दे   नाशाद   है 
मुझे इश्क नहीं यारों मरजे माइलोमा है 
आगे चल कर MGUS के कई रोगियों को (लगभग 1%) मल्टीपल माइलोमा, लिम्फोमा या ऐमायलोडोसिस के शिकार हो सकते हैं। इन रोगियों को कोई उपचार नहीं दिया जाता, लेकिन चिकित्सक की निगरानी में रखा जाता है। 


स्मोल्डरिंग माइलोमा (Smouldering myeloma)
स्मोल्डरिंग मल्टीपल माइलोमा लक्षणहीन माइलोमा है। इसके रोगी को कोई तकलीफ नहीं होती। यह MGUS और मल्टीपल माइलोमा के बीच की स्थिति है। स्मोल्डरिंग माइलोमा में निम्न में से एक विकृति जरूर होती है। 

 बोनमेरो में प्लाज्मा सेल 10% या अधिक होते हैं। 

 खून में प्रोटीन 30 g/L या ज्यादा होते हैं। 

स्मोल्डरिंग मल्टीपल माइलोमा में क्रेब लक्षण ऐनीमिया, किडनी फेल्यर, कैल्शियम स्तर का बढ़ना और अस्थि-विकार नहीं होते। लेकिन इन रोगियों को कभी भी मल्टीपल माइलोमा हो सकता है। इन्हें उपचार नहीं दिया जाता लेकिन कड़ी निगरानी में रखा जाता है। 

सोलिटरी प्लाज्मासाइटोमा 

यह भी असामान्य और विकृत प्लाज्मा सेल्स का ट्यूमर है। लेकिन मल्टीपल माइलोमा के विपरीत इसमें एक ही जगह ट्यूमर होता है। इसीलिए इसे सोलिटरी प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं। यह प्रायः बोनमेरो में उत्पन्न होता है, तब इसे आइसोलेटेड प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं। लेकिन यदि इसकी उत्पत्ति अन्य अंगों (जैसे फेफड़ा, साइनस की इपिथीलियम, गला या कोई अन्य अंग) में होती है तो इसे एक्सट्रामेड्युलरी प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं। इसका उपचार रेडियेशन या शल्य द्वारा किया जाता है। सोलिटरी प्लाज्मासाइटोमा के कई रोगियों को आगे चल कर मल्टीपल माइलोमा हो सकता है। इसलिए इन पर भी पूरी निगरानी रखी जाती है। 

जिन्दगी   की भी  अजीब  दास्तान   होती है,

हर गुजरता लम्हा मौत का फरमान होती है। 

वक्त  भी   गर   द गा दे    तो  कोई  क्या  करे,

बहारों    में   भी    चमन  वीरान   होती   है।
लक्षण 
मल्टीपल माइलोमा में शरीर के कई अंग प्रभावित होते हैं, इसलिए मरीज को मुख्तलिफ अलामात हो सकते हैं। इसके शुरूवाती लक्षण हड्डियों में दर्द होना, अचानक हड्डियां चटक जाना (Pathologic Fracture), कमजोरी, थकान, खून की कमी, संक्रमण (प्रायः न्युमोकोकल), खून में कैल्शियम बढ़ जाना, मेरुरज्जु पर दबाव के लक्षण या किडनी फेल्यर हैं। कई बार ऑपरेशन या अन्य तकलीफ के लिए हुई खून की जांच से इस बीमारी का पता चलता है। कभी ब्लड कैमिस्ट्री में टोटल प्रोटीन की और ऐल्ब्युमिन की मात्रा में ज्यादा फर्क होना किसी गंभीर बीमारी होने का शक पैदा करता है (विदित रहे कि कुल प्रोटीन - ऐल्ब्युमिन = ग्लोब्युलिन)। बोनमेरो में प्लाज्मा सेल्स की बढ़ती आबादी के दबाव और आतंक के कारण लाल रक्ताणु, श्वेत रक्ताणु और बिंबाणुओं का जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है और बेचारों की आबादी कम होने लगती है। नतीजा होता है एनीमिया, न्युट्रोपीनिया और थ्रोम्बोसाइटोपीनिया। 
माइलोमा के प्रमुख लक्षण क्रेब (CRAB) नेमोनिक द्वारा याद रखे जा सकते हैं। CRAB का मतलब है: C = Calcium elevated, R = Renal failure, A = Anemia, B = Bone lesions
हड्डियों में दर्द और टूटन 
एक तिहाई मरीजों में सबसे पहला लक्षण प्रायः मेरुदंड में किसी हड्डी का टूटना होता है। यह सबसे प्रमुख लक्षण है और मल्टीपल माइलोमा के 93% मरीजों में एक से अधिक हड्डियों में फ्रेक्चर मिल ही जाता है। यदि किसी जगह लगातार दर्द हो रहा है तो यह फ्रेक्चर का संकेत है। दो तिहाई मरीज प्रायः कमर, कूल्हे, खोपड़ी और / या हाथ पैरों की लंबी हड्डियों में दर्द की शिकायत करते हैं। मरीज को खून गाढ़ा होने और कैल्शियम बढ़ने के कारण भी कुछ लक्षण हो सकते हैं। 
मेरुरज्जु पर दबाव
यह एक गंभीर विकार है, और माइलोमा के 20% रोगी इसका शिकार हो सकते हैं। मेरुदंड की हड्डियों में ट्यूमर,
अस्थि-क्षय (Lytic Bone Lesions) या नाड़ियों पर दबाव पड़ना इसके कारण हैं। कमजोर होना और कमर में दर्द, कमजोरी, लकवा, संवेदनशून्यता और हाथ-पैरों में जलन या चुभन जैसे लक्षण मेरुरज्जु पर दबाव की तरफ इशारा करते हैं। भी हो सकता है। मेरुरज्जु में दबाव कई स्तर पर हो सकता है, इसलिए मेरुदंड की विस्तृत जांच जरूरी है। .
रक्तस्त्राव 
प्लेटलेट्स की कमी के कारण रक्तस्त्राव हो सकता है। कभी कभार मोनोक्लोनल प्रोटीन खून को जमाने (Clotting) में सहायक तत्वों को सोख कर निष्क्रिय कर देते हैं और रक्तस्त्राव का सबब बन सकते हैं। 
खून में कैल्शियम बढ़ना (Hypercalcemia) 
खून में कैल्शियम बढ़ने से अफरा-तफरी, सुस्ती, हड्डी में दर्द, कब्ज, मतली, बार-बार पेशाब लगना और प्यास अधिक लगना जैसे लक्षण हो सकते हैं। 30% मरीजों में यह तकलीफ हो सकती है। 
संक्रमण 
रक्षातंत्र के असंयत होने और श्वेताणुओं में कमी आने से संक्रमण होने की संभावना प्रबल रहती है। मल्टीपल न्युमोकोकस रोगाणु सबसे अहम हमलावर है, लेकिन हर्पीज़ जोस्टर और हिमोफिलस भी संक्रमण फैला सकते हैं। माइलोमा में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण संक्रमण ही माना गया है। कीमो उपचार के शुरूवाती 2-3 महीनें में मौत का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।
खून का गाढ़ापन (Hyperviscosity) 
खून गाढ़ा होने से बेचैनी, इन्फेक्शन, बुखार, सिरदर्द, निद्रा, सुन्नता, खंरोच (bruises), नजर में धुंधलापन आदि लक्षण हो सकते हैं। खून का गाढ़ापन अमूमन चार गुना बढ़ जाने पर मरीज को ये तकलीफें होती हैं। कई बार नकसीर हो सकती है। खून गाढ़ा होने का कारण मोनोक्लोनल प्रोटीन का बढ़ना है जो कभी कभार स्ट्रोक, मायोकार्डियल इस्कीमिया या इन्फार्क्शन का सबब भी बन सकता है।
नाड़ी विकार
कार्पल टनल सिंड्रोम, मेनिन्जाइटिस और पेरीफ्रल न्युरोपेथी भी माइलोमा के सामान्य लक्षण हैं। 
एनीमिया 
हीमोग्लोबिन कम होना भी कमजोरी का प्रमुख कारण बनता है। 
भौतिक परीक्षण 
आंखों में ऐग्जुडेटिव मेक्युलर डिटेचमेंट, रेटाइनल हेमरेज या कॉटन वूल पेचेज देखे जा सकते हैं। एनीमिया के कारण शरीर सफेद पड़ सकता है। प्लेटलेट कम होने से परपुरा या एकाइमोसेस हो सकते हैं। मल्टीपल माइलोमा में हड्डियों में दर्द असामान्य नहीं है। हड्डियों का गलना और टूटना (Pathologic fractures) इसके खास सबब हैं। तिल्ली और जिगर बढ़ सकता है। प्रोटीन जमा होने के कारण दिल का आकार भी बढ़ सकता है। माइलोमा के कुछ मरीजों को ऐमाइलोयडोसिस हो सकता है। इनको निम्न लक्षण हो सकते हैं। 
 कंधे में सूजन - एमाइलोयड जमा होने से दोनों कंधे के जोड़ों में सख्त और लचीली (rubbery) सूजन हो सकती है। कार्पल टनल सिंड्रोम और त्वचा में गांठें भी हो सकती हैं। 
 मेक्रोग्लोसिया (जीभ बड़ी हो जाना) 
 त्वचा के विकार – होंठ, कान या धड़ की त्वचा पर पेप्यूल और नोड्यूल हो सकते हैं। 
 पोस्ट प्रोटोस्कोपिक पेरिपेलपेब्रल परपुरा (Post-protoscopic peripalpebral purpura) – नाक बंद करके
Macroglossia
जोर से सांस निकालने पर आँखों के चारों तरफ डार्क सर्कल्स बन जाते हैं। यह ऐमाइलोयडोसिस का खास संकेत है। 
किडनी फेल्यर
मल्टीपल माइलोमा गुर्दों पर सीधा प्रहार करता है। इसमें बनने वाला प्रोटीन गुर्दों में जाकर जमा होने लगता है और नुकसान पहुँचाता है। कैल्शियम का बढ़ता स्तर भी गुर्दों को खराब करता है। इसमें दी जाने वाली दवाइयां जासे बिसफोस्फोनेट्स आदि भी गुर्दों को नुकसान पहुँचाती है। यदि रोगी को ब्लडप्रेशर या डायबिटीज है तो इनका सुचारु इलाज भी जरूरी है ताकि इनसे गुर्दों को बचाया जा सके। प्रारंभिक अवस्था में गुर्दे की खराबी को ठीक किया जा सकता है। मल्टीपल माइलोमा के 25% मरीजों में अमूमन गुर्दे की तकलीफ या फेल्यर होता है। माइलोमा में साथ ही निम्न विकार हो सकते हैं। 
 माइलोमा किडनी सिंड्रोम (मुख्तलिफ कारणों से)
 ऐमाइलोयडोसिस लाइट चेन्स के साथ 
 किडनी स्टोन्स – खून में कैल्शियम बढ़ने के कारण
निदानीय कार्य 
मल्टीपल माइलोमा के निदान का प्रमुख आधार चिकित्कीय लक्षण (Clinical) और खून व मोनमेरो की जांच है।
Rouleaux formation
किडनी फेल्यर की संभावना को सदैव ध्यान में रखना चाहिये। इसलिए मरीज का एक्सरे या आइ.वी.पी. करते समय कॉन्ट्रास्ट मीडियम के इंजेक्शन की मात्रा और एक्सरे के एक्सपोजर को सिमित रखना चाहिये और मरीज को पानी की कमी न होने दें। 
सीबी.सी. 
सीबी.सी. में हिमोग्लोबिन, लाल रक्ताणु, श्वेत रक्ताणु और बिंबाणुओं की गणना की जाती है, जिनसे हमें एनीमिया, न्युट्रोपीनिया और थ्रोम्बोसाइटोपीनिया की उपस्थिति का पता चल जाता है। सीबी.सी. और डी.एल.सी. से कोएगुलेशन समेत कई जानकारियां मिल जाती हैं। माइलोमा में ई.एस.आर. काफी बढ़ा रहता है। रेटिकुलोसाइट काउंट काफी कम रहता है। खून की स्लाइड में लाल रक्ताणुओं में रोलो फोरमेशन दिखाई देता है। खून में M प्रोटीन बढ़ने से लाल रक्ताणु M प्रोटीन से चिपक कर लड़ियों की तरह दिखाई देते हैं, इसे ही रोलो फोरमेशन (rouleaux formation) कहते हैं। 
बॉयोकैमिस्ट्री 
में टोटल प्रोटीन, ऐल्बयुमिन, ग्लोबयुलिन, यूरिया, क्रियेटिनीन और यूरिक एसिड की जांच की जाती है। यदि यूरिक एसिड बढ़ जाता है। 
पेशाब की जांच 
24 घंटे का पेशाब इकट्ठा किया जाता है और इसमें बेन्स जोन्स प्रोटीन (lambda light chains), प्रोटीन की मात्रा और क्रियेटिनीन क्लियरेंस की गणना की जाती है। पेशाब में प्रोटीन की गणना मल्टीपल माइलोमा के निदान और दवाओं का प्रभाव पर निगरानी रखने के लिए बहुत जरूरी मापदंड है। 24 घंटे के पेशाब में 1 ग्राम से ज्यादा प्रोटीन माइलोमा का संकेत है। क्रियेटिनीन क्लियरेंस से किडनी की कार्यक्षमता का अनुमान लग जाता है। 
इलेक्ट्रोफोरेसिस और इम्युनोफिक्सेशन 
सीरम प्रोटीन इलेक्ट्रोफोरेसिस (SPEP) से प्रोटीन की श्रेणी का पता लगाया जाता है और यह एक खास ग्राफ
(Mस्पाइक) बना कर देता है। यूरीन प्रोटीन इलेक्ट्रोफोरेसिस (UPEP) से पेशाब में बेन्स जोन्स प्रोटीन्स (लाइट चेन) की मात्रा का पता चलता है। इम्युनोफिक्सेशन से प्रोटीन की उपश्रेणी (जैसे IgA लेम्बडा) का पता चलता है। 
कैल्शियम और क्रियेटिनीन समेत अन्य बायोकैमिस्ट्री जांच, SPEP, इम्युनोफिक्सेशन और इम्युनोग्लोब्युलिन की मात्रात्मक जांच से ऐजोटीमिया (खून में नाइट्रोजनयुक्त तत्वों जैसे यूरिया और क्रियेटिनीन आदि का स्तर बढ़ना), खून में कैल्शियम का स्तर बढ़ जाना, एल्केलाइन फोस्फेटेज का स्तर, और खून में ऐल्ब्युमिन की कमी का पता चलता है। 
SPEP से M प्रोटीन्स की उपस्थिति की जानकारी मिलती है। M घटक प्रायः हाई रिजोल्युशन SPEP द्वारा पहचाना जाता है। कप्पा और लेम्बडा के अनुपात से M घटक विकार संबंधी जानकारी मिलती है। खून में M घटक की 30 g/L मात्रा मल्टीपल माइलोमा के निदान का न्यूनतम मापदंड है। है। मल्टीपल माइलोमा के 25% मरीजों में SPEP द्वारा M प्रोटीन्स को पहचानना संभव नहीं हो पाता है। 
पेशाब की साधारण जांच से बेन्स जोन्स प्रोटीन्स का पता नहीं चलता है। इसलिए 24 घंटे के पेशाब की UPEP या इम्युनोइलेक्ट्रोफोरेसिस जांच की जाती है। UPEP या इम्युनोइलेक्ट्रोफोरेसिस जांच से M घटक और कप्पा या लेम्बडा लाइट चेन्स को भी पहचान लिया जाता है। इस तरह मल्टीपल माइलोमा के निदान हेतु सबसे प्रमुख जांच खून और पेशाब में इम्युनोग्लोब्युलिन की इल्क्ट्रोफोरिक गणना है। 
इम्युनोग्लोब्युलिन के स्तर की मात्रात्मक गणना (IgG, IgA, IgM) 
मल्टीपल माइलोमा के निदान हेतु नॉन-माइलोमेटोसिस इम्युनोग्लोब्युलिन का कम होना एक छोटा मापदंड है। लेकिन M प्रोटीन की मात्रा दवाओं के असर को देखने का अच्छा मार्कर है। 
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन
यह ट्यूमर के औसत दबाव का एक सहायक मापदंड है। बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन का स्तर किडनी फेल्यर में भी बढ़ जाता है, भले मरीज को मल्टीपल माइलोमा नहीं हुआ हो। लेकिन बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन को मल्टीपल माइलोमा के फलानुमान का सूचक माना जाता है। 
सी-रियेक्टिव प्रोटीन
यह इंटरल्युकिन IL-6 का सहायक मार्कर (surrogate marker) माना जाता है। IL-6 को प्रायः प्लाज्मा ग्रोथ फेक्टर भी माना जाता है। बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन की तरह IL-6 भी फलानुमान का सूचक माना जाता है। 
खून का गाढ़ापन (Serum Viscosity) 
जिन मरीजों में नकसीर, नाड़ी रोग के लक्षण या खून में M प्रोटीन बहुत ज्यादा हो तो खून के गाढ़ेपन की जांच की
जाती है। 
एक्सरे चित्रण 
मल्टीपल माइलोमा का संदेह होने पर खोपड़ी, मेरुदंड और हाथ-पैरों के एक्सरे लिए जाते हैं। हड्डियों के निरीक्षण के लिए यह बहुत अहम जांच है। माइलोमा में हड्डियां गलने लगती हैं। ऐसा लगता है जैसे इनको दीमक लग गई हो। हड्डियों में जगह जगह गोल और गहरे निशान दिखाई देते हैं। 
लेकिन सी.टी.स्केन से ज्यादा स्पष्ट और विस्तृत तस्वीरें प्राप्त होती हैं। कई बार सी.टी.स्केन से हमें पता चल जाता है कि हड्डी में किस जगह फ्रेक्चर होने की संभावना है। हड्डियों का घनत्व कम हो रहा हो तो समझ में आता है कि हड्डियां कमजोर होने वाली हैं। एक्सरे से ऐसी जानकारियां नहीं मिल पाती है। 
एम. आर. आई.
एम. आर. आई. से छाती और कमर वाले हिस्से में स्पाइन के क्षयन (Lytic lesions) और स्पाइनल कोर्ड के दबाव की जानकारी प्रारंभिक अवस्था में ही हो जाती है। एम.आर.आई. लक्षणहीन गेमोपेथी (Asymptomatic Gammopathies) के रोगियों में स्पाइन की 40% खराबी को पकड़ लेता है, जब कि उनके एक्सरे सामान्य होते हैं। यह स्पाइन कोर्ड के विकार और स्पाइन के महीन फ्रेक्चर भी प्रारंभिक अवस्था को पकड़ लेता है। 
एस्पिरेशन और बायोप्सी 
मल्टापल माइलोमा में अस्थि मज्जा के प्लाज्मा सेल्स बढ़ जाते हैं। प्लाज्मा सेल्स के प्रसार और विस्तार की गतिविधि
Clockface Nucleus
लेबलिंग इंडेक्स द्वारा आंकी जाती है। यह इंडेक्स माइलोमा के निदान का विश्वसनीय मापदंड है। लेबलिंग इंडेक्स के बढ़ने का बीमारी के विस्तार से सीधा संबंध है। 
बोनमेरो से द्रव्य निकाल कर एस्पिरेट और बायोप्सी जांच की जाती है और बोनमेरो मे प्लाज्मा सेल्स का प्रतिशत निकाला जाता है (स्वस्थ बोनमेरो में 3% तक प्लाज्मा सेल्स होते हैं)। बायोप्सी में प्लाज्मा सेल्स परतों या गुच्छों में दिखाई देते हैं। बोनमेरो बायोप्सी ज्यादा सटीक जानकारी मिलती है। 
हिस्टोलोजी के नतीजे
प्लाज्मा सेल्स आकार में लिम्फोसाइट से 2-3 गुना बड़ा होता है, इनका न्युक्लियस उत्केन्द्री (Eccentric), गोल या अंडाकार, सतह चिकनी, क्रोमेटिन गुच्छेदार (Clumped) और चारों तरफ हल्के रंग का घेरा (Perinuclear Halo) होता है। इसका साइटोप्लाज्म नीला (Basophilic) होता है। 
कई माइलोमा सेल्स के साइटोप्लाज्म में इम्युनोग्लोब्युलिन से बने विशिष्ट उपांग (Cytoplasmic Inclusions)
दिखाई देते हैं। ये कई रूप जैसे मोट सेल, रुजल बॉडीज, ग्रेप सेल्स और मोर्युला सेल्स में हो सकते हैं। 
हड्डी की बायोप्सी के नमूनों में प्लाज्मोलीटिक (औसत जीवन काल 39.7 महीने), मिश्रित (औसत जीवन काल 16.1 महीने) और प्लाज्मोब्लास्टिक सेल्स (औसत जीवन काल 9.8 महीने) गतिविधि दिखाई पड़ सकती है। 
साइटोजेनेटिक जांच 
इससे मल्टीपल माइलोमा के फलानुमान के संबंध में अहम जानकारियां मिलती हैं। सबसे महत्वपूर्ण विकृति 17p13 का लोप होना है। इस विकृति के होने का मतलब है बोनमेरो के अलावा अन्यत्र भी गांठे होना (extramedullary disease), खून में कैल्शियम बढ़ना (hypercalcemia) और जीवन काल कम होना। यह TP53 ट्यूमर सप्रेसर जीन पर स्थित रहती है। क्रोमोजोम 1 और c-myc विकृतियां भी अर्थपूर्ण मानी गई हैं। 
स्टेजिंग सिस्टम 
इंटरनेशनल स्टेजिंग सिस्टम ISS 
इंटरनेशनल माइलोमा वर्किंग ग्रुप ने 2005 में इंटरनेशनल स्टेजिंग सिस्टम के तीन चरण परिभाषित किये हैं। 
स्टेज I 
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन 3.5 mg/L से कम और एल्ब्युमिन 3.5 g/dL या अधिक 
स्टेज II
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन 3.5 mg/L से कम और एल्ब्युमिन 3.5 g/dL से कम या 
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन 3.5 से 5.5 mg/L के बीच भले सीरम एल्ब्युमिन कुछ भी हो 
स्टेज III 
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन 5.5 mg/L या अधिक हो 
ध्यान रहे कि ISS सिर्फ मल्टीपल माइलोमा के उन मरीजो में ही प्रयोग करें जो मल्टीपल माइलोमा के डायग्नोस्टिक क्राइटेरिया में आते हों। MGUS और लक्षणहीन माइलोमा के उन मरीजों को स्टेज III में नहीं रखा जा सकता जिनका बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युलिन डायबिटीज या ब्लडप्रेशर आदि के कारण हुए किडनी फेल्यर की वजह से बढ़ा हुआ हो। यह ISS की कमजोरी है। इसीलिए ISS के साथ ड्यूरी-सामन स्टेजिंग सिस्टम भी प्रयोग किया जाता है। 
ड्यूरी-सामन स्टेजिंग सिस्टम
यह 1975 में विकसित गठित किया गया और अभी तक प्रयोग में लिया जा रहा है। इसमें एक कमी यह है कि इससे अस्थि विकार के विस्तार संबंधी जानकारी नहीं मिल पाती। 
स्टेज I 
 हीमोग्लोबिन 10g/dL से अधिक हो 
 कैल्शियम सामान्य हो 
 अस्थि निरीक्षण – सामान्य या सिंगल प्लाज्मासाइटोमा या ऑस्टियोपोरोसिस
 पेराप्रोटीन स्तर 5 g/dL से कम यदि IgG, , 3 g/dL से कम यदि IgA
 पेशाब में लाइट चेन्स का विसर्जन 4 g/24h से कम 
स्टेज II जो न स्टेज I की परिभाषा में आते हों और न स्टेज III की परिभाषा में आते हों 
स्टेज III 
 हिमोग्लोबिन 8.5 g/dL से कम हो 
 कैल्शियम 12 mg/dL से अधिक हो
 अस्थि निरीक्षण – तीन या अधिक लीटिक लीजन हो 
 पेराप्रोटीन स्तर 7 g/dL से ज्यादा यदि IgG, , 5 g/dL से ज्यादा यदि IgA
 पेशाब में लाइट चेन्स का वित्सर्जन 12 g/24h से ज्यादा
ड्यूरी-सामन स्टेजिंग सिस्टम के स्टेज I, स्टेज II और स्टेज III को क्रियेटिनीन के स्तर के अनुसार A या B में भी वर्गीकृत किया जाता है। 
A – क्रियेटिनीन 2 mg/DL से कम हो (< 177 μmol/L) B – क्रियेटिनीन 2 mg/dLसे अधिक हो (> 177 μmol/L) 
उपचार
मल्टीपल माइलोमा के निदान और चरण निर्धारण करने के बाद उपचार की रूपरेखा तैयार की जाती है। वैसे माइलोमा क्योर करना संभव नहीं है लेकिन यह बहुत काबिले इलाज बीमारी है। क्योंकि पिछले 15 वर्षों में इस रोग के निदान और उपचार में बहुत शोध और प्रगति हुई है। आज हमारे पिटारे में बहुत अच्छी और नई दवाइयां हैं, जो ज्यादा बेहतर तरीके से काम करती है। हड्डियों की गलन और फ्रेक्चर्स के लिए नये उपचार हैं। इसकी पेचीदगियों के इलाज के लिए नये संसाधन हैं। जहां पहले यह रोग आदमी को अपाहिज व लाचार बना देता था, उसका हंसता खेलता जीवन व्हील चेयर में सिमट कर रह जाता था और वह मुश्किल से 2-3 साल जी पाता था। वहीं आज मल्टीपल माइलोमा का मरीज इलाज लेते हुए 10 साल या उससे भी ज्यादा जी रहा है और सुकून से जी रहा है। मरीज की जीवनशैली खुशहाल और उन्दा होती जारह है। मरीजों को इलाज संबंधी निर्णय बड़े इत्मिनान से सोच समझ कर लेना चाहिये। वे किसी दूसरे विशेषज्ञ की राय भी ले सकते हैं। आजकम माइलोमा के लिए निम्न उपचार दिये जाते हैं। 
 कीमोथेरेपी व अन्य दवाइयां
 बिसफोस्फोनेट्स
 स्टेम सेल ट्रांसप्लांट 
 रेडियेशन
 शल्य
 बायोलोजिकल थेरेपी
 प्लाज्माफरीसिस 
प्रारंभिक उपचार
मल्टीपल माइलोमा का शुरूआती इलाज मरीज की उम्र व मर्ज की गंभीरता और पेचीदगियों पर निर्भर करता है। 65

वर्ष से कम उम्र के मरीजों में आजकल हाई डोज कीमोथेरेपी और ऑटोलोगस स्टेमसेल ट्रांसप्लांटेशन चिकित्सकों का पसंदीदा उपचार है। स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के पहले इंडक्शन कीमो दी जाती है। इसके लिए प्रचलित रिजीम्स में थेलिडोमाइड-डेक्सामिथेजोन, बोर्टेजुमेब या लेनोलिनेमाइड - डेक्सामिथेजोन प्रयोग की जाती है। ऑटोलोगस स्टेमसेल ट्रांसप्लांटेशन (ASCT) में कीमोथेरेपी देने के बाद मरीज के पहले निकाले हुए स्टेमसेल्स खून में छोड़ कर दिये जाते हैं। आजकल यह बहुत प्रभावशाली और प्रचित उपचार माना जाता है। लेकिन इसमें खतरे भी हैं और 5-10% मरीज उपचार के दौरान ही मर जाते हैं। इस उपचार में मरीजों को फायदा होता है, वह शत प्रतिशत रेमिशन (complete remission) में आ सकता है और उनका जीवन काल बढ़ता है। इस अवधि में बीमारी नियंत्रण में रहती है, बढ़ती नहीं है और कुछ समय तक वह लगभग सुकून से जी लेता है। 
65 साल से बड़े या जिन्हें कई जटिलताएं हो चुकी हैं अमूमन स्टेमसेल ट्रांसप्लांटेशन सहन नहीं कर पाते हैं। ऐसे मरीजों को साधारण उपचार और कीमो (मेलफेलान और प्रेडनिसोलोन) दी जाती है। नई दवाओं जैसे बोर्टिजोमिब के अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। बोर्टिजोमिब, मेलफेलान और प्रेडनिसोलोन या लेनोलिनोमाइड और डेक्सामिथेजोन या मेलफेलान, प्रेडनिसोलोन और लेनोलिनोमाइड अच्छे परिणाम दे रहे हैं।
मेंटेनेंस थेरेपी और रिलेप्स
कई बार शुरूआती इलाज के बाद थेलिडोमाइड, लेनालिनोमाइड या बोर्टेजोमिब मेंटेनेंस थेरेपी के रूप में दी जाती है। कैंसर ऐसा रोग है जो थोड़े समय बाद लौट कर आता है। ऐसी स्थिति में दोबारा से वही उपचार दिया जाता है या मेलफेलान, साइक्लोफोस्फेमाइड, थेलिडोमाइड दिया जाता है। डेक्सामिथेजोन को अकेले या संयुक्त रूप में दिया जाता है। दूसरे स्टेमसेल ट्रांसप्लांट का विकल्प भी खुला रखा जाता है। 
कीमोथेरेपी 
इसमें कैंसर कोशिकाओं को मारने की दवाइयां दी जाती हैं। लेकिन ये हमारी स्वस्थ कोशिकाओं को भी बहुत नुकसान पहुँचाती हैं और इनके कुप्रभाव भी तकलीफदेह होते हैं। प्रायः ये दवाइयां संयुक्त रूप में दी जाती हैं और तब ये ज्यादा असर करती हैं। इन्हें अक्सर स्टिरॉयड्स या इम्युनोमोड्यूलेट्री दवाओं के साथ दिया जाता है। 
पारंपरिक कीमो 
मल्टीपल माइलोमा में आजकल निम्न दवाइयां प्रयोग की जा रही हैं। 
 मेलफेलान 
 विनक्रिस्टीन (Oncovin)
 साइक्लोफोस्फेमाइड (Cytoxan)
 इटोपोसाइड (VP-16)
 डोक्सोरूबिसिन (Adriamycin)
 लाइपोजोमल डोक्सोरूबिसिन(Doxil)
 बेंडामस्टीन (Treanda)
कीमो के साइड इफेक्ट
ज्यादातर साइड इफेक्ट कुछ दिनों तक रहते हैं और दवाइयां बंद होने पर चले जाते हैं। लेकिन आपका डॉक्टर साइड इफेक्ट्स पर पूरी निगाह रखता है और इनको रोकने के लिए यथासंभव दवा या अन्य उपाय भी बताता है। कुछ दवाइयां शरीर के अहम अंगों जैसे हृदय या गुर्दे को स्थाई नुकसान पहुँचा सकती हैं। ऐसी स्थिति में दवा तुरंत बंद कर दी जाती है और उसकी जगह दूसरी दवा दी जाती है। 
 बाल उड़ना
 मुँह में छाले
 भूख न लगना
 मितली और उबकाई
 रक्ताणुओं की कमी
 कमजोर रक्षातंत्र और संक्रमण (श्वेत रक्ताणुओं की कमी)
 रक्तस्त्राव (बिंबाणुओं की कमी)
 कमजोरी और थकान (लाल रक्ताणु की कमी)
Chemotherapy of Multiple Myeloma
Primary therapy (transplant candidates)
Bortezomib (Velcade)/cyclophosphamide/dexamethasone VCD
Bortezomib/dexamethasone  
Doxorubicin/Bortezomib/dexamethasone DVD
Bortezomib/Lenalidomide(Revlimid))/dexamethasone  
Bortezomib/thalidomide/dexamethasone  
Lenalidomide/dexamethasone  
Primary treatment (non-transplant candidates)
Bortezomib/ Melphalan/Prednisone (VMP)
Melphalan/ prednisone/thalidomide (MPT)
Lenalidomide/dexamethasone  
Bortezomib/dexamethasone  
Melphalan/ prednisone (MP)
Lenalidomide/ Melphalan and Dexamethasone  
Treatment recommendations for maintenance therapy
Lenalidomide
Thalidomide
Treatment recommendations for salvage therapy
Lenalidomide/Dexamethasone RD
Pomalidomide
Lenalidomide or Thalidomide
कोर्टिकोस्टीरॉयड्स 
माइलोमा में स्टीरॉयड्स बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन्हे अकेले या अन्य दवाओं के साथ दिया जाता है। ये दूसरी दवाओं के कारण होने वाली मतली और उबकाई में भी फायदा करते हैं। ब्लड शुगर बढ़ जाना, भूख लगना और अनिद्रा इसके साइड इफेक्ट है। लंबे समय तक देने पर ये रक्षातंत्र को भी कमजोर बनाते हैं जिससे गंभीर संक्रमण हो सकता है। अधिकांश साइड इफेक्ट समय के साथ कम होने लगते हैं। डेक्सामीथेजोन और प्रेडनिसोलोन प्रचलित स्टीरॉयड्स हैं। 
इम्युनोमोड्यूलेट्री ड्रग्स 
हम अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं कि ये किस तरह रक्षातंत्र पर असर करते हैं। आजकल इस श्रेणी में तीन दवाएं काम में ली जा रही हैं। 
थेलिडोमाइड (Thalomid) 
थेलिडोमाइड कुछ दशकों पहले गर्भवती स्त्रियों को उबकाई रोकने के लिए दी जाती थी। लेकिन इससे उनके शिशुओं में बर्थ डिफेक्ट होने लगे तो इसे बाजार से उठा लिया गया। लेकिन बाद में इसे मल्टीपल माइलोमा के लिए प्रयोग किया जाने लगा। सुस्ती, थकावट, कब्ज, और नाड़ी शूल (neuropathy) इसके साइड इफेक्ट हैं। न्युरोपेथी गंभीर विकार है और कई बार दवा बंद करने पर भी दर्द नहीं जाता है। कई बार टांग में थ्रोम्बोसिस हो सकता है, जो फेफड़े में जाकर पल्मोनरी एम्बोलिज्म का कारण बन सकता है। 
लेनालिनोमाइड (Revlimid) 
लेनालिनोमाइड थेलिडोमाइड की तरह ही है, लेकिन माइलोमा में बहुत बेहतरीन साबित हो रही है। इसका मुख्य
साइड इफेक्ट प्लेटलेट्स और श्वेत रक्ताणुओं का कम हो जाना है। इससे न्युरोपेथी हो सकती है। इसमें थ्रोम्बोसिस का खतरा तो रहता है, परंतु थेलिडोमाइड जितना गंभीर नहीं। 
पोमेलिनोमाइड (Pomalyst) 
पोमेलिनोमाइड भी अन्य इम्युनोमोड्यूलेट्री ड्रग्स की तरह ही है। इसके प्रमुख साइड इफेक्ट्स लाल रक्ताणओं और बिंबाणुओं का कम हो जाता है। इसमें न्युरोपेथी की तकलीफ मामूली होती है और थ्रोम्बोसिस का खतरा भी रहता ही है। 
प्रोटीएजोम इन्हिबीटर्स 
ये प्रोटीएजोम नामक एंजाइम कॉम्पेक्स को निष्क्रिय करते हैं। यह एंजाइम कॉम्पेक्स कोशिका विभाजन को नियंत्रित रखने वाले प्रोटीन्स को तोड़ देता है। इनके भी कई साइड इफेक्ट होते हैं। 
बोर्टेजुमेब (Velcade) इस श्रेणी की पहली दवा है, जो माइलोमा के लिए अनुमोदित की गई। यह माइलोमा के कारण हुए किडनी विकार के मरीजों के उपचार में खासतौर पर फायदेमंद है। इसे नस में या त्वचा के नीचे इंजेक्शन द्वारा सप्ताह में एक या दो बार दिया जाता है। 
इसके प्रमुख साइड इफेक्ट मितली, उबकाई, थकान, दस्त लगना, कब्ज, बुखार, भूख नहीं लगना और रक्ताणुओं (श्वेत रक्ताणु और बिंबाणु) का कम होना है। इससे संक्रमण और रक्तस्त्राव का खतरा रहता है। बोर्टेजुमेब से दूरस्थ नाड़ी शूल (हाथ पैरं की अंगुलियों में दर्द व सिरहन होना और सुन्न हो जाना) भी हो सकता है। बोर्टेजुमेब से कुछ मरीजों को हरपीज जोस्टर हो जाती है। इससे बचने के लिए साथ में ऐसाइक्लोविर दी जाती है। 
कार्फिलजुमिब (Kyprolis) इस श्रेणी की नई दवा है। इसे उन मरीजों के लिए अनुमोदित किया गया है जो पहले बोर्टेजुमिब और इम्युनोमोड्यूलेट्री ड्रग्स ले चुके हैं। इसके इंजेक्शन प्रायः 4 हफ्ते की साइकल में दिये जाते हैं। ऐलर्जिक रियेक्शन से बचने के लिए पहली साइकिल में इसके हर इन्फ्युजन से पहले डेक्सामिथेजोन का इंजेक्शन दिया जाता है। थकावट, उबकाई, दस्त लगना, श्वासकष्ट, बुखार और रक्ताणुओं में कमी इसके साइड इफेक्ट हैं। इससे निमोनिया, दिल, जिगर या गुर्दे में खराबी जैसे गंभीर साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं।
बिसफोस्फोनेट्स 
Osteonecrosis of Jaw
माइलोमा में हड्डियां गलने लगती हैं, कमजोर हो जाती है और टूट भी जाती हैं। बिसफोस्फोनेट्स इस प्रक्रिया को रोकते हैं और हड्डियों को मजबूत बनाए रखते हैं। पेमिड्रोनेट (Aredia) और जोलीड्रोनिक एसिड (Zometa) इस श्रेणी की प्रमुख दवाइयां हैं। इनके इंजेक्शन हर महीने नस में दिये जाते हैं। आजकल इन्हें दो वर्ष तक दिया जाता है। पिछले वर्षों में हुई शोध में देखा गया है कि ये उन रोगियों में भी बहुत फायदा करते हैं जिन्हें हड्डियों की कोई तकलीफ नहीं होती है। इनका एक गंभीर साइड इफेक्ट ऑस्टियो नेक्रोसिस ऑफ जॉ (ONJ) है। लेकिन यह तकलीफ बिसफोस्फोनेट्स लेने वाले 3% मरीजों में ही होती है। इसमें जबड़े का कुछ हिस्सा निर्जीव हो जाता है और दर्द, संक्रमण व फोड़ा हो जाता है जो जल्दी ठीक भी नहीं होता। जबड़े की हड्डी में भी संक्रमण हो सकता है। कोई दांत भी खराब हो सकता है। यह तकलीफ होने पर दवा बंद कर दी जाती है। 
जटिलताओं के उपचार 
ऐनीमिया 
ऐनीमिया के लिए रिकोम्बिनेंट इरेथ्रोप्रोटीन (40,000 यूनिट्स sc प्रति सप्ताह) दिया जाता है। गंभीर परिस्थिति में पेक सेल ट्रांसफ्यूजन दिया जाता है। यदि लोहे की कमी है तो आयरन के इंजेक्शन दिये जाते हैं। समय समय पर मरीज का आयरन, ट्रांसफेरिटिन और फेरिटिन चेक किया जाना चाहिये। 
हाइपरकैल्सीमिया 
के लिए डाययुरेटिक्स, पर्याप्त पानी, केल्सिटोनिन या प्रेड्निसोलोन के साथ बिसफोस्फोन्ट्स दिये जाते हैं। 
हाइपरयूरिसीमिया – यूरिक एसिड बहुत ज्यादा हो तो एलोप्यूरिनोल दिया जा सकता है। 
किडनी फेल्यर 
किडनी फेल्यर में पानी और तरल पर्याप्त लेना चाहिये। शरीर में जल की मात्रा पर्याप्त बनी रहे। यदि पेशाब की मात्रा 2 लीटर तक बनी रहे तो बेन्स जोन्स प्रोटीन्यूरिया (≥ 10 to 30 g/day) के बावजूद भी गुर्दा अपने अस्तित्व को बचा लेता है। हमें पूरी कौशिश करना चाहिये कि गुर्दें को खराब होने से बचाया जा सके। कुछ मरीजों में प्लाज्मा एक्सचेंज प्रभावशाली परिणाम देता है। क्रोनिक किडनी फेल्यर होने पर डायलीसिस करना पड़ता है। 
संक्रमण 
इन्फेक्शन कई बार कुछ दवाओं जैसे बोट्रेजोमेब की वजह से न्युटेरोपीनिया और हरपीज जोस्टर इन्फेक्शन हो जाता है। इन मरीजों को ऐसाइक्लोविर, वल्गानसाइक्लोविर या फेमसाइक्लोविर दी जाती है। 
डॉ बुडविग का कैंसर उपचार 
जर्मनी की डॉ जॉहाना बुडविग (30 सितम्बर, 1908 - 19 मई 2003) विश्व विख्यात जीव रसायन विशेषज्ञ और चिकित्सक थी। उन्होंने भौतिक, जीवरसायन तथा भेषज विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री हासिल की थी और प्राकृतिक-चिकित्सा विज्ञान में पी.एच.डी. भी की। तत्पश्चात वे जर्मन सरकार के खाद्य और भेषज विभाग में सर्वोच्च पद पर कार्यरत रही। वे जर्मनी व यूरोप की विख्यात वसा और तेल विशेषज्ञ मानी जाती थी। 
1923 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कैंसर के मुख्य कारण की खोज की, जिसके लिये उन्हें 1931 में नोबल पुरस्कार दिया गया। उन्होंने पता लगाया था कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाना है। सामान्य कोशिकाएं ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज के दहन द्वारा ऊर्जा पैदा करती है। जबकि कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती हैं, जिससे लेक्टिक एसिड बनता है और शरीर में अम्लता बढ़ती है। वारबर्ग ने संभावना जताई थी कि सेल्स में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए सल्फरयुक्त प्रोटीन और एक अज्ञात फैट जरूरी होता है। उन्होंने कैंसर कोशिका में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई परीक्षण किये परन्तु वे असफल रहे।
1949 में बुडविग ने पहली बार फैट को पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की। इस तकनीक द्वारा यह स्पष्ट हो गया था कि वह अज्ञात फैट इलेक्ट्रोन युक्त अत्यंत असंतृप्त लिनोलिक ओर अल्फा लिनोलेनिक एसिड (जिनका भरपूर स्त्रोत अलसी का तेल है) है। इस खोज से कैंसर उपचार को नई दिशा मिल चुकी थी। डॉ. जॉहाना सिद्ध कर चुकी थी कि इलेक्ट्रोन युक्त, अत्यन्त असंतृप्त लिनोलेनिक और लिनोलिक एसिड कोशिकाओं में नई ऊर्जा भरते हैं, और कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकर्षित करते हैं। 
इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और सीधे बीमार लोगों के रक्त के नमूने लिये और उनको अलसी का तेल तथा पनीर मिली खुराक देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद फिर से उनके रक्त के नमूनो की जांच की। नतीजे सचमुच चैंका देने वाले थे। बुडविग द्वारा एक महान खोज हो चुकी थी। कैंसर के इलाज में सफलता की पहली पताका लहराई जा चुकी थी। 
लोगों के रक्त में फोस्फेटाइड और लाइपोप्रोटीन की मात्रा काफी बढ़ गई थी और अस्वस्थ हरे पीले पदार्थ की जगह लाल हीमोग्लोबिन ने ले ली थी। कैंसर के रोगी ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे, उनकी गांठे छोटी हो गई थी, वे कैंसर को परास्त कर रहे थे। उन्होंने अलसी के तेल और पनीर के जादुई और आश्चर्यजनक प्रभाव दुनिया के सामने सिद्ध कर दिये थे। इस तरह 1952 में डॉ. जॉहाना ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल व पनीर के मिश्रण, अपक्व जैविक आहार और अच्छी जीवनशैली के साथ कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया, जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ।
फलानुमान 
मल्टीपल माइलोमा के रोगी 1 से 10 या अधिक वर्ष तक जी पाते हैं। औसत जीवनकाल 3 वर्ष है। इस रोग के फलानुमान ट्यूमर का दबाव और कैंसर कोशिकाओं के विभाजन की दर के आधार पर किया जाता है। सी.आर.पी. और बीटा-2 प्रोटीन के स्तर के आधार पर फलानुमान इस प्रकार है। 
 यदि दोनों प्रोटीन की मात्रा 6 mg/L से कम हो तो औसत जीवन काल 54 माह होता है। 
 यदि दोनों में से एक प्रोटीन की मात्रा 6 mg/L से कम हो तो औसत जीवन काल 27 माह होता है। 
 यदि दोनों प्रोटीन की मात्रा 6 mg/L से अधिक हो तो औसत जीवन काल 6 माह होता है। 
खराब फलानुमान के निम्न कारण चिन्हित किये गये हैं। 
 ट्यूमर मास 
 खून में कैल्शियम का स्तर बढ़ा हुआ हो 
 पेशाब में बेन्स जोन्स प्रोटीन की उपस्थिति
 किडनी में खराबी (स्टेज बी रोग – निदान के समय क्रियेटिनीन >2 mg/dL से अधिक हो) 
उपचार के आधार पर फलानुमान इस प्रकार है। 
 पारंपरिक उपचार (Conventional therapy) लेने पर औसत जीवनकाल तो 3 वर्ष है, लेकिन बिना किसी तकलीफ के जीवनकाल 2 वर्ष ही है। 
 हाई डोज कीमोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट लेने लेने वाले 50% से ज्यादा रोगी 5 साल जी लेते हैं। 
धीरू भाई ने माइलोमा पर विजय प्राप्त की
कांदीवली, मुम्बई के निवासी श्री धीरू भाई बोहरा उम्र 89 वर्ष को 7 साल पहले हर्निया के आपरेशन के लिए हुई जांच से पता चला कि उनके पेट में प्लाजा सिस्टोमा नामक खतरनाक कैंसर की गांठ है। हर्निया के आपरेशन के साथ उनके पेट की गांठ भी निकाली गई। रेडियोथेरेपी भी दी गई लेकिन दो महीने बाद उनके कंधे में एक गांठ फिर हो गई। डाक्टरों ने उन्हें बताया कि उन्हें जो प्लाज्मा सिस्टोमा नामक कैंसर था वह मल्टीपल माइलोमा नामक कैंसर में परिवर्तित हो गया है और उन्हें कीमोथेरेपी भी दी गई। परंतु कीमोथेरेपी से उनके दिल में खराबी आ गई जिस कारण कीमोथेरेपी बंद करनी पड़ी। फिर उनके एक डॉ. मित्र ने जॉहाना के उपचार लेने की सलाह दी। जॉहाना के उपचार से उनकी बीमारी ठीक होती चली गयी। वे आज पूर्ण स्वस्थ है व फैक्टरी जाते हैं। कुछ अरसे पहले मेरी उनसे बात हुई तब वे अपनी फैक्टरी में ही काम देख रहे थे।