नैतिक भारत के लिए शिक्षा प्रणाली में बदलाव
अंग्रेजों ने जब भारत छोड़ा तो कहा था कि इस देश को भारतवासी नहीं चला पायेंगे
और यह फिर से गुलाम हो जायेगा ,क्यों कहा था उन्होंने ऐसा ?क्योंकि वह जानते
थे हम भारत को ऐसी शिक्षा प्रणाली देकर जायेंगे जिसको पढ़ कर युवा दिशा हिन हो
जायेगा और भटक जायेगा।
आज इस देश के सामने मुख्य दौ समस्याएँ हैं पहली भ्रष्टाचार और दूसरी बेरोजगारी
इन दोनों समस्याओं ने कई नयी समस्याओं को जन्म दिया है जैसे- ध्वस्त होती
संस्कृति,महिला असुरक्षा ,जातिवाद,कर्तव्य बोध का अभाव आदि।
मुख्य समस्या भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से भारत ने निपटने के प्रयास किये और
वे प्रयास असफल होते गये और देशवासी इन समस्याओं से तालमेल बैठाकर जीना
सीख गए हैं और नतीजा यह कि ये बीमारियाँ बढ़ती ही जा रही है।
इन मुख्य समस्याओं से झुंझने का प्रयास सिर्फ फोरी तोर पर समय -समय पर
होता रहा है जैसे -आरक्षण,धरना ,आंदोलन प्रदर्शन या कानून लिख कर। ये उपाय
स्थायी नहीं हैं क्योंकि इससे समस्याओं की जड़ को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
क्या कठोर सजा ही सब समस्याओं का हल है ?समाज विज्ञान इसे नहीं मानता।
हमारे देश में अब बच्चे भी अवैधानिक काम कर के पकडे जा रहे हैं,प्रश्न यह उठता
है कि बच्चों के मन में अपराध को अंजाम देने के भाव आये कहाँ से ?ये अपराध
बच्चा सीखा कैसे ?इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?
विडंबना है कि इन बातों पर हमारे जनसेवक कभी संसद में चर्चा नहीं करते ,ना
सामाजिक सगंठन इस विषय पर चर्चा करते हैं। बड़ा दुःख है कि हम लीव इन
रिलेशन लाते हैं ,हम समलैंगिगो के लिए संवेदना लाते हैं.हम गर्भपात को बढ़ावा
देते हैं,हम महिलाओं कि असामान्य वेशभूषा को प्रोत्साहित करते हैं मगर शिक्षा
पर कभी बृहद चर्चा नहीं करते जो की मुख्य है।
गणतंत्र भारत को कैसी शिक्षा प्रणाली की जरुरत है इस पर कभी कोई NGO
आंदोलन या धरना नही करता।शिक्षा का स्वरुप कैसा हो इस पर कभी जनमत
नहीं लिया जाता ,जबकि अनैतिक जोड़ गणित के लिए जनमत होते रहते हैं
कारण यही की इससे सत्ता नहीं मिलती।
देश के नेता इस पर चर्चा नहीं करते जबकि चुनाव के समय अपने लिए वोट की
गुहार लगाने घर-घर योजना बद्ध तरीके से पहुँच जाते हैं।
KG से कक्षा पाँच तक का सेलेबस क्या हो ?क्योंकि बच्चा इस समय कोमल मन
का होता है उसे जो सिखाया जाता है वह उसे ग्रहण करता है और यही बाल संस्कार
उसके जीवन को गढ़ते हैं। कक्षा 6 से 8 तक का सेलेबस क्या हो ?इस उम्र में बच्चा
सीखता है और सोचता है। हमारी शिक्षा यहाँ आकर किताबी बन जाती है। बच्चा
किताबों में उलझ जाता है और कीड़ा बनने का प्रयास करता है जबकि सर्वांगीण
विकास हमारा लक्ष्य होना चाहिए।हम यहाँ से बच्चे को संविधान का धर्म नहीं
पढाते हैं ,सँस्कार और संस्कृति को लिखना सिखाते हैं मगर उसे जीवन में उतारना
नहीं सिखाते। कक्षा 9 से 12 जिसमे बच्चा बालिग़ होने लगता है तब तक वह
केवल यही जानता है कि तोता रटन्त परीक्षा पास करने के लिये जरुरी है।
अभिभावक भी कुछ नहीं कर पाते और शिक्षा प्रणाली के अनुरूप बच्चों को तोता
रटन्त करवाते हैं नतीजा बच्चा संस्कार, संस्कृति, सदाचार,नैतिकता को जीवन
में उतारने का अवसर खो देता है।
मेरे देश में कक्षा 12 के बाद बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ना छोड़ देते हैं और ये अनगढ़
बच्चे भारत निर्माण में लग जाते हैं ,ये बच्चे कैसा और कितना योगदान श्रेष्ठ
भारत निर्माण के लिए दे पायेंगे ,जरा आप खुद सोचे।
कॉलेज और मास्टर डिग्री के छात्र सिर्फ जीवन यापन के लिए पढ़ते हैं ,वे इस
कर्तव्य से अनजान हैं की उनकी समाज के लिए कोई जबाबदेही है। हमारी
कागजी डिग्रियाँ जब रोजगार का निर्माण नहीं कर पाती तो युवा हताश हो जाता
है और छोटी मोटी सरकारी नौकरी के लिए चक्कर लगाता है और उसे पाने के
लिए भ्रष्टाचार से समझौता कर लेता है और यही से वह खुद भ्रष्ट जीवन जीने
को धकेल दिया जाता है।
शिक्षा स्वावलम्बी हो ,सभ्य समाज का निर्माण करने वाली हो ,संस्कृति और देश
भक्ति प्रधान हो। इस व्यवस्था के बिना सुराज्य संभव नहीं है
अंग्रेजों ने जब भारत छोड़ा तो कहा था कि इस देश को भारतवासी नहीं चला पायेंगे
और यह फिर से गुलाम हो जायेगा ,क्यों कहा था उन्होंने ऐसा ?क्योंकि वह जानते
थे हम भारत को ऐसी शिक्षा प्रणाली देकर जायेंगे जिसको पढ़ कर युवा दिशा हिन हो
जायेगा और भटक जायेगा।
आज इस देश के सामने मुख्य दौ समस्याएँ हैं पहली भ्रष्टाचार और दूसरी बेरोजगारी
इन दोनों समस्याओं ने कई नयी समस्याओं को जन्म दिया है जैसे- ध्वस्त होती
संस्कृति,महिला असुरक्षा ,जातिवाद,कर्तव्य बोध का अभाव आदि।
मुख्य समस्या भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से भारत ने निपटने के प्रयास किये और
वे प्रयास असफल होते गये और देशवासी इन समस्याओं से तालमेल बैठाकर जीना
सीख गए हैं और नतीजा यह कि ये बीमारियाँ बढ़ती ही जा रही है।
इन मुख्य समस्याओं से झुंझने का प्रयास सिर्फ फोरी तोर पर समय -समय पर
होता रहा है जैसे -आरक्षण,धरना ,आंदोलन प्रदर्शन या कानून लिख कर। ये उपाय
स्थायी नहीं हैं क्योंकि इससे समस्याओं की जड़ को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
क्या कठोर सजा ही सब समस्याओं का हल है ?समाज विज्ञान इसे नहीं मानता।
हमारे देश में अब बच्चे भी अवैधानिक काम कर के पकडे जा रहे हैं,प्रश्न यह उठता
है कि बच्चों के मन में अपराध को अंजाम देने के भाव आये कहाँ से ?ये अपराध
बच्चा सीखा कैसे ?इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?
विडंबना है कि इन बातों पर हमारे जनसेवक कभी संसद में चर्चा नहीं करते ,ना
सामाजिक सगंठन इस विषय पर चर्चा करते हैं। बड़ा दुःख है कि हम लीव इन
रिलेशन लाते हैं ,हम समलैंगिगो के लिए संवेदना लाते हैं.हम गर्भपात को बढ़ावा
देते हैं,हम महिलाओं कि असामान्य वेशभूषा को प्रोत्साहित करते हैं मगर शिक्षा
पर कभी बृहद चर्चा नहीं करते जो की मुख्य है।
गणतंत्र भारत को कैसी शिक्षा प्रणाली की जरुरत है इस पर कभी कोई NGO
आंदोलन या धरना नही करता।शिक्षा का स्वरुप कैसा हो इस पर कभी जनमत
नहीं लिया जाता ,जबकि अनैतिक जोड़ गणित के लिए जनमत होते रहते हैं
कारण यही की इससे सत्ता नहीं मिलती।
देश के नेता इस पर चर्चा नहीं करते जबकि चुनाव के समय अपने लिए वोट की
गुहार लगाने घर-घर योजना बद्ध तरीके से पहुँच जाते हैं।
KG से कक्षा पाँच तक का सेलेबस क्या हो ?क्योंकि बच्चा इस समय कोमल मन
का होता है उसे जो सिखाया जाता है वह उसे ग्रहण करता है और यही बाल संस्कार
उसके जीवन को गढ़ते हैं। कक्षा 6 से 8 तक का सेलेबस क्या हो ?इस उम्र में बच्चा
सीखता है और सोचता है। हमारी शिक्षा यहाँ आकर किताबी बन जाती है। बच्चा
किताबों में उलझ जाता है और कीड़ा बनने का प्रयास करता है जबकि सर्वांगीण
विकास हमारा लक्ष्य होना चाहिए।हम यहाँ से बच्चे को संविधान का धर्म नहीं
पढाते हैं ,सँस्कार और संस्कृति को लिखना सिखाते हैं मगर उसे जीवन में उतारना
नहीं सिखाते। कक्षा 9 से 12 जिसमे बच्चा बालिग़ होने लगता है तब तक वह
केवल यही जानता है कि तोता रटन्त परीक्षा पास करने के लिये जरुरी है।
अभिभावक भी कुछ नहीं कर पाते और शिक्षा प्रणाली के अनुरूप बच्चों को तोता
रटन्त करवाते हैं नतीजा बच्चा संस्कार, संस्कृति, सदाचार,नैतिकता को जीवन
में उतारने का अवसर खो देता है।
मेरे देश में कक्षा 12 के बाद बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ना छोड़ देते हैं और ये अनगढ़
बच्चे भारत निर्माण में लग जाते हैं ,ये बच्चे कैसा और कितना योगदान श्रेष्ठ
भारत निर्माण के लिए दे पायेंगे ,जरा आप खुद सोचे।
कॉलेज और मास्टर डिग्री के छात्र सिर्फ जीवन यापन के लिए पढ़ते हैं ,वे इस
कर्तव्य से अनजान हैं की उनकी समाज के लिए कोई जबाबदेही है। हमारी
कागजी डिग्रियाँ जब रोजगार का निर्माण नहीं कर पाती तो युवा हताश हो जाता
है और छोटी मोटी सरकारी नौकरी के लिए चक्कर लगाता है और उसे पाने के
लिए भ्रष्टाचार से समझौता कर लेता है और यही से वह खुद भ्रष्ट जीवन जीने
को धकेल दिया जाता है।
शिक्षा स्वावलम्बी हो ,सभ्य समाज का निर्माण करने वाली हो ,संस्कृति और देश
भक्ति प्रधान हो। इस व्यवस्था के बिना सुराज्य संभव नहीं है
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