भू-लोक तन्त्र !!
एक गाँव के प्रवेश द्वार के पास एक कँटीला पेड़ था और उस पेड़ से कुछ दुरी पर
एक साधु की कुटिया थी। पेड़ के बड़े-बड़े काँटों से आये दिन कोई न कोई आदमी
चुभन का शिकार होता रहता।
एक दिन किसी राहगीर को काँटा चुभ गया ,वह दर्द से बिलबिला उठा। उसे लगा
की कुछ ऐसा काम कर दूँ ताकि अन्य राहगीर को काँटे न चुभे। अगले दिन उसने
एक बड़ा बोर्ड बनाया और पेड़ से कुछ फलाँग पहले लगा दिया। उस बोर्ड पर लिखा
था -"सावधान ,आगे काँटे का पेड़ है "
साधू ने उस बोर्ड को देखा और मुस्करा कर कुटिया में चला गया।
कुछ दिन बाद दूसरे राहगीर को काँटा लग गया ,वह राहगीर भी दर्द से बिलबिला
उठा। कुछ समय बाद वह एक कुल्हाड़ी लेकर वापिस आया और पेड़ कि कुछ टहनियाँ
जो रास्ते पर आ रही थी उनको काट डाला।
साधु उस राहगीर के पास आया और मुस्करा के अपनी कुटिया में चला गया।
कुछ दिन बाद फिर तीसरे राहगीर को काँटा चुभ गया ,वह दर्द से चिल्ला उठा और
गुस्से से भरा दौड़ता हुआ घर पर गया और घर से आरा लाकर उस पेड़ के तने को
काट डाला। पेड़ को कटा देख सब गाँव वाले इकट्टे हुये और उसे कंधों पर बिठा कर
उत्साह से नाचने लगे।
साधु गाँव वालों के पास गया और सब तमाशा देख चुपचाप मुस्कराता हुआ कुटिया
में चला आया। गाँव वाले कुछ दिन सुकून से रहे। किसी ने उस बोर्ड को वहाँ से हटा
दिया मगर कुछ ही महिनों में वह पेड़ फिर से फलफूल गया और राहगीर फिर से
घायल होने लग गये।
आने जाने वालों ने फिर से बोर्ड लगा दिया ,किसी ने फिर से बड़ी टहनियों को काटा
तो कोई आरा लेकर फिर से तने को काट डालता। तने को काटने वाले को गाँव वाले
कंधों पर बैठाते और नाचते। साधु हर बार घटना क्रम को देखता और मुस्करा कर
कुटिया में चला जाता।
पेड़ का तना कटने के बाद कुछ दिन गाँव में शान्ति रहती और जैसे ही पेड़ वापिस
फलफूल जाता वापिस वही चक्र शुरू हो जाता। बार-बार के इस चक्र से गाँव वाले
परेशान हो गये और इस समस्या का स्थायी हल ढूंढने के लिए साधु के पास उपाय
पूछने गये।
साधु ने कहा -"आप सब मिलकर इस पेड़ को जड़ सहित उखाड़ दो ,यह इस समस्या
का स्थायी हल है "
गाँव वालों में से एक बोला -हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि इस उपाय से हम नेता
विहीन हो जायेंगे ,हम में से जो बोर्ड लगाता है वह सेवा भावी कहलाता है जो कुछ
टहनियाँ काटता है वह समाज सुधारक कहलाता है और जो आरा लेकर तना काटता
है वह नेता कहलाता है.इस चक्र ने हमें सेवाभावी ,समाज सुधारक और नेता दिये हैं
इसके रुकने पर सब बराबर हो जायेंगे। यह उपाय नामंजूर है …
गाँव के सेवा भावी ,समाज सुधारक और नेता इस उपाय से असहमत थे।
उन सबकी बात सुनकर साधू जोर-जोर से हँस पड़ा और बोला -हाय! भू-लोक तन्त्र !!
एक गाँव के प्रवेश द्वार के पास एक कँटीला पेड़ था और उस पेड़ से कुछ दुरी पर
एक साधु की कुटिया थी। पेड़ के बड़े-बड़े काँटों से आये दिन कोई न कोई आदमी
चुभन का शिकार होता रहता।
एक दिन किसी राहगीर को काँटा चुभ गया ,वह दर्द से बिलबिला उठा। उसे लगा
की कुछ ऐसा काम कर दूँ ताकि अन्य राहगीर को काँटे न चुभे। अगले दिन उसने
एक बड़ा बोर्ड बनाया और पेड़ से कुछ फलाँग पहले लगा दिया। उस बोर्ड पर लिखा
था -"सावधान ,आगे काँटे का पेड़ है "
साधू ने उस बोर्ड को देखा और मुस्करा कर कुटिया में चला गया।
कुछ दिन बाद दूसरे राहगीर को काँटा लग गया ,वह राहगीर भी दर्द से बिलबिला
उठा। कुछ समय बाद वह एक कुल्हाड़ी लेकर वापिस आया और पेड़ कि कुछ टहनियाँ
जो रास्ते पर आ रही थी उनको काट डाला।
साधु उस राहगीर के पास आया और मुस्करा के अपनी कुटिया में चला गया।
कुछ दिन बाद फिर तीसरे राहगीर को काँटा चुभ गया ,वह दर्द से चिल्ला उठा और
गुस्से से भरा दौड़ता हुआ घर पर गया और घर से आरा लाकर उस पेड़ के तने को
काट डाला। पेड़ को कटा देख सब गाँव वाले इकट्टे हुये और उसे कंधों पर बिठा कर
उत्साह से नाचने लगे।
साधु गाँव वालों के पास गया और सब तमाशा देख चुपचाप मुस्कराता हुआ कुटिया
में चला आया। गाँव वाले कुछ दिन सुकून से रहे। किसी ने उस बोर्ड को वहाँ से हटा
दिया मगर कुछ ही महिनों में वह पेड़ फिर से फलफूल गया और राहगीर फिर से
घायल होने लग गये।
आने जाने वालों ने फिर से बोर्ड लगा दिया ,किसी ने फिर से बड़ी टहनियों को काटा
तो कोई आरा लेकर फिर से तने को काट डालता। तने को काटने वाले को गाँव वाले
कंधों पर बैठाते और नाचते। साधु हर बार घटना क्रम को देखता और मुस्करा कर
कुटिया में चला जाता।
पेड़ का तना कटने के बाद कुछ दिन गाँव में शान्ति रहती और जैसे ही पेड़ वापिस
फलफूल जाता वापिस वही चक्र शुरू हो जाता। बार-बार के इस चक्र से गाँव वाले
परेशान हो गये और इस समस्या का स्थायी हल ढूंढने के लिए साधु के पास उपाय
पूछने गये।
साधु ने कहा -"आप सब मिलकर इस पेड़ को जड़ सहित उखाड़ दो ,यह इस समस्या
का स्थायी हल है "
गाँव वालों में से एक बोला -हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि इस उपाय से हम नेता
विहीन हो जायेंगे ,हम में से जो बोर्ड लगाता है वह सेवा भावी कहलाता है जो कुछ
टहनियाँ काटता है वह समाज सुधारक कहलाता है और जो आरा लेकर तना काटता
है वह नेता कहलाता है.इस चक्र ने हमें सेवाभावी ,समाज सुधारक और नेता दिये हैं
इसके रुकने पर सब बराबर हो जायेंगे। यह उपाय नामंजूर है …
गाँव के सेवा भावी ,समाज सुधारक और नेता इस उपाय से असहमत थे।
उन सबकी बात सुनकर साधू जोर-जोर से हँस पड़ा और बोला -हाय! भू-लोक तन्त्र !!
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