मित्रों,सत्ता की चाबी से एक और प्रसंग याद आ रहा है। वर्ष 2005 में फरवरी में बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ। जनता ने कुछ इसी तरह का जनादेश दिया। रामविलास पासवान के 32 विधायक थे और बिना उनको समर्थन दिए या उनसे समर्थन लिए कोई भी सरकार नहीं बननी थी। इसी तरह रामविलास जी अड़ गए थे कि हम न तो किसी को समर्थन देंगे और न ही किसी से समर्थन लेंगे बल्कि हम तो फिर से चुनाव चाहते हैं। उनको लगा कि दोबारा चुनाव होने पर उनको अकेले बहुमत मिल जाएगा लेकिन जनता ने नवंबर में हुए चुनावों में उनसे सत्ता की चाबी ही छीन ली और तब से बेचारे की हालत दिन-ब-दिन पतली ही होती गई। यह संदर्भ ज्यादा पुराना नहीं है और केजरीवाल अगर चाहें तो इससे शिक्षा ले सकते हैं।
मित्रों,इस समय यह पता नहीं चल रहा कि केजरीवाल चाहते क्या हैं। अगर वे दिल्ली में जनलोकायुक्त लाना चाहते हैं या जनता को सचमुच बिजली,पानी और दाल-सब्जियों की महँगाई से राहत दिलवाना चाहते हैं,अगर उनको मुद्दों की राजनीति करनी है तो उनको सरकार बनानी चाहिए। अन्यथा अगर उनको सिर्फ सत्ता की राजनीति करनी है तो फिर करें। कुछ लोग कह सकते हैं कि सरकार तो भाजपा भी बना सकती है उनको मैं बता दूँ कि भाजपा किसी भी स्थिति में सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं है। केजरीवाल पहले ही कह चुके हैं कि वे न तो किसी को समर्थन देंगे और न ही किसी से समर्थन लेंगे। कांग्रेस भी भाजपा को समर्थन नहीं देगी। अन्य दो को अगर भाजपा अपने साथ ले भी आती है तब भी उसकी संख्या मात्र 34 तक पहुँचती है जबकि केजरीवाल को कांग्रेस बिना शर्त समर्थन देने को तैयार है और भाजपा भी कह रही है कि यदि केजरीवाल उनसे समर्थन मांगते हैं तो वह जरूर उस पर विचार करेगी इसलिए इस समय दिल्ली अगर किसी की सरकार बन सकती है तो वो है आप पार्टी। माना कि केजरीवाल दिल्ली में फिर से चुनाव चाहते हैं परन्तु अगर चुनावों के बाद भी संख्या-समीकरण नहीं बदलता है तब क्या होगा? तब वे क्या कहेंगे और करेंगे? तब क्या वे यह कहेंगे कि वे तीसरी बार चुनावों में जाना चाहते हैं? फिर चुनावों में जो व्यय होगा उसका बोझ कौन उठाएगा?
मित्रों,केजरीवाल ने उन सभी ईमानदार नेताओं को जो अपने मूल दल में घुटन महसूस कर रहे हैं को आप पार्टी में आमंत्रित किया है। तो क्या केजरीवाल को सिर्फ जिताऊ उम्मीदवार चाहिए,राजनीति में शुचिता और पवित्रता नहीं चाहिए? क्या केजरीवाल की पार्टी में आ जानेभर से कोई ईमानदार हो जाएगा या हो जाता है? इसी बीच कुछ सर्वेक्षणवीरों ने दिल्ली की 7-8 सौ जनता के बीच इस बात पर सर्वेक्षण किया है कि क्या केजरीवाल को वर्तमान स्थिति में सरकार बनाने के प्रयास करने चाहिए या नहीं। जब चुनावरूपी महासर्वेक्षण से यह पता नहीं चला कि दिल्ली की जनता चाहती क्या है तो फिर 7-8 सौ लोगों का सर्वेक्षण करने से क्या पता लगेगा? ये भाई लोग दरअसल पहले नतीजे सेट करते हैं और फिर बाद में सर्वेक्षण करते हैं।
मित्रों,इन दिनों अन्ना हजारे संसद के वर्तमान सत्र में जो कि इसका अंतिम सत्र भी है में जनलोकपाल पारित करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे हैं। उनका लक्ष्य पवित्र है लेकिन उनकी कार्यशैली विचित्र है। कभी उनको अतिभ्रष्ट नीतीश शासन स्वच्छ नजर आता है तो कभी वे अपने पुराने चेले अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ नजर आते हैं तो अगले ही पल उनको अरविन्द अच्छे लगने लगते हैं। पता ही नहीं चलता कि अन्ना चाहते क्या हैं? अब तो केंद्र सरकार ने कह भी दिया है कि वर्तमान सत्र में ही लोकपाल विधेयक को पारित करवाया जाएगा इसलिए अब अन्ना के अनशन का कोई मतलब नहीं रह जाता। अन्ना कभी कहते हैं कि उनके मंच पर कोई राजनीतिज्ञ नहीं आएगा फिर महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री से मिलते भी हैं और तब कहते हैं कि उनके मंच पर सबका स्वागत है। इसलिए मैं अन्ना से निवेदन करता हूँ कि पहले वे अपने चित्त को स्थिर कर लें फिर चाहे तो आंदोलन करें,जनजागरण या फिर आमरण अनशन।
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