जमीन पर रहकर आसमान से जमीन नापना
ये आसमान से जमीन नापने या मापने जैसा है। क्या कभी आपने कल्पना की है कि हेलीकाप्टर से जमीन को नापा जाए। शायद नहीं। लेकिन अब ऐसा हो रहा है। क्या है यह। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की विजय इसी का हिस्सा है । चुनाव से पहले अक्सर समीक्षक कहा करते थे कि आप चार पांच सीट्स ही ले पायेगी । भाजपा और कांग्रेस भी भाव देने से कतराते थे सो अब कतरा कतरा रो रहे हैं । लेकिन एक बात सही है । अक्सर तमाम राजनैतिक पार्टियां पहले पहल ग्राम प्रधान , पंचायत सदस्य , ब्लाक प्रमुख आदि क्रम से राजनीति में होते हुए विधायक मंत्री सांसद आदि का सफ़र तय करती हैं। यह भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार हुआ है कि कोई सीधे ही अट्ठाइस विधायकों के साथ दिल्ली का मुखिया बन बैठा है। है न आकाश से जमीन नापना। वह भी जमीन पर रहकर । ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था। लेकिन यह हो चुका है। अक्सर पार्टियां जमीनी स्तर पर राजनैतिक कब्ज़ा करती हैं विभिन्न संघटनों , संस्थानो संस्थाओं आदि पर कब्ज़ा करती हैं और फिर ऊपर पकड़ बनाती हैं लेकिन पहली बार ऐसा नहीं हुआ है । कहीं यह दिवास्वप्न तो नहीं है । यकीनन दिवास्वप्न नहीं है ।
लेकिन क्या झांसा दिया जाना जरूरी था । बीजेपी कहती रही कि वह विपक्ष में बैठेगी । कांग्रेस ने पत्ते खोले और सोचा कहीं ऐसा न हो कि लोकसभाचुनाव में मोदी ब्रांड के साथ अगर दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए तो बीजेपी इस राज्य में भी सत्ता में न आ जाए । सो केजरीवाल को समर्थन दो । समर्थन दिया । कहा कि दोबारा चुनाव में नहीं धकेल सकते दिल्ली की जनता को । लेकिन यह नहीं समझाया कि मई २०१४ में तो जनता को मतदान केंद्र जाना ही है । एक और बटन दबा देता मतदाता । दिल्ली विधान सभा के लिए भी वोट दे देता । सो दोबारा चुनाव होने देते । कांग्रेस ने क्या पांच साल के लिए समर्थन दिया है ? कोई गारंटी ? नहीं । तो फिर केजरीवाल को क्या हुआ ? इस से बेहतर तो यह होता कि केजरीवाल बीजेपी को समर्थन देते या बीजेपी से समर्थन लेते । लेकिन हमारे देश में धर्म निरपेक्ष दिखने का एक शौक है सभी को । और इसलिए केजरीवाल ने अपने घोषणा पत्र में लिख दिया कि दिल्ली में उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा । पंजाबी तो है ही द्वितीय राजभाषा । उर्दू भी । वाह । असल में राजनीति बीजेपी और गैर बीजेपी में फांसी है और इसलिए सही मायने में बीजेपी और शिवसेना जैसे दल एक तरफ हैं और शेष दल एक तरफ । केजरीवाल को जल्दी है । दिल्ली संभालेंगे या देश ? एक बिन्नी ने ही रातों की नींद उड़ा दी । देश में जिन लोगों को लोकसभा में भेजेंगे उनमे कितने बिन्नी होंगे क्या पता । सत्ता में वहाँ लोकसभा में तो नहीं आयेंगे ? फिर कुछ सीट्स मिल भी गयी तो अपने लोगों को कैसे रोक पाएंगे गाडी बंगला न लेने के लिए । वहाँ तो मिलेगा ही । बवाल नहीं होगा ? बिन्नी नहीं पैदा होंगे ? प्रलोभन न हो सामने तो ईमानदार बने रहना आसान है लेकिन जब सामने करोड़ों होंगे तो ? तब ईमानदार बनना होगा ? क्या वास्तव में सब बुद्धा ही हैं केजरीवाल पार्टी में । नहीं । लेकिन मैं केजरीवाल का विरोधी नहीं । समर्थक हूँ । चाहता हूँ धीरे धीरे बढ़ें ताकि विश्वसनीयता को कोई आंच नहीं आये । अभी जितना मिला है उसे पचाएं , जो कहा है करके दिखाएँ । तब बात जमेगी । और प्रत्याशी ? सभी की पत्नियां तो नौकरी नहीं करती ? उनका परिवार कौन पालेगा । केजरीवाल की तो पत्नी उनका अपना परिवार सम्भाल लेगी । लेकिन बाकी क्या बाबा वैरागी लायेंगे । मिल जायेंगे ? ढूँढिये । बहुत जल्दी भी ठीक नहीं है । दुनिया बहुत बड़ी है और समय का इन्तजार करें । और हाँ , सुरक्षा जरूर लें , क्योंकि राजनीति में हैं । थोडा गोवा के परिकर के बारे में भी सोचें ।
फ्रॉम -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून
ये आसमान से जमीन नापने या मापने जैसा है। क्या कभी आपने कल्पना की है कि हेलीकाप्टर से जमीन को नापा जाए। शायद नहीं। लेकिन अब ऐसा हो रहा है। क्या है यह। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की विजय इसी का हिस्सा है । चुनाव से पहले अक्सर समीक्षक कहा करते थे कि आप चार पांच सीट्स ही ले पायेगी । भाजपा और कांग्रेस भी भाव देने से कतराते थे सो अब कतरा कतरा रो रहे हैं । लेकिन एक बात सही है । अक्सर तमाम राजनैतिक पार्टियां पहले पहल ग्राम प्रधान , पंचायत सदस्य , ब्लाक प्रमुख आदि क्रम से राजनीति में होते हुए विधायक मंत्री सांसद आदि का सफ़र तय करती हैं। यह भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार हुआ है कि कोई सीधे ही अट्ठाइस विधायकों के साथ दिल्ली का मुखिया बन बैठा है। है न आकाश से जमीन नापना। वह भी जमीन पर रहकर । ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था। लेकिन यह हो चुका है। अक्सर पार्टियां जमीनी स्तर पर राजनैतिक कब्ज़ा करती हैं विभिन्न संघटनों , संस्थानो संस्थाओं आदि पर कब्ज़ा करती हैं और फिर ऊपर पकड़ बनाती हैं लेकिन पहली बार ऐसा नहीं हुआ है । कहीं यह दिवास्वप्न तो नहीं है । यकीनन दिवास्वप्न नहीं है ।
लेकिन क्या झांसा दिया जाना जरूरी था । बीजेपी कहती रही कि वह विपक्ष में बैठेगी । कांग्रेस ने पत्ते खोले और सोचा कहीं ऐसा न हो कि लोकसभाचुनाव में मोदी ब्रांड के साथ अगर दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए तो बीजेपी इस राज्य में भी सत्ता में न आ जाए । सो केजरीवाल को समर्थन दो । समर्थन दिया । कहा कि दोबारा चुनाव में नहीं धकेल सकते दिल्ली की जनता को । लेकिन यह नहीं समझाया कि मई २०१४ में तो जनता को मतदान केंद्र जाना ही है । एक और बटन दबा देता मतदाता । दिल्ली विधान सभा के लिए भी वोट दे देता । सो दोबारा चुनाव होने देते । कांग्रेस ने क्या पांच साल के लिए समर्थन दिया है ? कोई गारंटी ? नहीं । तो फिर केजरीवाल को क्या हुआ ? इस से बेहतर तो यह होता कि केजरीवाल बीजेपी को समर्थन देते या बीजेपी से समर्थन लेते । लेकिन हमारे देश में धर्म निरपेक्ष दिखने का एक शौक है सभी को । और इसलिए केजरीवाल ने अपने घोषणा पत्र में लिख दिया कि दिल्ली में उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा । पंजाबी तो है ही द्वितीय राजभाषा । उर्दू भी । वाह । असल में राजनीति बीजेपी और गैर बीजेपी में फांसी है और इसलिए सही मायने में बीजेपी और शिवसेना जैसे दल एक तरफ हैं और शेष दल एक तरफ । केजरीवाल को जल्दी है । दिल्ली संभालेंगे या देश ? एक बिन्नी ने ही रातों की नींद उड़ा दी । देश में जिन लोगों को लोकसभा में भेजेंगे उनमे कितने बिन्नी होंगे क्या पता । सत्ता में वहाँ लोकसभा में तो नहीं आयेंगे ? फिर कुछ सीट्स मिल भी गयी तो अपने लोगों को कैसे रोक पाएंगे गाडी बंगला न लेने के लिए । वहाँ तो मिलेगा ही । बवाल नहीं होगा ? बिन्नी नहीं पैदा होंगे ? प्रलोभन न हो सामने तो ईमानदार बने रहना आसान है लेकिन जब सामने करोड़ों होंगे तो ? तब ईमानदार बनना होगा ? क्या वास्तव में सब बुद्धा ही हैं केजरीवाल पार्टी में । नहीं । लेकिन मैं केजरीवाल का विरोधी नहीं । समर्थक हूँ । चाहता हूँ धीरे धीरे बढ़ें ताकि विश्वसनीयता को कोई आंच नहीं आये । अभी जितना मिला है उसे पचाएं , जो कहा है करके दिखाएँ । तब बात जमेगी । और प्रत्याशी ? सभी की पत्नियां तो नौकरी नहीं करती ? उनका परिवार कौन पालेगा । केजरीवाल की तो पत्नी उनका अपना परिवार सम्भाल लेगी । लेकिन बाकी क्या बाबा वैरागी लायेंगे । मिल जायेंगे ? ढूँढिये । बहुत जल्दी भी ठीक नहीं है । दुनिया बहुत बड़ी है और समय का इन्तजार करें । और हाँ , सुरक्षा जरूर लें , क्योंकि राजनीति में हैं । थोडा गोवा के परिकर के बारे में भी सोचें ।
फ्रॉम -
डॉ द्विजेन्द्र वल्लभ शर्मा
मोतीचूर , हरिपुर कलां , रायवाला देहरादून
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