दिल्ली की गुत्थी !
दिल्ली में २८ सीटे जीत कर अरविन्द केजरीवाल ने सरकार बनाने के लिए काँग्रेस और
भाजपा से अपने मुद्दों पर समर्थन माँगा और गेंद दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के पाले में डाल
कर अपरोक्ष रूप से चुनाव फिर से हो इसकी घोषणा कर दी।
श्री अरविन्द की शर्तों को मानकर यदि भाजपा उन्हें उनके मुद्दों पर समर्थन दे देती है
तो इसका बड़ा फायदा भाजपा को राष्ट्रीय लोकसभा के चुनाव में हो सकता है क्योंकि
अरविन्द के मुद्दों पर समर्थन करके भाजपा इन्ही मुद्दो को आने वाले लोकसभा चुनाव
में अरविन्द से छीन सकती है और खुद की छवी को राष्ट्रीय फलक पर और ज्यादा
निखार सकती है क्योंकि अरविन्द के मुद्दे काफी हद तक मोदीजी के विचारों से मेल
खाते हैं और भाजपा के विचार -भय, भूख और भ्रष्टाचार से मिलते हैं।
अरविन्द को सहकार नहीं देने पर "आप" जब जनता के पास फिर से जायेगी तो
वह इस बार भाजपा को मुख्य प्रतिद्धन्दी मानकर चुनाव लड़ेगी इसमें मुख्य लड़ाई
"आप "और भाजपा की रहेगी ,हो सकता है भाजपा इस बार बाजी मार भी ले मगर
उसे एक राज्य में अपनी सरकार बनाने के फायदे से ज्यादा फायदा मिलना सम्भव
नहीं लगता क्योंकि दिल्ली की लोकसभा सीटों पर "आप"के कारण से उसे नुकसान
भी हो सकता है।
"आप "जब भी भला बुरा कहती है तो सबसे ज्यादा चोट काँग्रेस पर ही करती है और
इन चुनावों में भी उसने काँग्रेस का वोट बैंक तोड़ा है। काँग्रेस यदि उन्हें समर्थन उनके
मुद्दों पर देती है तो उसे भविष्य में भी नुकसान होने कि सम्भावना प्रबल रहने वाली है
देखिये अब गोटी कौन किस तरह से चलता है। फिर से चुनाव ,जिसकी सम्भावना
दिखती है या बड़ी जीत के लिए छोटा तथा पीछे हटने का कदम भाजपा का। …
दिल्ली में २८ सीटे जीत कर अरविन्द केजरीवाल ने सरकार बनाने के लिए काँग्रेस और
भाजपा से अपने मुद्दों पर समर्थन माँगा और गेंद दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के पाले में डाल
कर अपरोक्ष रूप से चुनाव फिर से हो इसकी घोषणा कर दी।
श्री अरविन्द की शर्तों को मानकर यदि भाजपा उन्हें उनके मुद्दों पर समर्थन दे देती है
तो इसका बड़ा फायदा भाजपा को राष्ट्रीय लोकसभा के चुनाव में हो सकता है क्योंकि
अरविन्द के मुद्दों पर समर्थन करके भाजपा इन्ही मुद्दो को आने वाले लोकसभा चुनाव
में अरविन्द से छीन सकती है और खुद की छवी को राष्ट्रीय फलक पर और ज्यादा
निखार सकती है क्योंकि अरविन्द के मुद्दे काफी हद तक मोदीजी के विचारों से मेल
खाते हैं और भाजपा के विचार -भय, भूख और भ्रष्टाचार से मिलते हैं।
अरविन्द को सहकार नहीं देने पर "आप" जब जनता के पास फिर से जायेगी तो
वह इस बार भाजपा को मुख्य प्रतिद्धन्दी मानकर चुनाव लड़ेगी इसमें मुख्य लड़ाई
"आप "और भाजपा की रहेगी ,हो सकता है भाजपा इस बार बाजी मार भी ले मगर
उसे एक राज्य में अपनी सरकार बनाने के फायदे से ज्यादा फायदा मिलना सम्भव
नहीं लगता क्योंकि दिल्ली की लोकसभा सीटों पर "आप"के कारण से उसे नुकसान
भी हो सकता है।
"आप "जब भी भला बुरा कहती है तो सबसे ज्यादा चोट काँग्रेस पर ही करती है और
इन चुनावों में भी उसने काँग्रेस का वोट बैंक तोड़ा है। काँग्रेस यदि उन्हें समर्थन उनके
मुद्दों पर देती है तो उसे भविष्य में भी नुकसान होने कि सम्भावना प्रबल रहने वाली है
देखिये अब गोटी कौन किस तरह से चलता है। फिर से चुनाव ,जिसकी सम्भावना
दिखती है या बड़ी जीत के लिए छोटा तथा पीछे हटने का कदम भाजपा का। …
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