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27.12.13

नो वन किड्नैप्ड नवरुणा-ब्रज की दुनिया


मुजफ्फरपुर से अपने घर से सोते समय खिड़की तोड़ कर 18 सितंबर,2012 की रात में अपहृत कर ली गई नवरुणा के मामले में उस समय दिलचस्प मोड़ आ गया जब केन्द्रीय जाँच एजेंसी सीबीआई ने मामले की जाँच के बिहार सरकार के अनुरोध को ठुकराते हुए केस से संबंधित कागजात वापस कर दिए। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अब इस मामले का होगा क्या? क्या इस मामले का भी हश्र वही होने जा रहा जो कभी जेसिका हत्याकांड का हुआ था कि नो वन हैव किल्ड जेसिका? अगर अपहरण हुआ तो लड़की गई कहाँ और अगर नहीं हुआ तो लड़की कहाँ है? जब तीन-चार घंटे में निर्भया के साथ दुष्कर्मी दरिंदगी की प्रत्येक हद को तोड़ सकते हैं तो अपहर्त्ताओं ने 12 साल के उस मासूम के साथ इतने दिनों में कितनी दरिंदगी की होगी यह सोंचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
नवरुणा अपहरण कांड न सिर्फ बिहार पुलिस,सीआईडी बल्कि पूरी बिहार सरकार की कार्यक्षमता पर लगा हुआ एक बहुत बड़ा प्रश्न-चिन्ह है। इस अपहरण कांड और उसके उद्भेदन में बिहार सरकार के तंत्र की विफलता से यह आशंका भी जन्म लेती है कि इसके पीछे कहीं-न-कहीं बहुत-ही प्रभावशाली लोगों का हाथ है। वे कदाचित मुजफ्फरपुर में पीढ़ियों से बसे बंगालियों को भगाकर उनकी बहुमूल्य जमीन पर कब्जा जमाना चाहते हैं। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि पिछले दिनों कई बंगालियों पर मुजफ्फरपुर में जानलेवा हमले हो चुके हैं। ये लोग इतने अधिक प्रभावशाली हैं कि शायद इनकी सीधी पहुँच न सिर्फ पटना बल्कि दिल्ली के सत्ता प्रतिष्ठानों तक भी है। संदेह तो यह भी उत्पन्न हो रहा है कि क्या सचमुच बिहार सरकार या पुलिस जाँच को लेकर गंभीर है या फिर जाँच का ढोंग मात्र कर रही है? सीबीआई ने हालाँकि जाँच से इन्कार करके बिहारवासियों व नवरुणा के परिजनों को निराश किया है तथापि उसको इसलिए कर्त्तव्यविमुखता के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कानून-व्यवस्था मूल रूप से राज्य का विषय होता है न कि केंद्र का। (हाजीपुर टाईम्स से साभार)

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