...तब तुम मेरे पास आना प्रिये, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा....
न जीने देने के लिए एक लाख बहाने होते हैं, और जीने के लिए कोई मौका नहीं। वो तो आप पर है, कैसे और किस तरह जीने के लिए वक्त चुरा पाते हैं। आज के भागमभाग, हायहाय, बाजीगरी, मोलतोल, गोलमोल....के दौर में कुछ भी साफ, सहज और सुंदर रह पाना कहां मुमकिन है। जो भव्य और सुंदर और सहज दिखाया व बताया जाता है, उसके गहरे पैठो, पता करो तो वो झूठ की नींव पर खड़ा, साजिश की नींव पर तैयार नजर आएगा। ऐसे में हम-आप कहां जाएं, जो बचपन से किताबों और बातों और जीवन में पढ़ते-सुनते-जीते आए हैं- सच्चाई, सहजता, सरलता और प्रकृति प्रदत्त सुंदरता को?
भई, जीना तो है ही, सो भड़ास जो भरी पड़ी है, उसे निकालना भी है। और, इसीलिए है यह ब्लाग भड़ास। जब दिल टूट जाए, दिमाग भन्ना जाए, आंखें शून्य में गड़ जाएं, हंसी खो जाए, सब व्यर्थ नज़र आए, दोस्त दगाबाज हो जाएं, बास शैतान समझ आए, शहर अजनबियों का मेला लगे .....तब तुम मेरे पास आना प्रिये, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा, तुम्हारे लिए।
भड़ास उन आम हिंदी मीडियाकर्मियों की आवाज है जो आनलाइन माध्यम से जुड़े हैं या आफलाइन, मसलन अखबार, टीवी और मैग्जीन आदि से संबद्ध हैं। ये उनकी भी आवाज है जो दिल में एक हिंदी मीडियाकर्मी बनने की हसरत रखे हैं लेकिन उन्हें अभी ठोकरें खानी पड़ रही हैं। ये उनकी भी आवाज है जो हिंदी वाले हैं, दिल वाले हैं लेकिन शहर के खेल-तमाशे में आकर खुद को तनहा पाते हैं। ऐसे सभी लोगों के दिल की धड़कन है भड़ास।
आप अगर उपरोक्त किसी श्रेणी में आते हैं तो आप भड़ास से जुड़ सकते हैं, सबसे उपर बनिए भड़ासी: नेह निमंत्रण लिंक को क्लिक करके। इसके बाद आप अपनी ई-मेल आईडी डालें फिर पासवर्ड लिखें, बस हो गए भड़ासी। फिर नई पोस्ट में अपनी बात हिंदी या इंगलिश में टाइप कर भड़ास पर प्रकाशित कर सकते हैं ताकि वो करोड़ों-अरबों हिंदी भाषियों और मीडियाकर्मियों तक पहुंचे।
हम सहज, सरल और बिंदास लोग हैं जो जिंदगी को पूरी गंभीरता के साथ-साथ पूरी सहजता व मस्ती के साथ जीते हैं। हर तरह की वैचारिक, भाषाई व जातीय-धार्मिक भेदभावों को भुलाकर हम सब सिर्फ हिंदीवाले हैं, दिलवाले हैं और हमेशा हिंदी का झंडा ऊंचा करेंगे।
ज़िंदगी के किसी मोड़ पर या किसी क्षण में भड़ास आपके काम आ जाए, आपका मनोबल बढ़ाए, आपके एहसास को सब तक पहुंचा पाए, यही इसका मकसद है।
और हां, याद रखिए, बहुत मुश्किल होता है भड़ास निकालना, खुलकर बोल देना, सब कुछ कह देना....और जो ऐसा करते हैं, वो दरअसल इस बुरे वक्त में अच्छे होने और अच्छा वक्त आने का भरोसा होते हैं।
तो फिर
बनिए भड़ासी
और कहिए
मेरे साथ
जय भड़ास
यशवंत सिंह
((आप अपनी भड़ास, राय, सवाल या सुझाव मुझे yashwantdelhi@gmail.com पर भेज सकते हैं))