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23.6.25

अमेरिका ने भारत में रह रहे अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की


अमेरिका ने साफ़ कहा है कि भारत और ख़ासकर छत्तीसगढ़ में महिलाएं अकेले यात्रा न करें। क्यों? क्योंकि बलात्कार, हिंसा और आतंकवाद बेकाबू हैं।

"बेटी बचाओ" सिर्फ़ नारे और पोस्टर तक सीमित रहा - केंद्र और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार की नाकामी ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर शर्मिंदा किया है।

आज गृह मंत्री अमित शाह छत्तीसगढ़ में होंगे - भाषण से परे समीक्षा करें क्योंकि महिला सुरक्षा, कानून व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा सब उनकी ज़िम्मेदारी है जिस कारण पूरे राष्ट्र और छत्तीसगढ़ पर ये गंभीर आरोप और सवालिया निशान उठें हैं।

मोदी जी का "विश्वगुरु" का दावा और "अमृतकाल" का ढोल दोनों खोखले हैं - और ये पोल मोदी जी के ही अभिन्न मित्र बार-बार खोल रहे हैं।

हालात जल्द से जल्द सुधारे नहीं गए तो मोदी राज के 'नए भारत' को howdy और hugs के बावजूद सिर्फ चेतावनी और अपमान मिलता रहेगा।

22.6.25

सुहागरात में पति ने गुटखा खाकर किया किस, पत्नी ने रॉड मारकर सिर फोड़ दिया


कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, जौनपुर बरेली, मैनपुरी और लखनऊ के गुटखा प्रेमी ध्यान दें ...

सुहागरात में पति ने गुटखा खाकर किस किया तो पत्नी ने रॉड से उसका सर फोड़ दिया।

बिहार की इस घटना ने सनसनी मचा दी है। दरअसल सोनू नामक युवक को रजनीगंधा खाने की बुरी लत थी और सुहागरात को वह वही खाकर बीवी को किस करने लगा। 

इसके बाद नाराज पत्नी ने पहले तो उसे दूर होने को कहा और जब पति ने उसकी बात नहीं मानी तो पत्नी ने पति का सर फोड़ दिया।

21.6.25

अहमदाबाद विमान दुर्घटना और सोशल मीडिया का घिनौना चेहरा

चैतन्य भट्ट-

अहमदाबाद में हुई दुर्घटना में एयर इंडिया विमान के टेकआफ के चंद लम्हों बाद ही रिहायशी इलाके में गिरने से अभी तक 241 यात्रियों और क्रू मेंबर समेत 270 लोगों की जानें जा चुकी हैं। कितने ही घायल गंभीर हैं और मृत्यु का आंकड़ा और बढ़ सकता है। तकनीकी कारणों से डीएनए सैंपल जीवित परिवारजनों से मिलाने के काम में विलंब हो रहा है। कितने ही पीड़ित परिवार अंतिम संस्कार के लिए प्रियजनों के शव मिलने का त्रासद इंतज़ार झेल रहे हैं।

देश इस घटना के दंश से उबर भी नहीं पाया कि आपदा को अवसर मानकर व्यूज, लाइक्स और फालोवर्स की तलाश में निर्ममता की हदें पार करने वाले सोशल मीडिया वीर सक्रिय हो गए हैं। दुर्घटना में कोमी व्यास उनके पति प्रतीक जोशी, जुड़वां बेटे प्रद्युत और नकुल, और बेटी मिराया भी दिवंगत हुए हैं। कोमी के भाई कुलदीप भट्ट ने बताया है कि सोशल मीडिया पर उनके दिवंगत परिवारजनों की छेड़छाड़ की गई तस्वीरें और फर्जी वीडियो अपलोड हो रहे हैं। कोमी की फ्लाइट में ली गई सेल्फी को एआई के उपयोग से नकली वीडियो में बदल कर वायरल किया गया है। उसके नाम और तस्वीरों का गलत इस्तेमाल कर फर्जी अकाउंट बनाए गए हैं। अभी तक डीएनए सैंपल का मिलान नहीं हुआ है मगर लोग एडिटेड वीडियो से बच्चों का अंतिम संस्कार होने का दावा कर रहे हैं। एक अन्य वीडियो में दिखाए जा रहे बच्चों के शव किसी अन्य दुर्घटना से संबंधित हैं। कुलदीप ने विनती की है कि सिर्फ व्यूज, लाइक्स और फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए झूठी खबरें और वीडियो फैलाकर उनके दुःखी परिवार को और अधिक मानसिक आघात न दें।

इससे सोशल मीडिया पर चल रहे उस पागलपन का घिनौना चेहरा फिर उजागर हो गया है जहां व्यूज, लाइक्स और फालोवर्स की लालच ने मानवीय संवेदनाओं का गला घोंट रखा है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के मौद्रीकरण के बाद नंबरों का यह खेल पैसा कमाने का साधन बन गया है। ये प्लेटफॉर्म अपलोडेड कंटेंट के बीच विज्ञापन दिखाकर भारी कमाई करते हैं जिसका एक छोटा हिस्सा अपलोड करने वाले को मिलता है। जितने अधिक व्यूज, लाइक्स, शेयर और फालोवर्स उतने अधिक पैसे। सस्ती इंटरनेट ने इस व्यवसाय को पंख लगा दिए हैं। जिसे देखो सुबह से फ्री डेली डाटा लिमिट का खून करने को उतारू दिखता है। माध्यम का उपयोग झूठी जानकारी फैलाने के लिए हो रहा है। आभासी दुनिया से यह लगाव वास्तविकता से दूर कर रहा है जिसके संभावित दुष्परिणाम सोच कर ही झुरझुरी छूटती है।

इस अंधी दौड़ का अंत निकट भविष्य में तो दूर तक दिखाई नहीं देता। तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद सोशल मीडिया की बादशाहत वाली गूगल , मेटा जैसी कंपनियां अपने डाटा सेंटर भारत लाने को तैयार नहीं हैं। पहले फ्री कंटेंट परोसने वाली इन कंपनियों को विज्ञापनों के बाजार से पैसा पीटने का खजाना मिल गया है। इनके हाथों में खेल रहे सोशल मीडिया वीर यह नहीं जानते कि उन्हें मुनाफे का छोटा सा हिस्सा देकर उनसे वह सब कराया जा रहा है जो अपराध और अनैतिकता की श्रेणी में आता है और जिसकी सारी जिम्मेदारी प्लेटफार्म नहीं बल्कि उनकी है। दिवंगत कोमी व्यास उनके पति और बच्चों की तस्वीरों के साथ की जा रही छेड़छाड़ इसकी ताजा बानगी है।

भारतीय न्याय संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत इन माध्यमों के दुरुपयोग रोकने संबंधी प्रावधान हैं। सोशल मीडिया पोस्ट से किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाले अपमानजनक या झूठे बयान देने पर 499, 500, धमकी पर 506 , निजी जानकारी के खुलासे पर 66ई और अश्लील सामग्री प्रकाशित करने पर 67 जैसी धाराएं लागू होती हैं। आपत्तिजनक पोस्ट के आधार पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर 295ए और समुदायों के बीच नफरत फैलाने पर 153ए जैसी अन्य धाराएं भी हैं। मगर इनमें उपलब्ध लूपहोल बच निकलने का रास्ता देते हैं। सरकारें इन प्रावधानों का उपयोग राजनीतिक गुणा भाग के आधार पर प्रचार और विरोध की आवाज दबाने के लिए करने पर ज्यादा तत्पर दिखाई देती हैं।

हर माध्यम के अपने गुण दोष हैं। पृकृति में भी शायद ही ऐसा कुछ है जिससे सदुपयोग और दुरुपयोग की संभावनाएं न जुड़ी हों। सांप का जहरीला विष दवा बनाने में भी प्रयुक्त होता है। सोशल मीडिया संवाद और संचार का बेहद उपयोगी माध्यम है। सनसनी फैलाने वाला कंटेंट पहले भी था मगर दिवंगत कोमी व्यास दंपति और उनके बच्चों की तस्वीरों से छेड़छाड़ कर परोसा गया झूठ बताता है कि मौद्रीकरण के बाद पैसे कमाने के लिए व्यूज लाइक्स शेयर सब्सक्राइब की अंधी दौड़ ने इसे अमानवीयता का कितना घिनौना चेहरा पहना दिया है।

सरकारों द्वारा प्रचार और राजनीतिक फायदे के लिए सोशल‌ मीडिया की ताकत पर निर्भरता किसी से छिपी नहीं है। कानून कड़ाई से लागू करने की राह में और भी कई तकनीकी समस्याएं हैं। इसलिए सरकारी स्तर पर कोई सख्त कार्रवाई मृगतृष्णा साबित हो सकती है। सहज और सरल उपाय यही है कि लोग अपने स्तर पर ही ऐसे दुष्प्रचार और गलतबयानी पर लगाम लगाएं। सनसनीखेज पोस्ट के प्रचार-प्रसार में सहयोगी न बनें। इसी मीडिया पर फैक्ट चैक के विकल्प उपलब्ध हैं उनका प्रयोग करें। याद रखें, किसी झूठी पोस्ट पर आपकी एक क्लिक गहन मानसिक अवसाद से गुजर रहे व्यक्ति या परिवार की पीड़ा और बढ़ा सकती है।

20.6.25

राजस्थान पत्रिका के स्टेट हेड अमित बाजपेयी का इस्तीफा

डीजीपी बनने की खबर को लेकर बवाल बताया जा रहा है कारण

जयपुर l राजस्थान पत्रिका के राजस्थान स्टेट हेड अमित बाजपेई ने इस्तीफा दे दिया है l बताया जा रहा है कि पिछले दिनों उन्होंने आईपीएस राजीव शर्मा के राजस्थान के नए डीजीपी बनने की संभावना वाली खबर दी थी l

इस खबर के बाद पत्रिका समूह में पिछले करीब 20 साल से सर्वशक्तिमान भुवनेश जैन ने सभी एडीशन को एक पत्र मेल किया था कि संभावना के आधार पर खबर देने से पत्रिका की छवि धूमिल हुई है इसलिए आगे से संभावना के आधार पर खबर नहीं दी जाये l

हालांकि बिल्कुल ऐसी ही खबर दैनिक भास्कर में भी प्रकाशित हुई थी और इसमे भी आईपीएस राजीव शर्मा के ही अगला डीजीपी बनने की संभावना जताई है l इसके बाद अमित बाजपेई का ट्रांसफर एमपी स्टेट हेड के तौर पर कर दिया गया तो बाजपेई ने जाने से इंकार करते हुए इस्तीफा दे दिया l हालाँकि कुछ लोग बाजपेयी के इस्तीफे को एमपी ट्रांसफर होने को ही असली कारण बता रहे हैंl बताया जाता है कि बाजपेयी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण राजस्थान से बाहर नहीं जा सकते l वही पत्रिका में कार्यरत और कुछ पत्रिका के पूर्व पत्रकारों का कहना है कि बाजपेयी को भुवनेश जैन से टकराव की कीमत चुकानी पडी है l पिछले 20 साल में जैन ने कभी किसी मेहनत करने वाले पत्रकारों को टिकने ही नहीं दिया l यह लोग बताते हैं कि पत्रिका में यदि कोई भुवनेश जैन का कृपापात्र है तो फिर कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता फिर चाहे वो कितना भी बड़ा कामचोर हो l जैन की मेहरबानी के कारण ही पत्रिका से कई साल पहले रिटायर हो चुके अनेक पत्रकार आज भी काम कर रहे है l

जयपुर में नियमित रूप से सचिवालय और पुलिस मुख्यालय की रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टर सहित सरकार में बैठे लोग भी राजीव शर्मा को ही डीजीपी बनने की संभावना बता रहे हैं l इसमें उनकी वरिष्ठता और कर्मठता सहित कुछ अन्य कारण भी बताये जा रहे हैं l (rs)

खामेनेई मॉडर्न हिटलर हैं- इसराइली रक्षा मंत्री


इसराइली रक्षा मंत्री इजराइल काट्ज ने कहा कि खामेनेई मॉडर्न हिटलर हैं। उनके जैसे तानाशाह को जीने का अधिकार नहीं है। उन्होंने हमेशा अपने एजेंटों के जरिए इजराइल को खत्म करना चाहा है।

ईरान ने आज सुबह इजराइल के चार शहरों तेल अवीव, बीर्शेबा, रमत गण और होलोन पर 30 मिसाइलें दागीं। इनमें 7 मिसाइलों को इजराइली डिफेंस सिस्टम रोकने में नाकामयाब रहा। इसमें 176 लोग घायल हुए हैं। 6 लोगों की हालत गंभीर है।

बीर्शेबा में एक अस्पताल सोरोका मेडिकल सेंटर पर मिसाइल गिरी। इजराइली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ईरान जानबूझकर इजराइली नागरिकों और अस्पतालों को निशाना बना रहा है। हम तेहरान में बैठे अत्याचारियों से इसकी पूरी कीमत वसूलेंगे

19.6.25

हिन्दी कविता के भूगोल को विस्तार देती हैं पार्वती तिर्की की कविताएँ 

  1. कविताओं के माध्यम से संवाद की कोशिश, सम्मान से आत्मविश्वास बढ़ा : पार्वती तिर्की
  2. कविता का भविष्य सिर्फ़ स्थापित नामों तक सीमित नहीं है : अशोक महेश्वरी

18 जून 2025 (बुधवार)

नई दिल्ली। हिन्दी कविता की युवतम पीढ़ी में पार्वती तिर्की का स्वर अलग से पहचाना जा सकता है। उनकी कविताओं में आदिवासी जीवन-दृष्टि, प्रकृति और सांस्कृतिक स्मृतियों का वह रूप सामने आता है, जो अब तक मुख्यधारा के साहित्य में बहुत कम दिखाई देता रहा है। झारखंड के कुडुख आदिवासी समुदाय से आनेवाली कवि पार्वती तिर्की को उनके कविता-संग्रह ‘फिर उगना’ के लिए साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार 2025 से सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई है। यह न केवल उनके रचनात्मक योगदान का सम्मान है, बल्कि हिन्दी कविता के निरन्तर समृद्ध होते हुए भूगोल और अनुभव संसार के विस्तार की स्वीकृति भी है।

कविताओं के माध्यम संवाद की कोशिश

इस अवसर पर पार्वती तिर्की ने कहा, मैंने कविताओं के माध्यम से संवाद की कोशिश की है। मुझे खुशी है कि इस संवाद का सम्मान हुआ है। संवाद के जरिए विविध जनसंस्कृतियों के मध्य तालमेल और विश्वास का रिश्ता बनता है। इसी संघर्ष के लिए लेखन है, इसका सम्मान हुआ है तो आत्मविश्वास बढ़ा है।

कविता के भीतर एक जीवंत दुनिया

‘फिर उगना’ पार्वती तिर्की की पहली काव्य-कृति है जो वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी। इस संग्रह की कविताएँ सरल, सच्ची और संवेदनशील भाषा में लिखी गई हैं, जो पाठक को सीधे संवाद की तरह महसूस होती हैं। वे जीवन की जटिलताओं को बहुत सहज ढंग से कहने में सक्षम हैं। इन कविताओं में धरती, पेड़, चिड़ियाँ, चाँद-सितारे और जंगल सिर्फ़ प्रतीक नहीं हैं—वे कविता के भीतर एक जीवंत दुनिया की तरह मौजूद हैं।

पार्वती तिर्की अपनी कविताओं में बिना किसी कृत्रिम सजावट के आदिवासी जीवन के अनुभवों को कविता का हिस्सा बनाती हैं। वे आधुनिक सभ्यता के दबाव और आदिवासी संस्कृति की जिजीविषा के बीच चल रहे तनाव को भी गहराई से रेखांकित करती हैं। उनका यह संग्रह एक नई भाषा, एक नई संवेदना और एक नए दृष्टिकोण की उपस्थिति दर्ज़ कराता है।

युवा प्रतिभा का सम्मान हमारे लिए गर्व की बात

इस उपलब्धि पर राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने कहा, पार्वती तिर्की का लेखन यह साबित करता है कि परम्परा और आधुनिकता एक साथ कविता में जी सकती हैं। उनकी कविताएँ बताती हैं कि आज हिन्दी कविता में नया क्या हो रहा है और कहाँ से हो रहा है। उनको साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया जाना इस बात की पुष्टि करता है कि कविता का भविष्य सिर्फ़ शहरों या स्थापित नामों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह वहाँ भी जन्म ले रही है जहाँ भाषा, प्रकृति और परम्परा का रिश्ता अब भी जीवित है। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि ऐसी युवा प्रतिभा की पहली कृति का प्रकाशन हमने किया है। 

उन्होंने कहा, पार्वती तिर्की वर्ष 2024 में राजकमल प्रकाशन के सहयात्रा उत्सव के अंतर्गत आयोजित होनेवाले ‘भविष्य के स्वर’ विचार-पर्व में वक्ता भी रह चुकी हैं। ऐसे स्वर को साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलना सुखद है। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर मैं उन्हें राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से हार्दिक बधाई देता हूँ। हम आशा करते हैं कि यह सम्मान नई पीढ़ी के लेखकों को प्रेरित करेगा और आने वाले समय में उनके जैसे नए स्वर साहित्य में और अधिक स्थान पाएंगे।

पार्वती तिर्की का परिचय

पार्वती तिर्की का जन्म 16 जनवरी 1994 को झारखंड के गुमला जिले में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, गुमला में हुई। इसके बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से हिन्दी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद वहीं के हिन्दी विभाग से ‘कुडुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष’ विषय पर पी-एच.डी. की डिग्री हासिल की।

पार्वती की विशेष अभिरुचि कविताओं और लोकगीतों में है। वे कहानियाँ भी लिखती हैं। उनकी रचनाएँ हिन्दी की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 2024 में वे राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित ‘भविष्य के स्वर’ कार्यक्रम की वक्ता रही हैं।

उनका पहला कविता-संग्रह ‘फिर उगना’ वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। इस संग्रह को हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में एक नई और ज़रूरी आवाज़ के रूप में देखा गया है।

वर्तमान में पार्वती तिर्की, राम लखन सिंह यादव कॉलेज (राँची विश्वविद्यालय), हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।


तो फिर डोनाल्ड ट्रंप को चुप क्यों नहीं कराते पीएम मोदी ?

चरण सिंह-

क्या पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फोन पर सीजफायर पाकिस्तान के अनुरोध पर करने की बात बोली है ? क्या ट्रंप से मोदी ने यह बोल दिया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी ने कोई मध्यस्थता नहीं की है ? यदि उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप से ऐसा कुछ बोल दिया है तो फिर ट्रंप इस मामले पर चुप क्यों नहीं हुए ? क्यों उन्होंने भारत पाकिस्तान का हवाला देकर इजरायल और ईरान के बीच सीजफायर कराने की बात कही। भारत और पाकिस्तान के बीच चले युद्ध के सीजफायर के बारे में डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को क्यों बताया ? यदि पीएम मोदी और हमारी सरकार सच बोल रही है तो फिर पीएम मोदी डोनाल्ड ट्रंप को झूठा करार क्यों नहीं देते ? 


केंद्र सरकार को यह समझना होगा कि डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के उस सेना प्रमुख असीम मुनीर को लंच कराया है जिस पर खुद पाकिस्तान के लोगों ने पहलगाम आतंकी हमला कराने का आरोप लगाया था। केंद्र सरकार ने ऐसे समय पाकिस्तान के साथ सीजफायर क्यों किया जब पाकिस्तान की जनता मुनीर के खिलाफ बगावत पर उतारू थी। बीएलए अलग से मोर्चा ले था। उधर अफगानिस्तान भी तैयार बैठा था। भारत पाकिस्तान के खिलाफ एकजुट था। पीएम मोदी आखिर देश को यह तो बताएं की आखिर सीजफायर की मज़बूरी क्या थी ? क्यों डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं ?


क्या डोनाल्ड ट्रंप जानबूझकर भारत को अपमानित नहीं कर रहे हैं ? क्या पाकिस्तान से युद्ध के समय पीएम मोदी की कूटनीति विफल साबित नहीं हुई है ? यदि ऐसा नहीं है तो डोनाल्ड ट्रंप क्यों कहते घूम रहे हैं कि सीजफायर उन्होंने ही कराया है। एक बार मान भी लिया जाए कि सीजफायर डोनाल्ड ट्रंप ने नहीं कराया है तो फिर पीएम मोदी डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ खुलकर क्यों नहीं बोलते ? या फिर पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर फिर से हमला किया जाए और ट्रंप को सीधा चैलेंज दिया जाए अब सीजफायर करके दिखाएं। 


 ऑपरेशन सिंदूर सेना के पराक्रम को भुनाने में लगे पीएम मोदी देश को बताएं कि क्या हाफिज सईद, मसूद अजहर जैसे आतंकी मार गिराए गए हैं ? क्या पहलगाम हमले के आतंकी मार दिए हैं ? असीम मुनीर को क्या सजा दी गई जिस पर पहलगाम आतंकी हमला कराने की बात सामने आ रही है। मोदी को इस बात की भी सफाई देनी चाहिए कि उनके स्वघोषित मित्र डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान और भारत टकराव के बीच मुनीर को लंच कैसे करा दिया ? 

कहना गलत न होगा कि यह युद्ध पाकिस्तान के लिए नुकसानदायक नहीं बल्कि फायदेमंद साबित हुआ है । पाकिस्तान को न तो आतंकी देश घोषित किया जा सका और न ही पहलगाम आतंकी हमले पर उसे घेरा जा सका। उलटे दुनिया में पाकिस्तान के पूछ और बढ़ गई। अमेरिका चीन के साथ ही रूस भी पाकिस्तान से कारोबार बढ़ा रहा है। 

इसे भारत की विडंबना ही कहेंगे कि हमारे पीएम मोदी डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा लगा आये थे। 100 करोड़ का नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम करा दिया था पर ट्रंप हैं कि उन्हें पाकिस्तान से दोस्ती करना फायदेमंद साबित हो रहा है। पाकिस्तान ओर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की फजीहत हो रही है। 

भले ही केंद्र सरकार ने सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल दुनिया में भेजा हो पर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरा न जा सका। यहां तक कि पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भी जगह बना ली। 11 साल से मोदी दुनिया में घूम रहे हैं। स्वागत करा रहे हैं पुरस्कार ले रहे हैं पर पाकिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर माहौल नहीं बना पाए।

तो क्या केवल घोटाले के लिए ही है जीएमओयू?

मनु मनस्वी

पौड़ी। गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन को इसके कर्मचारियों ने ही सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ लिया है। मृत कर्मचारियों को जीवित दिखाकर फर्जी हस्ताक्षर कर न केवल खातों से रकम निकाल ली गई, बल्कि कंपनी के पेट्रोल पंप बिलिंग, कंप्यूटर मरम्मत, फर्नीचर मेंटेनेंस, बिजली खर्च तक में घोटाला कउ डाली, जो कि लगभग ढाई करोड़ का है।

पुलिस ने इस मामले में महिला कर्मचारी और पूर्व अध्यक्ष समेत 9 कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया है और अभी कई और नाम सामने आ सकते हैं।

गढ़वाल मोटर ऑनर्स यूनियन लिमिटेड में फर्जी कागज बनाकर करोड़ों का घोटाला करने के आरोप में कोटद्वार पुलिस ने कंपनी के पूर्व अध्यक्ष जीत सिंह पटवाल, पूर्व जनरल मैनेजर उषा सजवाण समेत 9 कर्मचारियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। सभी आरोपियों ने षड़यंत्र कर फर्जी बिल तैयार कर कंपनी को 2.50 करोड़ का चूना लगा डाला। 

गौरतलब है कि मोटर मालिक कोटद्वार में लंबे समय से कंपनी के पूर्व अध्यक्ष समेत कई कर्मचारियों पर घोटाले के आरोप लगा रहे थे। इसके लिए मोटर मालिकों ने जीएमओयू बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया तथा कंपनी के आय-व्यय की जांच की, जिसमें ढाई करोड़ के घोटाले का खुलासा हुआ। समिति की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही कंपनी के पूर्व अध्यक्ष और जनरल मैनेजर के खिलाफ कोटद्वार थाने में तहरीर दी गई थी, जिस पर पुलिस ने बीती 18 जून को कंपनी के पूर्व अध्यक्ष जीत सिंह पटवाल, पूर्व जनरल मैनेजर उषा सजवाण, सहायक लेखाधिकारी मंजीत नेगी, अश्वनी रावत, कैशियर राकेश बुड़ाकोटी, लेखा लिपिक राकेश मोहन त्यागी, ट्रैफिक लिपिक वीरेंद्र खंतवाल, मुकेश चौधरी और रिकॉर्ड लिपिक अशोक कुमार के खिलाफ कई धाराओं मे मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया।

अपर पुलिस अधीक्षक चंद्रमोहन सिंह ने बताया कि जांच में फर्जी बिल और दस्तावेज बनाकर करोड़ों का घोटाला पाया गया है। जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि आरोपियों ने कंपनी के पेट्रोल पंप बिलिंग, कंप्यूटर मरम्मत, फर्नीचर मेंटेनेंस, बिजली खर्च और मृत कर्मियों को जीवित दिखाकर उनके फर्जी हस्ताक्षर कर कंपनी खातों से रकम निकाल ली। पकड़े गए सभी आरोपियों के बैंक खातों और प्रॉपर्टी की भी जांच की जाएगी।

संविधान की रक्षा में न्यायपालिका कहां कर रहा है चूक ?

संजय सक्सेना, वरिष्ठ पत्रकार

skslko28@gmail.com

9454105568, 8299050585


विविधताओं से भरे भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में न्यायपालिका को संविधान का सबसे बड़ा रक्षक माना जाता है। यह न केवल कानून की व्याख्या करती है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा भी करती है,लेकिन क्या ऐसा करते समय न्यायपालिका से कहीं न कहीं चूक हो जाती है ? या फिर जानबूझ कर अथवा अंजाने में कुछ न्यायविद किसी मुकदमे में फैसला सुनाते समय व्यक्तिगत हो जाते हैं,जिसको लेकर विरोधाभास भी हो जाता है। जबकि राष्ट्रहित और आतंकवादी घटनाओं से जुड़े मामलों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप कई बार विवादों को जन्म देता है। नया कृषि कानून, वक्फ बोर्ड संशोधन कानून में सुप्रीम कोर्ट की अति सक्रियता इसकी बड़ी मिसाल हैं। यह हस्तक्षेप कब रक्षक की भूमिका निभाता है और कब खतरनाक साबित हो सकता है, इसको लेकर अक्सर विवाद बना रहता है। आतंकवादियों को सजा सुनाने में देरी का मामला हो या फिर देश विरोधी ताकतों को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर खुली छूट को कानूनी संरक्षण देना इसी श्रेणी में आता है। संसद द्वारा बनाये गये कानून को बेवजह लटका देना भी न्यायपालिका के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बना रहता है। 

यहां सेना के एक पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल देवेंद्र प्रताप पांडे के बयान का जिक्र करना जरूरी है,जो 22 अप्रैल को पहलगाम में 27 हिन्दुओं की आतंकवादियों द्वारा की गई सामूहिक हत्या के बाद सामने आया था। पांडे ने तब कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को पहलगाम जाना चाहिए, ताकि वे आतंकी हमले की वास्तविकता को समझ सकें. पांडे ने एक न्यूज एजेंसी को दिये इंटरव्यू में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में हस्तक्षेप किया, जिसके चलते सरकार और सेना के फैसलों में देरी हुई. उनके मुताबिक, जजों ने आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए, जो इस हमले का एक कारण बने. पांडे ने कहा कि जजों को पहलगाम जाकर स्थानीय हालात, आतंकवाद का असर और सुरक्षाबलों की चुनौतियों को अपनी आंखों से देखना चाहिए. उन्होंने जोर दिया कि कोर्ट को केवल कानूनी नजरिए से नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत को समझकर फैसले लेने चाहिए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में सरकार और सेना को स्वतंत्र रूप से काम करने दे.


गौरतलब हो,राष्ट्रहित एक व्यापक अवधारणा है, जिसमें देश की सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता, सामाजिक समरसता और संप्रभुता शामिल हैं। आतंकवाद, जो वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर चुनौती है, राष्ट्रहित को सीधे प्रभावित करता है। आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिए सरकारें कठोर कानून बनाती हैं, जैसे यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां निवारण अधिनियम) या एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम)। इन कानूनों का उद्देश्य त्वरित कार्रवाई और अपराधियों को दंडित करना होता है, लेकिन कई बार ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का माध्यम भी बन जाते हैं। यहीं से न्यायपालिका की भूमिका शुरू होती है, जो सरकार की कार्रवाइयों की संवैधानिकता की जांच करती है।


आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर न्यायपालिका का अति-हस्तक्षेप कई बार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है। आतंकवादी गतिविधियां तेजी से बदलती है, और इनसे निपटने के लिए जांच एजेंसियों को त्वरित निर्णय लेने की स्वतंत्रता चाहिए। कई बार न्यायालयों के बार-बार के हस्तक्षेप से जांच प्रक्रिया बाधित होती है। उदाहरण के लिए, कुछ हाई-प्रोफाइल आतंकवादी मामलों में संदिग्धों को जमानत देना या सबूतों की स्वीकार्यता पर लंबी सुनवाई करना जांच को कमजोर कर सकता है। 2008 के मुंबई हमलों के बाद अजमल कसाब के मामले में न्यायिक प्रक्रिया को पूरा करने में वर्षों लग गए, जिससे कई सवाल उठे कि क्या ऐसी प्रक्रियाएं आतंकवाद से लड़ने में बाधा बनती हैं।


न्यायपालिका के हस्तक्षेप का एक और खतरनाक पहलू तब सामने आता है, जब यह कार्यपालिका के क्षेत्र में अतिक्रमण करती है। राष्ट्रहित से जुड़े मामलों, जैसे सीमा सुरक्षा या आतंकवाद-रोधी नीतियों में, कार्यपालिका को त्वरित और गोपनीय निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। यदि न्यायालय इन निर्णयों की बार-बार समीक्षा करने लगे, तो यह सरकार की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ मामलों में यूएपीए के तहत गिरफ्तार व्यक्तियों को जमानत देने के निर्णय ने जांच एजेंसियों के मनोबल को कम किया। इससे यह धारणा बनी कि न्यायपालिका आतंकवाद के प्रति नरम रुख अपना रही है, जो जनता के बीच अविश्वास पैदा कर सकता है।


दूसरी ओर, न्यायपालिका का यह तर्क है कि वह केवल संविधान की रक्षा कर रही है। आतंकवाद से लड़ने के नाम पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं हो सकता। कई बार जांच एजेंसियां जल्दबाजी में या राजनीतिक दबाव में बिना पर्याप्त सबूत के लोगों को हिरासत में ले लेती हैं। ऐसे में न्यायालय का हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है। उदाहरण के लिए, हाल के कुछ मामलों में पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्रों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया, लेकिन न्यायालय ने पाया कि उनके खिलाफ ठोस सबूत नहीं थे। इन मामलों में न्यायपालिका ने न केवल व्यक्तियों की स्वतंत्रता बहाल की, बल्कि सरकार को यह संदेश भी दिया कि कानून का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।


इस द्वंद्व का एक और आयाम है जनता का विश्वास। आतंकवादी घटनाओं के बाद जनता त्वरित न्याय की अपेक्षा करती है। यदि न्यायपालिका बार-बार संदिग्धों को जमानत देती है या जांच प्रक्रिया में देरी होती है, तो यह जनता के बीच यह धारणा बना सकता है कि न्याय व्यवस्था कमजोर है। दूसरी ओर, यदि न्यायपालिका बिना पूरी जांच के कठोर सजा दे, तो यह निर्दाेष लोगों के साथ अन्याय कर सकता है, जिससे समाज में असंतोष बढ़ेगा। दोनों ही स्थितियां लोकतंत्र के लिए हानिकारक हैं।


बहरहाल, इस समस्या का समाधान तभी संभव है, जब न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच बेहतर समन्वय हो। आतंकवाद से निपटने के लिए कानून बनाते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि वे संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन न करें। जांच एजंसियों को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाना होगा, ताकि उनके कार्यवाही पर सवाल न उठें। साथ ही, न्यायपालिका को यह समझना होगा कि राष्ट्रहित और आतंकवाद जैसे मामलों में उसका हस्तक्षेप संतुलित होना चाहिए। अति-हस्तक्षेप से न केवल जांच प्रक्रिया बाधित होती है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा भी बन सकता है।


वैसे सिक्के का दूसरा पहलू भी है। न्यायपालिका का हस्तक्षेप कई मामलों में राष्ट्रहित की रक्षा करता है। जब सरकार या जांच एजेंसियां बिना ठोस सबूत के किसी व्यक्ति को आतंकवादी गतिविधियों के लिए हिरासत में लेती हैं, तो न्यायालय उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करता है। 1990 के दशक में टाडा (आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां निवारण अधिनियम) के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए, जहां निर्दाेष लोग लंबे समय तक जेल में रहे। सर्वाेच्च न्यायालय ने कई ऐसे मामलों में हस्तक्षेप कर न केवल निर्दाेषों को रिहा किया, बल्कि सरकार को कड़े कानूनों के दुरुपयोग पर चेतावनी भी दी। यह हस्तक्षेप लोकतंत्र की रक्षा करता है, क्योंकि बिना सबूत के हिरासत नागरिकों के विश्वास को कमजोर करती है।


कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रहित और आतंकवादी घटनाओं से जुड़े मामलों में न्यायपालिका की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपने हस्तक्षेप में कितना संतुलन बनाए रखती है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि न्यायपालिका को राष्ट्रहित के किसी मामले में संतुलन, संवैधानिक मूल्यों की रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच सामंजस्य स्थापित करना होगा, ताकि लोकतंत्र और देश की सुरक्षा दोनों बनी रहें।

16.6.25

तो पाकिस्तान के आग्रह पर सीजफायर क्यों कर लिया जयशंकर जी?

चरण सिंह- 

सीजफायर की जानकारी देश को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिली। ट्रंप ने सीजफायर की घोषणा करते हुए यह भी कहा कि उन्होंने व्यापार रोकने की चेतावनी देकर सीजफायर कराया। उसके बाद ट्रंप लगातार सीजफायर का श्रेय ले रहे हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर लगातार कह रहे हैं कि सीजफायर पाकिस्तान और भारत दोनों देशों की सहमति से होने की बात कर रहे हैं। किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को नकार रहे हैं। 

अब फिर जब अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु बम छोड़ देने की बात करते हुए सीजफायर कराने की बात की तो फिर से एस जयशंकर अमेरिकी दावों का खंडन करते हुए कह दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल का संघर्ष विराम दोनों देशों की सीधी बातचीत का नतीजा था न कि किसी तीसरे पक्ष, जैसे अमेरिका की मध्यस्थता का। 

उन्होंने डच प्रसारक एनओएस को दिए साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि पाकिस्तान ने 10 मई को हॉटलाइन के जरिए गोलीबारी बंद करने की इच्छा जताई, जिसके जवाब में भारत ने सहमति दी। जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख रखता है और पाकिस्तान को आतंकवाद पर रोक लगानी होगी।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि एस जयशंकर की बात सही मान भी ली जाए तो फिर इतनी आसानी से सीजफायर क्यों कर लिया गया ? क्या पहलगाम हमले के आतंकी गिरफ्तार कर लिए गए हैं ? क्या पीओके पर कब्ज़ा कर लिया गया है ? क्या बलूचिस्तान को अलग देश बना दिया गया है ?क्या पाकिस्तान स्थित सभी आतंकी शिविर तबाह कर दिए गए हैं ? यदि इनमें से कुछ नहीं हुआ तो फिर सीजफायर किस बात का ?

यदि अमेरिका ने सीज फायर नहीं कराया तो फिर पाकिस्तान या भारत में से किसी देश सीजफायर की घोषणा क्यों नहीं की ? यदि किसी देश ने मध्यस्थता नहीं की तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सीजफायर का पता कैसे चला ? कैसे उन्होंने सीजफायर की घोषणा की ?   प्रधानमंत्री मोदी उनकी बयानबाजी पर चुप क्यों हैं ? 

प्रधानमंत्री के तो ट्रंप सबसे अधिक घनिष्ठ मित्र हैं। प्रधानमंत्री तो उनका  चुनाव प्रचार करने गए थे। अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा लगाकर आये थे। अपने मित्र के स्वागत में अहमदाबाद में 100 करोड़ का नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम कराया। इन सबके बावजूद वह भारत के पीछे पड़े हैं। प्रधानमंत्री सिंदूर उजाड़ने वाले का मरना तय बता रहे हैं पर अभी तक पहलगाम हमले के आतंकी मारे नहीं गए हैं। थोड़ा बहुत 1965 और 1971 के युद्ध को भी याद कर लें जयशंकर जी। 

दैनिक जागरण कानपुर में कार्यरत पत्रकार रितेश द्विवेदी को अनमोल रत्न सम्मान

 


दैनिक जागरण कानपुर संस्करण में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार रितेश द्विवेदी को संस्थान की तरफ से 'अनमोल रत्न' सम्मान से नवाजा गया है।

बीते दिनों कानपुर के नौबस्ता स्थित गल्ला मंडी में लगी आग की बेहतरीन कवरेज करने के लिए रितेश द्विवेदी को यह सम्मान प्रदान किया गया है। संपादकीय प्रभारी जितेंद्र शुक्ला के हाथों रितेश को यह पुरस्कार दिया गया।

रितेश द्विवेदी ने अपने फेसबुक में इसकी जानकारी साझा करते हुए लिखा है आज का दिन बहुत सुखद रहा। लगभग दो साल के लंबे इंतजार के बाद एक बार फिर  दैनिक जागरण मुख्यालय कानपुर यूनिट में पहला सम्मान मिला, यह क्षण गौरवपूर्ण हैं। कलक्टर गंज गल्ला मंडी में हुए अग्निकांड में बेहतर रिपोर्टिंग के लिए "अनमोल रतन" अवॉर्ड दिया गया। 


इस सम्मान के लिए आदरणीय संपादकीय प्रभारी श्री जितेंद्र शुक्ल जी, आउटपुट हेड श्री दिवाकर मिश्र जी, सिटी प्रभारी श्री गौरव दीक्षित जी और एडिटोरियल टीम के सभी साथियों का बहुत बहुत आभार। आप सभी का प्यार और आशीर्वाद बना रहे। आभार दैनिक जागरण।

15.6.25

उत्तर प्रदेश में जेल अधीक्षकों और जेलरों के तबादले- देखें लिस्ट


जेल अधीक्षकों के तबादले:

- आरके जायसवाल - जिला जेल लखनऊ के वरिष्ठ जेल अधीक्षक

- कोमल मंगलानी - बुलंदशहर जेल के अधीक्षक

- शशांक पांडेय - मैनपुरी जेल के अधीक्षक

अन्य जिलों में भी जेल अधीक्षकों के तबादले:

- बुलंदशहर

- बस्ती

- एटा

- रायबरेली

- रामपुर

- चित्रकूट

- फिरोजाबाद

जेलरों के तबादले:

- संतोष वर्मा - सेंट्रल जेल आगरा

- हरवंश पांडेय - मेरठ

- विकास कटियार - गाजियाबाद

- अंजनी गुप्ता - झाँसी

- सुरेंद्र मोहन सिंह - मथुरा

- उन्नाव, मथुरा, मेरठ, खीरी समेत 22 जेलरों का तबादला

14.6.25

चित्रा त्रिपाठी ने अब क्या कर दिया जो लोग खरी-खोटी सुना रहे हैं!


एबीपी न्यूज की वाइस प्रेजिडेंट और सीनियर एंकर चित्रा त्रिपाठी को सोशल मीडिया पर लोग भला बुरा बक रहे हैं। लोग कह रहे हैं चित्रा यह शर्मनाक है। 

दरअसल, चित्रा त्रिपाठी ने एक्स पर की गई एक पोस्ट में एयर इंडिया का आभार जताया है। बस यही लोगों को नागवार गुजर गया। 

अमॉक नामक यूजर ने एक्स पर लिखा है- चित्रा शर्म करो। दो दिन भी नहीं बीते देश 200 से ज्यादा लोगों के मारे जाने का गम भी नहीं भूला है और तुम एयर इंडिया की तारीफ कर रही हो। 

बता दें कि गुजरात के अहमदाबाद में एयर इंडिया का विमान क्रैश हो गया था, जिसमें सैकड़ों की तादाद में लोग मारे गए हैं। 



धर्मशास्त्रों की व्याख्या करने का अधिकार न्यायालय को नहीं - शंकराचार्य स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानंद

एडवोकेट रीना एन सिंह के इंप्लीडमेंट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था पुराणों को काल्पनिक

नई दिल्ली। भगवान श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा विवाद मामला इस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ में चल रहा है इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट श्रीमती रीना एन सिंह ने राधा रानी को पार्टी बनाने के लिए एक इंप्लीमेंट प्रार्थना पत्र न्यायालय के समक्ष लगाया था। सुनवाई कर रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने आवेदन यह कह कर खारिज कर दिया कि पुराण को कानूनी साक्ष्य नहीं माना जा सकता यह सुनी सुनाई बातों पर आधारित है इसी बात को लेकर देश भर के संत समाज में नाराजगी का माहौल है। इसी मामले पर परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज' 1008' ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश द्वारा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में श्रीकृष्ण व राधाजी को काल्पनिक बताए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि श्रीकृष्ण व राधाजी को काल्पनिक कहना न्यायाधीश महोदय की धार्मिक रीतियों के बारे में अज्ञानता को दर्शाता है।उन्होंने कहा कि हो सकता है न्यायाधीश महोदय को ध्यान में न हो कि भारत में धार्मिक गतिविधियां किस प्रकार अपना कार्य करती हैं। उनको इस बात का तो कम से कम ध्यान रखना चाहिए था कि 9 नवंबर 2019 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीरामजन्मभूमि का फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि में निर्णय सुनाते समय पक्षकार कौन था। किसके पक्ष में फैसला सुनाया गया। उन्होंने बताया कि रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया गया।त्रिलोकीनाथ के साथ रामलला विराजमान के पक्ष में मुकदमे का फैसला उच्चतम न्यायालय ने सुनाया और फैसला रामलला विराजमान को न्यायिक व्यक्ति मानकर किया गया। उन्होंने कहा कि इस फैसले के पीछे आधार स्कंध पुराण व अन्य दूसरे हिंदू धार्मिक ग्रंथ हैं अगर इसका भी ध्यान इलाहाबाद के संबद्ध न्यायाधीश महोदय ने रखा होता तो वह इस तरह से अपनी बात नहीं कहते।

उन्होंने कहा कि कम से कम उनको इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि ईसवी सन 1980 में सुप्रीम कोर्ट ने श्री कृष्ण सिंह बनाम मथुरा अहीर के मामले में यह बात स्पष्ट रूप से निरुपित करते हुए कहा है कि जब भी न्यायाधीश निर्णय देंगे तो हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों के आधार पर हिन्दुओं के धार्मिक मामलों में उनको निर्णय देना होगा न कि अपनी आधुनिक सोच के अनुसार। उन्होंने कहा, भारत में यह स्थापित विधि व्यवस्था है, सर्वमान्य विधि व्यवस्था है कि हिन्दुओं के मामले में कोई धार्मिक निर्णय देना होगा तो वह हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों के आधार पर निर्णय देना होगा और अपने देश में यह भी स्थापित सुसंगत और सर्वमान्य विधि व्यवस्था विधि है कि हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों की समीक्षा करने का अधिकार न्यायालयों को नहीं है। ऐसी स्थिति में हम समझते हैं कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा यह जो निर्णय दिया गया है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण व राधा को काल्पनिक कहा गया है। यह उनके द्वारा जो पूर्ववर्ती विधि-व्यवस्था स्थापित की गई है उसकी अज्ञानता के कारण दिया गया फैसला हम मानते हैं। न्यायाधीश को हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों के मामले में कुछ भी कहने के पहले उनके ही न्यायालयों द्वारा स्थापित जो विधि व्यवस्थाएं हैं उनका अध्ययन करना चाहिए और इस तरह से हम सनातनीधर्मी हिन्दुओं के बारे में हमारे पूर्व इतिहास को हमारी धार्मिक मान्यताओं को कल्पना कहकर के सौ करोड़ से ज्यादा सनातनीधर्मियों की भावना को आहत करने से बचना चाहिए। प्रार्थना पत्र के संदर्भ में रीना एन सिंह ने कई पुराणों का जिक्र किया था इसके अलावा

राधा रानी से कृष्ण लला की पहचान है

हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथ पदम् स्कंध ,नारद, ब्रह्मांड, ब्रह्म वैवर्त, मत्स्य, शिव पुराण के साथ-साथ देवी भागवतम में श्री कृष्ण लला संग राधा रानी के वैदिक विवाह एवं आत्मिक प्रेम का जिक्र मिलता है। रीना एन सिंह ने अदालत में इसका साक्ष्य भी प्रस्तुत किया था कि भगवान श्री कृष्ण लाल का विवाह राधा रानी संग ब्रह्मा जी ने कराया था।

रीना एन सिंह ने इस मामले में अपील करने की बात कही है।

13.6.25

शादी बस एक बोल्ड चॉइस बनकर रह जाएगी

निशांत-  

बीस पच्चीस साल पहले तक प्रेम में पवित्रता थी। इतनी कि अक्सर मैगज़ीन अखबार में मासूम लोगों के पूछे सवाल छपते थे - क्या चूमने से प्रेगनेंसी हो जाती है। लेकिन ये वही दौर था जब "शादी से पहले कुछ नहीं" वाली मासूमियत अपना दम तोड़ने के करीब जा रही थी।

ये वही दौर था जब प्रेम में विरह का मतलब प्रेमी समझ पाते थे। तब बेटियों की शादियां मां बाप ज़िद में जब करा देते तब एक साथ तीन लोगों को दुःख मिलता या चार को भी। बेटी को, उसके पति को, और जो पति न बन सका उसे। और जो पति न बन सका उसकी पत्नी को।

तब लड़कियां बस अपने संस्कारों और परिवार के सम्मान के नाम पर अपने प्रेम का गला घोंट देती थीं। उनके प्रेमी भी उनके और अपने सम्मान में अपने प्रेम का गला घोंट देते।

लेकिन अब ऐसी परिस्थितियों में प्रेम का नहीं, पति का गला घोंटा जा रहा है। ऐसा क्यों?

ऐसा शायद इसलिए क्योंकि तब प्रेम में पवित्रता थी। वो पवित्रता ही थी जो लड़कियों को "बुज़दिल" बनाता था और लड़कों को "नाकाम बर्बाद आशिक" उन्हें कमज़ोर माना जाने लगा। प्रेम में दिलेरी की प्रासंगिकता हमेशा ऐसे किसी नाकाम रिश्ते में सामने आती।

और दिलेरी तब दिखती जब लड़की अपना "सब कुछ" किसी लड़के को दे चुकी होती। क्योंकि तब, लड़की ऐसा तब ही करती जब वो एकदम श्योर होती किसी लड़के के बारे में। और अगर ऐसा कुछ करती, तो फिर अपने प्रेम के लिए आवाज़ उठाती। वो आवाज़ लेकिन बगावत की नहीं होती। वो समझदारी और ईमानदारी की होती। समझदारी और ईमानदारी इस बात की, कि जिससे शादी होगी उसके साथ धोखा नहीं करना है। और जिसके इतने नज़दीक जा चुके हैं, उससे इतनी आसानी से कैसे इतने दूर हो सकते हैं।

लेकिन तब उसी दौर में वेस्टर्न इंफ्लूएंस हम पर बढ़ने लगा क्योंकि केबल टीवी आ गया था, इंटरनेट आ गया था, दुनियाभर की बातें पता चलने लगीं। वेस्टर्न समाज कितना खुला है, ये दिखने लगा। अपने आप को कमतर या कहीं पीछे छूटा हम मानने लगे। इसका असर प्रेम संबंधों पर भी पड़ने लगा।

अब क्योंकि हैं हम संस्कारों वाले समाज से, लेकिन इंफ्लूएंस हो रहे हैं वेस्ट से, तो हमारी समझ और समझदारी का विकास बेतरतीब होने लगा।

संस्कारी लड़कों पर वेस्ट के लड़कों को देख कर अपनी प्रेमिकाओं से अपेक्षाएं बढ़ने लगीं। उन्हें अब प्रेमिका के शरीर के लिए शादी का इंतज़ार करना आउटडेटेड और बेवजह लगने लगा। और संस्कारी लड़कियों में अब "शादी से पहले कुछ नहीं" वाली मासूमियत कहीं सरकने लगी। अब इस सब के बाद उनके मन में आता, "इतना भी क्या हो गया अगर कुछ कर लिया तो" या फिर "अरे उसके साथ रिलेशन में है तो ठीक है न" और या फिर "हम अब बालिग हैं। कंसेंट से कर रहे हैं। समझदार हैं। अपने फैसले ले सकते हैं।"

अब प्रेम में दिलेरी ये नहीं थी कि आप अपने प्रेम और प्रेमी के लिए अपने मां बाप के आगे कुछ साबित करें। अब दिलेरी ये थी कि मां बाप को ख़बर न लगे और प्रेमी/प्रेमिका के साथ शादी से पहले सब कुछ कर लें, बार बार कर लें, जब मौका मिले तब कर लें। 

क्योंकि अब, प्रेम में सब करना नॉर्मल होने लगा था। अब संस्कारों और मूल्यों पर वेस्ट का ज्ञान भारी जो होने लगा था। अब "प्रेम है इसलिए किया" का तर्क अपने आप को सही महसूस कराने के लिए दिया जाने लगा। फिर एक कदम और आगे बढ़ के "सेक्स को शादी जोड़ कर क्या देखना" वाले विचार उपजने लगे। फिर बात होने लगी "शादी का आधार तो दोस्ती है।"

अब धीरे धीरे शादी से पहले सेक्स नॉर्मल होने लगा और ऐसे लोग जब शादी करने चले तो उन्हें शादी के बाद कुछ नया मिला ही नहीं। वही दोस्ती मिली जो बिना शादी के भी चल सकती थी। और सेक्स तो पहले ही कर लिया था। अब बस दोस्त के साथ सेक्स कर रहे हैं....जो कि सोचने चलो तो बड़ा अजीब विचार है।

अब नया करें भी तो क्या? घूम फिर लिया, मौज हो गई शुरुआती एक्साइटमेंट वाली, घर की थोड़ी बहुत ज़िम्मेदारी निभा ली, लेकिन रिश्ते में नया क्या है? 

दोस्ती में ज़िम्मेदारी कहां से आ गई? और क्यों लें हम ज़िम्मेदारी? आखिर दोस्ती है। तुम अपना काम करो हम अपना करें। मौज मस्ती कर लेंगे जब मौका मिला तब। सही ही सोच है। दोस्त से हम ऐसी अपेक्षाएं तो पालते नहीं। और दोस्त का काम हमें नीतिगत जीवन जीना सिखाना तो है नहीं। उसका काम है हमारे सही गलत में साथ दिखना। तो वो भला क्यों आपको रोकेगा टोकेगा। जो करना है करो। लेकिन शादी तो बंधन होता है। उसमें आज़ादी की उम्मीद? और जहां आज़ादी और कोई ख़ास जवाबदेही नहीं, वहां शादी बचती ही नहीं, बस उसका आभास दिखाया जाता है। क्योंकि अब न निगला जा रहा है न उगला जा रहा है।

ऐसा इसलिए क्योंकि इंसान अपनी फितरत से कहां पलटने वाला। रिश्ता अपने रंग दिखाता ही है। मर्द जब एक दिन अचानक दोस्त से पति की अपेक्षा करती है और मर्द दोस्त से पत्नी बनने की अपेक्षा करता है तो दोस्त को ये अजीब लगता है। क्योंकि शादी का आधार कभी दोस्ती से इतर कुछ ख़ास रहा नहीं। दोस्ताना और दोस्त का फ़र्क़ कभी समझा ही नहीं न समझना चाहा।

तो अब दोनों दोस्तों को ये नया कुछ बर्दाश्त नहीं होना शुरू हुआ। अब ऐसे में शादियों में खटास और दूरियां बढ़ने लगीं और बहुत से मामलों में अलगाव तक होने लगे।

अब इसके ठीक उलट वो लोग जिन्होंने सेक्स को शादी के बाद के लिए रखा था। उन्हें, आइडियल हालात में मोस्टली, दोस्ताना पति या पत्नी मिले। जिनके साथ उन्होंने शादी को सार्थक किया।

ऐसे सब जोड़े खुश भले न रहते हों, लेकिन इस नई वाली कौम से तो ज़्यादा खुश और मानसिक रूप से सॉर्टेड हैं। इनके पास एक दूसरे के करीब होने की सबसे बड़ी वजह सेक्स और उससे उपजा प्रेम था। और ये जो शादी से पहले सब कुछ करने वाली कौम है, उसके पास ऐसी कोई मेजर यूनिफाइंग फोर्स थी ही नहीं जो सेक्स की ताकत का मुकाबला कर पाए।

सेक्स से बड़ा आकर्षण एक आम इंसान के लिए कुछ नहीं। और अगर शादी का आधार वो है ही नहीं, तो शादी कहां से टिकेगी? शादी से पहले ही लड़की अपने कपड़े उतार चुकी हो किसी और के आगे या होने वाले पति के ही आगे, तो शादी की ज़रूरत क्या?  क्या सामने वाले का परिवार पालने के लिए शादी की थी? मानो भले न, लेकिन निभाना तो पड़ेगा ही। 

और फिर इसमें वो भी आए जिन्हें बच्चे भी नहीं पैदा करने का इरादा था। वो लोग शादी क्यों कर रहे थे ये भी नहीं समझ आता? लेकिन कर ली उन्होंने भी।

सेक्स पहले कर लिया, बच्चे पैदा नहीं करने, लेकिन शादी कर ली। ये हुआ इसलिए क्योंकि अन्ततः संस्कार तो थे ही। घर से प्रेशर था शादी करने का। लेकिन "अवेयरनेस और एक्सपोज़र" ने शादी से पहले ही सब एक्सपीरियंस करा दिया था। ऐसे में अब मां बाप को क्या ही बोलें कि शादी नहीं करनी...बच्चे नहीं पैदा करने...बस मौज करनी है...लाइफ़ एंजॉय करनी है...बिंदास रहना है... सेक्स कर ही लेते हैं।

एक वेस्ट इंस्पायर्ड तबका वो भी है जो समझता है ये बन्दा या बंदी सही है, इसके साथ सेक्स भी किया है, मज़ा आता है इसके साथ, पेरेंट्स मान जाएंगे तो चलो इससे शादी कर लेते हैं। सब खुश। लेकिन ये सब न इधर के न उधर के रहते हैं। वेस्ट की मॉडर्निटी ने समझदारी का बंटा धार कर दिया।

शादी के पहले वेस्ट वाले तरीके से "सब कुछ" कर लिया और अपने घरेलू तरीकों के चलते शादी भी कर ली।

अब शादी तो लॉन्ग टर्म कमिटमेंट होता है। उस वक्त तो दिलेरी दिखा के एक्साइटमेंट में मौके का फ़ायदा उठाते हुए सेक्स कर लिया, एक आकर्षण पाल लिया, लेकिन बाद में शादी के बाद समझ आया कि एक्साइटिंग तो बस शादी के पहले था सेक्स। अब तो इसमें एक्साइटिंग उतना कुछ है ही नहीं और साथ में इतने बंधन अलग से गले पड़ गये। 

इसी सब के चलते पिछले दो दशकों में डाइवोर्स और मैरिटल डिस्कोर्ड के मामले बढ़ने लगे। लेकिन अब स्थितियों में और बदलाव आ गया है।

अब शादी के पहले प्रेमी के साथ सब हो रहा है। शादी के बाद पति के साथ भी सब हो रहा है, जिससे पति को शक़ न हो। और अगर पति के साथ सब नहीं हो रहा तो इतना वबाल हो रहा है कि पति खुद ही छोड़ दे।  और फिर उसकी आधी संपति ले कर वापस प्रेमी के पास आया जा रहा है या फिर अगर वबाल न हो तो प्रेमी के साथ मिल के मासूम पति को ही मौत के घाट उतारा जा रहा है। इस इरादे से कि बाद में प्रेमी के साथ रहेंगे।

पहले जहां दिलेरी लड़के दिखाते थे, अब लड़कियां क्रिमिनल दिलेरी दिखा रही हैं। इसी सब के मद्देनजर कहता आ रहा हूं कि शादी की प्रासंगिकता घट चुकी है। आने वाले सालों में लगता है शादी होना ही बंद हो जाएगा। या शायद बस एक अनोखा रिश्ता या बोल्ड चॉइस बन के रह जाएगा।

क्योंकि शादी की वजह बची ही कहां? शादी सिर्फ जिम्मेदारी नहीं है। रोमांस और सेक्स शादी का आधार हैं। जब वो ही शादी से पहले होने लगेगा तो शादी किस आधार पर लंबी चलेगी? फ़िलहाल इतना ही।

ब्लॉगर बनाम मेनस्ट्रीम मीडिया के पत्रकार: बढ़ता विरोधाभास और भविष्य की चुनौतियां

सौरभ कुमार- 

सूचना क्रांति के दौर में जहां हर हाथ में स्मार्टफोन है, इंटरनेट मीडिया ब्लॉगरों और मेनस्ट्रीम मीडिया के पत्रकारों के बीच का विरोधाभास तेजी से बढ़ रहा है। यह टकराव सिर्फ माध्यमों का नहीं बल्कि विश्वसनीयता, पहुंच, एजेंडा और पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों को लेकर है।

एक तरफ पारंपरिक या मेनस्ट्रीम मीडिया है, जिसके पास दशकों का अनुभव, स्थापित प्रक्रियाएं, पेशेवर प्रशिक्षण और संस्थागत विश्वसनीयता है। ये मीडिया संगठन बड़े पैमाने पर रिपोर्टिंग करते हैं, तथ्यों की जांच करते हैं, संपादकीय नीतियों का पालन करते हैं और आमतौर पर नैतिक पत्रकारिता के मानकों का पालन करने करते हैं। इनके पास एक स्थापित तंत्र होता है, जिससे वे गहन जांच-पड़ताल और विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत कर पाते हैं।

दूसरी ओर इंटरनेट मीडिया ब्लॉगर और यूट्यूबर हैं। ये व्यक्ति या छोटे समूह होते हैं, जो फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू ट्यूब, स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी सामग्री प्रकाशित करते हैं। इनकी सबसे बड़ी ताकत इनकी तात्कालिकता और व्यक्तिगत पहुंच है। ये बिना किसी संस्थागत फिल्टर के सीधे दर्शकों से जुड़ते हैं, जिससे अक्सर एक अनौपचारिक और आत्मीय संबंध बनता है। ब्लॉगर अक्सर उन मुद्दों को उठाते हैं जिन्हें मुख्यधारा का मीडिया नजरअंदाज कर देता है या जिन पर गहराई से बात नहीं करता। इनके पास 'आवाजहीन' लोगों की आवाज बनने की क्षमता होती है। लेकिन, इनकी विश्वसनीयता अक्सर सवालों के घेरे में रहती है। तथ्यों की जांच का अभाव, सनसनीखेज हेडलाइन, व्यक्तिगत राय को तथ्य के रूप में प्रस्तुत करना और 'फेक न्यूज़' का प्रसार इनकी बड़ी खामियां हैं। एल्गोरिदम और व्यूज की होड़ में अक्सर गुणवत्ता और नैतिकता पीछे छूट जाती है।

यह विरोधाभास कई आयामों में प्रकट होता है। जहां मेनस्ट्रीम मीडिया खुद को 'लोकतंत्र का चौथा स्तंभ' बताता है, वहीं कई ब्लॉगर उन्हें 'बिकाऊ' या 'पक्षपाती' करार देते हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया अक्सर ब्लॉगरों को 'गैर-जिम्मेदार' और 'अपरिपक्व' बताता है, जो पत्रकारिता के मानकों को नहीं समझते। वहीं, ब्लॉगर मुख्यधारा के मीडिया को 'कुलीन' और 'आम लोगों से कटा हुआ' मानते हैं।

इस टकराव का सबसे बड़ा नुकसान जनता को होता है, क्योंकि वे सही और विश्वसनीय जानकारी के लिए संघर्ष करते हैं। सूचना के इस महासागर में, जहां सच और झूठ का भेद करना मुश्किल हो गया है, जनता को यह तय करना मुश्किल होता है कि किस पर भरोसा किया जाए।

भविष्य में, दोनों के बीच समन्वय और सह-अस्तित्व की आवश्यकता है। मेनस्ट्रीम मीडिया को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने और जनसरोकार के मुद्दों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। उन्हें दर्शकों की बदलती पसंद और डिजिटल माध्यमों की शक्ति को स्वीकार करना होगा। वहीं, ब्लॉगरों को भी पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों और तथ्यों की जांच के महत्व को समझना होगा। उन्हें केवल सनसनीखेज सामग्री के बजाय विश्वसनीय और गहराई से विश्लेषण वाली सामग्री पर ध्यान देना होगा।

शायद आने वाले समय में, पत्रकारिता का एक नया स्वरूप उभरेगा, जहां पारंपरिक मीडिया की विश्वसनीयता और ब्लॉगरों की पहुंच व तात्कालिकता का एकीकरण होगा। यह तभी संभव है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे की भूमिका को स्वीकार करें और बेहतर व अधिक विश्वसनीय पत्रकारिता के लिए मिलकर काम करें। अन्यथा, यह विरोधाभास सिर्फ गैर प्रमाणित सूचनाओं के जाल को और फैलाएगा, जहां सच्चाई ढूंढना और भी मुश्किल हो जाएगा।

भास्कर ऑफिस से खींचकर पुलिस जिसे ले गई उसे कुलदीप व्यास ने बनाया संपादक

 बिहार झारखंड में इन दिनों चीजें ठीक नहीं चल रही हैं. चल रही है तो सिर्फ कुलदीप व्यास की मर्जी. आलम ये है कि अपने परम शिष्य को उन्होंने झारखंड में सम्पादक बना दिया है.

ऑन रिकॉर्ड है कि आज से करीब सात साल पहले संतोष सिंह को बोकारो ऑफिस से पुलिस खींचकर ले गई थी. कुलदीप जहां भी रहे, संतोष परछाई की तरह रहे. बोकारो कांड के बाद संतोष कुछ दिनों के लिए पत्रकारिता से अलग हो गए थे लेकिन कुलदीप व्यास ने दिल्ली कार्यकाल के दौरान संतोष की एंट्री करवा ली. 

बीच में कुलदीप व्यास को भास्कर ने मुख्यधारा से अलग कर रिकवरी के काम में लगाया था. संतोष वहाँ भी कुलदीप के साथ रहे. फिर अपने साथ इसे झारखंड ले आए. इसके बाद पटना लाए और फिर झारखंड में सम्पादक बना दिया.

अमर उजाला के रिपोर्टर ने गौशाला की खबर न छापने की एवज में मांगे रुपये

 


कन्नौज में अमर उजाला रिपोर्टर ने गौशाला में खबर न छापने के मांगे रुपए स्क्रीनशॉट वायरल, दूसरे जगह की फोटो गौशाला के दर्शा कर छापी, अमर उजाला बेखबर 

कन्नौज जिले के इन दोनों अमर उजाला के ठठिया रिपोर्टर अंकित दुबे व भैरव दत्त की फजीहत कम नहीं का नाम नहीं ले रही है।एक प्रधान को दूसरे जगह की गोशाला की फोटो प्रधान के पास भेजकर ब्लैक मेल शुरू कर दिया और व्हाट्सएप पर रुपए मांगे है।इसका पीड़िता ने स्क्रीन शॉर्ट वायरल कर दिया कार्यवाही को लेकर थाने में शिकायती पत्र देकर कानूनी कार्रवाई की मांग की है।

उधर अमर उजाला के ब्यूरो कन्नौज जानकार भी अनजान बने हुए है। 




दूरदर्शन केंद्र लखनऊ में नियमों की अनदेखी!

लखनऊ — देश की प्रतिष्ठित सार्वजनिक प्रसारण संस्था प्रसार भारती के अंतर्गत संचालित दूरदर्शन केंद्र, लखनऊ से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। सूत्रों के अनुसार, केंद्र में एक कैजुअल (अनियमित) कर्मचारी को निदेशक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहा है वो निदेशक को गुमराह करके अपने फायदे निकाल रहा है जो न केवल नियमों की स्पष्ट अवहेलना है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल भी खड़े करता है।

बताया जा रहा है कि उक्त कर्मचारी जिसका नाम प्रशांत त्रिपाठी है इसकी की नियुक्ति केवल अस्थायी कार्यों के लिए की गई थी, परंतु वर्तमान में वह कार्यवाहक निदेशक के रूप में कार्य कर रहा है। इससे न केवल स्थायी एवं अनुभवी कर्मचारियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, बल्कि यह भी आशंका जताई जा रही है कि इससे निर्णय प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर भी असर पड़ सकता है।

सूत्रों के मुताबिक, यह नियुक्ति न तो किसी आधिकारिक अधिसूचना के तहत हुई है, और न ही इसके लिए आवश्यक प्रशासनिक अनुमोदन प्राप्त किया गया है। यह घटना प्रसार भारती जैसे संस्थान की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा सकती है, जो कि अपने अनुशासन और नियमबद्ध कार्यप्रणाली के लिए जाना जाता है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए कर्मचारी संगठनों और जनसंचार से जुड़े विशेषज्ञों ने मांग की है कि इस पर तत्काल उच्च स्तरीय जांच बैठाई जाए और दोषियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई की जाए।

प्रसार भारती और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से इस पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन यदि समय रहते इस पर संज्ञान नहीं लिया गया, तो यह मामला और भी अधिक विवादास्पद रूप ले सकता है।

Cosmoquick is Building India’s Fastest Hiring Pipeline, Without HR Middlemen



India’s hiring landscape is going through a silent revolution. In a country where the recruitment process is often slow, bureaucratic, and dominated by middlemen, Cosmoquick is redefining what it means to hire efficiently. At the heart of its mission lies a simple question: What if hiring could be as quick and seamless as ordering food online?Cosmoquick is answering that question by building India’s fastest hiring pipeline. The platform bypasses traditional HR bottlenecks and brings companies face-to-face with pre-vetted talent, without the need for recruiting agencies, endless email chains, or weeks of follow-up. Whether you are a startup looking to onboard your first few team members or a growth-stage company hiring at scale, Cosmoquick offers a radically streamlined solution.

The Problem with Traditional Hiring

In India, the typical hiring process takes anywhere from 25 to 45 days. It involves job postings on multiple platforms, resume screening, telephonic rounds, internal coordination, scheduling delays, and often, ghosting—either by candidates or companies. In this ecosystem, HR teams are burdened with operational overload. Founders and hiring managers often find themselves spending more time recruiting than building.

To make matters worse, third-party recruiters charge a hefty commission per hire, sometimes up to 8.33 percent of the candidate’s annual CTC. Despite this cost, quality and speed remain unpredictable.

In a world where speed equals survival, traditional hiring practices are no longer viable for agile teams. Cosmoquick was created to solve this fundamental inefficiency.

A Pipeline Built for Speed

Cosmoquick offers a single platform where companies can post a job and start receiving qualified candidates in less than 24 hours. The platform functions as a hiring pipeline rather than a static job board. Once a company posts a requirement, Cosmoquick’s backend tech maps it with relevant candidates from its growing talent pool and surfaces the best matches instantly.

Candidates on Cosmoquick are not just random applicants. They are pre-verified, skill-tagged, and filtered based on availability, experience, and intent. The platform handles the shortlisting process using a mix of intelligent automation and human moderation, ensuring that companies only deal with serious, relevant candidates.

Unlike conventional systems, where applications are stored in folders or spreadsheets, Cosmoquick presents them in a streamlined pipeline interface. Each stage—applied, shortlisted, interview scheduled, offer made, hired—is easy to track, update, and manage in real time.

No Middlemen, Just Momentum

One of the boldest decisions Cosmoquick made early on was to eliminate the HR middle layer altogether. While most job platforms generate revenue by selling leads or charging commissions through third-party recruiters, Cosmoquick believes in a direct-to-hire model.

This choice simplifies everything. It eliminates unnecessary handoffs, miscommunication, and misaligned incentives. Companies know exactly who they are dealing with, and candidates get a clear view of where they stand.

By removing intermediaries, Cosmoquick not only speeds up hiring but also brings transparency and accountability into the process. The platform's chat feature, for example, allows companies to connect directly with candidates, avoiding the delays of back-and-forth coordination.

Built for Startups, Scaling for India

Cosmoquick’s origins lie in the startup ecosystem. The team behind the platform understood that early-stage founders often have no time, no HR team, and no bandwidth to go through hundreds of resumes. They need people yesterday.

But what started as a startup-focused tool has now scaled into a broader movement. With hundreds of companies and thousands of candidates on board, Cosmoquick is becoming the go-to solution not just for lean teams but also for larger companies that value speed, agility, and cost-efficiency.

Whether you’re hiring sales executives, designers, developers, or operations managers, the platform supports a wide range of roles across industries. It is especially valuable for roles that need to be filled fast—think customer support agents during festive seasons or growth marketers during a campaign launch.

Talent-Centric by Design

On the other side of the pipeline, Cosmoquick offers a clean, intuitive interface for jobseekers. Candidates can sign up in under five minutes, highlight their strengths, and get discovered by top companies without blindly applying everywhere.

The candidate portal talent.cosmoquick.com is designed to make job hunting frictionless. Unlike bloated portals that drown users in irrelevant listings, Cosmoquick only shows roles that match a candidate’s skills and preferences. It uses smart filters to cut the noise.

Moreover, candidates receive feedback on their applications, status updates, and interview reminders, ensuring they are not left in the dark. This candidate experience focus is what sets Cosmoquick apart from platforms that treat jobseekers as passive leads rather than active stakeholders.

Toward the Future of Hiring

Hiring in India needs to catch up with the speed of business. The world has moved to one-click transactions and on-demand services. Why should recruitment still be stuck in the 2000s?

Cosmoquick is not just a platform; it is a vision for a faster, leaner hiring future. By removing HR middlemen, leveraging technology for intelligent shortlisting, and putting both companies and candidates in control, it delivers a better, faster, and fairer hiring experience.

For founders tired of delayed hires, HR managers frustrated with inefficiencies, and candidates overwhelmed by spammy listings, Cosmoquick offers a better way.

It’s not about disrupting the industry for the sake of it. It’s about building something that works

Visit: cosmoquick.com

 For candidates: talent.cosmoquick.com


नवभारत टाइम्स मुंबई एडिटोरियल विभाग में आंतरिक कलह, वरिष्ठ पत्रकारो का मोहभंग

चतुर त्रिपाठी के कारण रेल मंत्री का इस्तीफा, निर्जल तिवारी को वापस लाने में जुटा छांगुर 

मुंबई: नवभारत टाइम्स के मुंबई संस्करण में संपादकीय विभाग के भीतर मतभेद और गुटबाजी की खबरें सामने आ रही हैं। सूत्रों के मुताबिक, विभाग फिलहाल तीन गुटों में बंटा हुआ है, जिसका असर संस्थान के कामकाज और कार्य संस्कृति पर पड़ रहा है।इन आंतरिक तनावों के बीच चतुर त्रिपाठी के कारण दामोदर व्यास ने हाल ही में संस्थान से इस्तीफा दे दिया है। बताया जा रहा है कि व्यास का इस्तीफा विभाग में चल रही आंतरिक राजनीति और गुटबाजी से उपजे असंतोष का परिणाम है।इस बीच चतुर त्रिपाठी के बीमारी का फायदा छांगुर गैंग को हो रहा है जिसके कारण छांगुर गैंग हावी पड़ रहा है। और छांगुर गैंग एक बार फिर विवादित निर्लज तिवारी को लाने की फिराक में है कई अखबारों से निकाले गए निर्लज तिवारी ने कोरोना के दौरान नवभारत टाइम्स के पत्रकारों के साथ ही मुंबई के कई पत्रकारों और अधिकारियों से गूगल पे के माध्यम से पैसे वसूल किए थे।तभी से मुंबई छोड़ दिया था एक बार फिर आने की कोशिश में है जिसे छांगुर मदद कर रहा है। कर्मचारियों का आरोप है कि इससे संस्थान की छवि को नुकसान पहुंच सकता है।अखबार के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, कई अनुभवी और योग्य पत्रकारों ने संस्था में आवेदन दिया था, लेकिन चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठ रहे हैं।अखबार के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, कई अनुभवी और योग्य पत्रकारों ने संस्था में आवेदन दिया था, लेकिन चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

संपादक के रिटायरमेंट से पहले हलचल

सूत्रों के अनुसार, नवभारत टाइम्स के वर्तमान संपादक कैप्टन सुंदरचंद ठाकुर जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उनके उत्तराधिकारी के रूप में दिल्ली से प्रकाशित सांध्य टाइम्स के संपादक ललित वर्मा का नाम चर्चा में है। वर्मा पिछले कुछ महीनों से मुंबई में सक्रिय हैं, जिससे यह अटकलें और तेज़ हो गई हैं कि उन्हें जल्द ही नया कार्यभार सौंपा जा सकता है।

इस बदलाव की संभावनाओं के बीच विभाग में कुछ कर्मचारियों द्वारा ललित वर्मा के करीबी बनने की कोशिशें भी चर्चा में हैं। कर्मचारियों का दावा है कि इस प्रक्रिया में पक्षपात और अंदरूनी लॉबिंग ने माहौल को विषाक्त बना दिया है।

कर्मचारियों में असंतोष

इन घटनाओं से संस्थान के मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। दामोदर व्यास के इस्तीफे को लेकर कई पत्रकारों का मानना है कि उनकी जगह भरना आसान नहीं होगा।

2.6.25

मुख्य कार्यपालक अधिकारी के निरीक्षण में पैंतीस अधिकारी कर्मचारी अनुपस्थित 

एक दिन वेतन कटा, पहले भी कर चुके हैं कर्मचारियों को दिनभर खड़े रहने की दंडात्मक कार्रवाई 

गौतम बुद्ध नगर संवाददाता ओ पी श्रीवास्तव । उत्तर प्रदेश का गेटवे कहा जाने वाला नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण ( नोएडा) प्रदेश की औद्योगिक उत्थान की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहा है । जिसकी कमान तेज तर्रार सीनियर आई ए एस अधिकारी डॉक्टर लोकेश एम के हाथों में है।

 लेकिन नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण जिसे संक्षिप्त में नोएडा कहा जाता है के अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी बार-बार की चेतावनी के बाद भी कार्यालय में समय से नहीं बैठते हैं और ना ही दिए गए जिम्मेदारियां का सही तरीके से निर्वहन करते हैं। इससे आम जनता को परेशानियां से दो चार होना पड़ता है ।

पिछले कई दिनों से इस बात की जानकारी प्राधिकरण के मुख्य कार्य पालक अधिकारी डाक्टर लोकेश एम को आम जनता द्वारा दी जा रही थी । 

परिणाम स्वरूप दो जून दिन सोमवार को डॉक्टर लोकेश एम ने अपने प्राधिकरण के सेक्टर छह स्थित कार्यालयों का अचानक बारीकी से निरीक्षण एवं अवलोकन करना शुरू किया । तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि 35 अधिकारी और कर्मचारी समय से कार्यालय नहीं पहुंचे थे और वे अनुपस्थित थे ।


इससे नाराज होकर मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉक्टर लोकेश ने इन सभी 35 अधिकारियों कर्मचारियों का एक दिन का वेतन बाधित कर दिया ।

इस कार्रवाई से नोएडा के प्रशासनिक कार्यालय में सोमवार को हड़कंप मच गया। सभी कर्मचारी एक दूसरे का मुंह ताकते हुए नजर आए। कई अधिकारी कर्मचारी एक दूसरे को अपनी सफाई देने में लगे रहे।


यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि डॉक्टर लोकेश एम वही साहसी आईं ए एस अधिकारी हैं जिन्होंने कुछ माह पूर्व अपने नोएडा (प्राधिकरण) के कार्यालय में बैठकर सीसीटीवी में जब यह देखा कि एक बुजुर्ग खड़े होकर अपनी शिकायत एक कार्यालय में संबंधित कर्मचारी से कर रहे थे , लेकिन संबंधित कर्मचारी ने बुज़ुर्ग को बैठने के लिए कुर्सी नहीं दी थी । 

जबकि कर्मचारी स्वयं कुर्सी पर बैठा हुआ था ।


 बताया जाता है कि मुख्य कार्यपालक अधिकारी अपने कार्यालय में सीसीटीवी में इस दृश्य को काफी देर से देख रहे थे । अंततः बीस पच्चीस मिनट बाद उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने तत्काल मौके पर खुद पहुंच कर यह फरमान जारी कर दिया कि यदि कोई शिकायत करने वाला खड़ा होकर के अपनी शिकायत कर रहा है तथा सम्बंधित कर्मचारी कुर्सी पर बैठकर आराम से शिकायत सुन रहा है तो यह बहुत ना इंसाफी है। कर्मचारी को भी खड़ा होकर पब्लिक की फरियाद सुननी पड़ेगी।


 परिणाम यह हुआ कि मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉक्टर लोकेश एम ने सभी कर्मचारियों को दन्ड स्वरूप खड़ा होने का आदेश दे दिया और उस दिन सुबह से शाम तक कर्मचारियों को दिनभर खड़ा होकर लोगों की बातों को सुनना और काम करना पड़ा ।


कहते हैं कि इस अधिकारी की इस संवेदनशीलता को आम जनता ने काफी साराहा और अधिकारी के कार्य प्रणाली की प्रशंसा की।


इस संबंध में डॉक्टर लोकेश एम ने कहा कि समय-समय पर कर्मचारियों और अधिकारियों को सजग और सतर्क करने के लिए औचक निरीक्षण किया जाता है तथा कमी पाई जाने पर सुधारने का प्रयास किया जाता है। 

उन्होंने यह भी कहा कि नोएडा को औद्योगीकरण के क्षेत्र में नंबर एक बनाने तथा साफ़ सुथरा एवं स्वच्छ वातावरण प्रदान करने का उनका प्रयास निरंतर जारी रहेगा।

निठल्ले की चिट्ठी

महेश शर्मा-

आदरणीय मोदी जी,

जब से ओडिशा से आया, खुद को सेट नहीं कर पाया/आपका भाषण सुना सो चिट्ठी लिखने से रोक नहीं पाया। आपने भाषण में कनपुरिया जुमलों का इस्तेमाल करके हम कनपुरियों से डायरेक्ट कनेक्ट तो हो गए, पर इन जुमलों और हम कनपुरियों को बिसार न देना। बस यही इल्तिजा है। राबिता बनाये रखियेगा।

जवाहरलाल नेहरू (नाराज न होइएगा जरूरत पड़ी तो नाम लिखना पड़ा), इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हाराव, एचडी देवगौड़ा, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह तक का कामपुर से बहुत गहरा राबिता (उर्दू शब्द राब्ता जिसका अर्थ रिश्ता या संबन्ध है) रहा है। कानपुर में कुछ लोग तो नेहरू को 'ए जवाहर' बुलाते रहे हैं।

कानपुर में ही महात्मा गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पदभार सरोजनी नायडू को 100 वर्ष पहले 1925 में सौंपा था। अटल जी का 'झाड़े रहौ कलक्टरगंज' का जुमला तो भला कौन नहीं जानता।

राजीव गांधी ने कनपुर की मलिन बस्तियां पांव-पांव नाप ली थी। यह बात दीगर कि तब वह कांग्रेस के महासचिव थे। तत्कालीन सीएम श्रीपति मिश्र पीछे-पीछे चलते हुए हांफ रहे थे। वीपी सिंह की बेलौस बातचीत के अंदाज़ का लुत्फ भी हम कनपुरियों ने उठाया है। कनपुरिया जुमले इनके शब्दकोश में हमेशा हिफाजत पाते रहे हैं। आप ने जनसभा में जब बोला कि दुश्मन चाहे जहां रहे 'हउंक' देंगे। यह बोलने से पहले आपने यह भी कहा कि कनपुरिया शब्दों में कहें तो....।

कसम से हम कनपुरियों का दिल गार्डन गार्डन (बाग-बाग) हो गया है। क्या है कि हम लोग थोड़ा इमोशनल टाइप के प्राणी हैं। जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए। दरअसल हमें हमारी संस्कृति बहुत प्यारी है। जो भी हमसे जुड़ता है हम रिश्ते निभाने की किसी सीमा तक चले जाते हैं। लगता है कि कानपुर ने आपसे रिश्ता कायम कर लिया है। रिश्ता कायम करने के अपने-अपने अंदाज होते हैं। अचानक ग़ालिब याद आ गए। "हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और" एक प्रसिद्ध शेर है जो मिर्ज़ा ग़ालिब के अलग और विशिष्ट शैली की ओर इशारा करता है।

यह दर्शाता है कि दुनिया में बहुत से अच्छे शायर हैं, लेकिन ग़ालिब का अंदाज़-ए-बयाँ (शैली) अद्वितीय है। कुछ ऐसी शैली मोदी जी आपकी भी है। जहां जाते हैं वहां की नब्ज पहचान कर पकड़ लेते हैं और लोग आपके मुरीद होने लगते हैं। लोग बहुत भोले हैं। कामकाज का ऑडिट करना भूल जाते हैं। इसे हम पत्रकार सोशल ऑडिट कहते हैं। कानपुर आपका आना-जाना लगा रहेगा।

दर्जनों छोटे-बड़े प्रोजेक्ट हैं जिन्हें आप के कर कमलों का सदैव इंतज़ार रहेगा। खांटी कनपुरिया होने के नाते हमें लगता है कि आप के शब्दकोश में कनपुरिया जुमलों का इजाफा कर दें। हालांकि हम तो ठहरे बकलोल पार्टी फिर भी एक छोटी सी कोशिश करते हैं। क्या करें, कानपुर की चाल ही ऐसी है। 'नौ दिन चले अढ़ाई कोस' यह चाल यहां के विकास की है। यूपी रोज आओ तो भी वह अपने स्पीड से ही चलेगा। गरियार बैल हो गया है ससुरा।

अब 'नमामि गंगे' को देख लो। कनपुरियों ने मान लिया है कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा।' नहीं हनायेंगे (नहाएंगे) गंगा। मोदी जी साफ करा देंगे तब नहाएंगे। तो, फीडबैक तो आपके कनपुरियापन से बेइंतिहा मुहब्बत का मिल रहा है। लोग खुश लगते। अभी से ही लोगों ने उपाधिमूलक शब्द 'गुरू' से नवाजना शुरू कर दिया है। छोटा सा किस्सा याद आ गया। बेस्ट मेम्बर पार्लियामेंट नामक सम्मान की परंपरा पीएम पीवी नरसिम्हाराव ने शुरू की थी तो पहला सम्मान अटलजी को प्राप्त हुआ। वह डिजर्व करते थे।

पीएम ने सम्बोधन में कह दिया, (अटलजी की तरफ इशारा करते हुए) आप तो हमारे गुरु हैं। अटलजी भला कहां चूकने वाले, बोले मैं तो गुरू हूँ आप तो गुरू घण्टाल हैं। सन्दर्भ था अल्पमत की सरकार पांच साल तक चलाने का। अटलजी में कनपुरियापन कूट-कूटकर भरा था। लगता है देर से ही सही पर 'कल्चरल ट्रांसफॉर्मेशन' का दौर जन्म ले चुका है। आपके मुखारबिंदु से 'हउंकना' शब्द संकेत है। यकीन मानिए गुजरात के नमक की कसम, आप में कनपुरियापन कहीं न कहीं है। यह कानपुर का भाग्य चमकने जैसा है। अब विकास तेजी से दौड़ेगा कानपुर में। न दौड़ा तो आप हउंक देना।

हउंकने की महिमा अपरंपार है। कभी कभी तो सब जगह से हउंके जाने वाला निरीह आखिर में घरैतिन को हउंक देता है। दुश्मन को ऑपरेशन सिंदूर की तरह हऊँका गया तो वह भारत की तरफ देखना ही बन्द कर देगा। कानपुर के पत्रकारों, साहित्यकारों ने तमाम देशज शब्द दिए हैं जिनमें से हउंकना भी एक है।

कानपुर की शब्दावली किसी एटम बम से कम थोड़े ही है।कुछ शब्द इस प्रकार हैं-जैसे-लुर, लोलम, लोलर, लोलपिन, लौझड़, लौंडिहाय, लपूड़ी, लम्पट, लूमड़, धांसू, उजबक, तिरकोतीन, ढक्कन, पिलू, बकलोल, खैचूँ, पिलिकाट, पिलियन्तन, गबड़चौथ, पैदल, हौलट, झैँयमझां, फलालैन, चौघड़, चिरकुट, चुंघट, चोंच, रागिया, खड़ूस, चघड़, खबीस, झामा, झाम, खबेड़ि, सटहा, चिताड़गोड़ीगम्म, इगड़े रे घूम....इत्यादि इत्यादि। जरूरत पड़ने पर ये प्रयोग किये जा सकते हैं।

बाकी मिलने पर शेष-

आपका

महेश शर्मा

14.3.25

अखबारों की बढ़ती भूल, कीमत नहीं हो रही वसूल

इन दिनों समाचार पत्र मेरी हिंदी के साथ अजीबो-गरीब प्रयोग कर रहे हैं, मानो भाषा को किसी प्रयोगशाला में डालकर नई परिभाषाएँ गढ़ी जा रही हों। आज दैनिक जनवाणी में एक खबर का शीर्षक पढ़ा—"एक नेता और उसके 'बेट' पर मुकदमा दर्ज।" 


यह पढ़कर भ्रम हुआ कि हिंदी भाषा ने कोई नया मोड़ ले लिया है या फिर संपादन विभाग ने भाषा को स्वतःस्फूर्त प्रवाह में छोड़ दिया है।

इतिहास में यह शायद पहली बार हुआ होगा कि किसी निर्जीव वस्तु पर भी मुकदमा दर्ज हो गया। अब तक अपराधी मनुष्य होते थे, लेकिन इस नई पत्रकारिता ने बेजान चीजों को भी अदालत के कटघरे तक पहुँचा दिया है। इस नवीन प्रयोग को देखकर ऐसा लग रहा है कि आने वाले दिनों में ईंट, पत्थर और बिजली के खंभे भी अभियुक्तों की सूची में शामिल कर लिए जाएंगे। 

शायद यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी अखबारों और पत्रिकाओं से दूर भाग रही है और सोशल मीडिया को अधिक भरोसेमंद मान रही है। कम से कम वहाँ पोस्ट लिखने वाले लोग अपनी भाषा और तथ्यों को लेकर अधिक सतर्क रहते हैं। दुर्भाग्यवश, अखबारों की बढ़ती अशुद्धियाँ उनके घटते पाठक वर्ग का सबसे बड़ा कारण बनती जा रही हैं।

जो अखबार कभी भाषा, विचार और अभिव्यक्ति की शुद्धता के पर्याय थे, वे अब स्वयं सुधार के मोहताज हो गए हैं। इन दिनों अखबारों में बढ़ती गलतियाँ उनके दाम से भी अधिक भारी पड़ रही हैं—पाठक मूल्य चुका रहे हैं, लेकिन बदले में भाषा की त्रुटियों का बोझ उठाना पड़ रहा है। 

भड़ास को भेजे गए मेल पर आधारित

10.3.25

एसबीआई क्रेडिट कार्ड के विवादास्पद बिल की शिकायत सीएम की जनसुनवाई पोर्टल में पंजीकृत

* पीड़ित ने लगाया आरोप कि फर्जी बिल के भुगतान के लिए वसूली गैंग कर रहा है आतंकित 

* साइबर अपराधियों और एसबीआई क्रेडिट कार्ड कंपनी की मिलीभगत आ रही है सामने 

* प्रथम दृष्टया पुलिस , साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 की अनदेखी हो रही है उजागर 

लखनऊ: एक तरफ जहां देश/ राज्य में डबल इंजन की सरकार सुशासन के दावे करते नहीं थकती है तो दूसरी ओर बैंकिंग – क्रेडिट कार्ड कंपनियों के फर्जीवाड़ों की इतनी कहानियां है जिससे चोरी – ठगी के आधुनिक तौर – तरीकों के स्वरूप का हैरतनाक दर्शन होता है। ऐसे ही एक प्रकरण उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इंदिरा नगर निवासी नैमिष प्रताप सिंह का है। उन्होंने SBI क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट द्वारा फर्जी बिल भेजकर अवैध वसूली करने और पूर्व में साइबर क्राइम सेल /गाजीपुर थाने द्वारा साजिशन लापरवाही करने के नाते अपने खाते से 27 फरवरी 2024 को फर्जीवाड़ा करके निकाले गए रुपए के मामले में अभी तक FIR दर्ज न करने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विधानसभा स्थित कार्यालय में 28 फरवरी 2025 को प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करके त्वरित, निष्पक्ष वा सक्षम कार्रवाई करने के लिए उचित निर्देश देने की मांग किया हैं, जो आगे की कार्रवाई को लेकर प्रमुख सचिव (गृह) को अग्रसारित कर दिया गया है। 

मामला यह है नैमिष प्रताप सिंह के  क्रेडिट कार्ड संख्या 4726424389243830 पर एसबीआई क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट द्वारा 12 जनवरी 2025  को जो बिल भेजा गया है , उसमें  साफ – साफ लिखा है कि यह इनकी आखिरी किश्त है, इसके बावजूद पुन: 12 फरवरी 2025 को रु. 43741 का बिल भेज दिया गया  जबकि इनका कहना है कि सभी 18 किश्तों का भुगतान किया जा चुका हूं और सभी किश्तें निर्धारित अवधि में जमा हुई है। उन्होंने टोल फ्री नं./ सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘X’ (एक्स) / ईमेल से जब इसकी शिकायत की तब एसबीआई क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट ने कई दिनों तक कोई सुनवाई नही किया। 12 फरवरी के बिल में इन्होंने किस मद में शिकायतकर्ता को इन रुपयों का बकायेदार बनाया है, इसे भी नहीं लिखा है जबकि इसके पूर्व के बिल में हर चार्ज का ब्यौरा दिया जाता था। 

नैमिष प्रताप सिंह ने जब भी  एसबीआई क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट से उन्हें फोन करने वालों और टोल फ्री नं. पर फोन करके कहा कि उन्हें लखनऊ आफ़िस के प्रतिनिधि अफसर का पता/ फोन न. उपलब्ध करवा दीजिए लेकिन इसे उन्हें नहीं दिया गया। हरियाणा राज्य के गुड़गांव इलाके में बैठकर संगठित ठगी कर रहे इन लोगों को जवाबदेह बनाया जाय, इसलिए ये लोग साजिशन लखनऊ के किसी अधिकारी का मोबाइल नं. उपलब्ध नहीं करवा रहे है। उत्तर प्रदेश एक विशाल आबादी वाला राज्य है। जाहिर है कि इतनी बड़ी कंपनी अपनी शाखा यहां जरूर खोलेगी, ऐसे में संबंधित अधिकारी का फोन नं./ पता बताने में इन्हें क्या और क्यों समस्या है? अब पुलिस को एसबीआई क्रेडिट कार्ड के लखनऊ के प्रतिनिधि अफसर का कैसे मोबाइल नं./ पता दिया जाय जिससे क्रेडिट कार्ड के जरिए संगठित ठगी वालों वालों तक  लखनऊ पुलिस पहुंचे। जब इस फर्जी बिल को लेकर सोशल मीडिया एकाउंट ’X’ ( एक्स) पर पीड़ित  नैमिष प्रताप सिंह ने अपनी शिकायत डाला तब ये लोग एक नया एसआरएन की संरचना कर देते है लेकिन करते कुछ नहीं है। एक ओर इन्होंने लखनऊ के अपने प्रतिनिधि अफसर का फोन नं./ पता नहीं दिया तो दूसरी तरफ कल पूरा दिन नैमिष प्रताप सिंह को फोन करके फर्जी बिल का भुगतान करने के लिए दबाव बनाते रहे, आतंक का तांडव करते रहे। एक फोनकर्ता ने बताया कि अब उनका बिल रु. 43741 से बढ़ाकर रु. 45000 कर दिया गया है और यदि जमा नहीं हुआ तो सिविल स्कोर खराब कर दिया जाएगा। क्या बिल में यह बढ़ोत्तरी बैंकिंग नियमों के अनुरूप है? 

धोखाधड़ी करके निकाले गए रुपए को लेकर नहीं दर्ज की गई थी एफआईआर 

नैमिष प्रताप सिंह का कहना है कि इसके पूर्व 27 फरवरी 2024 को एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड के जिम्मेदार ओहदेदारों की मिलीभगत से उनका रु. 18360 निकाल लिया गया था। इसको लेकर उन्होंने कई बार टोल फ्री नं, ट्वीट, ईमेल के जरिए इस समस्या से  क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट को अवगत कराया लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। हर बार केवल नया एसआर नं. पकड़ा देते थे और फिर इधर – उधर की बातें करके मामले को खत्म करना चाहते थे। शिकायतकर्ता का कहना है कि यह रु. 18360 बैगलोर में खर्च होना दिखाया गया है। उन्होंने बार – बार कहा कि जिस भी गूगल पे – पेटीएम पर उनका रु. 18360 ट्रांसफर हुआ है, उसका विवरण उन्हें  उपलब्ध कराया जाय। कोई गुगल पे – पेटीएम खाता बिना फोन नं./ बैंक एकाउंट नं. के बन ही नहीं सकता है तब आखिरकार एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड को जिस भी गूगल पे – पेटीएम पर उनका रु. 18360 ट्रांसफर हुआ है ,उसका विवरण देने में क्या समस्या है। उनका दावा है कि चूंकि यह रु. 18360, जो उनके क्रेडिट कार्ड से निकला है, वह साइबर अपराधियों और एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड की मिलीभगत का दुष्परिणाम है इसलिए जिस खाते में उनका रु. 18360 का भुगतान हुआ है, उसका विवरण साजिशन नहीं दिया गया। 

एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड ने जब फर्जीवाड़ा करके नैमिष प्रताप सिंह का पैसा निकाले जाने की समस्या की अनदेखी किया तो उन्होंने पिछले वर्ष पुलिस आयुक्त को ईमेल के जरिए प्रार्थनापत्र भेजा, जो साइबर क्राइम सेल हजरतगंज में भेज दिया गया।  02 अप्रैल 2024  को वहां पहुंचकर नैमिष प्रताप सिंह ने अपना पक्ष प्रस्तुत किया, जिसके बाद उनका प्रार्थनापत्र ले लिया गया, जिसकी क्रमांक संख्या उन्हें  2162/ 24 बताया गया। साइबर क्राइम सेल द्वारा उनसे कहा गया कि हम अपनी जांच – पड़ताल करेंगे लेकिन आप अपने संबंधित थाने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए। इसके बाद 08 मई 2024 को नैमिष प्रताप सिंह ने गाजीपुर थाने पर जाकर प्रभारी निरीक्षक की मौजूदगी न होने पर दिवस अधिकारी के समक्ष प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया, जिस पर उन्होंने कहा कि इसे सर्वोदय नगर पुलिस चौकी को जांच के लिए भेज दिया जाएगा, जहां से उन्हें फोन आएगा लेकिन 10 महीने बीतने के बाद आज तक उन्हें कोई फोन नहीं आया। इस दौरान शिकायतकर्ता ने साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 पर भी फोन किया तो उन्होंने कहा कि जब तक थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं दर्ज होगी तब तक कोई सुनवाई नहीं होगी। जब शिकायतकर्ता की कहीं से रु. 18360 की ठगी को लेकर कोई सुनवाई नहीं हुई तो अगले बिल में जब रु. 18360 जुड़कर आया तब उन्होंने इसका पूर्ण भुगतान कर दिया।                 

नैमिष प्रताप सिंह का दावा है कि एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड ने लगभग प्रत्येक माह निर्धारित किश्त रु. 5839.51 से अधिक का बिल भेजा है, जिसका भी उन्होंने समय से भुगतान किया है और इस ठगी को लेकर भी उनकी कोई शिकायत इन लोगों के  द्वारा नहीं सुनी गई, टोल फ्री नं. पर फोन करने पर केवल इधर – उधर की बातों से उन्हें बहलाया गया। 

पीड़ित शिकायतकर्ता ने कहा कि एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड की समस्त किश्तें समयानुसार जमा किया गया है। उन्होंने कहा कि इस क्रेडिट कार्ड के अलावा या किसी अन्य क्रेडिट कॉर्ड, गाड़ी आदि किसी भी अन्य लोन की कभी भी कोई एक भी किश्त के भुगतान में उनसे कोई देरी भी नहीं हुई है। उनका पूरे जीवन में कोई एक भी चेक बाउंस नहीं हुआ है, इन्हीं कारणों से उनका  सिविल स्कोर हमेशा अच्छा रहता है। उन्होंने बताया कि एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड का क्रेडिट कार्ड उन्हें  यूको बैंक की गोमती नगर शाखा में, जहां उनका बचत खाता है, वहां लेन – देंन का रिकॉर्ड अच्छा बताकर बनाया गया था अर्थात ठगी की पृष्ठभूमि गोमतीनगर के यूको बैंक परिसर में तैयार हुई। 

सवाल यह है कि क्या साजिशन फर्जी बिल भेजने के लिए जिम्मेदार मैनेजर – कस्टमर केयर सर्विस / सक्षम अधिकारी , एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड,डीएलएफ इंफिनिटी टावर्स, टावर सी, 12वीं मंजिल, ब्लाक 2, बिल्डिंग 3, डीएलएफ साइबर सिटी, गुड़गांव – 122002 हरियाणा के खिलाफ लखनऊ पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगी? क्या एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड द्वारा अपने लखनऊ के प्रतिनिधि अफसर का पीड़ित शिकायतकर्ता का कोई मोबाइल नं./ पता देने के बजाय उनका मो. नं. ‘वसूली गैंग ’ को पकड़ा दिया है जिसने कल पूरा दिन उन्हें फोन कर – करके फर्जी बिल के अवैध वसूली करने का दबाव बनाया जाता रहा। अब क्या वसूली गैंग के खिलाफ नैमिष प्रताप सिंह को साजिशन प्रताड़ित करने के मामले में लखनऊ पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करेगी? क्या 02 अप्रैल 2024 को साइबर क्राइम सेल, हजरतगंज और 08 मई 2024 को गाजीपुर थाने पर एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज लिमिटेड द्वारा नैमिष प्रताप सिंह के साथ की  गई ठगी के शिकायत की जो अनदेखी की गई, उनकी प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं लिखी गई, क्या उसके लिए साइबर क्राइम सेल / गाजीपुर थाने की पुलिस का कोई उत्तरदायित्व निर्धारित करते हुए जिम्मेदारों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी? 






शिकायतकर्ता :  नैमिष प्रताप सिंह, मोबाइल नं: 8188052544

24.1.25

फर्जी ऑपरेशन कर रहा था डॉक्टर, एक्सपोज करने वाले रिपोर्टर को मिली धमकी

मनीष मिश्रा- 

पडरौना का डाक्टर पुष्कर यादव आयुष्मान का पैसा खाने के लिए यूरिन के रास्ते पथरी डालकर फिर सर्जरी करता है। 

घोटाले का यह नया ट्रेंड एक्सपोज करने पर मुझे मेडिकल माफिया जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। सीएम से लेकर डीजीपी तक को ईमेल किया है।

बाबा का बुलडोजर ऐसे हॉस्पिटल के खिलाफ चलना चाहिए जिनकी नींव ही मेडिकल क्राइम पर खड़ी है। यूरिन के रास्ते पथरी डालकर 24 घंटे बाद ऑपरेशन कर निकालने वाले डॉक्टर अपराधियों से भी खतरनाक हैं।



22.1.25

व्यंग्य : माफिया, माफियोज़, माफियसु का हिन्दी तर्जुमा सरकारी खर्च पर जून में आएगा!



संजय दुबे-

क्त सारे शब्द 'इटालियन' हैं। आभासी रुप में 'बालक के रूप और विभक्ति' से मिलते स्वरुप के चलते इस पर आगामी जून में दिल्ली के पांच सितारा होटल में विद्वानों, प्रोफ़ेसरों की एक संगोष्ठी आयोजित है। जिसका खर्चा सुनने में आया है सरकार उठायेगी।

इतनी बड़ी इंडस्ट्री के लिए अभी हिन्दी में शब्द नहीं है, ये शर्म की बात है। आज़, भारत में पुराने नामों को नया नाम दिया जा रहा है। आत्मनिर्भर भारत के लिए ये अति आवश्यक है। चाँद पर पहुंचने के बाद भी हमें विदेशी शब्दों से काम चलाना पड़े है जिससे राष्ट्रीय शर्म सी 'फीलिंग' आती है। 

'माफिया' माननीय है या गरीबों के मसीहा? इस पर देश के विद्वानों में एक राय नहीं है। इसी को लेकर एक दानिशवरों का एक ख़ास इजलास दिल्ली में होना है। जहां इसके लिए उपयुक्त शब्द निर्धारित किये जाने के आसार हैं। माफिया नामक उपाधि धारक उद्योगपतियों, स्वयंभू घोषित डेरा, आश्रम संचालकों की एक लंबी कतार समूचे देश में दिखती है। बस, उत्तर प्रदेश में फिलहाल इनका सरकारी अनुदान और अनुकम्पा, बर्खास्त है। वहां ये उद्योग दम तोड़ रहा है।

यहां माफिया बनने के लिए क़ोई तैयार नहीं दिख रहा है। अकेले अपने दम पर इतने बड़े सूबे में इतनी बड़ी कुर्सी हासिल करना संभव ही नहीं नामुमकिन है। वैसे माफिया इतने प्रतिभाशाली होते है कि इनके प्रतिभा पुंज से हर खित्ता रौशन है। 

शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि-प्रबंधन, परिवहन, खनन, शेयर मार्किट में इनका सिक्का चले है। किसी भी क्षेत्र में जहां विकास की थोड़ी भी गुंजाइश है वहां ये अपना हुनर दिखाने से बाज़ नहीं आ रहे है। उदारीकरण के बाद इनका मान-सम्मान भी तेजी से बढ़ा है। समृद्धि इनके यहां नौबत बजाती है। इस फील्ड की प्रगति ऐतिहासिक है। सारे भौतिक सुखों के साधन इतनी तेजी से इस क्षेत्र में हासिल होते हैं कि आप देश के सामान्य विकास दर से इसे किसी अन्य क्षेत्र में जीवन भर में हासिल नहीं कर पाएंगे।

जैसे ही इस ख़ास सर्किल में आप दाखिल होते हो, आपकी विकास दर दो अंको में ''मासिक "हो जाती है। अब आप ही बताओ क़ोई इनको कैसे सम्मान नहीं दें? लिहाजा इनके सामने सर झुकाने के अलावा आम आदमी के पास क़ोई विकल्प ही नहीं है। इसलिए देश के हर क्षेत्र में इस तरह की दौड़ आपको हर फील्ड में देखने को मिल जायेगी। 

माफिया बनना इतना आसान नहीं होता। इसके लिए आपके पास 'माफियसु' होना चाहिए। फ़िर 'माफियोज़' भी बहुत जरूरी है। इन दोनों में अगर एक भी आपके पास नहीं है तो इस क्षेत्र में असफल होना तय है। जबरदस्ती बनने की कोशिश करेंगे तब यमलोक जरा जल्दी ही जाना पड़ेगा। माफिया होना नैसर्गिक गुण है। कुछ, प्रयास और अभ्यास करके भी इस कठिन मुकाम को हासिल करते है। पर उनके सर पर भी किसी अग्रज का ही हाथ होता है। अगर ये हाथ नहीं हो तब, आपके पाँव जमीं पर नहीं जन्नत पर होते है।

नैसर्गीक रूप से कौन-कौन गुण होते है जिससे ऐसे लोगों को पहचाना जाता है। ये गूढ़ बात बतानी नहीं चाहिए। आप इस आलेख को पढ़ रहे हैं तब नैतिक रूप से मेरी ये जिम्मेदारी है कि मैं इस ज्ञान को आप संग साझा करूँ। 

जो बच्चा जन्म के समय देर से रोयें। कम रोयें। दांत सहित पैदा हो। हर वो काम करे जिससे माता-पिता को गुस्सा आये। समझ लो प्रतिभावान है। कक्षा में हमेशा देर से पहुंचे। टीचर की क़ोई बात न मानें। हमेशा विद्रोह की बात करे। कॉलेज, यूनिवर्सिटी में पढ़ने के बजाय लड़ने के तरीके सीखे। विद्या प्राप्त करने से ज्यादा रुचि उससे होने वाले नुकसान के बारे में ज्ञान अर्जित करें। कभी भी प्रोफ़ेसरों की बातों पर अमल न करें। विज्ञान, कला, साहित्य की अपेक्षा कानून, संविधान, जुर्माना का समग्र ज्ञान अर्जित करे। किसी भी चीज़ के पास न होने पर उसे दूसरे से कैसे हासिल करें? इसके सम्यक ज्ञान प्राप्ति में अबाध रूप से लगा रहना। ये अति आवश्यक गुण है। 

सबसे ज़्यादा जरुरी अहर्ता होती है मौके को भांपना। ये माफियाओं में मिलने वाला सबसे कॉमन गुण है। बातों से फिरना, लाभ के लिए दुश्मन से भी हाथ मिला लेना। दोस्तों को दगा देने में थोड़ा भी संकोच नहीं करना। कुल मिला कर धूर्तई, मक्कारी, चालाकी, मौकापरस्ती का पूरा कम्प्लीट पैक होना ही एक अच्छे माफिया की पहचान है। इतनी बड़ी सम्मानित कुर्सी पाना आज़ सहज नहीं है। आईएएस परीक्षा में भले सीटें लगातार कम हो रही हों लेकिन यहां तो शुरू से ही कम रही है। फिर भी किसी माफिया बनने की चाहत रखने वाले छात्रों को इसका रोना रोते देखा है? ये सबसे बड़ा गुण है। धैर्य तो इतना कि 'काक दृष्टि वको ध्यानम' इन्हीं को देख कर लिखा गया है। 

इतने सारे गुणों के साथ-साथ 'माफियोज़' का भी इनके साथ होना जरुरी होता है। इस शब्द का क्या अर्थ हो सकता है? इस पर जून में दिल्ली की मीटिंग में फैसला होगा। फ़ौरी तौर पर जो मेरी जानकारी है उसे मैं आपको दे रहा हूं। इसको हिन्दी में कहते है 'चेला-चपाटी।' ये जिनके साथ रहें समझो दुनिया उसकी मुठ्ठी में। कभी-कभी ये वो काम कर देते हैं जिस पर माफिया सोच भी नहीं पाता। किसी को ठिकाने लगाते-लगाते ख़ुद इच्छा होने पर बॉस को ही ठिकाने लगा देना। गला नापने से लेकर काटने तक के हुनर वालों की टीम रखना एक अच्छे माफिया की ख़ूबी होती है।

ये माफियोज़ को बहुत जल्दी पहचान जाते है। किसको, कब, क्या जरुरत है? सब इनको पता होता है। माफियोज़ ही तय करते है कि माफिया कितना बड़ा होगा। रही बात सबसे अहम योग्यता की तो वो अकड़ की होती है। पता नहीं इतालवी भाषा में माफियसु जैसे शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया गया? 

खैर! हिन्दी के जानकारों की प्रस्तावित जून की मीटिंग तक इसी से काम चलाइये। लब्बोलुआब ये कि अकड़, दोस्त, सहयोग ही आपको एक सफल माफिया बना सकता है। ये ही माफिया, माफियोज़, माफियसु का साधारण बोलचाल की भाषा में अनुवाद है। आप चाहे तो अपने क्षेत्र के किसी माफिया को देखकर उससे सीख सकते है। बिना हुनर के कैसे सफल हो सकते है? गंभीरता से बस इन्हें देखिये। सब पता चल जायेगा।

ये हर जगह है। निजी, सरकारी, सहकारी हर ऑफिस से लगाये घास मंडी, सब्जी मंडी, ग़ल्ला मंडी, दूध मंडी हर पैसा बनाने वाली जगह में मिल जायेंगे। यहां तक कि प्रसिद्ध मंदिरों के पास भी। बिना नुक्स के नुक्स निकालते। फ़िर उसका समाधान करने का उपाय बताते। काम करने वाले को हतोत्साहित करते। नाकारों की बड़ाई करते। चाटुकारों की फ़ौज के दम पर हवाई किले बनाते। मौका देखकर दूसरे की करी गई मेहनत को अपनी बता कर ख़ुद की पीठ ठोंकवाते। ये सारे गुणसम्पन्न व्यक्ति आपको अपने पास दिख सकते हैं। बशर्ते आप कोशिश करो। 

ख़ैर! माफिया, माफियोज़, माफियसु के बारे में इतनी ही मेरी जानकारी है। अगर आपके पास इन शब्दों के लिए हिन्दी में क़ोई शब्द हो तो "भड़ासी गुरु" के 'विपत्र' पर पत्र से सूचित करियेगा। हाँ! तो बंधुओं, अब! जून तक का इंतज़ार करिये। देश के विद्वान दिल्ली में जुटान कर तफ़सील से इसका हिंदुस्तानी तरजुमा करेंगे। तब तक के लिये दीजिये इज़ाज़त। आदाब अर्ज़ है।

मऊ निवासी संजय दुबे कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पिछले 20 वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं. उनके कॉलम हिंदुस्तान, जनसत्ता, दैनिक जागरण, देशबंधु इत्यादि अखबारों में लगातार छपते हैं. उनसे संपर्क- 98898 34756 पर कर सकते हैं।