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28.5.14

70 सालों तक विद्वानों के शिक्षा मंत्री रहते हुए भी देश में शिक्षा की स्थिति बुरी क्यों है?-ब्रज की दुनिया

28 मई,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों देश में बेवजह की बहस छिड़ी हुई है। बहस इस बात को लेकर चल रही है कि भारत के प्रधानमंत्री को एक इंटर पास महिला को भारत का शिक्षा मंत्री नहीं बनाना चाहिए था। लगता है जैसे स्मृति ईरानी को पढ़ाई का इंतजाम नहीं करना है बल्कि किसी विश्वविद्यालय में जाकर पढ़ाना है। मेरे चाचा बिल्कुल अनपढ़ हैं लेकिन किसी इंतजाम में लगा दीजिए तो वो ऐसा इंतजाम करते हैं कि जैसा कोई पीएचडी भी नहीं कर सकता। मेरे एक चचेरे दादाजी जो काफी कम पढ़े-लिखे थे शकुंतला देवी से भी ज्यादा तेजी में गणित की बड़ी-बड़ी गणनाओं को संपन्न कर दिया करते थे।
मित्रों,पिछले 70 सालों में भारत में एक-से-एक विद्वान इस पद को सुशोभित कर चुके हैं लेकिन फिर भी भारत में शिक्षा की स्थिति दयनीय है। क्या स्मृति जी की योग्यता पर सवाल उठानेवाले बंधु बता सकते हैं कि ऐसा क्यों है? क्या शिक्षा मंत्री बनने के लिए विदेश से हाई डिग्रीधारी बेईमान या चोर होना जरूरी है?  पिछले 5 सालों में कपिल सिब्बल ने शिक्षा के क्षेत्र को क्या दिया है सिर्फ शिक्षा के अधिकार के नामवाला कागजी अधिकार देने के सिवाय? ऐसे पढ़े-लिखे धूर्त से तो स्मृतिजी बेहतर ही हैं। वे पूरी तरह से अनपढ़ तो हैं नहीं कि हिन्दी और अंग्रेजी फाइलों को समझ ही नहीं पाएं। तीव्र प्रतिउत्पन्नमतित्व से संपन्न हैं,मेहनती हैं,देशभक्त और सबसे बड़ी बात तो यह है कि वे ईमानदार भी हैं। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है इसलिए वे हर तरह की चुनौतियों से बेहतर निपट सकती हैं।
मित्रों,अगर हम मुगल काल के इतिहास में झाँके तो हम पाते हैं कि इस काल में दो बड़े बादशाह हुए अकबर और औरंगजेब। अकबर पूरी तरह से अनपढ़ था फिर भी इतना सफल शासक साबित हुआ कि इतिहास ने उसे अकबर महान के विशेषण से विभूषित कर दिया। दूसरी तरफ औरंगजेब महाविद्वान था लेकिन वह उतना ही असफल सिद्ध हुआ। उसकी अव्यावहारिक नीतियों ने मुगल सल्तनत की चूलें हिला दीं। इसी तरह आज जिन कबीर के लिखे दोहों और साखियों को एमए तक में पढ़ा-पढ़ाया जाता है वे पूरी तरह से अनपढ़ थे। इसी तरह सत्य यह भी है कि मानव इतिहास के सबसे बड़े वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने कभी स्कूली शिक्षा ली ही नहीं थी और उनका दिमाग आज भी रिसर्च के लिए संभालकर रखा गया है। इसी तरह महाकवि महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जिनकी कविता राम की शक्ति पूजा को विश्व साहित्य में अद्वितीय स्थान प्राप्त है और जिन्होंने विवेकानंद साहित्य का अंग्रेजी से हिन्दी में अभूतपूर्व अनुवाद भी किया है और जिनके ऊपर लाखों बच्चे शोध कर चुके हैं मैट्रिक पास भी नहीं थे। इतना ही नहीं आधुनिक युग के एकमात्र हिन्दी महाकाव्य कामायनी के रचयिता जयशंकर प्रसाद भी नन मैट्रिक थे। इसी तरह हिन्दी सिनेमा के शो-मैन राजकपूर भी नन मैट्रिक थे।
मित्रों,क्या अब भी वे भाई लोग यही कहेंगे कि प्रतिभा डिग्री की मोहताज होती है? फिर अपने देश में तो डिग्रियाँ बिकती भी हैं। कई पीएचडी धारक एक आवेदन तक नहीं लिख पाते। ज्यादा पढ़े-लिखे तो हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं हैं तो क्या वे मनमोहन सिंह जी से कम योग्य हैं? मनमोहन सिंह विदेश से पीएचडी प्राप्त व्यक्ति थे उन्होंने देश को क्या दिया? अगर डिग्री ही सबकुछ होता है तब तो भारत के तमाम आईआईएम को नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार के इंतजामों का अध्ययन करने के लिए उनके पीछे नहीं भागना चाहिए था। फिर वे भाग क्यों रहे हैं? पिछले दो दिनों में मोदी ने जितना अच्छा काम किया है,एक ही दिन में उन्होंने जिस तरह नौ-नौ राष्ट्राध्यक्षों से वार्ता की क्या उसके लिए जरूरी योग्यता को किताबों को पढ़कर प्राप्त किया जा सकता है? क्या कोई हार्वर्ड का पीएचडी धारी निराला,कबीर,आइंस्टीन,प्रसाद बन सकता है? लाल बहादुर शास्त्री ने तो विदेश में पढ़ाई नहीं की थी फिर उन्होंने अपने दो सालों के छोटे से शासन ने भारत को वह सब कैसे दे दिया जो विदेश में पढ़े नेहरू 17 साल में भी नहीं दे सके।
मित्रों,इसलिए सवा सौ करोड़ भारतीय से विनम्र निवेदन है कि वे कृपया इस तरह का बेवजह का शरारतपूर्ण विवाद खड़ा नहीं करें। हमने कांग्रेस के महायोग्य मंत्रियों की महायोग्यता को पिछले 8 सालों तक देखा है और झेला है। कौन-सा मंत्री योग्य है और कौन-सा अयोग्य इसका निर्णय जनता पर छोड़िए और उनको चैन से 60 महीने तक काम करने दीजिए। जनता 60 महीने बाद खुद ही उनकी योग्यता पर अपना फैसला सुना देगी ठीक वैसे ही जैसे आपलोगों के बारे में सुनाया है और आपलोगों को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा पाने के लायक भी नहीं समझा है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

हाल ही में हुये लोकसभा चुनाव में एक लाख से भी अधिक वोटों से हारने वाले अरुण जेटली और स्मृति ईरानी को मंत्री मंड़ल में शामिल कर तीन महत्वपूर्ण विभाग सौंपना क्या जनादेश का अनादर नहीं है? क्या लोक तंत्र का अपमान नहीं है? जरा सोचिये........


  • कांग्रेस ने केवलारी में विस चुनाव में जीतने और लोस चुनाव में हारने का लगातार तीसरी बार बनाया रिकार्ड
  • मंड़ला लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के फग्गनसिंह कुलस्तें ने इंका के ओंकार सिंह मरकाम को 1 लाख दस हजार 4 सौ 63 वोटों से हरा कर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया है। मंड़ला क्षेत्र में गौगपा  बसपा और नोटा 1 लाख 6 हजार 1 सौ 34 वोट मिलेे है जो जीत हार के अंतर के लगभग बराबर है। आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में कांग्रेस की हार इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हों गयी है क्योंकि इस क्षेत्र के आठ में चार विधायक कांग्रेस के थे। विधनसभा चुनाव में समूचे प्रदेश में चली शिवराज लहर के बावजूद भी जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन अव्छा था। लेकिन चंद महीनों बाद ही हुये लोस चुनाव में जिले के चारों क्षेत्र में कांग्रेस को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा है। विधनसभा के 2003,2008 और 2013 और लोकसभा के 2004,2009 और 2014 के चुनावों में केवलारी विधानसभा क्षेत्र का मिजाज एक सा ही रहा है। इन चुनावों में कांग्रेस यहां से विधानसभा का चुनाव तो जीती लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हारती रही इस बार तो 30 हजार से अधिक रिकार्ड वोटों से कांग्रेस हारी है।कांग्रेस को सिवनी क्षेत्र से 53 हजार 4 सौ 87 वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। जबकि अल्प संख्यक मतों में सेंध लगा सकने वाली सपा प्रत्याशी अनुभा कंकर मुंजारे को मात्र 2373 वोट ही मिले। जब मात्र प्रभार मिलने से सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुयें के बजाय हुक्के के धुयें में ऐसी गुमी कि ढ़ूढ़े भी नहीं मिल रही है तो जब प्रत्याशी बनेंगें तो ना जाने क्या होगा?
  • एक लाख से अधिक वोट से जीत कर फग्गन ने लिया हार का बदला-लोकसभा चुनावों  के परिणामों को लेकर सियासी हल्कों में विश्लेषण का दौर जारी है। मंड़ला लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के फग्गनसिंह कुलस्तें ने इंका के ओंकार सिंह मरकाम को 1 लाख दस हजार 4 सौ 63 वोटों से हरा कर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया है। उल्लेखनीय है कुलस्ते पिछले 2009 के चुनाव में इंका के बसोरी सिह से 65 हजार 53 वोटों से हार गये थे। लेकिन इस चुनाव के परिणामों पर नजर डाली जाये तो मंड़ला क्षेत्र में गौगपा को 56 हजार 5 सौ 72, बसपा को 21 हजार 2 सौ 56 और नोटा को 28 हजार 3 सौ 6 वोट मिले हैं। इस प्रकार तीनों के वोटों को यदि जोड़ा जाये तो ये 1 लाख 6 हजार 1 सौ 34 वोट होते है जो जीत हार के अंतर के लगभग बराबर है। भाजपा के राष्ट्रीय आदिवासी चेहरे के रूप में पहचाने जाने कुलस्ते के क्षेत्र इनमें से कोई नहीं याने नोटा को 28306 वोट मिलना भी एक अलग ही राजनैतिक संकेत दे रहा है। पिछले चुनाव में कुलस्तें को भाजपा विधायकों के क्षेत्र में ही हार का सामना करना पड़ा था जबकि कांग्रेस विधायकों हरवंश सिंह और नर्मदा प्रसाद प्रजापति के क्षेत्र से उन्होंने जीत हासिल की थी। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर तो सभी इलाकों में थी लेकिन  आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में कांग्रेस की हार इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हों गयी है क्योंकि इस क्षेत्र के आठ में चार विधायक कांग्रेस के थे। 
  • जिले के सभी क्षेत्रों में हुयी कांग्रेस की शर्मनाक हार-विधनसभा चुनाव में समूचे प्रदेश में चली शिवराज लहर के बावजूद भी जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन अव्छज्ञ था। कांग्रेस ने जिले में अपनी परंपरागत सीट केवलारी पर अपना कब्जा बरकरार रखते हुये ना केवल लखनादौन सीट भाजपा से छीन ली थी वरन बरघाट भाजपा के कमल भी कमल की लाज बमुश्किल 2 सौ कुछ वोटों से ही बचाा पाये थे। जिला मुख्यालय वाली सिवनी सीट पर पिछले पांच चुनावों से अपना कब्जा बनाये रखने वाली भाजपा को  यहां निर्दलीय उम्मीदवार ने धूल चटा दी थी जबकि इस बार भाजपा ने अपने दो बार के यहीं से विधायक रहे जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर को उम्मीदवार बनाया था। चंद महीनों बाद ही हुये इस चुनाव के लिये भाजपा ने अपनी कमान वेदसिंह के हाथों सौंप दी थी वहीं दूसरी ओर इस लोस चुनाव में भी कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी ही थे। लेकिन जिले चारों विधानसभा क्षेत्रों में में जिस तरह कांग्रेस को भारी मात मिली है उससे राजनैतिक विश्लेषक भी हैरान है। मंड़ला लोस में आने वाले केवलारी और लखनादौन क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक रजनीश हरवंशसिंह और योगेन्द्र सिंह बाबा है जहां से कांग्रेस को क्रमशः 30 हजार 37 और 11 हजार 5 सौ 56 वोटों से हार का सामना पड़ा जबकि बालाघाट लोस क्षेत्र में आने वाली सिवनी और बरघाट सीट से भी क्रमशः 53 हजार 4 सौ 87 तथा 21 हजार 9 सौ 94 वोटों से कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। जबकि इस बार रजनीश हरवंश सिंह ने जिले के सभी विस क्षेत्रों में सक्रियता दिखा कर अपने पिता के समान जिले का नेता बनने का भी प्रयास किया था। वैसे तो पूरे देश में ही कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को चुनाव परिणामों का अंदाजा था लेकिन जो परिणाम आये उनके बारे में किसी भी पार्टी के नेता को ऐसे परिणामों की उम्मीद तो कतई नहीं ही थी। लेकिन जब समूचे उत्तर भारत में जनता लहर में कांग्रेस का सफाया हो गया था तब भी कांग्रेस ने जिले की पांचों सीटें जीत कर एक रिकार्ड बनाया था तो अब क्या हो गया? यह एक विचारणीय प्रश्न तो है ही। 
  • बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह -विधनसभा के 2003,2008 और 2013 और लोकसभा के 2004,2009 और 2014 के चुनावों में केवलारी विधानसभा क्षेत्र का मिजाज एक सा ही रहा है। हमने इसी कालम में में यह लिखा कि केवलारी क्षेत्र में कांग्रेस का विस जीतने और लोस हारने की परंपरा कायम रहेगी या नया इतिहास बनेगा। लेकिन परिणामों ने बता दिया कि नया इतिहास बनने के बजाय केवलारी ने पुरानी परंपरा का ही निर्वाह किया है। विस चुनावों में 2003 की उमा भारती की आंधी में केवलारी से कांग्रेस के स्व. हरवंश सिह 8 हजार 6 सौ 58 वोटों से चुनाव जीते थे जबकि लोस चुनाव में कांग्रेस की कल्याणी पांड़े 16 हजार 3 सौ 40 वोटों से चुनाव हारीं थीं। इसी तरह 2008 के विस चुनाव में कांग्रेस के स्व. हरवंश सिंह 6 हजार 2 सौ 76 वोटों से चुनाव जीते थे जबकि 2009 के लोस चुनाव में कांग्रेस के सांसद चुने गये बसोरी सिंह 3 हजार 4 सौ 93 वोटों से चुनाव केवलारी से हार गये थे। यहां यह उल्लेखनीय है कि इन दोनों लोस चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी थी। शिवराज की लहर वाले 2013 के विस चुनाव में भी यहां से कांग्रेस के रजनीश हरवंश सिंह 4 हजार 8 सौ 3 वोटों से चुनाव जीते थे लेकिन 2014 के मोदी लहर वाले लोस चुनावों में कांग्रेस को यहां से 30 हजार 37 वोटों से हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस की परंपरागत सीट से इतने अधिक वोटों से कांग्रेस की हार को लेकर राजनैतिक विश्लेषकों में तरह तरह की चर्चा व्याप्त है।
  • प्रभार मिला तो ये हाल प्रत्याशी होंगे तो क्या होगा?-सिवनी विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस उमीदवार राजकुमार पप्पू खुराना की 24 हजार से अधिक वोटों हार पर कांग्रेस के टिकिट के प्रबल दावेदार युवातुर्क यह कहते भी देखे गये कि सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुएं में उड़ गयी। शायद यही बात वे लोस प्रत्याशी एवं राहुल गांधी की निकटवर्ती हिना कांवरे को भी समझाने में सफल रहे। बताया जाता है कि दक्षिण सिवनी स्थित एक कांग्रेस नेता के यहां आधी रात के बाद एक गोपनीय बैठक हुयी जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार के अलावा विधायक रजनीश सिंह,प्रदेश इंका के सचिव राजा बघेल,जिला इंका अध्यक्ष हीरा आसवानी और जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चंदेल शामिल थे। इस बैठक में प्रभार हासिल करने के बाद चुनाव का काम प्रारंभ हुआ तो हालात कुछ अजीब से दिखे।सबको साथ लेकर चलने के बजाय ऐसा महसूस किया गया कि जानबूझ कर कुछ नेताओं को परे रखने की साजिशें पूरे चुनाव के दौरान की जाती रहीं। ऐसा माना जा रहा था कि परिणाम इस बार कुछ अलग आयेंगें लेकिन जब रिजल्ट आया तो कांग्रेस को इस क्षेत्र से 53 हजार 4 सौ 87 वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। जबकि अल्प संख्यक मतों में सेंध लगा सकने वाली सपा प्रत्याशी अनुभा कंकर मुंजारे को मात्र 2373 वोट ही मिले जबकि इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी मुनमुन राय ना तो क्षेत्र में घुमे थे और ना ही उनकी कोई सक्रियता थी। उन्होंनें मात्र मंच से ही भाजपा को समर्थन दिया था।  वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। कांग्रेस का एक वर्ग इन युवा तुर्कों से सिवनी विधानसभा क्षेत्र के लिये बड़ी आशायें रखता है। लेकिन जब मात्र प्रभार मिलने से सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुयें के बजाय हुक्के के धुयें में ऐसी गुमी कि ढ़ूढ़े भी नहीं मिल रही है तो जब प्रत्याशी बनेंगें तो ना जाने क्या होगा? “मुसाफिर“
  • साप्ता. दर्पण झूठ ना बोले सिवनी 
  • 27 मई 2014 से साभार
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पगथिया: नैतिकता ,त्याग,पुरुषार्थ और सरकारी नीतियाँ =स्वर्ण...

पगथिया: नैतिकता ,त्याग,पुरुषार्थ और सरकारी नीतियाँ =स्वर्ण...:

नैतिकता ,त्याग,पुरुषार्थ और सरकारी नीतियाँ =स्वर्णिम भारत 

सरकार बदल देने मात्र से जनता यह सोचे कि अच्छे दिन आ जायेंगे तो यह भूल होगी। व...

26.5.14

मुख्यमंत्री जी, बधाई हो

नीतीश जी के इस्तीफे के बाद भी हमारी हार्दिक इच्छा थी कि वे पुनः मुख्यमंत्री बनें, पर राजनीति केवल जन-भावनाओं के आधार पर नहीं चलती. जयप्रकाश विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर श्री Ramnaresh Sharma जी सही ही कह रहे थे कि हम राजनीतिक हलचलों को अपने दृष्टिकोण से आँकते और देखते हैं और अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर बिल्कुल आदर्श स्थिति की कल्पना करते हैं, पर बहुत सारी उलझनें ऐसी होती हैं जो मीडिया में भी नहीं आती. और फिर राजनेता राजनीतिक दृष्टि से अपने नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर निर्णय लेते हैं. नीतीश जी एक परिपक्व राजनेता हैं, केवल लोकसभा चुनावों में सीटें गँवा देने के कारण वो बिहार में बिल्कुल फ्लॉप कर गए और उनकी प्रासंगिकता खत्म हो गई, ऐसा मैं नहीं मानता. सोशल साईट्स पर शुरुआती दिनों में तमाम लोग इनके लिए कसीदे पढने लगे थे और अब उतनी ही गालियाँ दे रहे हैं. मुझे लगता है इस तरह की दोनों प्रवृत्ति केवल तात्कालिक उत्तेजना का परिणाम है. मैं इनके सबसे अच्छे दिनों में भी जनहित की अनदेखी करने पर व्यवस्था के विरोध में लिख देता था, पर आज जब इनको गालियाँ दी जा रही है तो मुझे दुःख भी हो रहा है. उन्होंने बिहार को आगे बढ़ाने हेतु सही में प्रयास किया है और बहुत क्षेत्रों में काफी सुधार लाया है. गठबंधन टूटने के कारण इनके प्रति नाराजगी बढ़ी है और उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा. पर, इससे इनके द्वारा बिहार के विकास हेतु और राज्य-हित में किए गए कार्यों को नकारा नहीं जा सकता. कोई भी रचनात्मक सोच का आदमी अपनी उपलब्धि और रचनात्मकता को बर्बाद होते नहीं देख सकता. उदाहरण के लिए मुझे पौधारोपण में रूचि है, अगर पौधे का एक डाल भी क्षतिग्रस्त होता है तो मुझे अत्यधिक पीड़ा होती है. नीतीश जी ने भी बिहार को एक बाग़ की तरह सजाने का प्रयास किया है और वे केवल एक चुनाव में असफल हो जाने के कारण राज्य-हित से अलग सोचने लगेंगे, ऐसा नहीं हो सकता. उन्होंने मुख्यमंत्री पद हेतु माननीय जीतन राम माँझी जी का चयन किया है तो यह निश्चित रूप से राज्य और इसकी जनता के हित को ध्यान में रखकर किया होगा. मुझे नवनिर्वाचित माननीय मुख्यमंत्री जी के बारे में बहुत जानकारी नहीं, पर नीतीश जी पर पूरा भरोसा है, वे बिहार के लिए अच्छा ही करेंगे, उनसे राज्य-हित के विरुद्ध कोई कार्य हो ही नहीं सकेगा. कोई माली अपने बाग को बर्बाद नहीं कर सकता. Etv Bihar पर माननीय जीतन राम माँझी की शपथ की खुशी में उनके गाँव-गिराँव के महिलाओं को गीत गाते देखा, उन्हें इतना खुश देखकर मैं भी भाव-विभोर हो गया. उन्हें भी अधिकार है सत्ता में भागीदारी का और सत्ता-सुख प्राप्त करने का, जो लगातार दोषारोपण करते रहे हैं कि उन्हें कतिपय कारणों से सत्ता से दूर रखा जाता है. हम यह कयास कैसे लगा सकते हैं कि वे योग्य सिद्ध नहीं होंगे ? निश्चित रूप से बहुत अच्छा काम करेंगे और मेरी हार्दिक इच्छा है कि बिना कोई सामाजिक दुर्भावना फैलाए वे आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ गए अपने भाई-बंधुओं के उत्थान के लिए भी पर्याप्त काम करें, हमें कोई आपत्ति नहीं. राज्य का विकास सबके विकास से ही संभव हो सकेगा. इसके पीछे का कारण जो भी हो, महादलित समुदाय से बिहार के मुख्यमंत्री का चयन सर्वोत्तम निर्णय है और मैं नीतीश जी के इस निर्णय का ताली बजाकर स्वागत करता हूँ. भगवान नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री को राज्य को और तेजी से विकास पथ पर अग्रसर करने की प्रेरणा दें.

25.5.14

पड़ोसी पाकिस्तान और भारत की नीति ?

पड़ोसी पाकिस्तान और भारत की नीति ?

देश आजाद हुआ और भारतवर्ष खंडित हो गया और उसका ही अँग उसका शत्रु
बन गया जो आज तक सामने के हाथ में फूल और पीछे के हाथ में छुरा रखता
है। क्या इसके पीछे का मूल कारण प्राकृतिक सम्पदा से सम्पन्न कश्मीर है या
पाकिस्तान की काल्पनिक शंका से युक्त मनोदशा ?

पाकिस्तान मामले में भारत का रुख हमेशा से नरम रहा है या ढुलमुल रहा ,इसके
पीछे का कारण अदूरदृष्टा राजनीतिज्ञ रहे या भारतीय लोकतन्त्र की वोटबैंक साधने
की कुटिल नीति ,कारण चाहे दोनों ही रहे हो या एक लेकिन नतीजा यह रहा कि
हमारी सरहद अकारण सुलगती रही और अन्य विदेशी ताकतें जो भारत के बढ़ते
प्रभुत्व को सह नहीं पा रही थी वे अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए पाकिस्तान का
बेजा और भारत का साधारण इस्तेमाल अपना आर्थिक और सामरिक हित साधने
में करती रही।

स्वतंत्र भारत अब अपना नया युग शुरू कर रहा है और ऐसे में सारा विश्व अपनी
निगाहें गड़ाये हर हलचल का अपने -अपने स्वार्थ के अनुसार नफा नुकसान का
गणित पढ़ रहा है। भारत की नीति इस बात को केंद्र में रख कर होनी चाहिए कि 
हमारा बिलकुल भी अहित ना हो और दुश्मन का भी जहाँ तक बन सके वहाँ तक 
भला हो। क्षमा वीरस्य भूषणम  यह नीति है कोई आध्यात्मिक चिन्तन नही है। 
भारत ने आज तक इस नीति का दुरूपयोग किया है और आज तक इसका 
दुष्परिणाम भोगा है। जब शत्रु का अपराध प्रमाणित हो जाता है और वह उचित 
दण्ड से बचा रहता है इसे क्षमा का दुरूपयोग माना जाता है। प्रमाणित अपराध 
पर शत्रु को उचित दण्ड देना ही क्षमा नीति का उपयोग होता है। 

पडोसी देश छोटा है या बड़ा यह बाद की बात है हमारी सीमायें उसकी सीमाओं
से सटी है इसलिए हमारे लिए सबका महत्व है। भारत के विकास के लिए
आवश्यक है पडोसी देशों में सुख समृद्धि और विकास का होना। यदि हमारे
पडोसी देशों में गरीबी ,भुखमरी ,बीमारी और अशिक्षा है तो इसका असर हमारे
पर पड़ना ही है। भारत अपने पडोसी देशों के साथ मिलकर इन मुद्दों पर सार्थक
बात करे यदि ये रुग्णता मिटेंगी तो सरहद पर काफी समस्याएँ खत्म हो जाएगी।
गरीबी और अशिक्षा आतँकवाद को प्रश्रय देते हैं ,हमें खड़ा होना है तो पहले इन
रुग्णताओं को नेस्तनाबूद करना है, अपने देश से भी और पडोसी देशो से भी।
जब पेट भरा होगा तो आवाम जीना चाहेगा और जीने के लिए सहयोग और
सहकार के मन्त्र सीखेगा।

हमें अपने पडोसी देशों को स्पष्ट और कड़ा सन्देश देना पड़ेगा कि भारत में अस्थिरता
फैलाने के सपने देखने वाले पडोसी पर कठोर कार्यवाही की जायेगी जो शाब्दिक
नहीं होगी तथा जो पडोसी अपने देश के विकास के लिए भारत से हर स्तर पर
अच्छे सम्बन्ध रखना चाहता है भारत सदैव उसके साथ सहकार और सहयोग रखेगा।
अगर हमारे पडोसी एक फूल भेँट करेंगे तो हम दस करेंगे और वो एक गोली मारेगा
तो हमारी दस बंदूकें गरजेगी।  

पगथिया: बाप

पगथिया:  बाप:

 बाप की थप्पड़-

 दुनियाँ की अँधड़ से बचाती है;

 क्योंकि -

 उन की थप्पड़ में- 

 अनुशासन का पाठ है ,

 कर्तव्य का ज्ञान है ,

 कुल के गौरव का...

24.5.14

मन । (गीत)

 http://mktvfilms.blogspot.in/2014/05/blog-post_24.html  

मेरा मन किसी, गणिका से  कम  नहीं..!
किसी   बात   पर,  वफ़ा   कायम  नहीं ?
 

१.
 

मन के  द्वार,  हर  दिन  है  जश्न  मगर..!
उसके   तो    क...भी    ऐसे , करम  नहीं..!
मेरा  मन  किसी, गणिका से  कम  नहीं..!
 

२.
 

निपटता   है   मन  और  थकता  हूँ  मैं..!
बस,  आगे   और  इक  भी  कदम  नहीं..!
मेरा  मन  किसी, गणिका से  कम  नहीं..!
 

निपटना = तय करना;
 

३.
 

वश  में    होता   है    मन   कहा   मगर..!
इस   बात  में   कभी,   कोई   दम  नहीं..!
मेरा  मन किसी, गणिका से  कम  नहीं..!
 

४.
 

वफ़ा  की    चाह,  रब  को  भी  है   मगर..!
चंट  ने   कहा,  ऐसा  कोई   नियम  नहीं..!
मेरा  मन  किसी, गणिका से  कम  नहीं..!
 

चंट = धूर्त-कपटी मन;
 

मार्कण्ड दवे । दिनांकः २४-०५-२०१४.

पगथिया: माँ

पगथिया: 

माँ:

 बहुत छोटा सा अक्षर है -माँ 

 मगर, 

 हर रिश्ते से ऊपर है ;

 क्योंकि - इसके दिल में,

 ममता है ,

 वात्सल्य है ,

 दुलार है ,

 इसकी आँख...

22.5.14

सदन में व्यापम घोटाले पर होने वाली चर्चा के लिये कांग्रेस में विभीषण तलाश कर भाजपा उन्हें फिर शामिल कर लेगी?
प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित जिले में भी इन दिनों दल बदल विरोधी कानून के प्रावधानों पर सियासी हल्कों में चर्चा हो रही है। प्रदेश में तीन निर्दलीय विधायक चुनाव जीते थे। इन तीनों ही निर्दलीय विधायकों ने भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सार्वजनिक चुनावी मंचों पर अपनी उपस्थिति दी थी। इसमें सिवनी से चुने गये निर्दलीय विधायक दिनेश मुनमुन राय भी शामिल है। दल बदल विरोधी कानून में यह प्रावधान है कि यदि एक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव के बाद कोई राजनैतिक दल की सदस्यता लेता है तो वह अयोग्य घोषित हो जावेगा। चर्चा गर्म है कि कांग्रेस के कुछ विधायक भाजपा में शामिल हो सकते है। ये कब और कैसे भाजपा में शामिल होंगें? इसे लेकर तरह तरह के कयास लगाये जा रहें है। अविश्वास प्रस्ताव की तरह ही कांग्रेस में सेंध लगाकर भाजपा के रणनीतिकार आगामी विधानसभा सत्र में हंगामा मचा सकने वाले व्यापम घोटाले से निपटने की रणनीति बना रहें है। इसमें महाकौशल अंचल के विधायकों के नामों को लेकर तरह तरह की चर्चा व्याप्त है। नरेश खुद भी चुनाव हार गये थे। इसलिये नैतिक आधार पर उन्होंनें भाजपा के अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया था। प्रदेश भाजपा ने जिले की कमान वरिष्ठ नेता वेदसिंह को सौंप दी थी। उनके नेतृत्व में जिले में भाजपा को रिकार्ड तोड़ जीत हासिल हुई और चारों विस क्षेत्रों में भाजपा ने बढ़त ली है।
यदि भाजपा की सदस्यता लेते तो विधायक नहीं रह जाते मुनमुन?-प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित जिले में भी इन दिनों दल बदल विरोधी कानून के प्रावधानों पर सियासी हल्कों में चर्चा हो रही है। लोस चुनावों के दौरान जिस तरह से भाजपा के प्रति आकर्षण दिखा और उसके चलते जो आया राम गया राम को ख्ेाल चला इसी कारण यह चर्चा जारी है। प्रदेश में तीन निर्दलीय विधायक चुनाव जीते थे। इन तीनों ही निर्दलीय विधायकों ने भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सार्वजनिक चुनावी मंचों पर अपनी उपस्थिति दी थी। इसमें सिवनी से चुने गये निर्दलीय विधायक दिनेश मुनमुन राय भी शामिल है जिन्होंने बालाघाट में मोदी के मंच पर और सिवनी में शिवराज सिंह चौहान के चुनावी मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी जिस मंच  से भाजपा को जिताने की अपील की गयी थी। लेकिन प्रदेश तीनों ही निर्दलीय विधायकों ने भाजपा में शामिल होने की घोषणा नहीं की थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा की सभाओं में शिरकत करने के बाद भी भाजपा में शामिल ना होना चर्चित है। राजनैतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि भाजपा का ख्ुालेआम साथ देने के बाद भी भाजपा की औपचारिक रूप से सदस्यता ना लेने का कारण दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों का है। राजीव गांधी की सरकार ने 1985 में दल बदल पर रोक लगाने के लिये दल बदल विरोधी कानून पास किया था। इसमें निर्वाचित जनप्रतिनिधि के अयोग्य घोषित होने का यह प्रावधान है कि ष्प िंद पदकमचमदकमदज बंदकपकंजम रपवदे ं चवसपजपबंस चंतजल ंजिमत जीम मसमबजपवदष्याने यदि एक निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव के बाद कोई राजनैतिक दल की सदस्यता लेता है तो वह अयोग्य घोषित हो जावेगा। राजनैतिक विश्लेषकों का यह दावा है कि इसीलिये प्रदेश के निर्दलीय विधायकों को एक रणनीति के तहत भाजपा की औपचारिक रूप से सदस्यता नहीं दिलायी गयी है क्योंकि यदि ऐसा किया जाता है उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो जावेगी और विधायक बनने के लिये उन्हें फिर से चुनाव लड़ना पड़ेगा। जिन क्षेत्रों में जिन निर्दलीय उम्मीदवारों से भाजपा हारी है वहीं उन्हीं निर्दलीय विधायकों को भाजपा की टिकिट पर फिर से चुनाव जितवाना आसान नहीं होगा। कहा जाता है कि इसीलिये इन निर्दलीय विधायकों को विधिवत सदस्यता नहीं दिलायी गयी है। 
क्या कुछ कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल होंगें ?-प्रदेश के राजनैतिक क्षेत्रों में इस बात की भी चर्चा गर्म है कि कांग्रेस के कुछ विधायक भाजपा में शामिल हो सकते है। ये कब और कैसे भाजपा में शामिल होंगें? इसे लेकर तरह तरह के कयास लगाये जा रहें है। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के रणनीतिकार आगामी विधानसभा सत्र में हंगामा मचा सकने वाले व्यापम घोटाले से निपटने की रणनीति बना रहें है। उल्लेखनीय है कि पिछली विधानसभा के अंतिम सत्र में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव से निपटने के लिये भाजपा ने कांग्रेस के जवाब देने के बजाय कांग्रेस में ही सेंध लगाने की रणनीति बनायी थी। इसी के तहत कांग्रेस विधायक दल के उप नेता चौधरी राकेश सिंह ने बगावत की थी और शिवराज सरकार को घेरने की कांग्रेस की रणनीति धरी की धरी रह गयी थी। शिवराज की तीसरी पारी में व्यापम घोटाला सरकार  के गले की फांस बन रहा है। कांग्रेस भी इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने के प्रयास कर रही है। प्रदेश की राजनीति की अंदरूनी जानकारी रखने वालों का यह दावा है कि अविश्वास प्रस्ताव की तरह ही भाजपा इस बार भी कांग्रेस में सेंध लगाकर ही अपना बचाव करने की रणनीति पर चल रही है। कहा जा रहा है कि भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के इच्छुक कांग्रेस विधायकों से इस दौरान चौधरी राकेश सिंह की भूमिका अदा करवा कर ही उनको सदस्यता देने पर कार्यवाही की जायेगी। इस समय नेता प्रतिपक्ष के रूप में सत्यदेव कटारे विधानसभा में काम कर रहें है। जबकि पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी विधायक दल के सदस्य है। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक एवं तत्कालीन विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह का स्वर्गवास हो जाने कारण वे अब सदन में नहीं रहेंगें। उनके स्थान पर उनके पुत्र रजनीश सिंह अब विधायक है। भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वाले कौन विधायक हैं? इनके नामों को लेकर तमाम कयास लगाये जा रहें हैं। जानकारों का यह भी दावा है कि इनमें महाकौशल अचंल के भी कुछ विधायक शामिल है। लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली भारी सफलता के बाद इन चर्चाओं को और अधिक बल मिल गया है। अब यह तो वक्त ही बतायेगा कि कौन कौन से कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल होगें या यह चर्चा सिर्फ चर्चा ही रह जायेगी? एक चर्चा यह भी है कि भाजपा यह कोशिश में लगी है कि दल बदल कानून के प्रावधानों से बचने के लिये इतनी संख्या बढ़ाने की कोशिश की जा रही है ताकि दल बदल करने वाले विधायकों की सदस्यता बरकरार रहें। उल्लेखनीय है कि यदि सदन की सदस्य संख्या में से एक तिहायी से अधिक सदस्य अलग होते है तो वह उस राजनैतिक दल का विभाजन माना जाता है।
क्या कुछ कांग्रेस विधायक भाजपा में शामिल होंगें ?-विधानसभा चुनावों में जिले में भाजपा बैकपुट पर आ गयी थी। जिले की चार सीटों में से तीन पर काबिज भाजपा इस चुनाव में बमुश्किल एक सीट ही जीत पायी थी। जबकि कांग्रेस ने दो सीटें जीत ली थींे। इस दौरान जिले के पूर्व विधायक मविप्रा के पूर्व अध्यक्ष नरेश दिवाकर के हाथों में भाजपा की कमान थी। वे खुद भी चुनाव हार गये थे। इसलिये नैतिक आधार पर उन्होंनें भाजपा के अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया था। प्रदेश भाजपा ने जिले की कमान वरिष्ठ नेता वेदसिंह को सौंप दी थी। उनके नेतृत्व में जिले में भाजपा को रिकार्ड तोड़ जीत हासिल हुई और चारों विस क्षेत्रों में भाजपा ने बढ़त ली है। बालाघाट लोस में आने वाली सिवनी सीट से भाजपा ने रिकार्ड 53487 तथा बरघाट सीट से 22004 वोटों से बढ़त हासिल कर ली। जबकि मंड़ला लोस में आने वाली केवलारी सीट से 28500 तथा लखनादौन विस से  9546 वोटों से जीत हासिल की है। यहां यह उल्लेखनीय है इन दोनों ही सीटों से कांग्रेस के रजनीश सिंह और योगेन्द्र सिंह बाबा विधायक है और नवम्बर 13 की शिवराज लहर में ये दोनों चुनाव जीते थे।“मुसाफिर“
साप्ता. दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
20 मई 2014 से साभार 

ताकत

ताकत 

गाँव के पास तालाब के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे तभी एक दौ मुँह वाला साँप
रेंगता हुआ आ गया। पहले तो बच्चे साँप -सांप चिल्ला कर भयभीत हुये फिर
कुछ दूर जाकर ध्यान से उसे देखा और उसके निकट आकर उसे मारने सताने
लगे। दौ मुँह वाले साँप को सताते बच्चों को देख पास की कुटिया से एक महात्मा
निकले और उन्होंने बच्चों से पूछा -क्या तुम लोगों को भय नहीं है इससे ?

बच्चों ने कहा -यह दौ मुँह वाला दोगला साँप है इसमें ताकत नहीं होती है इसलिए
इससे भय कैसा ?

कुछ दिन बाद बच्चे वहां खेल रहे थे तभी एक साँप का बच्चा वहां से रेंगता हुआ
जा रहा था ,बच्चे साँप -साँप चिल्लाकर भयभीत हुये ,सुरक्षित दुरी से उन्होंने
उस साँप के बच्चे को देखा और चिल्लाये -भागो ,कालिंदर नाग का बच्चा है।

बच्चों को भागते देख महात्मा ने उन्हें रोका और पूछा -क्यों भाग रहे हो ?

बच्चों ने समवेत स्वर से कहा -सांप का बच्चा है वहाँ।

महात्मा ने निकट जाकर साँप के बच्चे को देखा और बोले -कुछ दिनों पहले
बड़े साँप से नहीं डरने वाले बच्चे इस नन्हे सपोलिये से क्यों डर रहे है ?

बच्चो में से एक ने कहा -महात्माजी ,उस दिन वाला दोगला साँप था जिसमे
जहर की ताकत नहीं थी ,यह सपोलिया (बच्चा) जरूर है पर काले नाग की
प्रजाति वाला है इसमें जहर की ताकत है।

महात्मा ने कहा -बच्चो ,तुम भी जिंदगी में ऐसे ही बनो ,दुष्ट व्यक्ति यदि शान्त
हो तो उसे छेड़ो मत और दुष्ट यदि तुम्हे अकारण छेड़ रहा हो तो पूरी शक्ति से
आक्रमण कर दो मगर दोगली नीति कभी मत रखना।  

21.5.14

पगथिया: विस्तृत हो नये भारत का PMO

पगथिया: विस्तृत हो नये भारत का PMO: आचार्य चाणक्य ने राज व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मन्त्र दिये हैं। राजा के मंत्री ही उसकी आँख होती...

20.5.14

कहाँ गए वो लोग
कहाँ गए वो लोग जो कहा करते थे जो कहा करते थे कि  मोदी प्रधानमन्त्री बने तो देश में आग लग जायेगी । जिन्हें मोदी में एक शैतान नजर आता था । जो इस व्यक्तित्व में एक हैवान और दरिंदा देखते थे । जिन्हे यह आदमी हत्यारा नजर आता था । जो कहा करते थे कि  वह कसाई है । जिनको इसमें एक आदमखोर दिखाई देता था । जो नरेंद्र मोदी की तुलना बलात्कारी आसाराम से करते थे । जिन्होंने उन्हें कुत्ते के बच्चे के बड़े भाई कहकर उनके  पिता को ही गाली दे डाली थी । वे सब अब कहाँ है ?
वे लोग अब कहाँ मुंह छिपाए बैठे हैं जिन्होंने इस महानायक को बेवकूफ और गधा कहा था । वे कहाँ हैं जिन्होंने  कहा था कि  मोदी एकांत में लड़कियों के फ़ोन सुनते हैं । मैं उन्हें ढूंढ रहा हूँ जिन्होंने कहा था कि उनके आने पर देश  अँधेरा छा जाएगा । जिन्होंने उन्हें खून के समंदर में नहाया हुआ बताया था । जिन्होंने कहा था मोदी के मन में महिलाओं के प्रति कुंठा है वे अब बाहर क्यों नहीं आते ? वह दलित नेत्री  कहाँ है जिसने कहा था मोदी देश को बर्बाद कर देंगे । उसे ढूंढना चाहता हूँ जिसने कहा था कि  मोदी देश  होली खेलना  हैं । मोदी को नीच राजनीति करने वाला कहने वाले कहाँ हैं । उनकी कमर में रस्सी डालकर उन्हें जेल  डाल  देने की बात करने वाले अब चुप क्यों हैं ।
लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश करने से पहले उसे प्रणाम करने वाले इस नायक को यह कहने वाले कहाँ हैं कि  - लोकतंत्र एक मंदिर है और कुछ कुत्ते इस मंदिर में प्रवेश कर जाते हैं और टांग खड़ी  कर देते हैं ।उन्हें दीखता नहीं है कि  वह व्यक्ति अब पी एम बन रहा है । वे कहाँ छिप गए जो मोदी के टुकड़े करने वाले थे । नया नया मुल्ला कहने वाले अपनी पार्टी को बचाने और इस्तीफे का नाटक करने में लगे हैं । मोदी को दानव कहने वाले  दिखाने में शर्माने लगे हैं । मोदी को देश  खतरा बताने वाले बुढ़ापे में दूजा ब्याह रचाने की तैयारी में लगे हैं । उन्हें रावण कहने वाले अपने राम को बचाने में लगे हैं । जिन्होंने उनको चायवाला कहकर उनकी क्षमता  पर सवाल उठाया था उनका पारिवारिक समाजवाद यू  पी में नष्ट हो गया है  और चाय अब गले से नहीं उतरती  । जिन्हें मोदी बड़बोले दिखते  थे वे अब खुद मौन बैठे हैं । उन्हें चोर कहने वाला अपनी आस्तीन समेटे हास्य का पात्र बन बैठा है । उनके पी एम बनने पर बाइस हज़ार मरेंगे कहने वाला हताश बैठा है । उन्हें भारत माता की मूर्ति को विकृत करने वाला कुत्ता कहने वालों को सांप सूंघ बैठा है । उन्हें वोट देने को गद्दारी कहने वाला दिल्ली की सरकार के जुगाड़ में बैठा है । मोदी से दोस्ती उजागर होने पर परेशान होने वाले परेशान बैठे हैं ।
मोदी के पी एम बनने  पर लड़कियों का क्या होगा कहने वाला खिसियानी हंसी हंस रहा है । गुजरात मॉडल को कत्लेआम कहने वाला गुमशुदा है \।
और दूसरी तरफ यह महानायक कहता है कि  खत्म हो गयी चुनावी गर्मी । यह सरकार गरीबों की है । युवाओ की है । माताओं बहनों की है । यह इस मंदिर को प्रणाम करता है । विनम्रता की मिसाल पेश करता है । यकीन दिलाता है कि  वह परिश्रम की पराकाष्ठा करेगा । वह कहता है कि  किसने क्या किया यह महत्वपूर्ण नहीं है ,जरूरी है कि  आगे क्या करना है । वह श्रेय लेने से भी हिचकिचाता है । भावुक  होता है ।वह धर्म जाति से परे  एक सौ पच्चीस करोड़ की बात करता है ।
सोचता हूँ , अब इन सबका क्या करें जो बड़बड़ाते फिर रहे थे ?

from - dr dwijendra vallabh sharma
village motichur haripur kalan
raiwala dehradun
phone 9359768881



करारी हार के बावजूद जनता के संदेश को नहीं समझ पा रहा विपक्ष-ब्रज की दुनिया

20 मई,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,बात चाहे खेल की हो या राजनीति की जब भी कोई टीम या पार्टी हारती है तो उससे यही अपेक्षा की जाती है कि वह हार के कारणों की समीक्षा करेगी और कारणों को समझकर उसे दूर करने के प्रयास करेगी। मगर लगता है कि हमारे देश की विपक्षी पार्टियाँ करारी हार के बावजूद यह समझ नहीं पा रही है या फिर समझना चाहती ही नहीं है कि जनता ने मतदान द्वारा क्या संदेश दिया है। अगर वे इसी तरह से नादानी करते रहे तो हमें कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर निकट-भविष्य में विधानसभा चुनावों में भी उनको सिर्फ पराजय और निराशा ही हाथ लगे।
मित्रों,कांग्रेस पार्टी का कहना है कि उसकी नीतियाँ तो अच्छी थीं लेकिन भाजपा ने दस हजार करोड़ के प्रचार-बजट से उनको मात दे दी। पता नहीं कांग्रेस वो कौन-सी नीति की बात कर रही है जो अच्छी थीं। क्या उनकी कोयला नीति सही थी,स्पेक्ट्रम नीति अच्छी थी,रक्षा खरीद नीति बेहतरीन थी? वे आजादी के 70 साल बाद आधी रोटी और पूरी रोटी की बात करते हैं और फिर भी अपनी नीतियों पर शर्मिंदा नहीं होते जबकि 70 सालों में 60 सालों तक उनका ही शासन रहा है। उन्होंने सूचना का अधिकार तो दे दिया लेकिन सूचनाएँ दी क्या? जब भी किसी ने राबर्ट वाड्रा से संबंधित जानकारी मांगी तो बहाना करके टाल दिया। लोग इस अपीलीय अधिकारी से उस अपीलीय अधिकारी के यहाँ चक्कर काटते रहते हैं लेकिन राज्य सरकारों का तंत्र सूचना नहीं देता। फिर कैसा सूचना का अधिकार,कौन सा सूचना का अधिकार? केंद्र में शिक्षा का अधिकार तो कागज पर दे दिया लेकिन देश के किसी भी गरीब-भुक्खड़ के बच्चों को इससे कोई लाभ हुआ क्या? फिर यह कैसा अधिकार है जो वास्तव में है ही नहीं?! भारत की जनता को केंद्र सरकार द्वारा भिखारी मान लिया जाना क्या अच्छी नीति कही जा सकती है? यह मुफ्त वह मुफ्त लेकिन रोजगार नहीं देंगे। केंद्र सरकार ने महंगाई को नियंत्रित करने के लिए क्या किया? कौन-सी नीति अपनाई? क्या देश को जानलेवा महंगाई की आग में झोंक देना उसकी अच्छी नीति थी? कल जब कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक थी तो उम्मीद की जा रही थी कि उसमें हार के कारणों की गहराई और विस्तार से समीक्षा की जाएगी और जरूरी कदम उठाएंगे। मगर हुआ क्या माँ-बेटे ने इस्तीफा दिया,कार्यसमिति ने पूर्वलिखित नाटक की तरह नामंजूर कर दिया और कर्त्तव्यों की इतिश्री हो गई।
मित्रों,हमारे विपक्षी दल अभी भी एक-दूसरे के सिर पर हार का ठीकरा फोड़ने में लगे हैं और अपने गिरेबान में झाँक नहीं रहे हैं। समाजवादी पार्टी कहती है कि हम कांग्रेस के कारण हारे जबकि जबसे यह पार्टी उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई है तबसे उसने ऐसा कोई भी एक काम नहीं किया है जिससे जनता को अपनी सरकार पर गर्व हो। अभी कल ही उसके मंत्री आजम खान आधी रात में अपने गुर्गों को छुड़वाने के लिए रामपुर जिले के अजीमनगर थाने पर जा धमकते हैं। उनके पूरे गृह जिले रामपुर में किसान नलकूपों को बिजली नहीं मिलने से परेशान हैं मगर उनकी समस्याओं की ओर मंत्रीजी की निगाह नहीं जाती उनका पूरा ध्यान अपने गुंडों को बचाने पर रहता है। पार्टी की बैठक में जनता की समस्याओं और उनके विकास पर चर्चा नहीं होती बल्कि इस बात पर बहस की जाती है कि किस जाति और धर्म के कितने लोगों ने हमें वोट दिया और कितनों ने नहीं दिया मगर लखनऊ में पानी किल्लत पर कोई बात नहीं होती।
मित्रों,अपने को प्रधानमंत्री का सबसे सुटेबल उम्मीदवार माननेवाले नीतीश कुमार की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। उनको लगता है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने से बेहतर है पद से इस्तीफा दे देना। क्या यह अस्पृश्यता नहीं है? नीतीश जी मानते हैं कि महादलित को मुख्यमंत्री बना देने मात्र से महादलितों की जिन्दगी बदल जाएगी और वे फिर से उनके पाले में आ जाएंगे। क्या महादलितों का विकास सिर्फ एक महादलित ही कर सकता है? क्या उनका दर्द सिर्फ एक महादलित ही समझ सकता है? क्या ईमानदारी और योग्यता की कोई कीमत नहीं होती सबकुछ जाति ही होती है? अगर अभी  भी नीतीश ऐसा ही समझते हैं तो वे निश्चित रूप से फिर से मुँह की खानेवाले हैं। दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र को जाति नहीं विकास चाहिए,रोजगार चाहिए। चुनाव परिणामों ने आसमान में एक ईबारत लिख दी है कि जाति और संप्रदाय के नाम पर बाँटकर वोट पाने के दिन अब लद गए। समाप्त हो गया वह युग जब जनता के बीच पैसे और सामान बाँटकर वोट बटोर लिया जाता था। वीत गया वह समय जब जनता नंगी-भूखी रहकर भी किसी खास राजनैतिक परिवार के लिए जान तक देने को तैयार रहती थी। उस कालखंड का भी अंत हो गया जब चुनाव-दर-चुनाव एक ही वादा कर करके पार्टियाँ चुनाव जीत जाया करती थी। अच्छा होगा कि हमारे विपक्षी दल इस नए जमाने की नई तरह की राजनीति को यथाशीघ्र समझ लें और उसके अनुसार अपने आपको ढाल लें नहीं तो जनता तो उनको अप्रासंगिक बना ही देगी।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

18.5.14

हाँ ,यह हिँदुत्व की जीत है।

हाँ ,यह हिँदुत्व की जीत है। 

2014 के चुनाव परिणाम का निष्कर्ष यही है कि यह हिंदुत्व की जीत और छद्म
धर्म निरपेक्षता के दानव की वध कथा है। यह मेरी कट्टर सोच नहीं है क्योंकि
हिन्दुत्व  सर्वधर्म सद्भाव और समभाव की विरासत से लबालब है। स्वतंत्र
भारत के नेताऑ की नई जमात ने फिरंगी नीति पर ही काम किया। देश में
फुट डालो और राज करो की नीति ने राष्ट्रवाद ,राष्ट्र प्रेम और आर्य संस्कृति को
मटियामेट कर दिया। हिन्दू जातियों को जन्म के आधार पर तोड़ने का काम
हजारों वर्षों में नहीं हुआ उतना 60 वर्ष में हुआ। अनपढ़ और गरीब कुचले हिन्दू
अपने सर्वांगीण विकास के लिए देश के मति भ्रष्ट नेताओ के साथ हो गये और
मुस्लिम वर्ग को हिंदुऑ का झूठा भय दिखाकर उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा से
अलग रख वोट बैंक बना डाला ,मतिभ्रष्ट नेताओं की इस नीति ने उन्हें सत्ता का
सुख दिया मगर देश कंगाल होता गया। सोने की चिड़ियाँ फड़फड़ाती रही।

नास्त्रेदम की भविष्यवाणी थी की एशिया की धरती से एक भगवा सन्त आयेगा
जो विश्व को नयी प्रेरणा देगा ,हम लोगों ने उसे किवदंती मान लिया मगर समय
अपना काम करता है। जब प्रकृति ने वैरागी संत को वापिस जन -जन के कल्याण
के लिये पून: समाज को समर्पित कर दिया तो वह संत सेवा में निस्वार्थ भाव से
लग गया ,विरोधियों ने उस पर नाना तरह के आरोप लगाये,विदेशी ताकतों ने उसे
गिराने की भरपूर कोशिश की मगर दैव उस संत के साथ खड़ा हो गया।

देश ने 16 मई 2014 में अद्भुत युग परिवर्तन देखा। यह युग परिवर्तन जातिवाद के
खिलाफ था,तुष्टिकरण की कुत्सित राजनीती के खिलाफ था ,देश का राष्ट्रवादी समाज
संगठित हो गया क्योंकि वह जाति और आराधना पद्धति पर चल रही राजनीति से
ऊब गया था उसे रोटी, रोजगार और रक्षा चाहिये थी और उसके लिए वह घर से
बाहर निकला और अपने मत के अधिकार का उपयोग किया। फिर वही हुआ जो
विश्व अचम्भे से देख रहा है और अपने उलझे समीकरण सुलझा रहा है ।

हिँदुत्व के इस नये युग में हिँदुत्व अपनी मूल व्याख्या में आयेगा। परहित चिंतन,
सद्भाव,समभाव,सर्वजन सुखाय,पुरुषार्थ,स्वाभिमान के गुणों से युक्त हिँदुत्व का
उदय निश्चित है। घट -घट में राम को देखने की नीति दिखेगी,विश्व समुदाय हिँदुत्व
को कमतर नहीं आँकेगा ,कायर नहीं समझेगा उसका कायल हो जायेगा।             

हिन्दुस्तानी एकेडमी में प्रयाग प्रेस क्लब द्वारा आयोजित कार्यक्रम में निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव ने पत्रकारों को दिए बीमा बॉण्ड


पत्रकार लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ के पहरुए हैं और उनकी सुरक्षा बेहद जरुरी है। यह एक अजीब संयोग है कि जो पत्रकार लोगों की आवाज़ उठाते हैं, अपने ही मामले में शांत रह जाते हैं।  उक्त उद्गार हिंदुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद में 14 मई, 2014 को  'प्रयाग प्रेस क्लब’ एवं 'उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा)' के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं एवं चर्चित साहित्यकार व् सोशल मीडिया एक्टिविस्ट श्री कृष्ण कुमार यादव ने व्यक्त किया। श्री यादव ने कहा कि प्रयाग प्रेस क्लब ने जिस कार्य के लिए इस संगठन का गठन किया है, वह बहुत ही सराहनीय कार्य है। आज पत्रकारों की सबसे अहम समस्या आवास की है और ऐसे पत्रकारों को आवास उपलब्ध कराने का जो बीड़ा प्रयाग प्रेस क्लब ने उठाया है, वह काबिलेतारीफ है। इस अवसर पर प्रयाग प्रेस क्लब’ की तरफ से  अध्यक्ष श्री पवन कुमार द्विवेदी ने श्री कृष्ण कुमार यादव का माल्यापर्ण द्वारा एवं शाल ओढ़ाकर सम्मान भी किया। कार्यक्रम के दौरान इलाहाबाद परिक्षे़त्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने  शहर के कई वरिष्ठ पत्रकारों को सम्मानित किया । 

प्रयाग प्रेस क्लब के अध्यक्ष पवन कुमार द्विवेदी और महामंत्री भूपेश सिंह ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव के अलावा  वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार आनन्द नारायण शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार के सी मौर्या, नचिकेता नारायण, संजय कुमार को माल्यार्पण कर एवं शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार शुक्ला ने कहा कि आज पत्रकारों की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है, प्रयाग प्रेस क्लब की ओर से पत्रकारों का जो दुर्घटना बीमा कराया गया है, वह वास्तव में संगठन का सराहनीय कार्य है। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार आनन्द नारायण शुक्ला, के सी मौर्या, नचिकेता नारायण ने कहा कि यह ऐसा पहला पत्रकार संगठन है, जिसने पत्रकारों के हित के बारे में सोचा है। प्रयाग प्रेस कलब के अध्यक्ष, महामंत्री समेत सभी पदाधिकारी इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं। प्रयाग प्रेस क्लब के अध्यक्ष पवन कुमार द्विवेदी ने नवगठित प्रयाग प्रेस क्लब के बारे में बताते हुए आगामी योजनाओं की घोषणा की। 

मुख्य अतिथि इलाहाबाद परिक्षे़त्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने  इस मौके पर तमाम पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्ट्स को बीमा बांड वितरित किया। मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों के हाथों बीमा बांड ग्रहण करने वालों में वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश मिश्रा, पवन कुमार द्विवेदी, भूपेश सिंह, कुन्दन श्रीवास्तव, संजय कुमार, संदीप कुमार दुबे, सूर्य प्रकाश त्रिपाठी, वरिष्ठ छायाकार विभु गुप्ता, रंजन मिश्रा, नवीन सारस्वत, अनुराग शुक्ला, जितेन्द्र प्रकाश, भीम सिंह यादव, अनूप रावत, सत्यम श्रीवास्तव, दिलीप गुप्ता, विनोद कुमार, पत्रकार नागेन्द्र सिंह, अंजनी श्रीवास्तव, विद्याकांत मिश्रा, मनीष द्विवेदी, अमरदीप चौधरी, संतोष जायसवाल, वीरेन्द्र द्विवेदी, अनुराग तिवारी, गौरव केशरवानी, चन्द्रशेखर सेन, देवेन्द्र त्रिपाठी, संतोष तिवारी, सलीम अहमद, प्रदीप गुप्ता, रोहित शर्मा, अमरजीत सिंह, इरफान खान समेत 151 पत्रकार शामिल हैं। वहीं इस मौके पर अतिथियों को उपजा द्वारा प्रकाशित डायरेक्टरी भी वितरित की गयी। समारोह का संचालन वरिष्ठ पत्रकार मनीष द्विवेदी एवं धन्यवाद ज्ञापन अध्यक्ष पवन कुमार द्विवेदी ने किया। 

देवा रे देवा नीतीश कुमार की इतनी हेराफेरी!-ब्रज की दुनिया

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कल न जाने क्यों 3 बजे दोपहर में मेरे मोहल्ले की बिजली चली गई और आई तो साढ़े चार बज रहे थे। इसी बीच मुझे फेसबुकिया दोस्तों से मालूम हुआ कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया है। यकीन ही नहीं हुआ लेकिन जब इंटरनेट पर ढूंढ़ा तो पता चला कि यही सच है। फिर 5 बजे नीतीश कुमार ने संवाददाता सम्मेलन किया और कहा कि हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए वे इस्तीफा देते हैं। उन्होंने जनता के विवेक पर प्रश्न-चिन्ह लगाते हुए कहा कि बिहार में मतदान सांप्रदाय़िक ध्रुवीकरण के आधार पर हुआ है जिससे वे क्षुब्ध हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कल 4 बजे शाम में जदयू विधायक दल की बैठक होगी। मन में कई तरह के कयास जन्म लेने लगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा जिसने बिहार के मुख्यमंत्री को इस्तीफी देने पर मजबूर कर दिया क्योंकि मैं नहीं मानता कि इन कथित नमाजवादियों के पास थोड़ी-सी भी नैतिकता बची हुई है जिसके आधार पर ये इस्तीफा दें। तभी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे टीवी पर प्रकट हुए और नीतीश के पद-त्याग को कोरा नाटक करार दे दिया। झारखंड भाजपा नेता सीपी सिंह ने तो कह भी दिया कि इनके पास नैतिकता है ही नहीं तो फिर ये कैसे नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे सकते हैं।
मित्रों,इसके बाद टीवी पर दिखाई दिए जदयू के ऱाष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव और दावा कर गए कि कल उनके फैसलों से सभी चौंक जाएंगे। साथ ही उन्होंने कथित धर्मनिरपेक्षता की प्राण-रक्षा की खातिर अपने चिर शत्रु रहे लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाने का दावा किया। उधर लालू जी ने भी उनकी तरफ बढ़े हुए मजबूरी की दोस्ती के बढ़े हुए इस हाथ को झटका नहीं दिया और थाम लेने के संकेत दिए।
मित्रों,लेकिन इस नाटक पर से पर्दा उठा दिया जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने। त्यागी जी से जब पूछा गया कि क्या कल नीतीश जी की जगह किसी दूसरे व्यक्ति को नेता चुना जाएगा तो उन्होंने कहा कि ऐसा संभव ही नहीं है। नीतीश हमारे सर्वमान्य नेता हैं। उन्होंने एनडीए को चुनौती दी कि हम उनको 24 घंटे का समय देते हैं इस बीच अगर उनके पास बहुमत है तो सरकार बना लें। अब कोई रहस्य नहीं रह गया था,सबकुछ सामने था। स्पष्ट हो चुका था कि नीतीश जी यह इस्तीफा उसी तरह से दिया गया इस्तीफा था जिस तरह कि उन्होंने कभी रेल मंत्री के पद से दिया था। तब उन्होंने इस्तीफे को सीधे राष्ट्रपति को नहीं भेजकर प्रधानमंत्री को भेज दिया था जिन्होंने स्वाभाविक तौर पर उनके त्याग-पत्र को नामंजूर कर दिया था। इसलिए नीतीश कुमार के पुराने रिकार्ड को देखते हुए संभावना तो यही है कि आज फिर से विधायक दल की बैठक में नीतीश कुमार जी खुद को नेता चुनवाएंगे और फिर से मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेंगे। देवा रे देवा इतनी हेराफेरी! नीतीश जी जितना नाटक करना है करिए लेकिन जनता के विवेक पर सवाल खड़े नहीं करिए। अवसर आपके लिए भी खुले हुए थे। आपने क्यों जनता को अपनी तरफ नहीं कर लिया? नरेंद्र मोदी ने तो कहीं सांप्रदायिकता की बात ही नहीं की फिर जनता ने कैसे सांप्रदायिक बहकावे में आकर मतदान कर दिया? आप हार चुके हैं,हारना भी सीखिए और हार को पचाना भी। जनता आपको भी समझ रही है और आपके नाटकों को भी जो आप पिछले 8 सालों से बिहार के रंगमंच पर खेल रहे हैं। मिला लीजिए जंगलराज के डाइरेक्टर लालू जी से भी हाथ और फिर भी करते रहिए नैतिक होने का ढोंग।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

17.5.14

छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी-ब्रज की दुनिया

17-05-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आज का सूर्योदय आपने देखा होगा और पाया होगा कि आज भी सूरज पूरब से निकला है लेकिन वह सूरज झूठा है। आज के भारत का वास्तविक सूरज पूरब से नहीं सुदूर पश्चिम से उदित हुआ है। कल तक हम जब पुराने सूरज की रोशनी में थे तो हमें लालची,नपुंसक,जातिवादी और संप्रदायवादी कहा जाता था लेकिन आज हमने उतार फेंका है इन आरोपों को और पूरी ताकत से उछाल दिया है दुनिया के आसमान में एक पत्थर जो हमें उम्मीद है कि नाकामी और मायूसी के बादलों को तितर-बितर करके रख देगा।

मित्रों,हमें नहीं चाहिए खैरात हमें तो काम चाहिए। आखिर हम दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र जो ठहरे। हमें नहीं चाहिए भीख की रोटी हमें तो ईज्जत की रोटी चाहिए। हमें नहीं चाहिए एक अंतहीन इंतजार कि अब हमारे राजनीतिज्ञ देश को बदलनेवाले हैं। कभी नेपोलियन ने अपने एक सेनापति से कहा था कि चेंज योर वाच अदरवाईज आई विल चेंज यू। लीजिए हमने अपना सेनापति बदल दिया क्योंकि हमारे लिए प्रतीक्षा अब असहनीय हो गई थी। जबकि कंप्यूटर के एक क्लिक से पलक झपकते ही बड़े-बड़े काम संपन्न हो जाते हैं हमारे राजनेता चुनाव-दर-चुनाव पुराने वादों पर ही अँटके थे।

मित्रों,हम भी चाहते हैं दुनिया के विकास की दौड़ में रेस लगाना और सबसे आगे निकलना। हमारा युवा रक्त कैसे बर्दाश्त करता कि चीन,पाकिस्तान जैसे पड़ोसी हमें आँखें दिखाए। हमारा युवा जोश कैसे सहता कि चीन की जीडीपी हमारी जी़डीपी की तीन गुना से भी ज्यादा हो गई है। हमारी इस्पाती नसें और हिमालय सरीखी दृढ़ता भला इस सत्य को कैसे स्वीकार करतीं कि भारत सरकार ठगों और भ्रष्टाचारियों का दुनिया में सबसे बड़ा जमावड़ा बन गई है। हमें तो वादे नहीं इरादे चाहिए थे इसलिए हमने इस बार बिल्कुल नए इरादे से मतदान किया और नए सिरे से लिख दिया भारतीय राजनीति की प्रस्तावना को। अब से हमारे जान से भी ज्यादा प्यारे भारत में सिर्फ-और-सिर्फ विकास चलेगा और विकास की ही राजनीति चलेगी। नहीं चलेगा जातिवाद और संप्रदायवाद के नाम पर ठगी सिर्फ सच्चा राष्ट्रवाद चलेगा। अब हमें याद नहीं रहा कि हमने किस जाति और संप्रदाय में जन्म लिया था हमें तो बस इतना ही याद है कि हम प्रथमतः और अंततः एक भारतीय हैं भारतीय आत्मा हैं।

मित्रों,हम न तो बहानेबाज हैं और न ही हमें बहानेबाज सरकार चाहिए। हम युवा हैं बहाने नहीं बनाते देश बनाते हैं,देश का वर्तमान और भविष्य बनाते हैं। हम नहीं जानते कि मजबूरी क्या होती है। हम इतना ही जानते हैं कि हमारे हाथों की गर्मी से मोटी-मोटी जंजीरें पिघल जाएंगी इसलिए हमने केंद्र की सरकार को भी मजबूत जनादेश दिया है। पूरी ताकत दी है कि तुम बनाओ नया भारत,लिखो नए युग की इबारत और हमें भी भागीदार बनाओ वास्तविक अतुल्य भारत के वास्तविक निर्माण में। हमने अपनी ऊंगली के जादू से सरकार को बदला है अब अपने फौलादी इरादे और मांसपेशियों से हम भारत को भय,भूख और भ्रष्टाचार से रहित विकसित राष्ट्र बनाएंगे।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

अच्छे दिन लाने के लिए ....



अच्छे दिन लाने के लिए  .... 

देश झूठी तुष्टिकरण और वंशवाद की राजनीति से आजाद होकर राष्ट्रवादी शक्तियों के 
हाथ में है। देश ने महात्मा गाँधी की इच्छा का सम्मान करते हुए काँग्रेस के पतवार 
को उखाड़ फेंका है। अब हम सशक्त भारत के लिए तैयार हैं। मोदी के हाथ में भारत 
का भविष्य है और लोगों की मोदी से जुडी आशायें हैं। मोदी से आम भारतीय क्या 
चाहते होंगे -
1. गरीब वर्ग को उन्नति के अवसर -आज तक हम केवल जाति की राजनीति 
देखते आये हैं। जन्म के आधार पर हमने स्वर्ण जाति को उच्च मान लिया है भले 
ही उसके जीवन में अँधेरा रहा हो ,हम चाहते हैं कि हर भारतीय के लिए गरीब की 
परिभाषा एक ही हो और वार्षिक न्यूनतम आय से गरीबी का निर्धारण हो। 

2. देश विरोधी ताकतों का नेस्तनाबूद हो -देश की सीमाएँ सुरक्षित हो और जवान 
अत्याधुनिक शस्त्रों से संपन्न और अधिकार युक्त हो। देश के अंदर और बाहर 
उपद्रवी और आतंकी तत्व नष्ट हो। 

3. देश के लघु उद्योग क्षेत्र का जोरदार विकास हो और उन्हें पनपाने के लिए गैर 
जरुरी मदो का आयात बंद हो तथा लघु उद्योगों को सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध 
हो। बड़े उद्योगों को सब्सिडी में कमी हो। 

4. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवायें - शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन हो और शिक्षा 
रोजगार लक्षी हो। स्वास्थ्य सेवाओं का गाँवों तक विस्तार हो। शिक्षा और स्वास्थ्य 
सेवाओं की गुणवत्ता की नियमित जाँच हो। 

5. अनावश्यक योजनाएँ बंद हो - लोकलुभावन योजनाओं पर खर्च बंद हो। मनरेगा 
में केवल ग्रामीण महिलाओँ और 40 वर्ष से ऊपर के पुरुष को काम दिया जाये और 
काम भी क्षेत्र की जरुरत के अनुसार तय हो। मनरेगा ने युवा ग्रामीण समुदाय की 
सोच को कमजोर बना दिया है ,ग्रामीण युवाओं को कुशल कार्य का मुफ्त प्रशिक्षण 
मिले ताकि उसके जीवन स्तर में सुधार हो और वह पुरुषार्थी बने। 

6 मुफ्त भोजन की सुविधा - निराश्रित बच्चे ,अनाथ,विकलांग,वृद्ध और बीमार अशक्त
 लोगों के लिए ही सस्ता या मुफ्त भोजन उपलब्ध हो बाकी गरीब वर्ग को बाजार मूल्य 
से 25 %खाद्य सब्सिडी हो ताकि नागरिक मुफ्त की सरकारी रोटी तोड़ने का आदी ना 
बन सके। 

7. टैक्स में सुधार - कर व्यवस्था में सुधार हो ,सेवा कर आवश्यक मदों से पूर्णत:
हटाया जाए और उसे विलासिता की मदों तक सीमित किया जाये। आयकर के 
स्लेब में सुधार हो और पाँच लाख की वार्षिक आय कर मुक्त हो। काले धन पर 
अंकुश लगे ऐसी सरल और व्यवहारिक कर प्रणाली को विकसित किया जाए। 

8 न्याय व्यवस्था में सुधार -लचर हो रही न्याय व्यवस्था में सुधार हो और विलम्ब से 
न्याय मिलने की पद्धति में सुधार हो। बड़े और रसूखदार अपराधियों के मामले 
त्वरित कोर्ट में चले और शीघ्र निर्णय हो। 

9. सरकारी दफ्तरों में कार्य के घंटे बढ़ाये जाए - सरकारी छुट्टियों में कमी की जाए 
और काम के घंटे तथा शिफ्ट बढ़ायी जाए। 

10. भ्रष्टाचार पर अंकुश - भ्रष्ट अधिकारियों पर भारी आर्थिक दंड और सजा हो,ज्यादा काम 
करने वाले अधिकारी को विशेष पैकेज दिया जाए।      

15.5.14

लोस चुनाव में केवलारी में बनेगा नया कीर्तिमान या विस जीतने और लोस में कांग्रेस के हारने का इतिहास रहेगा कायम?
लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर लोगों में कयासबाजी के दौर चल रहें हैं। बालाघाट लोस क्षेत्र से कांग्रेस की हिना कांवरें,भाजपा के बोधसिंह भगत,सपा की अनुभा मुंजारे के अलावा आप के कर्नल चौधरी भी मैदान में थे। इस क्षेत्र से कांग्रेस के विश्वेश्वर भगत ने 2009 का चुनाव 40819 मतों से हारा था। जबकि हाल ही में हुये विस चुनाव में शिवराज की भारी लहर में इस क्षेत्र में भाजपा कांग्रेस से सिर्फ 39771 वोटों से ही आगे रही जबकि सिर्फ बालाघाट विस क्षेत्र में ही भाजपा को कांग्रेस से 66207 वोटों की बढ़त मिल गयी थी।कांग्रेस और भाजपा की जीत हार इस बात पर भी निर्भर करेगी कि सपा उम्मीदवार चुनाव को त्रिकोणी संघंर्ष में बदल पाता है या नहीं? मंडला लोकसभा क्षेत्र में भी जिले की केवलारी और लखनादौन विस सीटें शामिल हैं।  इसीलिये इस क्षेत्र के परिणामों को लेकर  भी यहां उत्सुकता के साथ विश्लेषण किया जा रहा है। वैसे मंड़ला क्षेत्र में यह प्रचार भी अंदर ही अंदर चला है कि फग्गन सिंह तो सांसद हैं ही यदि ओंकार जीत जायेगें तो जिले को दो दो सांसद मिल जायेगें। मंड़ला सेसदीय क्षेत्र में भी कांग्रेस या भाजपा की जीत गौगपा के प्रत्याशी के मत विभाजन पर निर्भर करती है।अब देखना यह है कि केवलारी क्षेत्र में कांग्रेस जीत कर एक नया कीर्तिमान बनाती है या विस में जीतने और लोस में हारने का अपना इतिहास दोहराती है ? 
बालाघाट क्षेत्र में सपा पर निर्भर है इंका या भाजपा की  जीत -लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर लोगों में कयासबाजी के दौर चल रहें हैं। जिले के चार विस क्षेत्रों के आकलन के अलावा भी बालाघाट और मंड़ला लोस क्षेत्रों से कौन जीतेगा इसे लेकर भी अटकलों का दौर जारी है। बालाघाट लोस क्षेत्र से कांग्रेस की हिना कांवरें,भाजपा के बोधसिंह भगत,सपा की अनुभा मुंजारे के अलावा आप के कर्नल चौधरी भी मैदान में थे। इस क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने,कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और पूर्व मुूख्यमंत्री एवं कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने और सपा प्रत्याशी के समर्थन में मुलायम सिंह यादव ने सभायें ली। इस क्षेत्र से कांग्रेस के विश्वेश्वर भगत ने 2009 का चुनाव 40819 मतों से हारा था। जबकि हाल ही में हुये विस चुनाव में शिवराज की भारी लहर में इस क्षेत्र में भाजपा कांग्रेस से सिर्फ 39771 वोटों से ही आगे रही जबकि सिर्फ बालाघाट विस क्षेत्र में ही भाजपा को कांग्रेस से 66207 वोटों की बढ़त मिल गयी थी। लेकिन इस क्षेत्र में सपा की अनुभा मुंजारे ने 69493 वोट लिये थे जिनसे प्रदेश के मंत्री गौरी शंकर बिसेन सिर्फ 2500 वोटों से जीते थे। विस चुनावों में कांग्रेस ने बैहर से 32352 और लांजी से 31750 वोट की भाजपा से बढ़त ली थी। इन आंकड़ों को यदि ध्यान में रखा जाये तो यह कहना सही नहीं होगा कि बालाघाट क्षेत्र से भाजपा पांचवी बार अपना कब्जा कर ही लेगी। राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि बालाघाट संसदीय क्षेत्र के चुनाव परिणाम जातीय आधार पर भी प्रभावित होते है। इस आधार से कांग्रेस,भाजपा और सपा के प्रत्याशी क्रमशः मरार,पंवार और लोधी जाति के हैं। वैसे तो आप का प्रत्याशी भी पंवार जाति का है। यदि जातिगत आधार पर धु्रवीकरण होता है तो तो किस पार्टी को ज्यादा लाभ या नुकसान होता है? इस पर परिणाम निर्भर करेंगें। सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि इस क्षेत्र का परिणाम आदिवासियों और मुस्लिम मतदाताओं के रुझान पर निर्भर करेगा। भाजपा में अंतिम समय तक प्रत्याशी को लेकर मची घमासान और अंत में प्रदेश के मंत्री गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम की टिकिट कट कर बोध सिंह को मिल गयी। हालांकि ऐसा भी पहली बार देखने को मिला कि प्रत्याशी की अधिकृत घोषणा के पूर्व ही मौसम हरिनखेड़े की फोटो से युक्त चुनावी रथ भी पूरे क्षेत्र में भ्रमण कर चुका था। वैसे भाजपा ने नुकसान रोकने की दृष्टि से इस क्षेत्र में जीत सुनिश्चित करने के लिये मंत्री गौरीशंकर बिसेन को ही जवाबदारी सौंप दी थी। कांग्रेस और भाजपा की जीत हार इस बात पर भी निर्भर करेगी कि सपा उम्मीदवार चुनाव को त्रिकोणी संघंर्ष में बदल पाता है या नहीं? यदि सपा प्रत्याशी मुस्लिम मतदाताओं में भी सेंधमारी करता है तो कांग्रेस को नुकसान होगा और यदि जातिगत आधार पर लोधी मतदाताओं को लामबंद कर लेता है तो भाजपा को अधिक नुकसान होगा। इसलिये इस क्षेत्र में कांग्रेस या भाजपा दोनों के ही जीतने की संभावना बराबरी की बनी हुयी हैं।
मंड़ला क्षेत्र में गौगपा पर निर्भर है इंका या भाजपा की  जीत -मंडला लोकसभा क्षेत्र में भी जिले की केवलारी और लखनादौन विस सीटें शामिल हैं।  इसीलिये इस क्षेत्र के परिणामों को लेकर  भी यहां उत्सुकता के साथ विश्लेषण किया जा रहा है। पिछले लोस चुनाव में कोग्रेस के बसोरीसिंह मसराम ने भाजपा के फग्गनसिंह कुलस्ते को 65053 मतों से हराया था। फग्गन सिंह भाजपा के राष्ट्रीय आदिवासी नेता हैं। इसीलिये चुनाव हारने के बाद भी उनका राजनैतिक महत्व कम नहीं हुआ और अभी वे राज्यसभा के सदस्य है। 2009 के लोस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करने अध्यक्ष सोनिया गांधी आयीं थीं तो इस बार राहुल गांधी ने आदिवासियों की चौपाल मंड़ला में लगायी थी। 20013 के विस चुनावों में इस संसदीय क्षेत्र में भाजपा को कांग्रेस से 54279 वोटों की बढ़त मिली हुयी है।शहपुरा से 32681,निवास से 10910,गोटेगांव से 20171और बिछिया से 18316 वेटों से कांग्रेस पीछे रही है जबकि केवलारी से 4803,डिंडोरी से 6388,मंड़ला से 3827 और लखनादौन से 12781 वोटों से कांग्रेस ने भाजपा से बढ़त ली है। इस तरह कांग्रेस और भाजपा दोना ही पार्टियों के चार चार विधायक है।भाजपा की तरफ से नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चुनावी सभायें की है। इस क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी भी कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल की पसंद के प्रत्याशी है। ये भी वर्तमान में विधायक है।वैसे मंड़ला क्षेत्र में यह प्रचार भी अंदर ही अंदर चला है कि फग्गन सिंह तो सांसद हैं ही यदि ओंकार जीत जायेगें तो जिले को दो दो सांसद मिल जायेगें। मंड़ला सेसदीय क्षेत्र में भी कांग्रेस या भाजपा की जीत गौगपा के प्रत्याशी के मत विभाजन पर निर्भर करती है।
केवलारी में बनेगा कीर्तिमान या दोहराया जायेगा इतिहास -जिले के राजनैतिक क्षेत्रों की पैनी नजर केवलारी विस के परिणामों पर लगी हुयी जहां से कांग्रेस के युवा रजनीश सिंह पहली बार विधायक बने है। इसके पहले उनके पिता स्व. हरवंश सिंह इस क्षेत्र से चार चुनाव जीते थे।लेकिन केवलारी क्षेत्र का भी अजीब इतिहास रहा है। पिछले 2003 के विस चुनाव में इस क्षेत्र से जहां कांग्रेस 8658 वोटों से जीती थी वहीं 2004 के लोस चुनाव में कांग्रेस 16340 वोटों से हार गयी थी। इसी तरह 2008 के विस चुनाव में इस क्षेत्र से 6276 वोटों से जीतने वाली कांग्रेस 2009 के लोस चुनाव में 3493 वोटों से हार गयी थी। 2013 के विस चुनावों में भी कांग्रेंस यहां से 4803 वोटों से जीती है। अब देखना यह है कि केवलारी क्षेत्र में कांग्रेस जीत कर एक नया कीर्तिमान बनाती है या विस में जीतने और लोस में हारने का अपना इतिहास दोहराती है ? “मुसाफिर”
साप्ताहिक दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
6 मई 2014 से साभार

14.5.14

HINDI SONG- SHAM `शाम । (गीत)`



HINDI SONG- SHAM
`शाम । (गीत)`

http://mktvfilms.blogspot.in/2014/05/hindi-song-sham.html

https://www.youtube.com/watch?v=KJ2VBbgD6TI&feature=youtu.be

इज़हार-ए-इश्क  बिना  शाम  हो गई..!
हसरतों की  जैसे  कत्लेआम  हो गई..!

इज़हार-ए-इश्क = प्यार की अभिव्यक्ति;
हसरत=अभिलाषा;


१.

निगाहों में  प्यार, ज़ुबान से  इनकार ?
रुसवाईयाँ   शायद, बेलगाम  हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क  बिना  शाम  हो गई..!

२.

लरजते लबों ने कह दिया था  सबकुछ ?
और  खामोशी, मुफ्त  बदनाम  हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क   बिना   शाम  हो गई..!

लरजना-काँपना; लब=होंठ;


३.

बेबस हैं वो तो, मजबूर  इधर हम भी?
सिसकीयाँ ये कैसी, खुलेआम हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क  बिना  शाम  हो गई..!

सिसकी=रोने का शब्द;

४.

न  रस्में, न कसमें, न वश में  हमारे..!
ये जिंदगी बस जैसे, इलज़ाम हो गई..!
इज़हार-ए-इश्क  बिना शाम  हो गई..!

रस्म- विधि;

मार्कण्ड दवे ।

दिनांकः १४-०५-२०१४.


याद रहोगे मनमोहन-ब्रज की दुनिया

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को विदाई देने का सिलसिला जारी है। अगले एक-दो दिनों में ही मनमोहन सिंह इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे। मनमोहन भले ही कोई इतिहास बना नहीं सके लेकिन फिर भी वे इतिहास का हिस्सा तो बन ही गए हैं। चाहे उनका शासन जैसा भी रहा हो,हमारे लिए वो अच्छी यादें हों या बुरी यादें लेकिन हम चाहकर भी उनको भुला नहीं पाएंगे। वैसे भी बुरी यादों को भुलाना कहीं ज्यादा कठित होता है। जितना भुलाना चाहो वे उतनी ही ज्यादा याद आती हैं। याद तो बहुत आएंगे मनमोहन मगर सवाल उठता है कि किस रूप में और किस-किस रूप में?
मित्रों,संजय बारू की किताब के प्रकाशित होने के बाद अब इस तथ्य में कोई संदेह नहीं रहा कि मनमोहन एक दुर्घटनात्मक प्रधानमंत्री थे। मनमोहन राजनीति में अर्थव्यवस्था के कारीगर मात्र बनकर आए थे लेकिन उनको बनना पड़ा प्रधानमंत्री। पड़ा इसलिए क्योंकि वे उन्होंने बनना चाहा नहीं था मगर बने। हमने शतरंज के खेल में प्यादा को वजीर तक बनते देखा है मगर मनमोहन ऐसे वजीर थे जो शुरू से अंत तक प्यादा ही बने रहे। या तो उनको वजीर बनना ही नहीं था या फिर उनको वजीर बनना आता ही नहीं था।
मित्रों,प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मंत्री तो थे मगर मंत्रियों के प्रधान नहीं थे। उन्होंने अपना हानि-लाभ,जीवन-मरण,यश-अपयश सबकुछ सोनिया परिवार के हाथों में सौंप दिया था। मनमोहन समर्पण की पराकाष्ठा थे। तुभ्यदीयं गोविंदं तुभ्यमेव समर्पयामि। यहाँ तक कि उन्होंने अपने आराध्य को देश भी समर्पित कर दिया। हे माता तुमने ही मुझे प्रधानमंत्री बनाया है। मैं तो एक छोटा-सा बालक हूँ और उस पर निर्बल भी इसलिए तुम्हीं संभालो इस राज-पाठ को। मैं कुछ भी नहीं जानता,न देश को और न ही देशहित को। मैं तो केवल तुमको जानता हूँ। मेरे लिए तो सबकुछ तुम-ही-तुम हो। आरंभ भी,मध्य भी और मेरा अंत भी।
मित्रों,सवाल उठता है कि क्या मनमोहन सिंह निरपराध हैं और भोले हैं? मेरे हिसाब से तो नहीं। वे इन दोनों में से कुछ भी नहीं हैं। वो इसलिए क्योंकि उन्होंने जो कुछ भी किया या होने दिया जानबूझकर किया और होने दिया। मनमोहन सिंह ने जानबूझकर अपार संभावनाओं की भूमि भारत का 10 साल बर्बाद किया। दस साल तक सबकुछ जानते हुए भी भारत में वह सब होने दिया जिसने भारत की गाड़ी को 21वीं सदी के अतिमहत्त्वपूर्ण पहले दशक में रिवर्स गियर में चला दिया। निरपराध और भोले तो वे तब होते जब उनको कुछ भी पता नहीं होता या फिर वे महामूर्ख होते। परंतु दुर्भाग्यवश इन दोनों संभावनाओं के लिए मनमोहन के संदर्भ में कहीं कोई स्थान नहीं है।
मित्रों,मनमोहन जा नहीं रहे,बिल्कुल भी स्वेच्छा से नहीं जा रहे वरन् उनको जनता ने धक्का देकर निकाल दिया है। हमने बहुत प्रतीक्षा की,बहुत इंतजार किया कि अब शायद उनका जमीर जागे और मनमोहन इस्तीफा दे दें। मगर भारत में लगातार दुःखद घटनाएँ घटती रहीं,मनमोहन हर मोर्चे पर विफल होते गए परन्तु स्वेच्छा से पद-त्याग नहीं किया। उनका जमीर या तो मर गया था या फिर उनके पास जमीर नामक कोई चीज थी ही नहीं। वे एक नौकरशाह थे और नौकरी उनके खून में थी इसलिए वे मालिक होकर भी नौकर ही बने रहे और नौकरी ही करते रहे। चूँकि मनमोहन प्रधानमंत्री पद से अपने सुखद और प्रतीष्ठापूर्ण अंत को सुनिश्चित नहीं कर सके और उन्होंने देश को सिवाय बर्बादी के कुछ नहीं दिया इसलिए हम वाहेगुरू से यह कामना करते हैं कि वे आधुनिक युग के इस स्वनिर्मित धृतराष्ट्र को उसके बचे-खुचे बुढ़ापे में उसके गर्हित कर्मों या अकर्मों के लिए दंडित जरूर करे क्योंकि भारत का वर्तमान कानून तो शायद उनको कभी दंडित नहीं कर पाएगा। वैसे आपको बता दूँ कि कल मंगलवार को ही इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री यहूद ओलमर्ट को तेलअवीव की एक अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोप में 6 साल की कैद की सजा सुनाई है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

13.5.14

Short story-11. `बला ।`


 Short story-11. `बला ।`

करीब साठ साल की आयु के सेठ प्रताप राय के यहाँ, उनकी, करीब तेईस साल की, दूसरी पत्नी `सतवंती`ने सेठ जी को नन्हा वारिस दिया था । इसीलिए आज सुबह से, धार्मिक हवन आयोजन के चलते कोठी में काफी चहलपहल थी ।
 
पर..,ये क्या..! युवा पंडित `रतिराज` हवन में शुद्ध घी की आहुति दे रहे थे कि अचानक, एक छिपकली का बच्चा, ऊपर छत से, हवन-कुण्ड में आ गिरा..! पूजा में बैठी सेठानी `सतवंती` और 'रतिराज', दोनों ने  यह दृश्य देखा । हालाँकि,कोई दूसरा इसे देख ले उस से पहले ही, युवा पंडित,'रतिराज` ने  ज़ोर-ज़ोर से तुरंत, "॥ ॐ बला टली स्वाहा ॥' मंत्र जाप करते हुए हवन-कुण्ड  में शुद्ध घी का पुरा पात्र  उड़ेल दिया जिस से, छिपकली का बच्चा पलभर में भस्म हो गया...!
 
धार्मिक कर्म संपन्न होने के पश्चात, `सतवंती`ने अपने कर कमलों से, युवा पंडित 'रतिराज' को दान-दक्षिणा देते हुए धीमे स्वर में कहा," सुनिए, आप के लिए तीन लिफाफे है..! पहला-आप ने, मेरी सारी बला का तोड़ निकाला, दूसरा-निर्विघ्न हवन कर्म संपन्न कराया और तीसरा- इस घर में वारिस के लिए जो आशीर्वाद दिया, इसके बदले इस लिफाफे में  आप की दक्षिणा के मैंने एक लाख रुपये ज्यादा रखें हैं..! 

और हाँ आज के बाद, हम कभी आमने-सामने नहीं होंगे । 
समझना, आप के जीवन से भी  `सतवंती` नाम की एक `बला` टल गई..!"
मार्कण्ड दवे ।
दिनांकः १३-०५-२०१४.



MARKAND DAVE

10.5.14

Short story-10. प्याऊ ।



 Short story-10. प्याऊ ।

https://www.youtube.com/watch?v=0WwDHXiXcIE&feature=youtu.be

http://mktvfilms.blogspot.in/2014/05/short-story-10.html

"अय बुढ़िया..! चुनाव सर पर है,आज प्रधान मंत्री जी आने वाले है, उनकी सुरक्षा का जिम्मा हम पर है, चल उठा तेरा प्याऊ का सामान और भाग यहाँ से..!" गाँव की कच्ची सड़क के किनारे स्थित पेड़ के नीचे, आते-जाते राहदारी को शीतल जल पिलाने वाली बूढ़ी मैया पर, दरोगा साहब ने रोब दिखाया और डंडे से प्याऊ की सारी मटकी फोड़ कर, ज़ोर-ज़ोर से गुर्राने लगे..!

बूढ़ी मैया बिना कुछ बोले, प्याऊ का बाकी सामान ले कर सामने वाले झोंपड़े में चली गई । थोड़ी ही देर में, प्रधान मंत्री जी का काफ़िला आया और वही पेड़ के नीचे रुक गया..! 

प्रधान मंत्री जी ने दरोगा जी से पूछा, " यहाँ एक बूढ़ी मैया का प्याऊ था ना, कहाँ  है?"
 
यह प्रश्न सुन कर दरोगा हकलाने लगा । इतने में सामने से शीतल जल की एक छोटी मटकी और  प्याला ले कर बूढ़ी मैया आती दिखाई दी । प्रधान मंत्री जी फौरन उसकी तरफ दौड़े और उन्होंने ने मैया का चरणस्पर्श किया," कैसी हो मैया ?"
 
निर्दोष भाव से हँस कर बूढ़ी मैया बोली,

" बेटा, इतना बड़ा आदमी हो गया, फिर भी तेरे बचपन के दिन, तुझे अब भी याद है? "
मार्कण्ड दवे ।
 
दिनांकः ०९-०५-२०१४.


8.5.14

56 इन्च का जादू ....

56 इन्च का जादू  .... 

देश के बदलाव मे अब आखिरी चरण बाक़ी है। देश बदलाव चाहता है और उस बदलाव
से सुकून चाहता है। 56 इंच  के नाम की आँधी ने सब विपक्षी दलों को नाको चने चबवा
दिये हैं, तथाकथित बुद्धिजीवी दहाड़े मार रहे हैं और स्क्रीन पर खीज निकाल रहे हैँ।
छद्म राजनीतिज्ञ बहरूपिये बन कर शेर का शिकार करने के रास्ते खोजने के लिये भटक
रहे हैं और बाकी दल दिग्भ्रमित हो ङोल रहें हैं। कोई कंठी उतार कर टोपी पहन रहा है
तो कोई रंडवे की लुगाई बनने का दिखावा कर रहा है। जो मीडिया कुछ समय पहले
जिन्हें पानी पी कर कोसने के तरीके बनाता था अब उसे धंधा चलाने के लिये मन मार
कर उनके गीत गाने पड़ रहे हैं।

    नीति में साम,दाम ,दण्ड ,भेद ,माया और इंद्रजाल का उल्लेख है और इसका सफल
उपयोग राजा को करना आना चाहिए क्योंकि विजय का ही महत्व है बाकि सारा किया
धरा व्यर्थ है। इस बार धूर्त,शठ,ठग और चालबाज चित्त पड़े हैं ;किसी को कोई मौका या
जीवनदान नहीं। हर छोटी से छोटी बात का विश्लेषण करके जाल बिछाया गया है जिसमे
हर दल फँसता जा रहा है और फड़फड़ाता जा रहा है ,सब पंछी एक साथ होकर जोर
लगा रहे हैं पर जाल से खुद को छुड़ा नहीं पा रहे हैं। 56 इंच की नीति का हथोड़ा चलता
जा रहा है और जर्जर नुस्खे ध्वस्त हो रहे हैं। 

    इस चुनावी समर मे प्रमुख सेनापति गुम और मौन है या उसका उपयोग जितना
करना था वह कर लिया अब हाशिये पर कर दिया गया है। वोट कटर ने सबसे पहले
उसी डाली को काटा जिसने उसे जन्म दिया था और अब पूरी तरह से भोथरा हो गया
है। ना चाहते हुए भी यह समर उन दौ हस्तियो के बीच खेला जा रहा है जिसमें एक
महारथी है और दूसरा अनाड़ी। अनाड़ी शस्त्र विद्या में काला अक्षर है और महारथी
उसके ही शस्त्र से उस पर वार कर रहा है। अनाड़ी सेना हथियार डाल कर महारथी की
जीत के जश्न को पचाने के उपाय ढूंढ रही है।

प्रजा सिँह के साथ खड़ी है और सियारों के टोलो को खदेड़ रही है.देश के हर कोने से
दहाड़ गूँज रही है। उत्तर ,दक्षिण ,पूर्व और पश्चिम -हर दिशा जग चूकी है और अब
यात्रा अन्तिम चरण पर है। छोटी सी चूक से फायदा उठाते महारथी को देख सियासत
भोंचक्की है ,विपक्षी अपने नुकसान की गिनती मे लगे हैं और हार का ठिकरा फोड़ने
के लिए बलि का बकरा ढूँढ़ रहे है। जनता एक ही नारा लगा रही है - अबकी बार  .............  

यकायक कहां खो गए दूसरे गांधी अन्ना हजारे?

देश की राजनीति व तंत्र के प्रति व्याप्त नैराशय के बीच नि:स्वार्थ जनआंदोलन के प्रणेता और प्रकाश पुंज अन्ना हजारे एक दूसरे गांधी के रूप में उभर कर आए थे और यही लग रहा था कि देश को दूसरी आजादी के सूत्रधार वे ही होंगे, मगर आज जब कि देश में परिवर्तन की चाह के बीच आम चुनाव हो रहे हैं तो वे यकायक राष्ट्रीय क्षितिज से गायब हो गए हैं। हर किसी को आश्चर्य है कि एक साल पहले तक जो शख्स सर्वाधिक प्रासंगिक था, वह आज अचानक अप्रासंगिक कैसे हो गया? इसमें दो ही कारण समझ में आते हैं। या तो आंदोलन को सिरे तक पहुंचाने की सूझबूझ के अभाव या अपनी टीम को जोड़ कर रख पाने की अक्षमता ने उनका यह हश्र किया है  या फिर चुनावी धूमधड़ाके में चाहे-अनचाहे सांप्रदायिकता व जातिवाद ने मौलिक यक्ष प्रश्रों को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि चाह तो अब भी परिवर्तन की ही है, मगर ये परिवर्तन सत्ता परिवर्तन के साथ व्यवस्था परिवर्तन का आगाज भी करेगा, इसमें तनिक संदेह है। वजह साफ है कि व्यवस्था परिवर्तन की चाह जगाने वाले अन्ना हजारे राष्ट्रीय पटल से गायब हैं। आज जबकि उनकी सर्वाधिक जरूरत है तो वे कहीं नजर नहीं आ रहे।
आपको याद होगा कि अन्ना के आंदोलन ने देश में निराशा के वातावरण में उम्मीद की किरण पैदा की थी। आजादी के बाद पहली बार किसी जनआंदोलन के चलते संसद और सरकार को घुटने टेकने पड़े थे। ऐसा इसलिए संभव हो पाया कि क्योंकि इसके साथ वह युवा वर्ग शिद्दत के साथ शामिल हो गया था, जिसे खुद के साथ अपने देश की चिंता थी। उस युवा जोश ने साबित कर दिया था कि अगर सच्चा और विश्वास के योग्य नेतृत्व हो तो वह देश की कायापलट करने के लिए सबकुछ करने को तैयार है। मगर दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पाया। इसके दो प्रमुख कारण रहे। एक तो स्वयं अन्ना   का भोलापन, जिसे राजनीतिक चालों की अनुभवहीनता कहा जा सकता है, और दूसरा बार-बार यू टर्न लेने की मजबूरी।
शुरू में यह नजर आया कि एक दूसरे के पर्याय भ्रष्टाचार व काला धन के खिलाफ बाबा रामदेव और अन्ना हजारे का जोड़ कामयाब होगा, मगर पर्दे के पीछे के भिन्न उद्देश्यों ने जल्द ही दोनों को अलग कर दिया। बाबा रामदेव अन्ना हजारे को आगे रख कर भी पूरे आंदोलन को हथिया लेना चाहते थे, मगर अन्ना आंदोलन के वास्तविक सूत्रधार अरविंद केजरीवाल को ये बर्दाश्त नहीं हुआ। सरकार भी बड़े ही युक्तिपूर्ण तरीके से दोनों के आंदोलनों को कुचलने में कामयाब हो गई। जैसे ही केजरीवाल को ये लगा कि सारी मेहनत पर पानी फिरने जा रहा है या फिर उनका सुनियोजित प्लान चौपट होने को है, उन्होंने आखिरी विकल्प के रूप में खुद ही राजनीति में प्रवेश करने का ऐलान कर दिया। ऐसे में अन्ना हजारे ठगे से रह गए। वे समझ ही नहीं पा रहे  थे कि उन्हीं के आंदोलन के गर्भ से पैदा हुई आम आदमी पार्टी को समर्थन दें या अलग-थलग हो कर बैठ जाएं। इस अनिश्चय की स्थिति में वे अपने मानस पुत्र को न खोने की चाह में कभी अरविंद को अशीर्वाद देते तो कभी उनसे कोई वास्ता न होने की बात कह कर अपने व्यक्तित्व को बचाए रखने की जुगत करते। अंतत: उन्हें यही लगा कि चतुराई की कमी के कारण उनका उपयोग कर लिया गया है और आगे भी होता रहेगा, तो उन्होंने हाशिये पर ही जाना उचित समझा। समझौतावादी मानसिकता में उन्होंने सरकार लोकपाल समर्थन कर दिया। जब केजरीवाल ने उनको उलाहना दिया कि इस सरकारी लोकपाल से चूहा भी नहीं पकड़ा जा सकेगा तो अन्ना ने दावा किया कि इससे शेर को भी पकड़ा जा सकता है। अन्ना के इस यूटर्न ने उनकी बनी बनाई छवि को खराब कर दिया। उन पर साफ तौर पर आरोप लगा कि वे यूपीए सरकार से मिल गये हैं। बदले हालत यहां तक पहुंच गए कि वे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में भी नहीं गए। वे किरण बेदी व पूर्व सेनाध्यक्ष वी के सिंह के शिकंजे में आ चुके थे, मगर अन्ना के साथ अपना भविष्य न देख वे भी उनका साथ छोड़कर भाजपा में चले गये। आज हालत ये है कि करोड़ों दिलों में अपनी जगह बना चुके अन्ना मैदान में मैदान में अकेले ही खड़े हैं। इससे यह साफ तौर साबित होता है कि उनको जो भी मिला उनका उपयोग करने के लिए। यहां तक कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ भी उनका यही अनुभव रहा। यह स्पष्ट है कि ममता का आभा मंडल केवल पश्चिम बंगाल तक सीमित है और अन्ना का साथ लेकर वे राष्ट्रीय पटल पर आना चाहती थीं। दूसरी ओर अन्ना कदाचित केजरीवाल को नीचा दिखाने की गरज से ममता के प्रस्ताव पर दिल्ली में साझा रैली करने को तैयार हो गए। मगर बाद में उन्हें अक्ल आई कि ममता का दिल्ली में कोई प्रभाव नहीं है और वे तो उपयोग मात्र करना चाहती हैं तो ऐन वक्त पर यू टर्न ले लिया। इससे उनकी रही सही साख भी चौपट हो गई। कहां तो अन्ना को ये गुमान था कि वे जिस भी प्रत्याशी के साथ खड़े होंगे, उसकी चुनावी वैतरणी पर हो जाएगी, कहां हालत ये है कि आज अन्ना का कोई नामलेवा नहीं है। इस पूरे घटनाक्रम से यह निष्कर्ष निकलता है कि अनशन करके आंदोलन खड़ा करने और राजनीतिक सूझबूझ का इस्तेमाल करना अलग-अलग बातें हैं। निष्पत्ति ये है कि अन्ना ने भविष्य में किसी आंदोलन के लिए अपने आपको बचा रखा है, मगर लगता नहीं कि उनका जादू दुबारा चल पाएगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

हाजीपुर टाईम्स का असर विवि को वेतन व पेंशन का 279.70 करोड़ जारी-ब्रज की दुनिया

पटना (सं.सू.)। बीते दो माह से वेतन एवं पेंशन की प्रतीक्षा कर रहे विश्वविद्यालय शिक्षकों एवं कर्मियों के लिए यह अच्छी खबर है। राज्य सरकार ने मार्च और अप्रैल के वेतन एवं पेंशन मद की एकमुश्त राशि 279.70 करोड़ जारी किया है। इस संबंध में शिक्षा विभाग के विशेष सचिव सह निदेशक एचआर श्रीनिवास ने एक सप्ताह के अंदर वेतन एवं पेंशन की राशि का वितरण सुनिश्चित करने का आदेश सभी कुलसचिवों को दिया है। राज्य सरकार ने मार्च से मई तक सभी विश्वविद्यालयों और उनके अधीनस्थ अंगीभूत महाविद्यालयों के अलावा अल्पसंख्यक कालेजों के शिक्षकों एवं कर्मचारियों के वेतन मद में 313.27 करोड़ और पेंशन मद में 106.27 करोड़ की स्वीकृति प्रदान की है। यह कुल राशि 419.55 करोड़ है। इनमें से मार्च एवं अप्रैल की राशि जारी की गई है। शिक्षा विभाग की ओर से मई का वेतन एवं पेंशन मद की राशि को भी शीघ्र जारी किए जाने की उम्मीद है।

विदित हो कि हाजीपुर टाईम्स ने 29 अप्रैल को समाचार लिखा था कि भुखमरी के कगार पर पहुँचे बिहार के विश्वविद्यालय शिक्षक। हमारी मेहनत ने रंग दिखाया है और बिहार सरकार को विश्वविद्यालयों के वेतन और पेंशन मद में दो महीने के लिए एकमुश्त राशि जारी करनी पड़ी है। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

7.5.14

खुद को नीची जाति का बता कर नीच हरकत की मोदी ने

मोदी लहर के सूत्रधार को ही जरूरत पड़ गई खुद को नीच बता कर वोट मांगने की जरूरत
योजनाबद्ध रूप से देशभर में अपनी लहर चला कर तीन सौ से ज्यादा सीटें हासिल करने का दावा करने वाले भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में खुद को नीच जाति का बता कर वोट मांगने की जरूरत पड़ गई। उन्होंने कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका वाड्रा की ओर से किए गए पलटवार को ही हथियार बना कर जिस प्रकार नीची जाति की हमदर्दी हासिल करने कोशिश की, उससे साफ झलक रहा था कि वे भले ही ऊंची राजनीति के प्रणेता कहलाने लगे हैं, मगर वोट की खातिर नीची हरकत कर बैठे।
ज्ञातव्य है कि मोदी ने अमेठी में अपने एक भाषण में गांधी परिवार पर हमला करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर कटाक्ष किया था कि उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री टी अंजैया को एयरपोर्ट पर सबके सामने अपमानित किया था। इस पर प्रियंका तिलमिला उठीं। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा था कि मोदी ने अमेठी की धरती पर मेरे शहीद पिता का अपमान किया है, अमेठी की जनता इस हरकत को कभी माफ नहीं करेगी। इनकी नीच राजनीति का जवाब मेरे बूथ के कार्यकर्ता देंगे। अमेठी के एक-एक बूथ से जवाब आएगा। मोदी को जैसे ही लगा कि प्रियंका ने उनके एक बयान के प्रतिफल में लोगों की संवेदना हासिल करने की कोशिश की है, उन्होंने उससे भी बड़े पैमाने की संवेदना जुटाने का घटिया वार चल दिया। प्रियंका को बेटी जैसी होने का बता कर सदाशयता का परिचय देने वाले मोदी ने यह स्वीकार भी किया कि एक पुत्री को पिता के बारे में सुन का बुरा लगा होगा, तो सवाल ये उठता है कि अमेठी की धरती पर क्या ऐसा बयान देना जरूरी था?
नीची जाति का यह मुद्दा इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर पूरे दिन छाया रहा और सारे भाषाविद, चुनाव विश्लेषक और पत्रकारों ने साफ तौर पर कहा कि प्रियंका ने तो केवल नीची अर्थात घटिया राजनीति का आरोप लगाया था, मगर मोदी ने जानबूझ कर इसे अपनी नीची जाति से जोड़ कर हमदर्दी हासिल करने की कोशिश की है। यह सर्वविदित तथ्य है कि उन्हें आज तक किसी ने नीची जाति का कह कर संबोधित नहीं किया, बावजूद इसके उन्होंने खुद को नीची जाति का बता कर उसे भुनाने की कोशिश की है। पूर्वांचल के सिद्धार्थनगर, महराजगंज, बांसगांव और सलेमपुर में कथित नीची जातियों के वोट बटोरने के लिए उन्होंने यहां तक कहा कि मेरा चाहे जितना चाहे अपमान करो, लेकिन मेरे नीची जाति के भाइयों का अपमान मत करो। खुद को ही पत्थर मार के घायल करने के बाद लोगों की संवेदना हासिल करने की तर्ज पर उन्होंने यह तक कहा कि क्या नीची जाति में पैदा होना गुनाह है। ये जो महलों में रहते हैं, वे नीची जाति का मखौल उड़ाते हैं। उन्हें सुख-शांति इसीलिए मिल रही है क्योंकि सदियों से हम नीच जाति के लोगों ने, हमारे बाप-दादाओं ने अपना पसीना बहाया है ताकि उनकी चमक बरकरार रहे।
मोदी की इस हरकत पर सभी भौंचक्क थे कि चुनाव के आखिरी चरण में मोदी को ये क्या हो गया है? क्या उन्हें अपनी लहर, जिसे कि वे खुद सुनामी कहने लगे हैं, उस पर भरोसा नहीं रहा, जो इतने निचले स्तर पर उतर आए हैं? कहीं जरूरत से ज्यादा जाहिर किए गए आत्मविश्वास पर उन्हें संदेह तो नहीं हो रहा? जीत जाने के दंभ से भरे इस शख्स को यकायक अपनी नीची जाति कैसे याद आ गई? कहीं उन्हें खुद के नीची जाति में पैदा होने का मलाल तो नहीं साल रहा? कहीं वे इस बात से आत्मविमुग्ध तो नहीं कि वे नीची जाति का होने के बावजूद देश के सर्वाधिक ताकतवर पद पर पहुंचने जा रहे हैं? सवाल ये भी कि नीची जाति के प्रति उनकी इतनी ही हमदर्दी है तो जब बाबा रामदेव ने यह कह कर दलित महिलाओं का अपमान किया था कि राहुल गांधी उनके घरों में जा कर रातें बिताते हैं, तब वे चुप क्यों रह गए थे? अव्वल तो प्रियंका ने मोदी को नीची जाति का बताया ही नहीं, मगर यदि मोदी ने यह अर्थ निकाल भी लिया तो भी बाबा रामदेव का कृत्य तो उससे भी कई गुना अधिक घटिया था, तब क्यों नहीं उन्हें फटकारा कि इस प्रकार मेरी नीची जाति की महिलाओं को जलील न करें?
आश्चर्य तो तब हुआ, जब अरुण जेटली जैसे जाने-माने बुद्धिजीवी नेता ने खुदबखुद व्यथित हुए मोदी के सुर में सुर मिला कर कांग्रेस से माफी मांगने तक को कह डाला।
आपको याद होगा कि एक बार कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की ओर से उन्हें बचपन में चाय बेचने वाला बताने को पकड़ कर जो रट चालू की है, वह अब तक जारी है। चाय बेचने वाले, ठेले व रेहड़ी लगाने वालों की संवेदना हासिल करने के लिए पूरी भाजपा ने देशभर में नमो चाय की नौटंकी की थी। अमेठी में भी इसी रट को जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि हमें बार-बार चाय वाला कह कर गालियां दी गईं, जबकि सच्चाई ये है कि अय्यर के बाद कभी किसी ने इसका जिक्र नहीं किया, मगर मोदी सहित सभी भाजपा नेता बार-बार यह कह कर कि एक चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बनने जा रहा है तो यह कांग्रेस को बर्दाश्त नहीं है, चाय बेचने को भी महिमा मंडित कर रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

प्रशासनिक लापरवाही के चलते हजारों लोग नहीं गिरा पाएंगे वोट-ब्रज की दुनिया

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। जिला प्रशासन की लापरवाही या मनमानी के चलते हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में हजारों मतदाता अपना मतदान नहीं कर पाएंगे और इस प्रकार मतदान करने के अपने मूलभूत अधिकार से वंचित रह जाएंगे। विदित हो कि इसी साल 9 मार्च को पूरे देश में राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया गया था और चुनाव आयोग द्वारा घोषणा की गई थी कि जिन लोगों के नाम अब तक वोटर लिस्ट में नहीं है वे फार्म संख्या 6 भरकर अपना नाम जुड़वा सकते हैं। उस समय भी हमने लिखा था कि वैशाली जिला प्रशासन ने राष्ट्रीय मतदाता दिवस ने इस अभियान को गंभीरता से नहीं लिया। (आधे-अधूरे मन से मनाया गया मतदाता दिवस) परन्तु अहले सुबह जब लोग अपने परिवार के साथ मतदान केंद्र पर पहुँचे तो पता चला कि उनका नाम तो लिस्ट में जुड़ा ही नहीं है। हालाँकि कुछ लोगों के नाम जोड़े गए हैं लेकिन ये लोग वे हैं जिनके किसी-न-किसी परिजन का नाम पहले से लिस्ट में दर्ज है और जिनके किसी भी परिजन का नाम पहले से लिस्ट में नहीं है उनके नाम लिस्ट में जोड़े ही नहीं गए और ऐसे में हजारों लोग मतदान करने से वंचित रह जाएंगे।

जढ़ुआ के महावीर राय ने बताया कि उनका नाम वोटर लिस्ट से उनके वार्ड आयुक्त ने इसलिए हटवा दिया है क्योंकि वे उसके समर्थक नहीं हैं वहीं जढ़ुआ के ही नरेश साह ने बताय कि उन्होंने पिछले 15 सालों में हर बार कम-से-कम 10 बार फार्म 6 भरकर जमा किया लेकिन उनका या उनके परिजनों का नाम आजतक भी वोटर लिस्ट में दर्ज नहीं है। इसी प्रकार सहयोगी उच्च विद्यालय पर भी कई ऐसे लोग जिन्होंने फार्म 6 जमा करवाया था वोटर लिस्ट में अपना नाम न पाकर परेशान दिखे। इस बावत पूछने पर हाजीपुर नगर की भाग संख्या 108 की बीएलओ संगीता कुमारी ने बताया कि उन्होंने तो निर्वाची कार्यालय में सभी प्रपत्र 6 को जमा करा दिया था लेकिन नए नाम क्यों नहीं जुड़ सके उनको पता नहीं है। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)