- कांग्रेस ने केवलारी में विस चुनाव में जीतने और लोस चुनाव में हारने का लगातार तीसरी बार बनाया रिकार्ड
- मंड़ला लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के फग्गनसिंह कुलस्तें ने इंका के ओंकार सिंह मरकाम को 1 लाख दस हजार 4 सौ 63 वोटों से हरा कर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया है। मंड़ला क्षेत्र में गौगपा बसपा और नोटा 1 लाख 6 हजार 1 सौ 34 वोट मिलेे है जो जीत हार के अंतर के लगभग बराबर है। आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में कांग्रेस की हार इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हों गयी है क्योंकि इस क्षेत्र के आठ में चार विधायक कांग्रेस के थे। विधनसभा चुनाव में समूचे प्रदेश में चली शिवराज लहर के बावजूद भी जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन अव्छा था। लेकिन चंद महीनों बाद ही हुये लोस चुनाव में जिले के चारों क्षेत्र में कांग्रेस को शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा है। विधनसभा के 2003,2008 और 2013 और लोकसभा के 2004,2009 और 2014 के चुनावों में केवलारी विधानसभा क्षेत्र का मिजाज एक सा ही रहा है। इन चुनावों में कांग्रेस यहां से विधानसभा का चुनाव तो जीती लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हारती रही इस बार तो 30 हजार से अधिक रिकार्ड वोटों से कांग्रेस हारी है।कांग्रेस को सिवनी क्षेत्र से 53 हजार 4 सौ 87 वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। जबकि अल्प संख्यक मतों में सेंध लगा सकने वाली सपा प्रत्याशी अनुभा कंकर मुंजारे को मात्र 2373 वोट ही मिले। जब मात्र प्रभार मिलने से सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुयें के बजाय हुक्के के धुयें में ऐसी गुमी कि ढ़ूढ़े भी नहीं मिल रही है तो जब प्रत्याशी बनेंगें तो ना जाने क्या होगा?
- एक लाख से अधिक वोट से जीत कर फग्गन ने लिया हार का बदला-लोकसभा चुनावों के परिणामों को लेकर सियासी हल्कों में विश्लेषण का दौर जारी है। मंड़ला लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के फग्गनसिंह कुलस्तें ने इंका के ओंकार सिंह मरकाम को 1 लाख दस हजार 4 सौ 63 वोटों से हरा कर अपनी पिछली हार का बदला ले लिया है। उल्लेखनीय है कुलस्ते पिछले 2009 के चुनाव में इंका के बसोरी सिह से 65 हजार 53 वोटों से हार गये थे। लेकिन इस चुनाव के परिणामों पर नजर डाली जाये तो मंड़ला क्षेत्र में गौगपा को 56 हजार 5 सौ 72, बसपा को 21 हजार 2 सौ 56 और नोटा को 28 हजार 3 सौ 6 वोट मिले हैं। इस प्रकार तीनों के वोटों को यदि जोड़ा जाये तो ये 1 लाख 6 हजार 1 सौ 34 वोट होते है जो जीत हार के अंतर के लगभग बराबर है। भाजपा के राष्ट्रीय आदिवासी चेहरे के रूप में पहचाने जाने कुलस्ते के क्षेत्र इनमें से कोई नहीं याने नोटा को 28306 वोट मिलना भी एक अलग ही राजनैतिक संकेत दे रहा है। पिछले चुनाव में कुलस्तें को भाजपा विधायकों के क्षेत्र में ही हार का सामना करना पड़ा था जबकि कांग्रेस विधायकों हरवंश सिंह और नर्मदा प्रसाद प्रजापति के क्षेत्र से उन्होंने जीत हासिल की थी। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर तो सभी इलाकों में थी लेकिन आदिवासी बाहुल्य इस क्षेत्र में कांग्रेस की हार इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हों गयी है क्योंकि इस क्षेत्र के आठ में चार विधायक कांग्रेस के थे।
- जिले के सभी क्षेत्रों में हुयी कांग्रेस की शर्मनाक हार-विधनसभा चुनाव में समूचे प्रदेश में चली शिवराज लहर के बावजूद भी जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन अव्छज्ञ था। कांग्रेस ने जिले में अपनी परंपरागत सीट केवलारी पर अपना कब्जा बरकरार रखते हुये ना केवल लखनादौन सीट भाजपा से छीन ली थी वरन बरघाट भाजपा के कमल भी कमल की लाज बमुश्किल 2 सौ कुछ वोटों से ही बचाा पाये थे। जिला मुख्यालय वाली सिवनी सीट पर पिछले पांच चुनावों से अपना कब्जा बनाये रखने वाली भाजपा को यहां निर्दलीय उम्मीदवार ने धूल चटा दी थी जबकि इस बार भाजपा ने अपने दो बार के यहीं से विधायक रहे जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर को उम्मीदवार बनाया था। चंद महीनों बाद ही हुये इस चुनाव के लिये भाजपा ने अपनी कमान वेदसिंह के हाथों सौंप दी थी वहीं दूसरी ओर इस लोस चुनाव में भी कांग्रेस अध्यक्ष हीरा आसवानी ही थे। लेकिन जिले चारों विधानसभा क्षेत्रों में में जिस तरह कांग्रेस को भारी मात मिली है उससे राजनैतिक विश्लेषक भी हैरान है। मंड़ला लोस में आने वाले केवलारी और लखनादौन क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक रजनीश हरवंशसिंह और योगेन्द्र सिंह बाबा है जहां से कांग्रेस को क्रमशः 30 हजार 37 और 11 हजार 5 सौ 56 वोटों से हार का सामना पड़ा जबकि बालाघाट लोस क्षेत्र में आने वाली सिवनी और बरघाट सीट से भी क्रमशः 53 हजार 4 सौ 87 तथा 21 हजार 9 सौ 94 वोटों से कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। जबकि इस बार रजनीश हरवंश सिंह ने जिले के सभी विस क्षेत्रों में सक्रियता दिखा कर अपने पिता के समान जिले का नेता बनने का भी प्रयास किया था। वैसे तो पूरे देश में ही कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को चुनाव परिणामों का अंदाजा था लेकिन जो परिणाम आये उनके बारे में किसी भी पार्टी के नेता को ऐसे परिणामों की उम्मीद तो कतई नहीं ही थी। लेकिन जब समूचे उत्तर भारत में जनता लहर में कांग्रेस का सफाया हो गया था तब भी कांग्रेस ने जिले की पांचों सीटें जीत कर एक रिकार्ड बनाया था तो अब क्या हो गया? यह एक विचारणीय प्रश्न तो है ही।
- बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह -विधनसभा के 2003,2008 और 2013 और लोकसभा के 2004,2009 और 2014 के चुनावों में केवलारी विधानसभा क्षेत्र का मिजाज एक सा ही रहा है। हमने इसी कालम में में यह लिखा कि केवलारी क्षेत्र में कांग्रेस का विस जीतने और लोस हारने की परंपरा कायम रहेगी या नया इतिहास बनेगा। लेकिन परिणामों ने बता दिया कि नया इतिहास बनने के बजाय केवलारी ने पुरानी परंपरा का ही निर्वाह किया है। विस चुनावों में 2003 की उमा भारती की आंधी में केवलारी से कांग्रेस के स्व. हरवंश सिह 8 हजार 6 सौ 58 वोटों से चुनाव जीते थे जबकि लोस चुनाव में कांग्रेस की कल्याणी पांड़े 16 हजार 3 सौ 40 वोटों से चुनाव हारीं थीं। इसी तरह 2008 के विस चुनाव में कांग्रेस के स्व. हरवंश सिंह 6 हजार 2 सौ 76 वोटों से चुनाव जीते थे जबकि 2009 के लोस चुनाव में कांग्रेस के सांसद चुने गये बसोरी सिंह 3 हजार 4 सौ 93 वोटों से चुनाव केवलारी से हार गये थे। यहां यह उल्लेखनीय है कि इन दोनों लोस चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी थी। शिवराज की लहर वाले 2013 के विस चुनाव में भी यहां से कांग्रेस के रजनीश हरवंश सिंह 4 हजार 8 सौ 3 वोटों से चुनाव जीते थे लेकिन 2014 के मोदी लहर वाले लोस चुनावों में कांग्रेस को यहां से 30 हजार 37 वोटों से हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस की परंपरागत सीट से इतने अधिक वोटों से कांग्रेस की हार को लेकर राजनैतिक विश्लेषकों में तरह तरह की चर्चा व्याप्त है।
- प्रभार मिला तो ये हाल प्रत्याशी होंगे तो क्या होगा?-सिवनी विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस उमीदवार राजकुमार पप्पू खुराना की 24 हजार से अधिक वोटों हार पर कांग्रेस के टिकिट के प्रबल दावेदार युवातुर्क यह कहते भी देखे गये कि सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुएं में उड़ गयी। शायद यही बात वे लोस प्रत्याशी एवं राहुल गांधी की निकटवर्ती हिना कांवरे को भी समझाने में सफल रहे। बताया जाता है कि दक्षिण सिवनी स्थित एक कांग्रेस नेता के यहां आधी रात के बाद एक गोपनीय बैठक हुयी जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार के अलावा विधायक रजनीश सिंह,प्रदेश इंका के सचिव राजा बघेल,जिला इंका अध्यक्ष हीरा आसवानी और जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन चंदेल शामिल थे। इस बैठक में प्रभार हासिल करने के बाद चुनाव का काम प्रारंभ हुआ तो हालात कुछ अजीब से दिखे।सबको साथ लेकर चलने के बजाय ऐसा महसूस किया गया कि जानबूझ कर कुछ नेताओं को परे रखने की साजिशें पूरे चुनाव के दौरान की जाती रहीं। ऐसा माना जा रहा था कि परिणाम इस बार कुछ अलग आयेंगें लेकिन जब रिजल्ट आया तो कांग्रेस को इस क्षेत्र से 53 हजार 4 सौ 87 वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। जबकि अल्प संख्यक मतों में सेंध लगा सकने वाली सपा प्रत्याशी अनुभा कंकर मुंजारे को मात्र 2373 वोट ही मिले जबकि इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी मुनमुन राय ना तो क्षेत्र में घुमे थे और ना ही उनकी कोई सक्रियता थी। उन्होंनें मात्र मंच से ही भाजपा को समर्थन दिया था। वोटों से हार का मुह देखना पड़ा। कांग्रेस का एक वर्ग इन युवा तुर्कों से सिवनी विधानसभा क्षेत्र के लिये बड़ी आशायें रखता है। लेकिन जब मात्र प्रभार मिलने से सिवनी में कांग्रेस सिग्रेट के धुयें के बजाय हुक्के के धुयें में ऐसी गुमी कि ढ़ूढ़े भी नहीं मिल रही है तो जब प्रत्याशी बनेंगें तो ना जाने क्या होगा? “मुसाफिर“
- साप्ता. दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
- 27 मई 2014 से साभार
28.5.14
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