8.11.18
10.10.18
निजीकरण के समर्थक आरक्षण विरोधी हैं- अनिल चमड़िया.
नये दौर में नये सिरे से सामाजिक न्याय आंदोलन को आगे बढ़ाने हेतु 7 अक्टूबर को बिहार की राजधानी पटना में राज्य के दर्जनों जिले के सामाजिक न्याय के लिए संघर्षशील संगठनों के प्रतिनिधियों व बुद्धिजीवियों का राज्यस्तरीय सम्मेलन हुआ. सामाजिक न्याय के नाम पर चल रही समर्पणकारी राजनीति से इतर पहलकदमी की जरूरत महसूस करने वाले कार्यकर्ताओं- बुद्धिजीवियों व छात्र-नौजवानों के सम्मेलन चर्चित वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया मुख्य वक्ता के बतौर मौजूद थे.
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8.10.18
उत्तर भारतीयों के प्रति घृणा का भाव... वजह कई हैं!
संजय सक्सेना, लखनऊ
यह समझ से परे है कि कई गैर हिन्दी भाषी राज्यों में उत्तर भारतीयों के प्रति इतनी नफरत का भाव क्यों घर कर गया है। भारत के संविधान ने जब किसी भी व्यक्ति को, कहीं भी बसने और रोजी-रोटी कमाने की छूट दे रखी हो तो उस पर विवाद क्यों खड़ा किया जाता है। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के साथ अक्सर ही मारपीट और उनके सम्पति या फिर वाहनों के साथ अक्सर ही तोड़फोड़ की खबरें आती रहती थीं,लेकिन गुजरात तो ऐसा नहीं था।
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5.10.18
बाबा रामदेव कहते हैं- 'बहुत से चैनल पतंजलि के कारण दिवालिया होने से बचे हुए हैं'
विपक्ष को चाहिए वैकल्पिक नैरेटिव... बाबा रामदेव कहते हैं- "बहुत से चैनल पतंजलि के कारण दीवालिया होने से बचे हुए हैं।" बाबा रामदेव के इस कथन से कोई असहमति नहीं हो सकती। उन्होंने बिलकुल सच कहा। पतंजलि का व्यवसाय हर रोज़ बढ़ रहा है, कंपनी नये-नये उत्पाद बाजार में ला रही है और पतंजलि सचमुच बहुत बड़ा विज्ञापनदाता है। दूसरी तरफ चैनलों के खर्च में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, ऐसे में चैनलों का अस्तित्व ही विज्ञापन और स्पांसरशिप से होने वाली आय पर निर्भर करता है। अब इसी कथन के दूसरे पहलू का विश्लेषण करें तो बहुत से नये और विचारणीय तथ्य सामने आते हैं।
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गांधी को संपूर्णता में देखने की जरूरत
उदयपुर : महात्मा गांधी के विचारो को समझने के लिए गांधी को संपूर्णता मे देखने की जरूरत है। गांधी की सर्वकालीन प्रासंगिकता को किसी भी तरह से नकारा नहीं जा सकता । उक्त विचार राजनीति शास्त्री प्रो अरुण चतुर्वेदी ने गांधी मानव कल्याण सोसायटी व महावीर समता संदेश के सयुंक्त तत्वाधान मे महात्मा गांधी की एक सो पचासवी जयंती के अवसर पर जीएमकेएस सभागार मे आयोजित वर्तमान परिपेक्ष मे गांधी मार्ग विषयक संवाद मे व्यक्त किए । प्रो चतुर्वेदी ने कहा कि स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान गांधीवादी संस्थाओ ने आंदोलन को शहर से गावों कि और व बुद्धिजीवियो से आम नागरिक तक ले जाने का महत्व पूर्ण कार्य किया । वर्तमान मे जब राज्य के कार्य संदेहो, शंकाओ के घेरे मे है ऐसे समय मे गांधी कि प्रासंगिकता बढ़ जाती है ।
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21.9.18
मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ने वाले साथी देश के सबसे बड़े पत्रकार कहलाने लायक हैं, इन्हें सलाम
यह माना जाता है कि देश में सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च संस्था है। देश की सुप्रीम पॉवर है। पर जिस तरह से राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के एससीएसटी कानून में किये संसोधन को विधेयक लाकर बदल दिया। जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रिंट मीडिया में मजीठिया वेज बोर्ड लागू नहीं हो पा रहा है। उल्टे जिन साथियों ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर मजीठिया वेज बोर्ड़ मांगा, उनको टर्मिनेट कर दिया गया। ऐसे में यदि किसी संस्था की प्रतिष्ठा कम हुई है तो वह सुप्रीम कोर्ट ही है।
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नकली केसर की खेती से रहें सावधान
डा. राजेन्द्र कुकसाल
केसर Saffron की खेती कर अधिक आर्थिक लाभ का प्रलोभन देकर राज्य में विशेष रूप से पहाडी क्षेत्रौ में ठगी की जा रही है। न्यूज़ पेपर, व्हाट्स ऐप ग्रुप, फेसबुक,यूट्यूब आदि के माध्यम से केसर उत्पादन की खबर / सफलता की कहानी देखने को मिल रही है। कई कृषकों ने तो केसर की सफल खेती के video भी वनाये है। ऐसा ही एक video कोटद्वार से श्री अनिल बिष्ट जी का मैंने देखा जिसमें उनके द्वारा बताया जा रहा है कि कोटद्वार में उनके द्वारा सफलता पूर्वक केसर का उत्पादन किया गया है। इसी प्रकार की सफलता की कहानियां पिथौरागढ़, टेहरी जनपद के चम्बा,कीर्तीनगर, रुद्रप्रयाग जनपद के भीरी चन्द्रापुरी आदि क्षेत्रों से मिली हैं।
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15.9.18
आतंकवाद और दहशतगर्दी के खिलाफ दुनिया की पहली जंग थी जंग-ए-कर्बला-डॉ. हुदा
आतंकवाद और दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ पहली जंग थी जंग-ए-कर्बला-डॉ. हुदा.....
"वज़ीर-ए-आज़म आली जनाब नरेंद्र मोदी जी ने इमाम
हुसैन की अज़ीम शहादत को याद कर पूरी दुनिया मे-
अमन-ओ-शांति और भाईचारे का पैग़ाम दिया है"
आज दिनांक 15/09/2018 को हुदैबिया कमेटी(एक राष्ट्रवादी मिशन) के पुराने शहर स्थित मुख्य कार्यालय पर इमाम हुसैन और उनकी आल की कर्बला में इंसानियत के लिये दी गयी अज़ीम कुर्बानी पर खिराजे अक़ीदत पेश की गई और हक़-ओ-बातिल की इस इबरतनाक जंग से अवाम को शनासा किया गया। आवाम को ख़िताब करते हुए हुदैबिया कमेटी के नेशनल कन्वेनर डॉ.एस.ई.हुदा ने कहा कि
- ख़ुदा की अव्वल मखलूक इंसान ने धीरे-धीरे तरक़्क़ी की और आख़िरकार दानिश्वर हज़रात ने ये कहा कि इंसान में तहज़ीब और तरक़्क़ी के सारे पैमाने हासिल कर लिये हैं।बहुत सी इंसानी ख़ुसूसियात ने उसके इंसान हो जाने के साथ उसके तेहज़ीबयाफ्ता हो जाने पर भी मोहर लगा दी।
ये तो तारीखी बात हो गयी लेकिन इससे साथ-साथ अगर हम इंसान की तवारीख़ और तहज़ीब का मुताला करने और समझने की कोशिश करें तो तेहज़ीबयाफ्ता कहलाने वाले इंसानी मोअशरे ने कई ऐसे ग़ैर-तेहज़ीबयाफ्ता "कारनामे"अंजाम दिए हैं जो शायद कोई हैवान और वहशी दरिंदा भी नही कर सकता था।उनमें बहुत सी ऐसी जंगो का शुमार होता है जिसमे शैतानियत की हदें पार कर दी गईं।उन्ही जंगो में सफ़े अव्वल पर जिस जंग का नाम है वो है जंग-ए-कर्बला,जो इंसान को ज़ुल्म और तशद्दुत का अलंबरदार होने का तमगा अता करती है और उसके तेहज़ीबयाफ्ता होने का ख़िताब नोच लेती है।
जंग-ए-कर्बला वो जंग है जिसमे एक तरफ मुट्ठी भर लोग थे जिनमें मासूम और छः महीने के बच्चे से लेकर अस्सी बरस के बुजुर्ग तक को बेदर्दी से भूखा-प्यासा शहीद किया गया।डॉ. हुदा ने कहा ये दरअसल जंग नही बल्कि दुनिया मे आतंकवाद और दहशतगर्दी गर्दी की पहली और ज़ुलमाना वारदात थी जिसे आज भी दहशतगर्दी के पुजारी आज़माते रहते हैं इसी से हक़ और बातिल की पहचान भी हो जाती है।इस्लाम की तवारीख़ पर अगर हम नज़र डालें तो कर्बला के तपते सेहरा में आख़िर-उज़्ज़मा पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो आलेही वसल्लम के नवासे हज़रत इमाम हुसैन(अ0स0) और उनकी आल के साथ जो मारका-ए-आरायी हुई थी उसने इंसानियत और शैतानियत की पहचान के लिए रहती दुनिया तक एक पैमाना ज़रूर दे दिया।एही वजह है कि आज भी दुनिया मे ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठने वाली हक़ की सदा का ज़िक्र होता है तो सब से पहले सदा-ए-कर्बला का ज़िक्र होता है।कर्बला की सबसे बड़ी तालीम भी यही है कि हक़ की आवाज़ बुलंद करने के लिये तायदाद,उम्र,जगह मायने नही रखती।इसलिये जैसा पहले ज़िक्र किया कर्बला जी जंग में छह माह के हज़रत अली असगर से लेकर 80 बरस के गाज़ी हज़रते हबीब इब्ने मज़ाहिर तक ने अपने-अपने हालात और उम्र के हिसाब से ये हक़ की सदायें बुलंद की हैं।
जहां हज़रते अली असगर ने गले पर तीर खा कर एक हल्की से मुस्कुराहट से ज़ालिम फ़ौज के हौसले पस्त कर दिए वहीँ 80 बरस के बुज़ुर्ग गाज़ी हज़रते मज़ाहिर ने अपनी क़ुव्वते बाज़ू से दुश्मन फ़ौज के दांत खट्टे किये।मारका-ए-कर्बला में हर एक मर्दे मुजाहिद को शहादत शहद से मीठी मालूम होती है।येही नही हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के बाद जिस तरह आपकी बहन बीबी- ज़ैनब ने हक़ के पैग़ाम को कर्बला से लेकर कूफ़ा तक आम किया वो मुस्लिम मोअशरे में ख़वातीन की एहमियत को तो बयाँ करता ही है साथ-साथ इस बात को ज़ाहिर करता है कि जिस हालात में भी हो ज़ुल्म के खिलाफ हक़ बोलो।इसलिये आज भी हक़ और बातिल की पहचान के लिये जंग-ए-कर्बला हमारी सच्ची रहनुमाई करती है।कर्बला की जंग ने दुनिया के कई बड़े रहनुमाओं की रहनुमाई का भी फ़र्ज़ अदा किया है जिस की वजह से दुनिया के बेशुमार मसाइल का हल निकल पाया है।दुनिया को अदम-तशद्दुत(अहिंसा) का पैग़ाम देने वाले गांधी जी को भी अदम-तशद्दुत तक ले जाने वाली दर्सगाह का नाम भी कर्बला ही है ये बात गांधी जी ने अपनी स्वनेउमरी(जीवनी) में लिखी है।कल इंदौर की सैफ़ी मस्जिद में इमाम हुसैन की शान और पैग़ाम-ए-कर्बला मौज़ू पर मुनक़्क़ीद आलमी पैग़ाम-ए-इंसानियत इजलास में शिरकत कर वज़ीर-ए-आज़म आली जनाब नरेंद्र मोदी जी ने भी इस बात की ताईद कर दी "इंसानियत के हर पैरोकार को इमाम हुसैन अज़ीम कुर्बानी से सबक लेते हुए उसे अपनी ज़ाती ज़िन्दगी में उतारना चाहिए,हक़ और बातिल की जंग में इमाम हुसैन ने जिस तरह अपना कुनबा का कुनबा इंसानियत के लिये कुर्बान कर दिया इमाम का ये अमल हमे ये पैग़ाम देता है कि ज़ुल्म-ओ-सितम,ताशद्दुत की ताक़त चाहे कितनी भी वसी क्यों न हो हक़ के सामने उसे एक न एक दिन सर खम करना पड़ता है"! अब ये सवाल भी उभरता है कि जब हमारे सामने इतनी बड़ी दर्सगाह कर्बला मौजूद है तो फिर आज भी हम क्यों इंतेशार का शिकार हैं?अगर कर्बला का वाक्या हम सब के लिये दर्सगाह है तो फिर दुनिया मे इतना जंगी ख़ून और फ़साद, बेगुनाहों की चीख़ें और इंसानी कत्ल-ओ-गारत का सिलसिला क्यों दराज़ होता जा रहा है?और अफ़सोस की बात ये है कि मज़लूमो की चीखें सब से ज़्यादा उन मुमालिक से आरही हैं जहां इस्लाम पर चलने का नामनेहाद दावा बड़े ज़ोरो शोर से किया जा रहा है।सब कुछ दीन की हिफाज़त का नाम दे कर किया जा रहा है लेकिन न दीन ही नज़र आरहा है और न ही दुनिया!इस्लामी मुल्क़ों के तशद्दुत ने पूरी दुनिया मे अमन पसंद इंसानियत के अलंबरदार मुसलमान को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।इस महीने में भी कोई दिन शायद ही ऐसा गुज़ारता हो कि ख़ुदा का नाम लेने वाले मुल्क़ों से मज़लूमो के ख़ून से लाल तस्वीरें अख़बरात में देखने को न मिलती हों।ये दिन कर्बला में मज़लूमो को याद करने के साथ-साथ हज़रत इमाम हुसैन के पैग़ाम को भी याद करने के हैं मगर अफसोस!
डॉ. हुदा ने अपनी तक़रीर में मज़ीद इज़ाफ़ा करते हुए कहा कि मोहर्रम का महीना इंसानियत की ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठी सबसे बड़ी आवाज़ की याद दिलाता है।इमाम की कुर्बानी को याद करने का असल मक़सद तो इमाम के किरदार को ज़ेहन में रखना है।कर्बला के वाक़ये पर कोई आंसू बहाता है और ज़िक्र और फिक्र की मजलिस सजाता है,कोई कर्बला के शहीदों की बेबसी पर मातम करता है तो कोई उनकी प्यास को याद कर सबीले लगाता है।कहीं अलम उठाये जाते हैं तो कहीं ताज़िये,तो कहीं कर्बला में शहीदों की बे-कफ़न लाशों को याद करते हुए शहीदाने कर्बला के ताबूत उठा कर ये एहसास कराया जाता है कि जिन ज़ालिम दहशतगर्दों ने शोहदा-ए-कर्बला को बे-क़फ़न छोड़ा था हम उनको आज भी अपने कांधे पर उठाने का जज़्बा रखते हैं। गर्ज़ ये के तरीक़ा चाहे कोई भी हो मगर सब का मक़सद एक ही है कि इंसानियत की बक़ा के लिये रसूल के नवासे ने जो अज़ीम कुर्बानी दी उसको याद करके अपना मोहासबा किया जाए कि हम हक़ के साथ खड़े हैं या नहीं???
मोहर्रम में रसूल के नवासे और उनको आल को ज़ुल्म-ओ-सितम का शिकार बनाया गया था उनको तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था इसलिये इस्लामी नए साल के नाम पर जब कुछ लोग नए साल की मुबारकबाद देने लगते हैं तो हैरत होती है कि क्या ये लोग अपनी तवारीख़ से वाकिफ नही हैं या फिर सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी ने इनकी तालीम बिगाड़ दी है।ये अनोखा चलन शुरू हुया है कुछ लोगो ने मोहर्रम के महीने की शुरुआत में नए साल की मुबारकबाद देने का सिलसिला शुरू किया है।जो महीना सदियों से सब्र, सच्चाई और हक़ के लिए जाना जाता है उसे अब नए साल की मुबारकबाद देने के नाम पर मशहूर करने की साज़िश हो रही है।मगर ये पैग़ाम-ए-कर्बला ही है कि इस तरह की कोशिश को बढ़ावा नही मिल पा रहा है।कर्बला आज भी हमे हर तरह की मुसीबतों और मुश्किलों में सच्चाई पर कामज़न रहने का सबक़ देती है।कर्बला मज़लूम प्यासों की कुर्बानी की ऐसी हक़ीक़त है जो इस दुनिया की हर उस यूनिवर्सिटी के निसाब में शामिल होनी चाहिए जहां तशद्दुत के ख़िलाफ़ डट कर खड़े होने की बात की जाती हो।
इजलास में प्रमुख रूप से सयैद राशिद अली,शहरोज़ खान,क़ाज़ी हसन,सयैद शहरोज़ बुखारी,हसीन क़ुरैशी,इमरान पठान,सयैद शाहनवाज़,दिलशाद सिद्दीकी आदि शामिल रहे।
"झुकता ही नही सर,किसी ज़ालिम के सामने
हिम्मत ही ऐसी दे गया सजदा हुसैन का!"
"देखा है जिस उम्मीद से भारत को हुसैन(अ0स0) ने,
आज फिर वहीं से मोहब्बत की खुश्बू सी आगयी!
समझा है जिस क़द्र हक़ और शहीदाने कर्बला को,
वज़ीर-ए-आज़म तेरी एही अदा दुनिया पे छा गयी!
डॉ. सयैद एहतेशाम उल हुदा
नेशनल कन्वेनर, हुदैबिया कमेटी(एक राष्ट्रवादी मिशन)
9837357723
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13.9.18
हिंदी बिना हिन्दुस्तान अधूरा (14 सितंबर 2018 हिंदी दिवस पर विशेष आलेख)
हिंदी शब्द है हमारी आवाज का हमारे बोलने का जो कि हिन्दुस्तान में बोली जाती है। आज देश में जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएँ हैं, उन सबकी जननी हिंदी है। और हिंदी को जन्म देने वाली भाषा का नाम संस्कृत है। जो कि आज देश में सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से हिंदी माध्यम के स्कूलों में एक विषय के रूप में पढाई जाती है। आज देश के लिए इससे बडी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिस भाषा को हम अपनी राष्ट्रीय भाषा कहते हैं, आज उसका हाल भी संस्कृत की तरह हो गया है। जिस तरफ देखो उस तरफ अंग्रेजी से हिंदी और समस्त भारतीय भाषाओं को दबाया जा रहा है।
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6.9.18
बज चुका आरक्षण के खिलाफ पाञ्चजन्य, संकट में भाजपा
डॉ अर्पण जैन 'अविचल'
समाज के सुधार के पहले क्रम में जातिवाद के समूल नाश के आगे एक राष्ट्र -एक कानून और एक तरह के लाभ की बात रखी जाती थी, राजनीति की सदैव से मंशा तो तरफदारी की रही परन्तु इस बार अनुसूचित जाति,जनजाति की सबलता के लिए बनाये गए अधिकार और संरक्षण की संवैधानिक कवायदों के हो रहे दुरूपयोग के चलते देश का सवर्ण समाज अब की बार नाराज-सा नजर आ रहा है। इस नाराजगी का एक कारण तो आरक्षण का भी समर्थन करना और दूसरा एट्रोसिटी एक्ट के हो रहे दुरूपयोग के बावजूद भी सुधार न करके सवर्ण समाज को कटघरे में खड़ा करना, जिसके कारण सवर्ण समाज खासा नाराज भी है और प्रताड़ित भी।
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शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती
05 सितंबर 2018 शिक्षक दिवस पर विशेष
शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी देश या समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम् भूमिका होती है, कहा जाए तो शिक्षक समाज का आइना होता है। हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि आचार्य देवो भवः यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरुप दिया जाता है। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है, कोई शिक्षक कहता है, कोई आचार्य कहता है, तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायनो में कहा जाये तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढता है। और शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अन्त तक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है और समाज को राह दिखाता रहता है, तभी शिक्षक को समाज में उच्च दर्जा दिया जाता है।
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गाड़ियों के अतिक्रमण से कब मिलेगी सड़कों को मुक्ति?
बरुण कुमार सिंह
हम बात सुव्यवस्थित शासन प्रणाली की बात करते हैं तो उसमें बहुत सारी बातें देखने को आती हैं जिसमें केवल सुधार शासन के स्तर पर नहीं की जा सकती, उनमें जनभागीदारी का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन सारी कुछ नियम कानून होने के बावजूद भी उसका परिणाम सतह पर नहीं दिखाई देता। चाहे हम कोई-सा भी क्षेत्र ले लें। हम यहां बात कर रहे हैं सड़कों के अतिक्रमण की। जिसकी जैसी क्षमता है वह अपने हिसाब से सड़क को अतिक्रमित किये हुए हैं। दिल्ली के कुछ इलाकों को छोड़ दिया जाए तो लगभग पूरी दिल्ली का यही हाल है। लोगों के पास गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह नहीं है लेकिन वे टू-व्हीलर एवं कार रखे हुए हैं। और ये गाड़ी कहां खड़ी होगी, स्वाभाविक ही है कि कहीं-न-कहीं सड़क पर ही खड़ी होगी, जहां टू-व्हीलर एवं कार खड़ी होगी वहां की सड़कें भी अतिक्रमित होगी।
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1.9.18
मुख्यमंत्री न बन पाने की क़सक से बना 'समाजवादी सेक्युलर मोर्चा'!
इन से उम्मीद न रख हैं ये सियासत वाले
ये किसी से भी मोहब्बत नहीं करने वाले
जैसे-जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव नज़दीक आते जायेंगे, वैसे-वैसे 'राजनीति के तालाब' में पार्टियों की गहमा-गहमी शरू होने लगेगी. कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी "डगन" से बड़ी मछली पकड़ने को छटपटाते दिखाई देंगे.
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30.8.18
सुनहरी जीत!शुक्रिया मनजीत
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24.8.18
फेसबुक का दर्द...डॉ. हुदा की क़लम से
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20.8.18
खरी-खरी पत्रकारिता पसंद करने वालों की यादों में हमेशा रहेंगे आलोक तोमर
चंबल की माटी के लिक्खड़ पत्रकार आलोक तोमर पर प्रसंगवश... तारीख ध्यान नहीं। साल वो भी पक्का नहीं मगर आठ दस साल पहले शायद। स्थान होटल सैन्ट्रल पार्क, मंजिल दूसरी या तीसरा कमरा नंबर जो भी हो यार। ''विवेक तुम्हारे पोहे और जलेबी अच्छे लगे। कचौड़ी अच्छा बनाता है बहादुरा वाला। और हमारी सिगरेट का क्या हुआ। ले आए न। लौटकर दुबारा जाना न पड़ जाए तुम्हें।''
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अटलजी को यह कैसी श्रद्धांजलि?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पिछले तीन दिनों में तीन ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के नेताओं को गंभीरता से विचार करना चाहिए। ये तीनों घटनाएं ऐसी हैं, जो अटलजी के स्वभाव के विपरीत हैं। यदि अटलजी आज हमारे बीच होते और स्वस्थ होते तो वे चुप नहीं रहते। बोलते और अपनी शैली में ऐसा बोलते कि संघ और भाजपा की प्रतिष्ठा बच जाती बल्कि बढ़ जाती। पहली घटना। स्वामी अग्निवेश जब अटलजी के पार्थिव शरीर पर श्रद्धांजलि अर्पित करने भाजपा कार्यालय गए तो उन्हें कुछ कार्यकर्ताओं ने मारा-पीटा। धक्का-मुक्की की। कुछ बहनों और बेटियों ने उन पर चप्पलें भी तानीं।
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हारी बाजी पलट देंगे अटल जी?
पार लगाएंगे शिवराज, रमन और वसुंधरा की नैया?
सबसे पहले अटलजी के चरणों में नमन। कांग्रेस की राह पर चल रही है बीजेपी ? ये इसलिए कहना पड़ रहा है क्यों कि हाल के दिनों में जो फैसले लिए गए वो बिल्कुल इन्ही बातों की ओर इशारा करते हैं । पहले जरा करीब 1 हफ्ते पीछे चलिए, एक निजी चैनल का सर्वे आया था । जिसमें इस बात का दावा किया गया था कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बल्ले बल्ले होने वाली है, पीएम मोदी देश की आवाम की पहली पंसद हैं लेकिन शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा की सरकार जाने वाली है और वहां कांग्रेस की सरकार बन सकती है।
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19.8.18
17.8.18
शूद्र
मैं पैदा इंसान अवश्य हुआ
पर
शूद्र होना ही मेरी नियति थी
सवर्ण समाज से मेरी व्यथित विसंगति थी
इतिहास दर इतिहास
काल-कलुषित सर्वथा मेरी तिथि थी
एकलव्य,कर्ण, चंद्रगुप्त के विजयध्वजों पे भी
अपमान की कई सदियों बीती थी
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"अटल" मरा नही करते...ये अच्छी बात नई है!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
ठन गई!मौत से ठन गई....
("अटल" मरा नही करते)
अटल जी!ये अच्छी बात नई है!
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यक़ीनन अटल बिहारी बाजपेयी जैसी शख्सियतें मरा नही करतीं बल्कि दुनिया-ए-फानी से रुख़सत होने के बात अवाम के दिलो में,रूह की गहराइयों में बस कर सदा के लिये लिए "अटल-अमर-अजर" हो जाया करती हैं।अटल जी का इस दुनिया से रुख़सत होना हिंदुस्तान की सियासत में वो खला पैदा कर गया है कि जिसकी भरपाई नामुमकिन है।भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने सियासत की बुलंदियों को तो छुआ ही बल्कि एक सच्चे सूफ़ी-दार्शनिक के तौर पर बहनुल अक़्वामी सतह पर अपनी पहचान बनाई।पार्लियामेंट में अटल की तक़रीर यू ट्यूब पर सुन कर बड़ी हो रही इस पीढ़ी को शायद ये एहसास नही होगा कि उसने सिर्फ़ एक कुशल वक्ता ही नही खोया बल्कि अपनी हाज़िर जवाबी,हँसमुख अंदाज़, बेबाक पन,व्यंग और बढ़ती उम्र के साथ एक बचपन जो सदैव उनके साथ जिया उसको भी खो दिया।
अटल जी को ऐसे ही सर्वमान्य नेता नही कहा जाता...ये उनका बेबाक पन ही था कि पार्लियामेंट में खड़े हो कर पूरे देश के सामने उस दौर से प्रधनमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के लिये बोल दिया कि अगर आज में जिंदा हूँ तो राजीव जी की वजह से ही ज़िंदा हूँ।दरअसल भारत सरकार की और से एक वफद अमेरिका जाना था राजीव जी ने अटल जी का नाम उस वफद में शामिल कर लिया ताकि अमरीका जा का अटल जी अपना इलाज करा लें।लौट कर आने पर अटल जी ने मन्ज़रे आम पर इस बात को स्वीकार कर ये संदेश देने की कोशिश की पक्ष-विपक्ष एक जमुहरियत का हिस्सा है लेकिन मोहब्बत का कोई पक्ष या विपक्ष नही होता।ये पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के साबिक वज़ीर-ए-आज़म नवाज़ शरीफ़ के साथ उनके रिश्तों की बुनियाद पर ही भारत-पाकिस्तान बस सेवा शुरू हो सकी...उनकी वाक पटुता के क़ायल नवाज़ साहब पाकिस्तान जा कर अपने एक बयान में कह गए कि "अटल जी जैसे वज़ीर-ए-आज़म की पाकिस्तान को भी ज़रूरत है,काश पाकिस्तान उनसे कुछ सीख पाता"...नवाज़ साहब का ये बयान पाकिस्तान के आर्मी चीफ मुशर्रफ साहब को बहुत नागवार गुजरा और इस बयान की प्रतिक्रिया में कारगिल युद्ध दोनों मुल्कों को झेलना पड़ा... द्रणनिश्चय और साहसिक फ़ैसले लेने के अदम्य साहस के नतीजे में पोखरण-परिक्षण ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया और हम भारतीयों का सार फ़क्र से ऊंचा हो गया।
मुझे ख़ूब याद है कि देहरादून मेडिकल कॉलेज में मेरा फाइनल ईयर का ग्रैंड प्रैक्टिकल वाइवा था और एक्सटर्नल एग्जामनर बन कर एम्स से डॉ. शिर्के और डॉ बलसरे आ रहे थे...जब हमारे प्रोफेसर डॉ सक्सेना साहब ने ये बताया कि ये वोही डॉ हैं जो अटल जी का घुटना-प्रतिरोपण के बाद रिहैबिलिटेशन कर रहे हैं तो हमारे बैच के सभी स्टुडेंट में एक कौतूहल से पैदा हो गया।दोनों डॉ एग्जाम से एक दिन पहले दून वैली होटल में आकर रुके थे।हमारे बैच के हम जैसे कुछ खुराफ़ाती शाम को उनसे मिलने बल्कि सिर्फ उनको देखने पहुँच गये...मैंने सीधा सवाल किया डॉ बलसरे से..."सर अटल जी अब कैसे हैं और आपको कैसा लगता है उनका इलाज करके"...उन्होंने भी सीधा जवाब दिया मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी मे ऐसा व्यक्तित्व नही देखा...अटल जी ने तो एम्स में अपने कमरे को मिनी प्रधानमंत्री कार्यालय बना रखा है जब बार-बार उनसे मैं आग्रह करता हूँ कि सर अब बस करें रिहैबिलिटेशन का टाइम हो गया तो अटल जी कहते हैं..."डॉ साब मेरे खड़े होने होने से ज़्यादा महत्वपूर्ण देश का खड़ा होना होना है"....बार-बार मुझे न टोका करें..."ये अच्छी बात नई है"...
विश्व गुरु का सपना हमारे दिलों-दिमाग़ को देने वाले अटल जी जिस्मानी तौर से हमसे आज रुख़सत ज़रूर हो गए मग़र अटल जी के "अटल-सिंद्धान्त" पर पर चल कर हमें उनका देश को विश्व गुरु बनाने का सपना चरितार्थ करना ही होगा तभी इस "अटल-शख्सियत" को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
जय-हिंद
डॉ.इस.ई.हुदा
नेशनल कन्वेनर,हुदैबिया कमेटी
बरैल्ली
9837357723
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16.8.18
आरएसएस का ख़ौफ़ दिखा कर सियासी जमातों ने अभी तक ठगा है मुस्लिम मोअशरे को....मुल्क़ और मिल्लत की फलाह के लिए एक हाथ मे कुरान दूसरे हाथ मे कंप्यूटर ज़रूरी---डॉ. हुदा
आज दिनांक 14 अगस्त 2018 को वर्षों से कौमी इत्तेहाद और आपसी भाईचारे के लिए काविशें अंजाम दे रहे देशव्यापी स्तर पर विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. एस.ई.हुदा एवं भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की प्रदेश मंत्री डॉ नाज़िया आलम के नेतृत्व में सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं एवं पुरुषों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) द्वारा बरेली के शहीद चौक पर आयोजित अखण्ड भारत कार्यक्रम में भारत माँ के जयकारे एवं वंदेमातरम की आवाज़ बुलंद करते हुए भारत माता की आरती में भाग लिया।
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14.8.18
वे पन्द्रह दिन - १४ अगस्त, १९४७
प्रशांत पोळ
कलकत्ता.... गुरुवार. १४ अगस्त
सुबह की ठण्डी हवा भले ही खुशनुमा और प्रसन्न करने वाली हो, परन्तु बेलियाघाट इलाके में ऐसा बिलकुल नहीं है. चारों तरफ फैले कीचड़ के कारण यहां निरंतर एक विशिष्ट प्रकार की बदबू वातावरण में भरी पड़ी है.
गांधीजी प्रातःभ्रमण के लिए बाहर निकले हैं. बिलकुल पड़ोस में ही उन्हें टूटी – फूटी और जली हुई अवस्था में कुछ मकान दिखाई देते हैं. साथ चल रहे कार्यकर्ता उन्हें बताते हैं कि परसों हुए दंगों में मुस्लिम गुण्डों ने इन हिंदुओं के मकान जला दिए हैं. गांधीजी ठिठकते हैं, विषण्ण निगाहों से उन मकानों की तरफ देखते हैं और पुनः चलने लगते हैं. आज सुबह की सैर में शहीद सुहरावर्दी उनके साथ नहीं हैं, क्योंकि उस हैदरी मंज़िल में रात को सोने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई. आज सुबह ११ बजे वह आने वाला है.
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13.8.18
बेहतर पत्रकार बनना है तो बड़े पत्रकारों को पढ़ो और सुनो
सर,
उम्मीद करता हूँ, आप अपना कीमती वक्त निकाल कर इस मैसेज को ज़रूर पूरा पढ़ेंगे और मेरा मार्ग-दर्शन भी ज़रूर करेंगे| वैसे तो मैं आपकी खबरों को देख और सुन कर भी बहुत कुछ सीखता रहता हूँ | क्योंकि पत्रकारिता जगत में मेरे पहले गुरु रहे राज कौशिक जी कहते हैं, बेहतर पत्रकार बनना है तो बड़े पत्रकारों को पढ़ो और सुनो| इस लिंक पर क्लिक कर चैनल को एक बार ज़रूर देखिएगा प्लीज़ |
https://www.youtube.com/watch?v=FY5p_-RZVEs
धाकड़ खबर के नाम से यू-ट्यूब पर एक न्यूज़ चैनल चल रहा है, डेढ़ साल पहले इस चैनल की शुरुआत हुई थी, शुरू में यह चैनल लोकल एरिया की समस्याएँ उठाता रहा, पर अब देश और प्रदेश के मुद्दों पर काम कर रहा है | आज इस चैनल के करीब सवा 3 लाख सबस्क्राइबर्स हैं, इस चैनल पर 3 से 4 खबरें रोजाना डाली जाती हैं और 70-80 हज़ार दर्शक रोजाना इन खबरों को देख भी लेते हैं |
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10.8.18
पुण्य प्रसून बाजपेयी के बहाने
हाल ही में एबीपी न्यूज़ से पुण्य प्रसून बाजपेयी सहित कई अन्य पत्रकार निकाले गए या निकलने के लिए मजबूर कर दिये गए। वैसे यह कोई नयी बात नहीं है। वो दिन लद गए जब पत्रकार की बाकायदे बिदाई होती थी। अर्सा हो गया अखबार में माला पहने हुए पत्रकार की फोटो सेवानिवृत्त की खबर के साथ देखे हुए। कुछ वर्ष पहले तक मशीन में काम करने वाले अखबारकर्मी की माला पहने हुए फोटो देखे हुए। क्या अखबार में काम करने वाले लोग रिटायर नहीं होते।
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डीपीआर ने मिमियाना सिखा दिया
सत्ता से लोहा लेकर मीडिया सच को परोसेगा यह सोचना मात्र भी मूर्खता ही होगी । सोचने... समझने...समझाने... देखने.... दिखाने की जगह मीडिया ने मिमियाना शुरू कर दिया है... राग वो ही बजता है जो सरकार सुनना पसंद करें... राग वो ही बचता है जो TRP दे.. राग वो ही बचता है जो DPR लाने मे मदद करें.. ओर इस P और R से बाहर निकलकर कोई कुछ कहने की जुर्रत करता है तो वो सरकार विरोधी नहीं देश विरोधी हो चलता है.... ऐसे में सत्ता की डपली बजाते हुए उसे सिर पर बैठाने की गलत परंपरा मीडिया के लिए ही घातक हो गई है या यूं कहें कि DPR का दांव गले फांस बन गई है जो कुछ ज्यादा ही दर्द कर रही है और समय के साथ-साथ इसका दर्द और भी तेज होता रहेगा जैसा अभी हो भी रहा है । शायद हलाली लेकर सोए मीडिया पर यह संकट समय से कुछ पहले ही आ गया...
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उसने कहा- हमारे रिश्ते सीधे जार्ज बुश से हैं!
मैंने कहा- अदना इंसान हूँ चढ़ा देना सूली पर
पढ़िए बात दिल की है... पर थोड़ी लम्बी है... बात उस समय की है जब जार्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति हुआ करते थे नीमच में एक नामचीन स्कूल संचालक पर आरोप लगा की यह मालवा में जबरिया धर्म परिवर्तन का रैकेट ऑपरेट कर रहा है इनका एक सेंटर गुरुद्वारे के समीप गली में था, पुराना समय था पत्रकारिता के लिए औजार सिमित थे मैने एक पॉकेट रिकॉर्डर जेब में रखा और उस सेंटर पर गया वहा मेरा जमकर सत्कार हुआ और मुझे इस बात पर राज़ी किया जाने लगा की में "बपतिस्मा" ले लू फिर उन्होंने मुझे अपनी मिशनरी की पूरी कहानी सुनाई और बताया की नीमच और मालवा में अब तक कितने लोग धर्म बदल चुके है
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साम्प्रदायिक सद्भाव की कहानियों का अनूठा संकलन लोकार्पित
जयपुर। धर्म के प्रति निष्ठा होने और साम्प्रदायिक होने में बहुत अंतर है। किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक विश्वासों पर अडिग रहते हुए जनहित में काम कर सकता है। लेकिन साम्प्रदायिक व्यक्ति या समूहों जो धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं वे जनविरोधी काम करते हैं। सुप्रसिद्ध कथाकार असग़र वजाहत ने अपनी नयी पुस्तक 'हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी' के लोकार्पण समारोह में कहा कि राजनीति ने जिस प्रकार से धर्म को इस्तेमाल किया है उससे साम्प्रदायिकता बढी है। दूसरी ओर शिक्षा और जागरूकता के प्रति देश के नेताओं को जो चिन्ता होनी चाहिये थी वो रही नहीं। क्योंकि उन्हें धर्मांधता को फैलाना ही हितकर लगा।
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हर साल मिलेगा एक साहित्यकार को महाकवि डॉ. कुँअर बेचैन साहित्य शिखर सम्मान
गाजियाबाद। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् गाजियाबाद एवं बार एसोसिएशन गाजियाबाद के संयुक्त तत्वावधान में महाकवि डॉ. कुँअर बेचैन के ७७वें जन्मोत्सव पर ‘एक शाम डॉ. कुँअर बेचैन के नाम’ से विराट साहित्यिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया। इस मौके पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद् गाजियाबाद ने महाकवि डॉ कुँअर बेचैन साहित्य शिखर सम्मान की घोषणा करते हुए डॉ बेचैन को 11 हजार रुपये, शाल, स्मृति चिह्न, बांसुरी, सम्मान पत्र, गुलदस्ते आदि भेंट किये।
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हरिवंश की जीत से विपक्ष को झटका
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
राज्यसभा के उप-सभापति पद के लिए हरिवंश नारायण सिंह की विजय मेरे लिए व्यक्तिगत प्रसन्नता का विषय तो है ही, क्योंकि पिछले दो-तीन दशक से एक अच्छे पत्रकार की तरह उन्होंने ऊंचा नाम कमाया है। जब चंद्रशेखरजी प्रधानमंत्री थे तो उनके पत्रकार-संपर्क का काम उन्होंने बखूबी निभाया। वे राज्यसभा के सदस्य पहली बार बने और पहली ही बार में उसके उपसभापति बन गए। पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के पहले एक प्रबुद्ध नवयुवक की तरह वे जयप्रकाशजी के आंदोलन में हमारे साथ रहे हैं। उनको हार्दिक बधाई!
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सैफ़ुद्दीन सोज़ की किताब के बहाने कश्मीर समस्या की जड़ की खोज
- डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
जून के अंतिम दिनों में सोनिया कांग्रेस के एक बड़े नेता सैफ़ुद्दीन सोज़ की जम्मू कश्मीर को लेकर लिखी गई एक नई किताब Kashmir- Glimpses of History and the story of struggle की चर्चा अख़बारों और टैलीविजन में शुरु हो गई थी । चर्चा को हवा देने के लिए सोज़ ने एक बयान जारी कर दिया था कि कश्मीरी भारत से आज़ादी चाहते हैं । इस बयान के बाद किताब की चर्चा और गहराती । तब इस चर्चा में एक नया आयाम जोड़ा गया कि क्या किताब के विमोचन कार्यक्रम में मनमोहन सिंह आएँगे या नहीं ? ज़ाहिर है हल्ला और पड़ता और सोज़ साहब ने अपनी किताब में क्या लिखा है ,इसे जानने की जिज्ञासा बढ़ती । आजकल यह किसी साधारण सी किताब की मार्केटिंग करने का व्यवसायिक तरीक़ा है ।
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9.8.18
विपक्ष में कौन होगा पीएम पद का दावेदार?
संजय सक्सेना, लखनऊ
‘बिन दूल्हे की बारात’ की तरह आम चुनाव के लिये यूपी में भाजपा के खिलाफ गठबंधन की कवायद गुजरते समय के साथ तेज होती जा रही है। गठबंधन के लिये न तो कोई नीति बनी है, न ही इस बात का खुलासा हुआ है कि गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा। कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि जो सबसे बड़ा ज्यादा सीटें जीत कर आयेगा,वह ही पीएम बनेगा। ऐसा कहते समय राहुल की सोच यही कहती होगी कि कांगे्रस राष्ट्रीय पार्टी है। अगर उससे सभी राज्यों से औसतन तीन-तीन सीटें भी मिल गईं तो कांगे्रस का आंकड़ा सहजता से सौ सांसदों तक पहुंच जायेगा, जबकि क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में बेहतर से बेहतर प्रदर्शन करके के बाद भी इस संख्या के आसपास तक नहीं पहुंच पायेंगे, तब राहुल गांधी सबसे बड़ा दल होने के नाते अपनी दावेदारी ठोंक देंगे।
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NAJ-DUJ CASTIGATE ATTACKS ON FREEDOM OF THE PRESS
The National alliance of Journalists(NAJ)and the Delhi Union of journalists (DUJ), have called for a halt to the increasing attacks on the media, both physical attacks, attempts to browbeat the media into government tom-tomming and other attempts to muzzle the media during the past few years.
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देवरिया, हरदोई संरक्षण गृह रेप मामले की जाँच कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से कराएं
वाराणसी। देवरिया, हरदोई संरक्षण गृहों के रेप मामले की न्यायालय की निगरानी में सीबीआई जाँच कराने, चंद्रशेखर रावण को तुरंत रिहा करने, दबंगों से सरकारी जमीनें मुक्त कर भूमिहीनों में बाँटने की मांग पर बुधवार को भाकपा (माले), खेग्रामस, ऐपवा, इंसाफ मंच के संयुक्त तले शास्त्रीघाट कचहरी से जिला मुख्यालय तक मार्च निकाला गया और ज्ञापन सौंपा गया। मार्च के माध्यम से किसानों को कर्जे से मुक्त करने व स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने की मांग भी उठाई गई।
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एनआरसी : तब भारतीय नागरिक कौन ?
कोलकाता : असम में विदेशी नागरिकों के प्रश्न पर छात्र आंदोलन हुए । छात्र आंदोलन का एक गुट अगप बनकर सत्ता में आ गई। दूसरा गुट अल्फा के नाम पद पाकिस्तानियों के सहयोग से भारत में आतंक का साम्राज्य फैला दिया । एक लंबा भय और आतंक का सृजन पूरे असम में फैला दिया गया । अगप के तात्कालिक गृह मंत्री भृगु फूकन ने अल्फा के साम्राज्य के लिये खुलकर तात्कालिक मुख्यमंत्री प्रफ्फुला कुमार महंत पर आरोप लगाये। अगप की सरकार गई । कांग्रेस की सरकार आ गई । आज वही प्रफ्फुला कुमार महंत भाजपा की सरकार में शामिल है। जिसके कार्यकाल में असम में सैकड़ों हिन्दी भाषी जनता को मौत के घाट सुला दिया गया था। हजारों हिन्दी भाषी व बँगला भाषियों को असम छोड़कर पलायन करना पड़ा था।
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31.7.18
यहां अच्छाइयों के एवज में नोट कमा लेते हैं लोग...
-सागर शर्मा-
काटकर अपनों की टाँगें यहाँ ख़ुद को लगा लेते हैं लोग ।
इस शहर में कुछ इस कदर भी कद बढ़ा लेते हैं लोग।।
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'परसनल इज पोलिटिकल' मुहावरे ने चीज़ों को साफ़ देखने का रास्ता बताया है
दिल्ली। 'स्त्री मुखर हुई है, उसकी शक्ति ज्यादा धारदार हुई है, तो उसके संघर्ष भी गहन और लंबे होंगे। आज भी उसका संघर्ष थमा नहीं है। वह संघर्ष कर रही है, पुरुषों के मोर्चे पर पुरुषों के साथ और अपने मोर्चे पर पुरुषवादी स्त्रियों के साथ भी। वक्त के बदलने के साथ संघर्ष का स्वरूप भी बहुत कुछ बदल गया है। बस नहीं बदला तो स्त्री के संघर्ष की प्रकृति।' उक्त विचार सुप्रसिद्ध कथाकार सुधा अरोड़ा ने हिन्दू कालेज में हिंदी साहित्य सभा के एक कार्यक्रम में व्यक्त किये।
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‘पीसमेकर’ ने 11 जांबाज आईपीएस अधिकारियों को सम्मानित किया
अंग्रेजों के जमाने की पुलिसिंग को बदलने की है जरूरत : जनरल वी के सिंह
भारतीय पुलिस एवं अर्द्धसैन्य बलों पर केन्द्रित मासिक हिन्दी पत्रिका ‘पीसमेकर’ ने अपने 15वें स्थापना दिवस पर पहली बार देश भर के 11 जांबाज आईपीएस अधिकारियों को सम्मानित किया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जनरल डॉ. वी. के. सिंह (पूर्व सेनाध्यक्ष), विदेश राज्यमंत्री, भारत सरकार थे। उन्होंने सभी 11 आईपीएस अधिकारियों को पीसमेकर वीरता ट्रॉफी व मेडल देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर पूर्व आईपीएस अधिकारी व उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह भी उपस्थित थे। मुख्य अतिथि ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित भी किया।
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प्रेमचंद समाज की गतिविधियों को शब्द और संवाद ही नहीं देते बल्कि उसमें दखल भी देते हैं
दिल्ली। प्रेमचंद समाज की गतिविधियों को शब्द और संवाद ही नहीं देते बल्कि उसमें दखल भी देते हैं। सेवासदन में भारतीय विवाह संस्था का क्रिटिक भी प्रेमचंद बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करते हैं जो सामाजिक कुप्रथाओं के कारण दाम्पत्य में बेड़ी का काम करता है। सेवासदन की नायिका सुमन के द्वारा विद्रोह की कोशिश विवाह संस्था के रूढ़िवादी स्वरूप का नकार है। उक्त विचार सुप्रसिद्ध आलोचक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदी की आचार्य गरिमा श्रीवास्तव ने हिन्दू कालेज में हिंदी साहित्य सभा के एक कार्यक्रम में व्यक्त किये। 'प्रेमचंद का महत्त्व : संदर्भ सेवासदन' शीर्षक से हुए इस आयोजन में श्रीवास्तव ने कहा कि जब व्यक्तित्व के स्वतंत्र विकास के अवसर अनुपलब्ध हों तो अनमेल विवाह के शिकार स्त्री पुरुष स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान नहीं कर सकते।
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मुस्लिम समाज से दैनिक जागरण के बहिष्कार की अपील
दैनिक जागरण मुस्लिम्स समाज से जुड़ी खबरों को लेकर दोहरा रवैया अपनाता है. ज़िला रामपुर ही नहीं बल्कि पूरा देश जानता है कि दैनिक जागरण अपने घटिया लेख से मुस्लिम्स की आस्था को ठेस पहुंचा कर उनके ईमान पर उंगली ही नही उठाता बल्कि तरह तरह के आरोप लगाता है. चाहे वो मासूम आसिफा के रेप केस का मामला हुआ हो, या मुसलमानों के नबी के लिए आपत्तिजनक टिप्पणी का लेख, या फिर अपने ही विभाग में मुसलमानों से काम करवा कर उनकी मज़दूरी तक नहीं देना.. नमाज़ी, परहज़गारों, मेहनती मुस्लिम कर्मियों का शोषण करना भी दैनिक जागरण का काम है...
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समाचार प्लस चैनल ने 18 दिन पुराने समाचार को ताज़ा बताकर चला दिया
हरदोई में पत्रकारों द्वारा किस तरह प्रशासनिक अधिकारीयों की चाटुकारिता की जा रही है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है की 18 दिन पहले यानी 12 जुलाई को जिस खबर को सारे ही दैनिक अख़बार प्रकाशित कर चुके हैं उस ख़बर को 30 जुलाई को उत्तर प्रदेश की टीआरपी की कतार में मौजूद समाचार प्लस नामक चैनल चलाता है.
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मैं बिकाऊ मीडिया हूं...
-मयंक जोगी-
आज मैं जिस जगह हूं वो वेश्याओं का कोठा तो नहीं है पर उस से कम भी नहीं है। मैं वेश्या तो नहीं पर उस से कम भी नहीं। मेरे प्यारे भाईयों,बहनों माताओं और पिता समान बुजुगों सभी को मेरा प्रणाम और प्यारे बच्चों को प्यार,.....मेरी आप से गुजारिश है.... आज तक मैंने आपसे कुछ नहीं मांगा....आज मैं आप सब से कुछ मांगना चाहती हूं .......मैं हर सुबह आपके घर आती हूं ....आपकी हर सुबह मुझी से शुरु होती है......हर सुबह मेरी सरहाना करते हो ....सुबह का नाश्ता करने के बाद आप जब ऑफिस जाते हैं....और दोपहर का खाना खाते समय जब आप अपने सहकर्मियों के साथ होते हो उस समय भी आप मेरे बारे में बातें करते हैं....अपने विचारों में मेरी प्रशंसा करते हैं.......तर्क –वितर्क करते हो और ऑफिस के काम से थक हार कर जब अपने घर आते हो....तो वहां भी मैं आपका इंतजार कर रही होती हूं......
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भिवानी में गुप्तचर विभाग के कर्मचारी मीडियाकर्मियों के माध्यम से जानकारी जुटाते हैं
भिवानी : किसी भी प्रदेश के गुप्तचर विभाग को उस प्रदेश की सरकार का आंख, कान व नाक माना जाता है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में होने वाली हर गतिविधि पर गुप्तचर विभाग के कर्मचारियों की पैनी नजर होती है और दिन भर घटने वाली हर महत्वपूर्ण गतिविधियों को अपने स्तर पर जुटाकर अपने विभाग के प्रमुख के पास भेजते हैं। लेकिन भिवानी में गुप्तचर विभाग के कर्मचारी अपने स्तर पर नहीं बल्कि मीडियाकर्मियों के माध्यम से ही हर जानकारी जुटाते हैं और विभिन्न पत्रकार वार्ताओं में भी मीडियाकर्मियों की बजाए प्रथम पंक्ति में बैठे नजर आते हैं।
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30.7.18
"बॉल टेम्परिंग" सियासत की पिच पर नहीं चलती खान साहब...
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29.7.18
राफेल बोफोर्स न बने इसलिए इसकी पारदर्शिता साबित करे सरकार
कृष्णमोहन झा
लोकसभा में मोदी सरकार के विरुद्ध पेश अविश्वास प्रस्ताव भारी बहुमत से गिर गया। इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सदस्य राहुल गांधी ने फ़्रांस से हुए राफेल सौदे को लेकर सरकार पर तीखा हमला किया था। राहुल ने रक्षा मंत्री पर प्रधानमंत्री के दबाव में आकर सदन को गुमराह करने तक के आरोप लगाए। इसके जवाब में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि फ़्रांस के साथ संधि की शर्तों के कारण इस सौदे की ज्यादा जानकारी वह नहीं दे सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह संधि 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार के समय की गई थी, इसलिए कांग्रेस को सरकार पर आरोप लगाने का नैतिक अधिकार ही नहीं है। राहुल गांधी के आरोपों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गंभीरता से लेते हुए तीखे लहजे में कहा कि देश की सुरक्षा के मुद्दों पर ऐसा खेल ठीक नहीं है तथा बिना सबूत चिल्लाने की राजनीति देशहित में नहीं है।
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28.7.18
फिल्म देखने के बाद मैं गोपालदास नीरज के गीतों का फैन हो गया....
1966 में एक फिल्म आयी थी, जिसका नाम था-- ‘नई उमर की नई फसल’ ! यह फिल्म लखनऊ के नॉवेल्टी टाकीज में लगी थी। उस समय मैं किशोर वय का था और ग्यारहवीं में पढ़ता था। मेरे पिता फिल्म देखने के सख्त खिलाफ थे। फिर भी, क्लास कट कर मैं अपने सहपाठियों या मुहल्ले के दोस्तों के साथ पिक्चर देख लिया करता था। आठवीं में पढ़ते समय मैंने पिता के कहने पर जो पहली फिल्म देखी थी, वह विवेकानन्द के जीवन पर आधारित थी।
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27.7.18
विलम्ब से विवाह वरदान या अभिशाप?
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जिलाधिकारी रितू माहेश्वरी के आदेशों को ठेंगा दिखाते एमएमजी हॉस्पिटल के डॉक्टर
गाजियाबाद। महानगर स्थित एमएमजी हास्पिटल में कार्यप्रणाली सुधरने का नाम नहीं ले रही है। गाजियाबाद की डीएम रितू माहेश्वरी कार्य के प्रति लापरवाही बरतने पर चेतावनी भले दे रही हों लेकिन उसका कोई असर नहीं है। जिला अस्पताल के डॉक्टर अपने पुराने ढर्रे पर ही कार्य कर रहे हैं।
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एक पत्रकार का दर्द
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लोकसभा चुनाव-2019 : गठबंधन के लिए नफा-नुकसान तलाशती बीजेपी
लोकसभा चुनाव के लिये गठबंधन को लेकर बसपा सुप्रीमों मायावती बार-बार नया ‘सस्पेंस’ खड़ा कर देती हैं। कांगे्रस द्वारा राहुल को पीएम का चेहरा घोषित किये जाने के बाद माया ने एक बार फिर दोहराया है कि वह गठबंधन का हिस्सा तभी बन सकती हैं जब यह सम्मानजनक होगा। उनका यह बयान राहुल को पीएम का चेहरा घोषित करने की वजह से आया जरूर है,लेकिन लगता है कि वह सपा प्रमुख अखिलेश यादव को भी कुछ संकेत देना चाह रही थीं।
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26.7.18
पीढियों की सोच में अंतर क्यों...
कुछ अजीब सा विषय है ना...पर ये जेनरेशन गैप हर पीढ़ी मे होता है...बस हमारा देखने का नजरिया अलग होता है...आख़िर ये जेनरेशन गैप है क्या बला...? आम तौर पर माना जाये तो ये दो पीढ़ी के बीच मे आने वाला फर्क है...या यूं कहें की हर बात मे, सोच मे ,आचार -विचार मे ,बातचीत के तरीके मे ,व्यवहार मे अंतर होने को जेनरेशन गैप कह सकते है...हमेशा नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को और पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी को यही कहकर चुप करा देती है कि जेनरेशन गैप है...वो चाहे हम लोगों का जमाना रहा हो या फिर आज हमारे बच्चों का जमाना ही क्यों ना हो...ऐसा हम अपने अनुभव के आधार पर कह रहे हैं...
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23.7.18
नीरज की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा : किसी की पलकें भीगीं तो कोई फफक-फफक कर रोया
गाजियाबाद। गीतऋषि गोपाल दास नीरज को याद करके किसी की आंखें, नम हुईं, किसी की पलकें भीगीं तो कोई फफक कर रो दिया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद गाजियाबाद और सम्प्रेषण साहित्यिक संस्था ने मिलकर गीतऋषि पद्मभूषण स्वर्गीय श्री गोपाल दास नीरज जी की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन सिग्नेचर होम्स, राजनगर एक्सटेंशन के क्लब हाउस में किया। अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए महाकवि डाॅ. कुंअर बेचैन ने उन्हें मन का कवि बताया।
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20.7.18
एक शाम डॉ कुंवर बेचैन के नाम- ''चाँदनी चार क़दम, धूप चली मीलों तक''
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10.7.18
सुनो सुशासन बाबू,आपके सुशासन वाले बिहार में पत्रकार और पत्रकारिता सुरक्षित नही
इन दिनों एक बार फिर लगता है कि बिहार में वही 90 के दशक वाला जंगलराज शुरू हो चुका है। बिहार में पहली बार जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तो काफी बदलाव हुआ। सबसे ज्यादा लचर कानून प्रणाली में सुधार हुआ। लेकिन जैसे-जैसे नीतीश कुमार की सरकार दूसरी और तीसरी बार सत्ता में आई।वैसे वैसे कानून प्रणाली लचर होती जा रही। बिहार में हालात इन दिनों ऐसी है कि मीडिया जो समाज को सच से रूबरू कराता है उन पत्रकारों को भी अपनी जान गवानी पर रही। एक दो नही कई नाम हैं जो नीतीश कुमार के कार्यकाल में पत्रकारिता करते हुए पत्रकार की मौत हुई।
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लिहाजा असल माफिया हम हैं तुम नही..
तुम्हारी एक गोली या फिर 10 गोली से सिर्फ एक मरता है हमारी एक कलम से हजारों दहशत में आ जाते हैं। तुम क्या डराओगे जितना हम डराते हैं। तुम जान मारते हो हम जान को हलक में फंसा देते हैं। हम नही तो तुम्हारा कोई वजूद नही। तुम कभी डर के तो कभी डराने को गोली चलाते हो ।तुम्हे तो हम डॉन और माफिया बनाते हैं। तुम्हारी एक गोली की गूंज हम सैकड़ों के घर सैकड़ों बार पहुंचाते हैं। जितने लोग तुम्हारी गोलियों से नही डरते उससे ज्यादा हमारी कलम से डरते हैं। गर हम नही तो तुम नही। लिहाजा असल माफिया हम हैं तुम नहीं। हम मीडिया है..
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अपना दल में मची खलबली, रमेश वर्मा को वाराणसी जिला अध्यक्ष पद से हटाने' से कार्यकर्ता हुए नाराज
सत्ता की सूली पर कार्यकर्ता और विचार "कार्यकर्ताओं में आक्रोश"
वाराणसी के रमेश वर्मा को विगत छः माह पहले अपना दल (कृष्णा गुट) जिला अध्यक्ष के रूप में बड़ी जिम्मेदारी मिलने से जहां कार्यकर्ताओं में उत्साह था, वहीं अब उन्हीं कार्यकर्ताओं में आक्रोश पनप रहा है। अपना दल के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया की जिले मे भले ही जिला अध्यक्ष अपना दल का कुनबा बढा रहे हो वही विगत 2 जुलाई को अपना दल संस्थापक डा. सोनेलाल पटेल की जयंती को सफलता पूर्वक आयोजन करने के बावजूद अपना दल हाईकमान बिना किसी कारण नोटिस स्पष्टीकरण दिए दल के जिलाध्यक्ष रमेश वर्मा को हटाकर उनके साथ नाइंसाफी किया जिस बाबत स्थानीय कार्यकर्ता नाराज चल रहे है। नाराज़ कार्यकर्ताओ ने कहा की हमारी विचारधारा और हमें गाली देने वाले नेताओं का हमारे दल मे स्वागत हो रहा है। उनको प्रमोशन दिया जा रहा है। अपना दल में पहले ऐसा नही होता था।
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30.6.18
अहंकारी और असंवेदनशील सत्ता का परफेक्ट उदाहरण है ये वीडियो, देखें
Yashwant Singh : ये वीडियो जनम जनम तक याद रखा जाएगा। सत्ता के अहंकार का सबसे बड़ा नमूना। सत्ता के असंवेदनशील चेहरे का परफेक्ट उदाहरण। वीडियो देखकर एक बारगी लगता है कि ये ओरिजिनल नहीं है, कहीं कोई शूटिंग चल रही हो। वीडियो ज्यादातर ने देखा होगा। जिनने न देखा है, वो ज़रूर देखें।
सब लोग मिलकर इस वीडियो को अपने सारे कॉन्टैक्ट्स तक शेयर / फारवर्ड करें। मुख्यधारा की मीडिया पैसे / विज्ञापन के लालच में जब इन अहंकारी और बददिमाग सत्ताधारियों के तलवे चाटता हो तब ये सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यम ही हैं जो सच्चाई को सहज रूप में प्रचारित-प्रसारित करते हैं।
This video should be made viral so that people know that what kind of cheap leaders are heading the state government’s across country…
वीडियो ये है :
https://youtu.be/f8pFktO-S58
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नमो के बाद शाह टटोलेंगे यूपी की नब्ज
अजय कुमार, लखनऊ
आम चुनाव का की दस्तक सुनाई पड़ते ही उत्तर प्रदेश को लेकर संघ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) और बीजेपी आलाकमान सक्रिय हो गया है. संघ पर्दे के पीछे से रणनीति बना रहा है तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और ‘चाणक्य’ अमित शाह ऊपर से नीचे तक पार्टी के पेंच कसने में लगे हैं. देश को सबसे अधिक 80 लोकसभा सीट देने वाले उत्तर प्रदेश को लेकर भारतीय जनता पार्टी बेहद गंभीर है.
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26.6.18
संजय जोशी की बीजेपी में दूसरी पारी धमाकेदार तरीके से शुरू होने जा रही है!
अक्सर बीजेपी और संघ परिवार में गाहे -बगाहे यह चर्चा अफवाह उड़ती है कि शायद अब संजय जोशी की वापसी बीजेपी में होने जा रही है ,फिर दूसरे ही पल उनके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की मनमुटाव की खबरों को ज्यादा बल मिलता है ,कभी सुनने में आता है कि मोदी शाह की जोड़ी उनकी लोकप्रिय जननेता की छबि से खुद की कुर्सी को खतरा मानते हुए उनकी वापसी नहीं होने दे रही ,तो कभी सुनने में आता है संघ परिवार नहीं चाहता उनकी वापसी।
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3.6.18
हिन्दी आखिर क्यों?
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