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17.8.18

"अटल" मरा नही करते...ये अच्छी बात नई है!

ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
ठन गई!मौत से ठन गई....
           
 ("अटल" मरा नही करते)
अटल जी!ये अच्छी बात नई है!
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यक़ीनन अटल बिहारी बाजपेयी जैसी शख्सियतें मरा नही करतीं बल्कि दुनिया-ए-फानी से रुख़सत होने के बात अवाम के दिलो में,रूह की गहराइयों में बस कर सदा के लिये लिए "अटल-अमर-अजर" हो जाया करती हैं।अटल जी का इस दुनिया से रुख़सत होना हिंदुस्तान की सियासत में वो खला पैदा कर गया है कि जिसकी भरपाई नामुमकिन है।भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने सियासत की  बुलंदियों को तो छुआ ही बल्कि एक सच्चे सूफ़ी-दार्शनिक के तौर पर बहनुल अक़्वामी सतह पर अपनी पहचान बनाई।पार्लियामेंट में अटल की तक़रीर यू ट्यूब पर सुन कर बड़ी हो रही इस पीढ़ी को  शायद ये एहसास नही होगा कि उसने सिर्फ़ एक कुशल वक्ता ही नही खोया बल्कि अपनी हाज़िर जवाबी,हँसमुख अंदाज़, बेबाक पन,व्यंग और बढ़ती उम्र के साथ एक बचपन जो सदैव उनके साथ जिया उसको भी खो दिया।
अटल जी को ऐसे ही सर्वमान्य नेता नही कहा जाता...ये उनका बेबाक पन ही था कि पार्लियामेंट में खड़े हो कर पूरे देश के सामने उस दौर से प्रधनमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के लिये बोल दिया कि अगर आज में जिंदा हूँ तो राजीव जी की वजह से ही ज़िंदा हूँ।दरअसल भारत सरकार की और से एक वफद अमेरिका जाना था राजीव जी ने अटल जी का नाम उस वफद में शामिल कर लिया ताकि अमरीका जा का अटल जी अपना इलाज करा लें।लौट कर आने पर अटल जी ने मन्ज़रे आम पर इस बात को स्वीकार कर ये संदेश देने की कोशिश की पक्ष-विपक्ष एक जमुहरियत का हिस्सा है लेकिन मोहब्बत का कोई पक्ष या विपक्ष नही होता।ये पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के साबिक वज़ीर-ए-आज़म नवाज़ शरीफ़ के साथ उनके रिश्तों की बुनियाद पर ही भारत-पाकिस्तान बस सेवा शुरू हो सकी...उनकी वाक पटुता के क़ायल नवाज़ साहब पाकिस्तान जा कर अपने एक बयान में कह गए कि "अटल जी जैसे वज़ीर-ए-आज़म की पाकिस्तान को भी ज़रूरत है,काश पाकिस्तान उनसे कुछ सीख पाता"...नवाज़ साहब का ये बयान पाकिस्तान के आर्मी चीफ मुशर्रफ साहब को बहुत नागवार गुजरा और इस बयान की प्रतिक्रिया में कारगिल युद्ध दोनों मुल्कों को झेलना पड़ा... द्रणनिश्चय और साहसिक फ़ैसले लेने के अदम्य साहस के नतीजे में  पोखरण-परिक्षण ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया और हम भारतीयों का सार फ़क्र से ऊंचा हो गया।

मुझे ख़ूब याद है कि देहरादून मेडिकल कॉलेज में मेरा फाइनल ईयर का ग्रैंड प्रैक्टिकल वाइवा था और एक्सटर्नल एग्जामनर बन कर एम्स से डॉ. शिर्के और डॉ बलसरे आ रहे थे...जब हमारे प्रोफेसर डॉ सक्सेना साहब ने ये बताया कि ये वोही डॉ हैं जो अटल जी का घुटना-प्रतिरोपण के बाद रिहैबिलिटेशन कर रहे हैं तो हमारे बैच के सभी स्टुडेंट में एक कौतूहल से पैदा हो गया।दोनों डॉ एग्जाम से एक दिन पहले दून वैली होटल में आकर रुके थे।हमारे बैच के हम जैसे कुछ खुराफ़ाती शाम को उनसे मिलने बल्कि सिर्फ उनको देखने पहुँच गये...मैंने सीधा सवाल किया डॉ बलसरे से..."सर अटल जी अब कैसे हैं और आपको कैसा लगता है उनका इलाज करके"...उन्होंने भी सीधा जवाब दिया मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी मे ऐसा व्यक्तित्व नही देखा...अटल जी ने तो एम्स में अपने कमरे को मिनी प्रधानमंत्री कार्यालय बना रखा है जब बार-बार उनसे मैं आग्रह करता हूँ कि सर अब बस करें रिहैबिलिटेशन का टाइम हो गया तो अटल जी कहते हैं..."डॉ साब मेरे खड़े होने होने से ज़्यादा महत्वपूर्ण देश का खड़ा होना होना है"....बार-बार मुझे न टोका करें..."ये अच्छी बात नई है"...
विश्व गुरु का सपना हमारे दिलों-दिमाग़ को देने वाले अटल जी जिस्मानी तौर से हमसे आज रुख़सत ज़रूर हो गए मग़र अटल जी के "अटल-सिंद्धान्त" पर पर चल कर हमें उनका देश को विश्व गुरु बनाने का सपना चरितार्थ करना ही होगा तभी इस "अटल-शख्सियत" को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

जय-हिंद
डॉ.इस.ई.हुदा
नेशनल कन्वेनर,हुदैबिया कमेटी
बरैल्ली
9837357723

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