Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

10.8.18

उसने कहा- हमारे रिश्ते सीधे जार्ज बुश से हैं!

मैंने कहा- अदना इंसान हूँ चढ़ा देना सूली पर

पढ़िए बात दिल की है... पर थोड़ी लम्बी है...  बात उस समय की है जब जार्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति हुआ करते थे नीमच में एक नामचीन स्कूल संचालक पर आरोप लगा की यह मालवा में जबरिया धर्म परिवर्तन का रैकेट ऑपरेट कर रहा है इनका एक सेंटर गुरुद्वारे के समीप गली में था, पुराना समय था पत्रकारिता के लिए औजार सिमित थे मैने एक पॉकेट रिकॉर्डर जेब में रखा और उस सेंटर पर गया वहा मेरा जमकर सत्कार हुआ और मुझे इस बात पर राज़ी किया जाने लगा की में "बपतिस्मा" ले लू फिर उन्होंने मुझे अपनी मिशनरी की पूरी कहानी सुनाई और बताया की नीमच और मालवा में अब तक कितने लोग धर्म बदल चुके है

मुझे उनकी कहानी पता करनी थी, कर ली और यह कह कर निकल लिया की फिर आऊंगा उसके बाद मैने मिशनरी द्वारा हिन्दुओ को ईसाई बनाने के पूरे खेल से पर्दा उठा दिया पुलिस ने उस सेंटर को सील कर दिया और हिंदूवादी संगठनों ने भी मोर्चा खोल दिया आखिरकार वो स्कूल संचालक नीमच छोड़ कर चला गया

तब मेरे खिलाफ दिल्ली की एक मैगज़ीन में खबर छपी जिसमे मेरी फोटो लगी और लिखा गया एमपी में एक धर्म विरोधी पत्रकार है जो मिशनरी के खिलाफ अभियान चला रहा है वो मैगज़ीन लेकर दो लोग मुझसे मिलने दिल्ली से नीमच आये और कहा ये देखिये हमने आप के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है आप नहीं माने तो आपकी खैर नहीं हमारे हाथ बहुत लम्बे है सीधे प्रसिडेंट जार्ज बुश से हमारे रिश्ते है, मैने कहा अदना इंसान हूँ चढ़ा देना सूली पर

ये घटना मुझे इस सन्दर्भ में याद आयी की मैने कल अपनी एक पोस्ट में "लव, सेक्स और धोखे" की बात लिखी मेरी यह पोस्ट देश भर में चली उसे भड़ास मीडिया सहित प्रदेश और देश के दर्जनों अखबारों ने प्रमुखता से छापा है, लेकिन इसके इतर मेरे पास ऐसे कई फोन आये जिसमे यह आश्चर्य प्रकट किया गया की आपने इतना बड़ा मामला उठा दिया ठीक नहीं किया शायद किसी को नागवार गुज़रे मैने कहा खबर लिखने के पहले यदि यह सोचने लग गए तो फिर जीवन में हम कभी लिख ही नहीं पाएंगे इससे बेहतर होता हम किराने की दूकान खोल लेते जो मन को सही लगा वो लिखा किसी को क्या लगता है ये उसकी समस्या है आधा जीवन तो निकल गया बाकी जितनी लिखी है कट जायेगी कितना सोचेंगे, सोचते सोचते उम्र निकल गयी जिनको सोचना था उन्होंने करने के पहले तो सोचा नहीं में भला क्यों सोचूंगा मेरी ज़िम्मेदारी को में निभा रहा हु

ये घटनाक्रम होने के बाद देश के कई चोटी के पत्रकारों ने मुझे फोन किया और पीठ थपथपाई लेकिन उनकी हिम्मत नहीं हुयी की वे सोशल मीडिया पर जो कह रहे है वे लिख दे यह फर्क है कथनी और करनी का बस इसी पर मेरा एतराज़ है जिसको बया करने की कोशिश में हमेशा करता रहता हु मेरा मानना है कोई इस बात से बड़ा नहीं है की उसके पास कौनसा पद है या उसके खीसे में कितने रूपए वह इस बात से बड़ा होता है की उसका आचरण कैसा है और यह भी आवश्यक नहीं की वह कितने बड़े अखबार या चैनल में दिखता है कोई बड़े अखबार से जुड़ा हो वह बड़ा या महान पत्रकार ही होगा ये ज़रूरी नहीं बड़े अस्पतालों में मौत ज़्यादा होती है वहा कत्लेआम हो जाता है ईलाज के लिए अस्पताल का बड़ा होना ज़रूरी नहीं डॉक्टर सही है तो पेड़ के नीचे भी ईलाज होगा और जीवन काका के ओटले पर ग्वाल टोली में रोता हुआ गया इंसान हँसता हुआ आएगा

Mustafa Hussain
Senior Journalist
mustafareporter@yahoo.in


No comments: