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24.8.18

फेसबुक का दर्द...डॉ. हुदा की क़लम से

"फेसबुक का दर्द"
यूं अगर मेरे नाम की हिंदी तर्जुमानी की जाए तो "चेहरे की किताब" या "चेहरा एक किताब" या "चेहरा ही किताब" की जा सकती है।अपना दर्द सुनाने से पहले मैं ये बात वाज़े कर दूं मुझे "स्त्रीलिंग" समझा जाये...गोया कुछ बदबख़्त मुझे "पुर्लिंग" समझ कर इस्तेमाल करते हैं।
ख़ैर... सबकी अपनी-अपनी सोच!
जैसा कि आप सब जानते हैं मेरे अब्बा का नाम मार्क जुकरबर्ग है और मेरी पैदाइश 2004 में अमेरिका में हुई।हांलकि मेरे वालिद-ए-मोहतरम ने अपने तीन और हरदिल अज़ीज़ दोस्तों के साथ मुझे पैदा किया मगर इस इंटरनेट की आभासी दुनिया में लोग मुझे मार्क जुकरबर्ग की क़ाबिल और होनहार बेटी के नाम से ही जानते हैं।मेरा शुमार अपने
अब्बा की उस होनहार बेटी के तौर पर है जिसने अपने हुनर और क़ाबलियत के दम पर अभी तक 84.524 बिलियन डॉलर की जायदाद पैदा की है।अभी सिर्फ 14 साल की मेरी कमसिन उम्र है और जवानी की देहलीज़ पर मेरा पहला क़दम है,मगर पूरी दुनिया मे मेरे चाहने वालो की तायदाद 2.2 बिलियन है...आपको जानकर हैरत होगी कि अपने रुक्के और love लेटर्स को रोज़ संजोने के लिए मेरे पास 30275 लोगो का पूरी दुनिया मे स्टाफ़ है।
14 साल की बाली उम्र में जहां एक लड़की के ख़्वाब कुछ और होते हैं मैं रोज़ अपने अब्बा की उम्मीदों के पहाड़ तले दबती जा रही हूं...आख़िर मेरा दर्द भी तो दर्द है...करोड़ो दिलो के दर्द को बांटने वाली के दर्द को आज तक आप लोगो ने महसूस ही नही किया...आदम ज़ात इतनी खुदगर्ज़ होगी इसका अंदाज़ा अगर मुझे हो जाता तो शायद मैं पैदा होने से पहले ही मना कर देती! पैदा होते वक़्त मेरे अब्बा ने मुझसे कहा था कि दुनिया भर के बिछड़ो को मिलाना, टूटे दिलो को जोड़ना और इंसानियत के लिए काम करना,मज़हबी नफरतों को मिटाना और इत्तेहाद का परचम बुलंद करना तुम्हारा पहला काम होगा...मगर ये क्या हो गया...???
अब मेरा इस्तेमाल नफ़रतों के लिये किया जाने लगा...इत्तेहाद और इंसानियत तो जैसे मेरी प्रोफाईल से ख़त्म ही कर दी गयी...मज़हबी नइत्तेफाकियाँ और ऊंच-नीच के संघर्ष ने मेरे 14 साल के नाज़ुक जिस्म को झलनी कर दिया...इसकी शिक़ायत लेकर जब मैं अपने अब्बा मार्क जुकरबर्ग के पास गई तो उन्होंने सिर्फ़ इतना बोला..."ये मानव जाति है बेटी,आदम-हव्वा की औलाद हैं,गलतियां इनके ख़ून में शामिल हैं,तुम सिर्फ़ धंदा करो बस...बाक़ी चीज़ों पर ध्यान न लगाओ"...अब आप लोग ही बतायें क्या करती मैँ...
रोज़ करोड़ो नफ़रत भरी पोस्ट,एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़,कमेंट दर कमेंट...और यहां तक कि जनाज़े के साथ भी सेल्फ़ी लेकर मेरे ऊपर पोस्ट की जाने लगी...अए इंसान आख़िर कितना गिरेगा तू...आक थू
विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी मैंने ज़रूर दी थी मगर इस बिना पर की किसी का दिल न दुखने पाए...मग़र मुझे तमाम पोस्ट पर कमेंट पढ़ कर ऐसा लगता है की दुनिया जब से तशकील में आई सारे सहाफी,दार्शनिक,आलिम, मुफ़्ती पंडित सब मेरे दौर में ही पैदा हो गए...आख़िर किन-किन नामों से पुकारोगे मुझे...ग़ालिब भी मैं,अरस्तू भी मैं,मीर भी मैं,सौदा भी मैं,वैश्या भी मैं,दलाल भी मैं,हिटलर भी मैं,शेक्सपियर भी मैं,फिदा हुसैन भी मैं, बोना पार्ट भी मैं,मार्क्स भी मैं,लेलिन भी मैं...ऐसे बेशुमार क़ाबिल तरीन लोग सब इस 14 साल की नाबालिग लड़की पर ही हुनर दिखा रहे हैं...ये तो बेहतर हुया मेरी पैदाइश हिंदुस्तान की आज़ादी की लड़ाई के दौरान नही हुई...वरना तो गांधी,सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह का क्रेडिट भी मैं अपने नाम ले जाती...
अए ख़ुदा की मखलूक आदम ज़ात...मेरे दर्द को भी समझो...क्यों नफ़रतों की खेती कर रहे हो इस 14 साल के मासूम जिस्म पर...अरे कुछ तो रहम करो मेरे ऊपर...शर्म करो तुम इंसान खुद को "धार्मिक" कहते हो...मगर तुम्हारी पोस्ट जब मेरे नाज़ुक जिस्म से होकर गुज़रती हैं तो मुझे एहसास होता है तुमसे अच्छी तो एक वेश्या है जिसका अपना कोई तो ईमान है...तुम तो पल-पल में ईमान और रिश्तों की धज्जियाँ उड़ा देते हो...पारा-पारा कर देते हो रोज़ मुझे तुम...
रही सही कसर मेरे अब्बा ने व्हाट्सऐप को टेकओवर कर पूरी कर दी...जहां स्वम्भू ज्ञान का अताह समन्द्र है...
जैसे कि क़ुदरत की नियति है जो पैदा हुया उसको फ़ानी तो होना ही है...मगर वक़्त से पहले ख़ुदा रा मुझे क्यों रोज़ मारते हो...मेरे दर्द की ये एक एक बहुत छोटी सी बानगी है...मुझे उम्मीद है मेरे रुख़सत होने से पहले जिस मक़सद के लिये मेरे अब्बा ने मुझे पैदा किया वो शायद कामयाब हो जाये और मेरी दर्द भरी दास्तां सुन कर तुम आदम ज़ात कुछ इबरत हासिल कर लो...ख़ुदा हाफ़िज़

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