शुक्र है भारत के नागरिकों को दूसरी बार लाइन में लगने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पहला सौभाग्य नोटबंदी के समय प्राप्त हुआ था, और दूसरा अब कोरोना काल में शराब की चाहत में प्राप्त हुआ है। भारत के मदिरा प्रेमियों को सरकारों का शुक्रगुजार होना चाहिए। कि, सरकार उनका कितना ख्याल रख रही है। 45 दिन से शराब की जुदाई में तड़प रहे मदिराप्रेमियों की ख्वाहिश जो पूरी हो गई। भले ही कोरोना वायरस के विरुद्ध हमारी लड़ाई कमजोर क्यों न हो जाए। भले ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो,या न हो। भले ही कोरोना के मरीजों की संख्या में इजाफा हो जाए, पर सरकार को क्या लेना देना। जब शराब पिएंगे गरीब, तो मरेंगे भी गरीब।
27.6.20
शराबी कौन, जनता या सत्ता?
शुक्र है भारत के नागरिकों को दूसरी बार लाइन में लगने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पहला सौभाग्य नोटबंदी के समय प्राप्त हुआ था, और दूसरा अब कोरोना काल में शराब की चाहत में प्राप्त हुआ है। भारत के मदिरा प्रेमियों को सरकारों का शुक्रगुजार होना चाहिए। कि, सरकार उनका कितना ख्याल रख रही है। 45 दिन से शराब की जुदाई में तड़प रहे मदिराप्रेमियों की ख्वाहिश जो पूरी हो गई। भले ही कोरोना वायरस के विरुद्ध हमारी लड़ाई कमजोर क्यों न हो जाए। भले ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो,या न हो। भले ही कोरोना के मरीजों की संख्या में इजाफा हो जाए, पर सरकार को क्या लेना देना। जब शराब पिएंगे गरीब, तो मरेंगे भी गरीब।
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..और दुर्भाग्य देखिये कि ना तो पूरा सूखा पड़ा और ना ही बाढ़ आई!
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लड़कियों सावधान! जाब के चक्कर में कहीं प्रॉस्टीट्यूट न बन जाएं...
लॉकडाउन के चलते ऑनलाइन जिस्मफ़रोशी के धंधे ने ज़बरदस्त तेज़ी पकड़ी है। नई-नई ID's के ज़रिए यह काम धड़ल्ले से किया जा रहा है। ऐसी ही एक ID हमको मिली है। जिसमें जिस्मफ़रोशी को "नौकरी" बताया गया है। ID में अन्य कोई जानकारी नहीं डाली गई है। लेकिन पोस्ट में दो फ़ोन नंबर दिए गये हैं। जिसकी ट्रू कॉलर में जानकारी "बॉय जॉब और इंडियन जॉब" शो कर रहा है। ज़ाहिर है यह नंबर भी फ़ेक ID के ज़रिए निकलवाए गए होंगे। यानी इनको ट्रैस करना मुश्किल होगा। ख़ैर इन नंबर पर बक़ायदा whatsapp एकाउंट भी मैनेज हो रहा है। ताकि डील की जा सके।
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कुपोषण व भूख से जंग लड़ेगा सुपर हीरो - कैप्टन डोराडो !!
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प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं चिन्तक कामरेड चितरंजन सिंह को दी गयी भाव भीनी श्रद्धांजलि
वाराणसी | 27 जून 2020, प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं चिन्तक कामरेड चितरंजन सिंह की कल शाम को देहावसान हो गया जो पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे | उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु मानवाधिकार जननिगरानी समिति ने एक शोक सभा का आयोजन कर उन्हें भाव भीनी श्रद्धांजलि दिया व 2 मिनट का मौन रखकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना किया | आगे डा0 लेनिन रघुवंशी ने बताया कि कामरेड चितरंजन सिंह शुरू से ही मानवधिकारो के संरक्षण के लिए संघर्षरत रहे है और छात्र जीवन की राजनीति में भी नैतिकता व मूल्यों की परवाह रखते हुए छात्र राजनीती में एक अलग ही स्तम्भ के रूप में खड़े रहे|
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25.6.20
नए धारावाहिकों की शूटिंग का रास्ता हुआ साफ
एफडब्ल्यूआईसीई आईएफटीपीसी और सिंटा और की बैठक में फिल्म और टीवी शूटिंग जल्द शुरू करने पर सहमति बनी
कर्मचारियों के लिए बीमा ,भुगतान अवधि में कटौती और कोविड 19 को लेकर दिशा निर्देश पालन करने पर आईएफटीपीसी सहमत
मुंबई ,एफडब्ल्यूआईसीई,आईएफटीपीसी और सिंटा की एक बैठक आयोजित कर फिल्म और टीवी सीरियल की शूटिंग से संबंधित समस्याओं पर विचार किया गया और जल्द से जल्द शूटिंग शुरू करने पर सहमति हुई। इन तीनों संस्थाओं की बुधवार को वर्चुअल मीटिंग बुलाई गई थी। इस बैठक में आईएफटीपीसी ने फिल्म और टीवी निर्माण से जुड़े कर्मचारियों के लिए दो तरह की बीमा मुहैया करवाने पर सहमति व्यक्त की।
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22.6.20
जेल में ऐसे बीता मेरा योग दिवस
रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
आज योग दिवस के मौके पर सोशल साइट्स पर योग क्रियाओं में लिप्त तस्वीरों को देखकर व जेल में योग दिवस मनाए जानेवाली खबरें अखबारों में पढ़कर मुझे बरबस जेल का योग दिवस याद आ गया।
पिछले साल 2019 में आज के दिन मैं बिहार के शेरघाटी उपकारा में बतौर विचाराधीन कैदी बंद था। एक दिन पहले ही जेल में साफ-सफाई अभियान शुरु हो चुका था, जिसे देखकर मुझे अंदाजा हो गया था कि यह सब योग दिवस की ही तैयारी है। साथी बंदियों से इस साफ-सफाई के बारे में पूछने पर बोला कि हो सकता है कल कोई बड़ा जेल अधिकारी आये, क्योंकि वहाँ बंदी जानते थे कि किसी बड़े जेल अधिकारी के आने के कारण ही जेल में साफ-सफाई होती है। खैर, मुझे जेल गये अभी 13 दिन ही हुए थे, इसलिए मैं चुप ही रहा। वैसे मुझे पक्का विश्वास हो गया था कि कल योग दिवस पर कोई कार्यक्रम होगा और हो सकता है उसमें जेल का कोई बड़ा अधिकारी भी शिरकत करे।
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जन्मदिवस (21 जून) विशेष : विष्णु प्रभाकर - कालजयी 'आवारा मसीहा' के मसीहा लेखक
भारतीय और हिंदी साहित्य में 'आवारा मसीहा' को विलक्षण एवं ऐतिहासिक मुकाम हासिल है। यह सर्वप्रिय महान उपन्यासकार शरतचन्द्र चटर्जी की संपूर्ण प्रामाणिक जीवनी है और इसे महान हिंदी लेखक विष्णु प्रभाकर ने गहन जमीनी शोध के बाद लिखा था। विष्णु जी का 1931 से सन 2009 तक फैला साहित्य संसार बेहद विपुल है। इस सशक्त कलम ने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृतांत की 100 से ज्यादा पुस्तकें दी हैं।
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सुशांत सिंह राजपूत मामले में सांसद व अभिनेता मनोज तिवारी ने की सीबीआई जांच की मांग
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लखनऊ पीजीआई ‘लोकल के लिए वोकल’
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21.6.20
19.6.20
भाग्य, अवसर और सफलता
''सफलता तो किस्मत की बात है’‘, ''हमारी किस्मत साथ देती तो आज हम भी सफल होते’‘ जैसी सब बातें पूर्णत: सच हैं, विश्वास न हो तो किसी भी असफल व्यक्ति से पूछ कर देख लीजिए।
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18.6.20
प्रायोजित राष्ट्रवाद का अनर्थ
विश्व बाजार की निगाह में दुनियां का सबसे बड़ा चारागाह बने भारत में राष्ट्रवाद के चरम पर दिख रहे उन्माद की तासीर को समझने की जरूरत है। प्रायोजित राष्ट्रवाद अर्थ का अनर्थ करने वाला है। यह अपनी प्रकृति और परिणाम में राष्ट्रवाद की मूल परिभाषा से अलग है।
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17.6.20
लोकतंत्र के प्रहरी हैं पत्रकार, निर्भीक होकर करें पत्रकारिता: डीजीपी
17 जून 2020: बुधवार को झारखंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन के संस्थापक शाहनवाज हसन, प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र सिंह, प्रदेश महिला कमिटी महासचिव स्मिता चौधरी एवं ललन पांडे ने झारखंड डीजीपी एम वी राव से मुलाकात कर पत्रकारों के हित से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की और एक मांगपत्र भी उन्हें सौंपा। मांगपत्र पाकुड़ जिला के पाकुड़िया प्रखण्ड के पीड़ित पत्रकार संजय कुमार भगत को लेकर था। जिसमें जिक्र किया गया है कि किस तरह पत्रकार संजय भगत के विरुद्ध एक झूठा मामला दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया गया था। इस मामले में संजय कुमार भगत न्यायालय से ज़मानत पर रिहा हो चुके हैं।
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15.6.20
ऐसे भी कोई जाता है भला …!!
ऐसे भी कोई जाता है भला …!!: उस रात शहर में अच्छी बारिश हुई थी . इसलिए सुबह हर तरफ इसका असर नजर आ रहा था . गोलबाजार ओवर ब्रिज से बंगला साइड की तरफ बढ़ते ही डी आर एम आफिस के बगल वाले मैदान में भारी भीड़ जमा थी . बारिश के पानी से मैदान का …
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फोरम4 के संपादक प्रभात से आरएमएल हॉस्पिटल के अंदर मारपीट
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अर्थ और अनर्थ
आज हमारा समाज तीन प्रमुख वर्गों में बंट गया है। पहला वर्ग उन अमीरों का है जिनके पास बेतहाशा पैसा है और जो बेतहाशा खर्च कर सकते हैं, दूसरा वर्ग गरीबों और मध्य वर्ग के उन लोगों का है, जो अमीर नहीं हैं, पर अमीर “दिखना” चाहते हैं, और तीसरा वर्ग गरीबों और मध्य वर्ग के उन लोगों का है, जो यह जानते हैं कि वे अमीर नहीं हैं और वे उस स्थिति को स्वीकार कर चुके हैं।
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स्त्री मुद्दों को जनांदोलन बनाये मीडिया
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प्राकृतिक सम्पदा की लूट और आदिवासियों बना सोनभद्रकी कत्लगाह
सोनभद्र : आरएसएस-भाजपा राज में राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुए आदिवासियों के उभ्भा
नरसंहार के बाद भी स्थानीय पुलिस प्रशासन के संरक्षण में अवैध बालू
खननकर्ताओं द्वारा आदिवासियों की एक के बाद एक हो रही हत्याएं यह दिखाती
हैं कि सोनभद्र प्राकृतिक सम्पदा की लूट का चारागाह और आदिवासियों की
कत्लगाह में तब्दील हो गया है। इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने,
हत्यारों की गिरफ्तारी करने, एफआईआर तक दर्ज न करने वाले पुलिस
अधिकारियों को दण्ड़ित करने, हर स्तर पर संदिग्ध भूमिका निभाने वाले सीओ
दुद्धी को हटाने, एसओ विढ़मगंज को निलम्बित करने, एफआईआरों में एससी-एसटी
एक्ट की धाराएं जोड़ने और पूरी घटना में खननकर्ताओं एवं पुलिस प्रशासन
गठजोड़ की भूमिका की जांच कराने की न्यूनतम मांग भी यदि सरकार व जिला
प्रशासन ने नहीं मानी तो जनपद के विपक्षी दल लोकतंत्र की रक्षा व
आदिवासियों की सुरक्षा के लिए अभियान चलायेंगे।
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कोरोना के बाद बदला जा सकता है भारत के ‘ब्रेन ड्रेन’ को ‘ब्रेन रेन’ में
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‘मेड इन इंडिया’ के भ्रम में न पड़ें, ‘मेड बाइ भारत’ उत्पाद खरीदें
भोपाल । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘कुलपति संवाद’ ऑनलाइन व्याख्यानमाला में आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने कहा कि आत्मनिर्भर होना आज के समय की आवश्यकता है। भारत को आत्मनिर्भर होने के लिए अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ानी होगी और आयात की तुलना में निर्यात बढ़ाना होगा। इसके लिए देश के नागरिकों को आर्थिक राष्ट्रभक्त होना होगा। हमारी खरीदारी में स्वदेशी उत्पाद प्राथमिक होने चाहिए। हमें ‘मेड इन इंडिया’ के भ्रम में पडऩे से बचना होगा। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘मेड बाइ भारत’ प्रोडक्ट ही खरीदने चाहिए।
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14.6.20
शादी के रंग में भंग डाल दिया इस कोरोना ने!
अगर ज़िंदगी है तो ख्वाब हर कोई देखता है, हर धड़कते जवां दिलों का भी एक ख्वाब होता है कि उसकी शादी बड़े ही धूमधाम से हो। वैदिक संस्कृति में सोलह संस्कारों का बहुत महत्व होता है और उन्हीं संस्कारों में से एक संस्कार विवाह का है। यह बहुत ही अनमोल मौका होता है, जिसका इंतजार लड़का एवं लड़की पक्ष दोनों को होता है। इस दिन दोनों ही पक्षों में खुशियां ही खुशियां होती हैं। दुल्हा-दुल्हन के साथ ही घरों की साज-सज्जा हो या फिर मंडप में हो रहा फेरा हो, बारात के आगमन से लेकर जयमाल और फिर विदाई तक की हर रस्म खासमखास होती हैं। शादी में बने हुए पकवानों का भी अलग ही महत्व होता है। हमारे भारत में शादी एक बहुत ही बड़े आयोजनों में से एक है। जिसकी तैयारी महीनों पहले ही शुरू हो जाती है और हफ्ते भर पहले से ही रस्मों का सिलसिला भी शुरु हो जाता है।
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मुनाफाखोरी के बाजार में घटिया मास्क-सैनिटाइजर, पीपीई किट सब मौजूद,सरकारी तंत्र की आंखें बंद
अजय कुमार, लखनऊ
लखनऊ। देशवासियों को कोरोना संक्रमण से कम से कम नुकसान हो, लोगों की सेहत और जान कैसे बचाई जाए, इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार सक्रिय हैं,तो राज्य सरकारें भी अपने-अपने हिसाब से कोरोना महामारी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। कोरोना के कारण देश के आर्थिक हालात काफी खराब हो गए हैं,लेकिन केन्द्र और तमाम राज्यों की सरकारें इसी कोशिश में लगी हैं कि कैसे कोरोना की जंग जीती जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो दो टूक कह भी दिया था, ‘जान है तो जहान है।’ कुछ मौकापरस्त और अवसरवादी नेताओं की बात छोड़ दी जाए तो कोरोना काल में पहली बार ऐसा देश देखने को मिल रहा है कि पूरा देश एक साथ खड़ा है, लेकिन कोरोना के खिलाफ देशवासियों की जारी जंग में चंद नेताओं के साथ-साथ कुछ व्यक्ति और संस्थाएं बड़ी बाधा बनती नजर आ रही है। जिसके चलते कोरोना से जिंदगी बचाने की जंग कमजोर पड़ सकती है। एक तरफ कुछ व्यापारी कोरोना काल में मोटी कमाई करने के चक्कर में खाद्य पदार्थो-दवाओं और अन्य जरूरी सामानों की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी पर उतर आए हैं तो दूसरी तरफ कोरोना से बचाव के लिए अचूक हथियार माने जाने वाले मास्क और सैनिटाइजर के नाम पर कुछ लोगों ने बाजार को घटिया मास्क और सैनिटाइजर से पाट दिया है। मुनाफाखोरी के चक्कर में इन लोगों और संस्थाओं ने बाजार में बड़ी तादात में ऐसे मास्क और सैनिटाइजर पहुंचा दिए जिसके प्रयोग से सुरक्षा तो दूर कोरोना की जद में आ जाने की संभवनाएं अधिक बढ़़ जाती है। क्योंकि ऐसे मास्क पहनकर और सैनिटाइजर का प्रयोग करके आदमी अपने आप को सुरक्षित समझने की भूल कर बैठता है जो उसके लिए घातक साबित होता है। घटिया मास्क बनाने वालों ने उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में अपना जाल फैला लिया है।
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सच के शीर्षासन पर झूँठ का झंडा
-जयराम शुक्ल
हमारे शहर में पुराने जमाने के खाँटी समाजवादी नेता हैं- दादा कौशल सिंह। खरी-खरी कहने में उनका कोई शानी नहीं। बात-बात में वे एक डायलॉग अक्सर दोहराते हैं - बड़ी अमसा-खमसी मची है, पतै नहीं चलि पावै कि का झूँठि आय, का फुरि। यानी कि सच और झूठ में ऐसा मिश्रण हो गया है कि समझना मुश्किल।
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केवल बांधे रखने के लिए ही बच्चों को होमवर्क दे रहे हैं क्या?
राजकुमार सिंह, बागेश्वर
बच्चों के बालमन को, परम्परागत लोक ज्ञान-विज्ञान की अथाह थाती को समझने-बूझने का अवसर आखिर कौन देगा ? होमवर्क के बोझ तले गुम होती बच्चों की रचनात्मकता की जिम्मेदारी आख़िर किसकी?
दोस्तों बहुत दिनों से एक बात कहने का मन है, लेकिन छोटा मुंह बड़ी बात जैसा अहसास होता है तो मैं ठिठक जाता हूँ। पर इस दुष्कर कोरोना काल में किसी हिचक का कोई मतलब नहीं है। रोज़ नये-नये अनुभव हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि हज़ार किताबों से जो न सीखा, वह इन कुछ महीनों ने सिखा दिया। एक वायरस ने जैसे सरे बाज़ार नंगा कर दिया है। नहीं, शरम-वरम की बात नहीं है, बात एक हक़ीक़त को पहचानने की है।
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अलीगढ में सपा नेताओं की शर्मनाक करतूत, AMU के मेडिकल में 100 PPE किट दानकर बताईं 500, हो रही थू-थू
अलीगढ | कोरोना लॉकडाउन में एक और जहाँ पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता निष्ठा और ईमानदारी के साथ लोगों की मदद कर रहे हैं तो वहीँ कुछ सपाई अखबारबाजी के लिए झूठ बोल रहे हैं और दान देने में भी घपलेबाजी कर रहे हैं | ऐसा ही एक मामला अलीगढ से प्रकाश में आया है | सपा के नेताओं ने मेडिकल को पीपीई किट दान तो दिए लेकिन इस दान में भी खेल कर दिया | सपा के नेताओं ने अमुवि के जेएन मेडिकल कालेज को 100 पीपीई किट दान देकर सोशल मीडिया और अखबारों में 500 किट का दान बता दिया | मेडिकल कालेज के जिम्मेदार सपाइयों के इस झूठ से हैरान हैं |
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12.6.20
Exploitation of Employees in News1India Sec 63 Noida
माननीय प्रधानमंत्री जी
आपके मार्गदर्शन में समस्त भारतवासी कर्मठता से नियमों का पालन कर रहे हैं, और अपना काम भी पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं। मीडिया चैनल लोगों को घर पर रहने के लिए बोल रहे हैं और सभी कंपनी से बोल रहे हैं कि किसी कर्मचारी की सैलरी नहीं कटो, और ना ही नौकरी से निकाले। वही मीडिया चैनल अपने ऑफिस में कर्मचारियों को 2 महीने से वेतन नहीं दे रहे हैं.
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मुझे वर्क फ्राम होम का कानसेप्ट ब्रजेश मिश्रा सर ने अनजाने में ही सिखा दिया था!
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बड़े स्कूलों में यदि 25 प्रतिशत स्थान गरीब बच्चों के लिए है तो ये वास्तविकता में नज़र क्यों नहीं आता?
दाखिले से बेदखल : अभी कुछ ही दिनों पहले की बात है | एक महिला रोते हुए हमारे कार्यालय पर आई | वो लगातार रोए जा रही थी | हमने समझा-बुझाकर उसे शांत कराया | तब जाकर महिला ने अपना दुखड़ा हमें सुनाया | महिला बताए जा रही थी और रोए जा रही थी |
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11.6.20
पत्रकारिता और साहित्य में आवश्यक है लोकमंगल
भोपाल, 11 जून 2020। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘कुलपति संवाद’ ऑनलाइन व्याख्यानमाला में प्रो. सुरेन्द्र दुबे ने कहा कि साहित्य के बिना पत्रकारिता की बात और पत्रकारिता के बिना साहित्य का जिक्र करना बेमानी सा लगता है। पत्रकारिता अपने उद्भव से ही लोकमंगल का भाव लेकर चली है। साहित्य का भी यही भाव हमेशा रहा है। इसीलिए यह दोनों हमेशा साथ-साथ चले हैं।
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9.6.20
पत्रकारिता की आत्मा है मूल्यबोध
कुलपति संवाद व्याख्यानमाला में ‘मीडिया और मूल्यबोध’ विषय पर प्रो. बल्देवभाई शर्मा ने रखे विचार
भोपाल, 9 जून, 2020। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘कुलपति संवाद’ ऑनलाइन व्याख्यानमाला में प्रो. बल्देवभाई शर्मा ने कहा कि मूल्यबोध तो भारत की पत्रकारिता की आत्मा है। इसके बिना तो भारत की पत्रकारिता का विचार ही नहीं किया जा सकता। मूल्यबोध भारतीय पत्रकारिता का अंतनिर्हित तत्व है। हालाँकि, व्यावसायिक हितों की होड़ ने मीडिया के मूल्यबोध को क्षति पहुँचाई है। पत्रकारिता भारतीय जन के विश्वास का बड़ा आधार है। भारत की पत्रकारिता पर जन का विश्वास है। इस विश्वास को बचाकर रखना है तो हमें मूल्यबोध को जीना होगा।
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ट्रंप की कोशिश है रंगभेद मुद्दे पर बहुसंख्यक गोरों के वोट वे अपने पक्ष में पटा लें!
अश्वेत की हत्या पर भारत की चुप्पी : अमेरिका के एक अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लाएड की हत्या के विरोध में कितने जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। अमेरिका में ऐसी उथल-पुथल तो उसके गृह-युद्ध के समय ही मची थी लेकिन इस बार तो कनाडा से लेकर जापान के दर्जनों देशों में रंगभेद के खिलाफ आवाज़ें गूंज रही हैं।
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10 जून पुण्यतिथि पर विशेष : कुछ पल गिरीश कर्नाड के साथ
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कहीं बेबस मजदूर न बन जाएं दलीय राजनीति के शिकार
देश में लगभग सवा दो माह के लाक डाउन के बाद अब 30 दिवसीय अन लाक -1 की शुरुआत हो चुकी है और बहुत सी बंदिशों के साथ धर्म स्थल, माल और रेस्ट्रांरेन्ट भी खोलने की अनुमति दे दी गई है | उद्योग धंधे भी प्रारंभ हो चुके हैं यह बात अलग है कि इन उद्योग धंधों में काम करने वाले जो प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्यों को वापस लौट चुके हैं उनकी अनुपस्थिति उद्योग मालिकों की चिंता का विषय बनी हुई है और वे अपने कुशल मजदूरों को वापस लौट आने के लिए कई तरह के प्रलोभन दे रहे हैं |
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ऑनलाइन शिक्षा कहीं किसी के पढ़ने के सपने को तो नहीं तोड़ रही!
राजू परिहार, बागेश्वर
सही है कि आनलाइन शिक्षा पद्धति को एक विकल्प के रूप में आजमाया जा सकता है। लेकिन क्या इसके पहले यह सुनिश्चित कर लिए जाने की जरूरत नहीं है कि नियमित स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों की पहुंच तकनीकी आधुनिक संसाधनों तक है या नहीं? इंटरनेट की उपलब्धता और गति, घर का माहौल और बहुत सारे बच्चों और उनके परिवारों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति आज भी ऐसी है कि इसे एकमात्र विकल्प बनाया जाना बड़ी तादाद में गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों, खासतौर पर लड़कियों को समूची शिक्षा व्यवस्था से बाहर कर देगा।
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7.6.20
सही पत्रकारों की संख्या अंगुली पर गिनने लायक ही रह गई है
पत्रकारिता दिवस हाल में ही बीता है। ये दिवस दरअसल पत्रकारों के आत्ममंथन का भी दिन होता है। हमें यह समझना होगा कि जिस तरह से अंग्रेजी शासनकाल में हमें आजादी को अविसंभावी बनाने के लिए कलम को तलवार की मानिन्द धार देनी पड़ी थी आज उससे भी दो कदम आगे बढकर जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है। रिस्क भी तब के सापेक्ष अब चार गुणा ज्यादा है।
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korona mahamari me sahara samay ki berahmi
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दूसरों का दर्द दिखाने वाले मीडिया मालिक अपने मीडियाकर्मियों की सुध क्यों नहीं लेते?
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लाख करो पूजा चाहे तीर्थ करो हजार, जीवों पर दया नहीं तो सब कुछ है बेकार
संजय सक्सेना, लखनऊ
केरल में अनानास (फल) के भीतर विस्फोट रखकर एक गर्भवती हथिनी को मौत के घाट उतार दिए जाने की खबर से पूरा देश सन्न है। इस घटना से पशु प्रेमी ही नहीं आम आदमी भी हतप्रभ है। वैसे तो केरल में इस तरह की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं, लेकिन इस बार का कृत्य इस लिए चर्चा ज्यादा बटोर रहा है क्योंकि मीडिया ने इसे पूरी तवज्जों दी। वर्ना तो केरल में प्रत्येक वर्ष 70-80 हाथी तस्करों आदि के चलते अपनी जान गंवा देते हैं और इसकी कहीं चर्चा भी नहीं होती है। केरल में सुअरों को भी इसी तरह से मौत के घाट उतार दिया जाना आम बात है। हाथी ही क्या, यहां तो गौ माता को भी नहीं छोड़ा जाता है। कभी शोध के नाम पर तो कभी जानवरों से खेत बचाने के लिए तो अक्सर जंगली जानवरों के अंगों की तस्करी करके मोटी कमाई करने वालों के चक्कर में बेजुबान जानवार अपनी जान गंवा देते हैं।
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अधिमान्यता प्राप्त करने के पत्रकार के आवेदन पर छः माह बीतने के बाद भी कार्रवाई नहीं
बेतिया। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, पटना (बिहार सरकार ) से अधिमान्यता प्राप्त करने के लिए हिंदी त्रैमासिक समाचार पत्र "चम्पारण नीति " के संपादक - आदित्य कुमार दुबे ने जिला सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय, बेतिया को प्रक्रिया के अनुसार आवेदन दिए थे । लेकिन आवेदन पर आगे की कार्यवाही का आलम यह है कि छः माह से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद भी कार्यवाही जस की तस बनी हुई है । तो सवाल उठना लाज़मी है
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7 जून संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस : क्या करें ताकि फिर से कोरोना जैसी महामारी पैदा ना हो
● खाद्य सुरक्षा को कभी गम्भीरता से नही लिया गया है।
● दूषित खाने से प्रतिवर्ष लाखों लोगों की जान जाती है।
● खाने की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
● उपभोक्ताओं का अधिकार है कि उन्हें सुरक्षित खाना प्राप्त हो ।
आज दूसरा विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जा रहा है जिसका विषय है 'खाद्य सुरक्षा हम सभी का कार्य है'।
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प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद हो
सोनम लववंशी
आज की परिस्थितियों को देख कर लग रहा है , मानो दुनिया में संकटों का दौर चल रहा है। कोरोना का कहर अभी थमा भी नही था कि भारत के पूर्वी तट पर अम्फान ने तो पश्चिमी तट पर निसर्ग तूफान ने अपना कहर बरपा दिया। कोविड-19 की लड़ाई के बीच अम्फान औऱ अब निसर्ग तूफान पर्यावरण के मायने में तो चिंताजनक है। साथ ही अब एक साथ कई मोर्चो पर जूझना आज के समय की वास्तविकता बन गयी है । यह भले ही विज्ञान की उपलब्धि का ही परिणाम है कि तूफान आने के पूर्व ही सूचना प्राप्त हो जाती है, जिससे संकट को कम करने में मदद मिल जाती है। लेकिन आज भी है, प्राकृतिक आपदाओं को रोकने की कोई तकनीक मानव के पास नही है। यह कठिन समय है जिसमें मानव के संयम औऱ ज्ञान की परीक्षा होती है। देखा जाए तो मानव ने अपनी भोग-विलासता के लिए प्रकृति के साथ जिस तरह का व्यवहार किया है आज उसी का परिणाम है कि संकटों का दौर थमने का नाम नही ले रहा है । पहले बाढ़ और तूफान जैसी घटनाएं दशकों में देखने सुनने को मिलती थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों से तो ऐसा लगता है मानो ये घटनाएं रोजाना की हो गई हो। ये सब प्रकृति के साथ किए गए दुर्व्यवहार का ही परिणाम है।
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वर्ण व्यवस्था का पिरामिड उल्टा करने के बाद और कमजोर हो गया लोकतंत्र
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5.6.20
भारतीय कूटनीति और सैन्य रणनीति चीन पर भारी पड़ी
जिस देश का नेतृत्व मजबूत होता है, उसको आंख दिखाने की हिम्मत बाहरी ताकतें नहीं जुटा पाती हैं। इस बात का अहसास उस चीन से बेहतर किसको हो सकता है, जिसके सैनिक बार-बार सीमा पार करके भारत में घुस आया करते थे। उसकी सारी हेकड़ी मोदी सरकार ने अपने सख्त रवैये से एक ही झटके में निकाल दी। चीन को मोदी सरकार के सख्त रवैये के चलते अपने सैनिकों को दो किलोमीटर पीछे ले जाने को मजबूर होना पड़ गया। हालांकि एक किलोमीटर भरतीय सेना भी पीछे आई,लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं था। उधर, सीमा पर तनाव के बीच भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना के जमावड़े पर सरकार को विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन किस तरह इस क्षेत्र में इतनी बड़ी संख्या में फौजियों को ले आया। इस विस्तृत रिपोर्ट में दौलत बेग ओल्डी और पैंगांग त्सो समेत पूर्वी लद्दाख के सभी महत्वपूर्ण जगहों पर चीनी सेना के जमावड़े का विवरण दिया गया है।
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ठेका खेती के खिलाफ किसान सभा करेगी 10 जून को प्रदेशव्यापी विरोध प्रदर्शन
छत्तीसगढ़ किसान सभा (सीजीकेएस) ने कोरोना संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने के नाम पर कृषि क्षेत्र में मंडी कानून को खत्म करने, ठेका खेती को कानूनी दर्जा देने और खाद्यान्न को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करने के मोदी सरकार के फैसले को इस देश की खेती-किसानी और खाद्यान्न सुरक्षा और आत्म निर्भरता के खिलाफ बताया है और इसके खिलाफ 10 जून को राज्यव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया है।
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Online Portal Launch for Bihari Migrate People.
Dear
Sir / Madam
Remain Asiazi Private Limited trademark name Asiazi has launched an online portal called Remain Trusts to assist bihari migrate People to get work in bihar.
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कबिरा संगत साधु की....
डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय
संत कबीर दास जी एक ऐसे महान संत हुए हैं जिन्होंने साखी, सबद और रमैनी के माध्यम से सामाजिक चेतना का वास्तविक निरूपण किया है और उन्होंने बेलाग तथा बेखौफ होकर अपनी बात कही है वह किसी धर्म विशेष के पक्षपाती नहीं थे इसी ऐसे महापुरुष के नाम पर कबीर पंथ का निर्माण हुआ
सत्संगति कथय किं न करोति पुंसाम
सत्संगति क्या नहीं कर सकती यदि आपकी संगति अच्छे लोगों से है सद्विचार वालों से है तो आप नेक रास्ते पर चलेंगे यदि आप कुसंगत में पड़ गये और अधर्मी तथा कुविचारी लोगों के साथ हो गए तो आपका संस्कार विचार आहार सब कुछ सामाजिक मर्यादा के विपरीत ही होगा कबीरदास जी कहते हैं कि साधुओं अर्थात सज्जन पुरुषों की संगति ठीक उसी प्रकार होती है जैसे इत्र बेचने वाले व्यक्ति की संगत में इत्र अपनी सुगंध सदैव बिखेरता रहता है यद्यपि वह भले किसी को निशुल्क ना प्रदान करें किंतु उसके संपर्क में आने पर उसकी सुगंध आपको मिलेगी ही.
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लॉकडाउन ने पर्यावरण को नया जीवन दिया
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अंधेरी खंदकों में सत्ताओं के खुले आकाश की तलाश !
अमेरिका में इस वक्त ख़ंदकों की लड़ाई सड़कों पर लड़ी जा रही है।दुनिया भर की नज़रें भी अमेरिका पर ही टिकी हुईं हैं।कोरोना के कारण सबसे ज़्यादा मौतें अमेरिकी अस्पतालों में हुईं हैं पर देश के एक शहर में पुलिस के हाथों हुई एक अश्वेत नागरिक की मौत ने सभी पश्चिमी राष्ट्रों की सत्ताओं के होंश उड़ा रखे हैं।जिस गोरे पुलिस अफ़सर ने अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ़्लॉयड की गर्दन को उसका दम घुटने तक अपने घुटने के नीचे आठ मिनट से ज़्यादा समय तक दबाकर रखा होगा उसे तब अन्दाज़ नहीं रहा होगा कि वह पाँच दशकों के बाद अपने देश में किस नए इतिहास की नींव डाल रहा है।दुनिया की जो सर्वोच्च ताक़त मुँह पर मास्क पहनने को कमजोरी का प्रतीक मानती हो उसे अपना मुँह छुपाने के लिए घर के बंकर में कोई एक घंटे से ज़्यादा का समय बिताना पड़ा।
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क्वारंटाइन सेंटर्स नहीं, यातना गृह
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में चलाये जा रहे क्वारंटाइन सेंटर्स को 'यातना गृह' करार देते हुए आरोप लगाया है कि बुनियादी मानवीय सुविधाओं से रहित इन केंद्रों में प्रवासी मजदूरों को कैदियों की तरह रखा जा रहा है, जहां उन्हें पोषक आहार तो दूर, भरपेट भोजन तक उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। नतीजन, क्वारंटाइन अवधि खत्म होने के बाद फिर से उनके संक्रमित होने के प्रकरण सामने आ रहे हैं।
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पर्यावरण दिवस पर : सभी तालाब पोखर 1951 की स्थिति में लाये जाने चाहिए
व्यापक अर्थ में जब पर्यावरण पर बात हो तो भूगर्भ जल के गिरते स्तर की चिंता स्वाभाविक है. अनियमित जलवायु और जल के अंधाधुंध दोहन के चलते भूगर्भजल जल स्तर में वर्ष दर वर्ष कमी होती जा रही है. इसका एक बड़ा कारण तालाबो, पोखर और अन्य जलस्रोतो का धीरे धीरे समाप्त होना भी है. इन जल स्रोतों के मृतप्राय होने के कारण वर्षाजल का अवशोषण कम हो गया. प्रायः तालाबो और उसके आसपास की भूमि पर अवैध अतिक्रमण और निर्माण के चलते मानसून काल में भी अधिकाँश तालाब पूरा भर नही पाते.
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प्रवासी मज़दूरों पर उद्योग जगत और सरकारें हुई बेनकाब
सौरभ सिंह सोमवंशी
somvansisaurabh@gmail.com
सरकारें भले ही हजार दावे करें परंतु चाहे वह केंद्र की हो अथवा राज्य सरकारें हों उन्होंने प्रवासी मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया था और बाद में काफी समय बीत जाने के बाद उनकी सुध ली गई प्रवासी मजदूर जहां पर रहते हैं वहां के मतदाता वह होते नहीं और जहां के होते हैं वहां पर वह मतदान के दौरान नहीं होते शायद यह एक बड़ा कारण था अन्यथा लाक डाउन के तत्काल बाद विदेशियों को लाने के लिए मिशन वंदेभारत जैसा कदम उठाया गया और उनको विदेश से लाया गया परंतु जो मजदूर भारत की जीडीपी में 10% का योगदान देते हैं और भारत के कुल श्रम में उनका 28% का योगदान होता है उनकी कोई सुध एक महीने तक नहीं ली गई और जब ली गई तब सरकारों के बीच किराये को लेकर ऐसी नौटंकी देखी गई जो शर्मनाक थी इस बीच मजदूर पैदल ही चल चुके थे भारत की संसद में भारत सरकार ने ही लाकडाउन के कुछ दिनों पहले मार्च में ही सत्र के दौरान बयान दिया था कि भारत में लगभग 10 करोड़ से अधिक प्रवासी मजदूर विभिन्न प्रदेशों में रहते हैं हमें यह सोचना होगा कि सरकारें लाकडाउन के बाद 3 महीने तक मुफ्त भोजन देने की घोषणाओं के बावजूद सरकारी प्रवासी मजदूरों को रोकने में क्यों नाकाम साबित हुई?
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गर्भवती हथिनी को तो बस इंसान ही मार सकता है!
केरल में हथिनी की हत्या ने सोशल मीडिया और मीडिया पर पशु प्रेम का भूचाल ला दिया है लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है वक्त सबकुछ भुला देता है यह भी भुला देगा लेकिन अगर आप सोचते हैं कि इंसान ऐसा कैसे कर सकता है तो उसका मुकम्मल जवाब भी यही है कि यह सिर्फ इंसान ही कर सकता है.
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कोरोनाकालीन संकट के बीच ग्रोथ मोनिटरिंग के अभाव में बच्चों की हालत चिंताजनक
राइट टू एजुकेशन (आरटीई) फोरम द्वारा 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के अधिकारों की अनदेखी एवं मौजूदा दौर की चुनौतियों पर आयोजित वेबिनार में वक्ताओं की राय
नई दिल्ली । मार्च में लॉकडाउन की घोषणा से लेकर अब तक सरकार की ओर से ढेर सारी घोषणाएँ तो की गई, लेकिन इन घोषणाओं के केंद्र में 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कभी नहीं रखा गया। अभी आँगनवाड़ी सेवाएँ लगभग पूरी तरह बन्द है। नतीजतन ग्रोथ मोनिटरिंग के अभाव में कुपोषित एवं अतिकुपोषित बच्चे प्रभावित हो रहे हैं और प्रत्येक दिन 1000-1500 बच्चों की मृत्यु हो रही हैं, जो बेहद ही चिंताजनक है। यही नहीं, ऑनलाइन शिक्षा के इस दौर में नेटवर्क, मोबाइल चार्ज, डाटा पैक से लेकर मोबाइल सेट की अनुपलब्धता जैसी बुनियादी समस्याओं ने व्यापक आबादी को शिक्षा के दायरे से बाहर कर दिया है। ऑनलाइन प्लेट्फॉर्म्स तकनीकी तौर पर चाहे जितने भी उन्नत हों, वे नियमित स्कूली शिक्षा के विकल्प कतई नहीं हो सकते। बच्चों को अनदेखी करके हम और हमारा समाज आगे नहीं बढ़ सकता है। ये बातें राइट टू एजुकेशन फोरम द्वारा जारी शिक्षा-विमर्श के तहत वेब-संवाद की पांचवी कड़ी में “कोविड-19 संकट: 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के अधिकार व चुनौतियाँ” विषय पर वक्ताओं ने कहीं।
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क्या भारत में मुसलमानों पर जुल्म हो रहा है?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कल रात लंदन के एक वेबिनार में मैंने भाग लिया। उसमें चर्चा का विषय कश्मीर था और भाग लेनेवालों में दोनों तरफ के कश्मीरी और पाकिस्तानी सज्जन भी थे। सभी का एक राग था कि भारत में हिंदू और मुसलमानों के रिश्ते बेहद खराब हो गए हैं और मुसलमानों पर बहुत जुल्म हो रहा है। मैंने नम्रतापूर्वक उन बंधुओं से पूछा कि भारत में मुसलमानों की दशा क्या चीन के उइगर मुसलमानों से भी बुरी है ? मैंने कभी किसी पाकिस्तानी नेता- इमरान खान, मियां नवाज़ शरीफ या आसिफ जरदारी-- को उइगरों के बारे में एक शब्द भी बोलते हुए नहीं सुना।
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कबीर पर विशेष : साँच कहै ता मारन धावै झूठे जग पतियाना..
कबीर जयंती : कबीर कब पैदा हुए कब मरे, हिंदू की कोख से कि मुसलमान की, उन्हें दफनाया गया कि मुखाग्नि दी गई, इसका सही-सही लेखा जोखा किसी के पास नहीं। फिर भी उनकी जयंती ढलते जेठ की उमस भरी तपन के बीच पड़ती है। जबकि कबीर वैशाख की दोपहर के सूरज की तरह तीक्ष्ण और ज्वलनशील थे जिसके ताप को आज भी महसूस कर सकते हैं।
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4.6.20
योगी मॉडल में स्वास्थ्य सुविधाएँ बदतर
राजेश सचान
युवा मंच
उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के एक लाख बेड तैयार कर लेने को महामारी के खिलाफ बड़ी तैयारी के बतौर प्रचारित किया जा रहा है। कोविड महामारी से निपटने के लिए तैयारियों का आकलन समग्र हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर ही किया जा सकता है न कि जैसे तैसे बेड तैयार कर देने से। इसलिए इन तैयारियों का विश्लेषण करते हुए समग्रता में यह देखना चाहिए कि प्रदेश का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर कोविड-19 और सभी प्रकार की बीमारियों से निपटने के लिए कितना सक्षम है। हालांकि कोविड-19 महामारी है और अन्य बीमारियों से इसकी तुलना नहीं की जानी चाहिए, लेकिन गंभीर बीमारियों और अन्य संक्रामक रोगों के ईलाज में लापरवाही के गंभीर नतीजे हो सकते हैं जिसका विपरीत असर कोविड से जंग पर भी हो सकता है। हमारे पास हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर इस प्रकार है: प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में 4442 अस्पताल और 39104 बेड, शहरी क्षेत्र में 193 अस्पताल व 37156 बेड उपलब्ध हैं।(मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एण्ड फैमिली वेलफेयर के 31 मार्च 2017 का डेटा के अनुसार)। इस तरह प्रदेश में 2904 की आबादी पर एक बेड (पब्लिक हेल्थ) उपलब्ध है। अगर निजी अस्पतालों व चिकित्सकों को भी जोड़ दिया जाये तो भी प्रदेश में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर सामान्य परिस्थितियों में भी ईलाज के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा अभी भी गंभीर बीमारियों के लिए मेडिकल कॉलेज प्रमुख स्वास्थ्य केंद्र हैं और सरकारी ओपीडी में आम दिनों में लाखों मरीज प्रतिदिन ईलाज के लिए आते हैं।
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1.6.20
माँ सो गई! (लघुकथा)
पेट की भूख ने मां को अपने दो बच्चों के साथ शहर की चकाचौंध से भरी दुनिया में प्रवेश करवाया।
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मल्टीनेशनल कंपनियों के चलते कैसे आत्मनिर्भर होगा भारत?
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को कोरोना महामारी के दौरान प्रभावित देश के लिए 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा करते हुए उसे आत्मनिर्भर भारत अभियान का नाम दिया उन्होंने कहा कि आत्म निर्भर भारत का तात्पर्य है कि देश अपने श्रम और अपने उत्पादों पर निर्भर हो उन्होंने कहा की ये भयंकर महामारी आपदा के तौर पर नहीं बल्कि एक अवसर के रूप में देखी जानी चाहिए, उन्होंने 20 लाख करोड़ के पैकेज को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रिवाइटल करार दिया आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज को घोषणा करते हुए उन्होंने बार-बार लोकल फार वोकल शब्द का प्रयोग किया परंतु इन शब्दों और वाक्यों की सार्थकता क्या तब तक बरकरार रह सकती है जब तक की भारत के छोटे-छोटे उद्योग धंधों के द्वारा किए जा सकने वाले कार्यों को लाखों-करोड़ों रुपए की कंपनियां करें।
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शादी में सीमित बाराती, हम भी खुश आप भी.....
अन्य देशों के नागरिकों के मुकाबले एक आम हिन्दुस्तानी अधिक सामाजिक और मिलनसार होता है। हमारी संस्कृति में रिश्तों का विशेष महत्व होता है। हम सुख-दुख या अन्य कोई शुभ काम करने चलते हैं तो सबसे पहले अपने रिश्तेदारों, मित्रों की लिस्ट तैयार करने बैठ जाते हैं किस-किस को आमंत्रण भेजना है। यह बहुत मुश्किल और संवदेनशील मसला होता है। किसी एक दोस्त या मित्र को अगर भूलवश निमंत्रण नहीं पहुंचता है तो रिश्तों में उम्र भर के लिए तनाव पैदा हो जाता है। भले आपकी हैसियत हो या नहीं,लेकिन शादी-ब्याह या अन्य मौकों पर सब नाते-रिश्तेदारों को बुलाना, उनके लिए अच्छे से अच्छे व्यंजन परोसना,मेहमानों की विदाई के लिए भी समाज ने कुछ मापदंड तय कर रखे हैं। किसी को कपड़े से तो किसी को नगद टीका करके विदा किए जाने की औपचारिकता निभानी पड़ती है। उक्त औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए कभी-कभी बाप की जीवन की पूरी पंूजी ही ‘लुट’ जाती है। शादी-ब्याह अन्य मुल्कों में भी होते है,लेकिन ऐसा माहौल कहीं नहीं दिखाई देता है,जहां लड़की के परिवार की ‘बोली’ लगती हो।
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हम कब बनेंगे कोरोना वारियर्स, अरे कोई तो योद्धा बनवाओ रे भाई!
सम्मान वापसी के दौर में असम्मानित रह जाने का दर्द अभी भूला भी नहीं था, कि कोराना काल में योद्धा बनने का दर्द दिल से होते हुए गुर्दे तक पहुंच गया है। आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर यह तड़प ऐसे बढ़ गई है, जैसे लॉकडाउन में कपार का बाल। हम भी अपने बहुतेरे साथियों की तरह कोरोना वारियर्स बनना चाहते थे, कोरोना को हथौड़ी से कूंचना चाहते थे, हम भी वारियर्स-योद्धा के सर्टिफिकेट को फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट करना चाहते थे, लेकिन एक भी व्यक्ति, संस्था, दल, दलदल, निर्दल, कमल, विमल, राजू, सैयद, अब्बास, चार्ल्स, जार्ज, बुश, बेयरिंग, पंखा, कूलर, फ्रिज आदि इत्यादि ने मुझे वारियर्स लायक समझा ही नहीं। सर्टिफिकेट देने लायक माना ही नहीं। हे भगवान!
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मजदूरों, श्रमिको और रोज कमाने वालों के हित में सरकार को कुछ सुझाव
1- केंद्र सरकार सभी मजदूरों और कामगारों,फेरीवालों तथा रिक्शा ठेला चलाने वालों का चाहे वह किसी भी फील्ड में हो कैम्प लगाकर निशुल्क रजिस्ट्रेशन करके उनका पूरा डेटा और बैंक डिटेल अपने पास रखे तथा जिनका बैंक खाता नहीं है उनका खाता अनिवार्य खुलवाए।
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आखिर आपकी किसी से बनती क्यों नहीं?
पी. के. खुराना
एक विशाल काँच के महल में न जाने कहाँ से एक भटका हुआ कुत्ता घुस गया। हजारों काँच के टुकड़ों में अपनी शक्ल देखकर वह चौंका। उसने जिधर नज़र डाली, उधर ही हज़ारों कुत्ते दिखाई दिये। वह समझा कि ये सब कुत्ते उस पर टूट पड़ेंगे और उसे मार डालेंगे। अपनी भी शान दिखाने के लिए वह भौंकने लगा। उसे सभी कुत्ते भौंकते दिखाई पड़े। उसकी ही आवाज की प्रतिध्वनि उसके कानों में जोर-जोर से आई। उसका दिल धड़कने लगा। वह और जोर से भौंका। सब कुत्ते भी अधिक जोर से भौंकते दिखाई दिये। आखिर वह उन कुत्तों पर झपटा। वे भी उस पर झपटे। बेचारा जोर-जोर से उछला-कूदा, भौंका और चिल्लाया और अंत में गश खाकर गिर पड़ा।
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पत्रकारिता की रीढ़ की हड्डी है आंचलिक पत्रकारिता
मनोज कुमार
कल्पना कीजिए कि आपके शरीर में रीढ़ की हड्डी ना हो तो आपका जीवन कैसा होगा? क्या आप सहज जी पाएंगे? शायद जवाब ना में होगा। वैसे ही पत्रकारिता की रीढ़ की हड्डी आंचलिक पत्रकारिता है। आप चार पेज का अखबार प्रकाशित करें या 24 घंटे का न्यूज चैनल चलाएं, बिना आंचलिक पत्रकारिता, आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। समाचार संकलन से लेकर प्रसार तक में आंचलिक पत्रकारिता की भूमिका अहम होती है। दिल्ली की पत्रकारिता देहात से होकर ही जाती है। दिल्ली से आशय यहां पर महानगरों की पत्रकारिता से है। महानगरों की पत्रकारिता का जो ओज और तेज आपको दिखता है, वह आंचलिक पत्रकारिता की वजह से है।
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