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7.6.20

लाख करो पूजा चाहे तीर्थ करो हजार, जीवों पर दया नहीं तो सब कुछ है बेकार



संजय सक्सेना, लखनऊ

केरल में अनानास (फल) के भीतर विस्फोट रखकर एक गर्भवती हथिनी को मौत के घाट उतार दिए जाने की खबर से पूरा देश सन्न है। इस घटना से पशु प्रेमी ही नहीं आम आदमी भी हतप्रभ है। वैसे तो केरल में इस तरह की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं, लेकिन इस बार का कृत्य इस लिए चर्चा ज्यादा बटोर रहा है क्योंकि मीडिया ने इसे पूरी तवज्जों दी। वर्ना तो केरल में प्रत्येक वर्ष 70-80 हाथी तस्करों आदि के चलते अपनी जान गंवा देते हैं और इसकी कहीं चर्चा भी नहीं होती है। केरल में सुअरों को भी इसी तरह से मौत के घाट उतार दिया जाना आम बात है। हाथी ही क्या, यहां तो गौ माता को भी नहीं छोड़ा जाता है। कभी शोध के नाम पर तो कभी जानवरों से खेत बचाने के लिए तो अक्सर जंगली जानवरों के अंगों की तस्करी करके मोटी कमाई करने वालों के चक्कर में बेजुबान जानवार अपनी जान गंवा देते हैं।

     यह सब तब हो रहा है जबकि हमें बचपने से जीवों पर दया करने का पाठ पढ़ाया जाता है। हमारे शास्त्रों में पेड़, पौधों, पुष्पों, पहाड़, झरने, पशु-पक्षियों, जंगली-जानवरों, नदियाँ, सरोवन, वन, मिट्टी, घाटियों तक का अपना महत्व है। इसके महत्त्व को देखते वेद-पुराणों के जानकार घर के आगे पेड़ को लगाने का आग्रह करते है तथा इसकी पूजा भी की जाती है। हम अग्नि,जल,पवन,समीरा सबके सामने नतमस्तक होते हैं। इसी तरह से घर के बाहर पशु-पक्षियों की आकृतियां बनाने की भी परम्परा है। भारत ही है जहां नाग को देवता माना जाता है और गौ को माता की तरह पूजा जाता है। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो गजराज में गणपति बाबा की तस्वीर देखते हैं। वानरों में जिन्हंे भगवान राम के भक्त हनुमान का चेहरा नजर आता है। 21 वीं सदी में भी कई घरों में पहली रोटी गौ-माता और आखिरी रोटी कुक्कुर (कुत्ते) के लिए बनाई जाती है।

       बहरहाल, भारत दुनिया का ऐसा इकलौता देश नहीं है जहां से ही पशु-पक्षियोें, जंगली जानवरों के साथ क्रूर हिंसा की खबरें आती हों। समय-समय पर बेजुबान जानवरों के साथ क्रूरता की खबरें पूरी दुनिया में सुनने को मिलती ही रहती है,लेकिन ऐसा कहकर हम अपने कृत्य को सही नहीं ठहरा सकते हैं। जब पूरी दुनिया के साथ-साथ यही दृश्य भारत में देखने को मिलता  है तो दुख के साथ गुस्सा भी आता है। हमारी संस्कृति में जानवरों के साथ हिंसा अक्षमय अपराध माना जाता है। भारतीय संस्कृति में पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम,सह-अस्तित्व और उनकी पूजा की परंपरा तो है ही पशु-पक्षी हमारे धर्म, मानवता का विस्तार करने में भी महत्वपूर्ण कड़ी होते है,मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी उसकी करुणा में आश्रय पाते हैं। यह मनुष्य और पशु का मिला-जुला रूप है।  वैदिक युग में गौ, वृषभ और अश्व आदि पशु महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। वैसे भी एक सभ्य समाज में ऐसी हिंसा बर्दाश्त नहीं की जा सकती है। फिर भी देश के कोने-कोने से जानवरों के साथ क्रूर हिंसा और उन्हें मौत के घाट उतार दिए जाने की खबरें अक्सर आती ही रहती है।

      केरल में एक हथिनी और उसके पेट में पल रहे बच्चे की मौत के बाद  केरल सरकार ने पूरे प्रकरण में जिस तरह की घोर लापरवारही दिखाई उसकी तो पूरे देश में निंदा हो ही रही है,इसके साथ-साथ केरल की कानून-व्यवस्था, और मानवीयता पर भी सवाल खडे हो गए हैं। भले ही भारी विरोध और आलोचना के बाद इस मौत या हत्या के दोषियों की गिरफ्तारी शुरू हो गई है,लेकिन हमें हथिनी की मौत यह संदेश भी दे गई है कि पशु संरक्षण के लिए हमें और ठोस कदम उठाते हुए कानून बनाने होंगे। ऐसे में अगर मोदी सरकार कोई कानून बनाने के लिए पहल करती हैं तो हमें पशु क्रूरता निवारण की दिशा में मोदी सरकार द्वारा उठाये गए हर कदम का स्वागत करना चाहिए।

     उधर, केरल के मलप्पुरम में गर्भवती हथिनी की विस्फोटक खाने से हुई मौत का शोर थम भी नहीं पाया था और हिमाचल प्रदेश से भी ऐसा ही हैरान कर देने वाला मामला सामने आ गया। हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर के झंडुत्ता इलाके में गर्भवती गाय को किसी ने विस्फोटक का गोला बनाकर खिला दिया, जिससे गाय बुरी तरह से जख्मी हो गई है.गाय के मालिक ने घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर डाला है, जो तेजी से वायरल हो रहा है। पुलिस ने इस मामले के संबंध में केस दर्ज कर लिया है। पूरे मामले की गहनता से छानबीन की जा रही है. लोगों में इस घटना के बाद से काफी आक्रोश है।

   इसी तरह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से एक कुत्ते के साथ बर्बरता का वीडियो सामने आया है। इसमें एक युवक कुत्ते को बाइक में पीछे बांध कर घसीटते हुए दिख रहा है।वीडियो वायरल होने के बाद पीलीभीत के जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों के मुताबिक यह वीडियो पुराना है, केरल में हाथी के साथ हुई घटना के बाद इसे वायरल किया जा रहा है। वहीं कुछ लोग बाइक में बांध कर घसीटे जा रहे कुत्ते को मृत बता रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि भले ही कुत्ता मृत क्यों ना हो लेकिन उसे इस तरह नहीं घसीटा जाना चाहिए।

    खैर, पशुओं के साथ हिंसात्मक व्यवहार करने से पूर्व हमें राष्ट्रपति महात्मा गांधी के उस कथन को भी याद रखना होगा,जिसमें वह स्पष्ट इशारा किया करते थे कि आपकी सभ्यता की परख इस बात से होगी कि आप अपने पशुओं के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।यह और बात है कि आज के दौर में गांधी की सुन ही कौन रहा है। गांधी कुछ नेताओं के लिए वोट बटोरने का साधन मात्र बनकर रह गए हैं। गांधी की विचारधारा को तो इन नेताओं ने कब का खूंटी पर टांग दिया है। केरल मेे हथिनी की मौत के बाद इस तरह की खबरें भी सामने आ रही हैं कि फल में छिपाकर पशुओं को बारूद या पटाखे खिला देना नई बात नहीं है। पहले भी इस तरह की कू्रर हिंसा में न जाने कितने पशु मार दिए गए होंगे। वह गर्भवती हथिनी भी बारूद वाला अनानास खाकर वहीं मारी जाती, तो यह खबर देश-दुनिया में सुर्खियां नहीं बनती, शायद अब तक ऐसा ही होता आया होगा। पर वर्षों से चल रहे इस अत्याचार का घड़ा शायद भर गया था। निर्दोष बेजुबानों की पीड़ा तब दूर तलक गई, जब उस बुरी तरह घायल हथिनी ने तीन दिन पानी में खड़े होकर लगभग सत्याग्रह या विलाप किया। हथिनी अकेली नहीं थी, उसके पेट में शिशु था। यह एक ऐसा घटनाक्रम है, जो दशकों तक याद रखा जाएगा और संवेदनशील लोगों को रुलाता रहेगा।
    आम तौर पर घायल होने के बाद जानवर आक्रामक हो जाते हैं, लेकिन वह हथिनी आक्रामक नहीं हुई, असह्य वेदना से बचने के लिए और शायद अपने गर्भ की चिंता में वह पानी की गोद में जा खड़ी हुई। काश! उसे तुरंत पानी से बाहर निकाल लिया जाता और उसका हरसंभव इलाज हो पाता, तो मानवता यूं शर्मसार नहीं हो रही होती। रही बात दोषियों की तो उन्हें कतई माफ न किया जाना चाहिएं, साथ ही फसलों को बचाने के इस बारूदी तरीके पर भी पूरी कड़ाई से रोक लगनी चाहिए। अभी पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता को रोकने के लिए जो कानून हैं, वे शायद अपर्याप्त हैं और उन्हें लागू करने में सरकारी एजेंसियों की कोई खास रुचि नहीं है। ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए केरल सरकार को ही नही अन्य राज्यों की सरकारों को भी अपने-अपने राज्यों में पशु संरक्षण के लिए पूरे इंतजाम करने होंगे। अक्सर सुनने को मिलता है कि हाथी या उनके झुंड ने गन्नों के खेब उजाड़ दिए। खड़ी फसलों को रौंद दिया। तो इसके लिए हाथी से अधिक हम-आप जिम्मेदार हैं। हम जंगल में घुसेंगे, उस पर कब्जा करेंगे तो हाथियों क्या अन्य जानवरों को अपना पेट भरने के लिए शहर की तरफ आना ही पड़ेगा। इसी लिए तो हाथी ही क्या  गुलदार, चीता,भेड़िया भी जंगल से निकलकर गांव-शहरों में आ जाते हैं। 
   गौरतलब हो, हाथियों के प्रति क्रूरता केवल केरल की समस्या नहीं है। छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा, पूर्वोत्तर से भी शिकायतें आती रहती हैं। इन हाथियों को जंगल से बाहर न आना पडे़ इसके लिए भी ठोस उपाए करने होंगे। कई बार चर्चा हुई है कि हाथियों के लिए जंगलों में फलदार पेड़ों के गलियारे होने चाहिए, ताकि उनकी जरूरत वहीं पूरी हो जाए। अब समय आ गया है, जब हाथी ही नहीं, तमाम वन्य जीवों-पशुओं को तरह-तरह से मारने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगना चाहिए। लब्बोलुआब यही है-
      
       लाख करो पूजा चाहे तीर्थ करो हजार,

              जीवों पर दया नहीं तो सबकुछ है बेकार।


   इसका अर्थ है दया धर्म का मूल है, जैसे मूल के बिना वृक्ष टीक नहीं सकता। वह फल-फूल नहीं सकता और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वैसे ही दया के अभाव में धर्म नहीं हो सकता, वह बढ़ नहीं सकता। दयाहीन व्यक्ति धार्मिक तो क्या इंसान कहलाने लायक नहीं होता। वो जानवर से अधिक क्रूर हो जाता है।

लेखक संजय सक्सेना लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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