Husain Akhtar Naqvi : क्या कुछ बदल जायेगा इस लाकडाउन के बाद.... बात तब की है जब मैं ईटीवी में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) ब्यूरो का इंचार्ज था।उस वक़्त हम लोगों के स्टेट हेड श्री ब्रजेश मिश्रा हुआ करते थे।ब्यूरो में मेरे साथी रिपोर्टेर ने अपना नंबर बढ़ाने के लिए मेरी शिकायत कर दी थी।उसने कहा था कि यह तो हफ्ते में दो दिन अपने गृह जनपद में रहते हैं।मुझे अपनी शिकायत किये जाने की भनक लगी तो मैं सफाई देने लखनऊ पहुंच गया।
मैं सफाई देता उससे पहले ही बॉस ने मुस्कुराते हुए कहा, तुम चाहे जहां रहो मुझे ब्रेकिंग और वीजुअल सबसे पहले चाहिए।
वह दिन था और नौकरी के आखिरी दिन तक नए किस्म का नेटवर्क खड़ा किया। बिना स्पॉट पर पहुंचे सबसे पहले वीजुअल देता रहा।
शायद यह वर्क फ्रॉम होम का बेनामी कांसेप्ट रहा हो।
इस घटना के चार साल बाद आज कोरोना महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही है।
कोरोना संक्रमण ने पूरी दुनिया को हिला डाला।विश्व की महाशक्तियां भी इस कोरोना संक्रमण से हिल गईं। किसी देश ने पहले तो किसी ने बाद में इस संक्रमण से जीतने का एक ही रास्ता चुना। वो है लाकडाउन।
लाकडाउन के दौरान भारत में मध्यम और उच्च वर्ग ने शुरुआती चार छह दिन तो हॉलिडे की तरह लिया लेकिन जल्द ही उसे भविष्य की चिंता सताने लगी।
निम्न वर्ग तो रोज़ कमाओ रोज़ खाओ की स्थिति में था ही लेहाज़ा उसने दाएं बाएं करके अपना काम धंधा दो चार दिन बाद ही शुरू कर दिया लेकिन नौकरी पेशा और कंपनी,फैक्ट्री मालिकों ने दूसरा ही रास्ता निकाला।
कंपनीज़ ने कर्मचारियों अधिकारियों को घर से ही काम करने का ऑफर दिया तो वह सहर्ष इस वजह से तैयार हो गए क्योंकि उनको भी लाकडाउन में अपनी नौकरी बचती नज़र आई। उधर सरकार ने भी अपने कर्मचारियों से घर पर रह कर ही काम का आदेश सुनाया। फिलहाल वर्क फ्रॉम होम लाकडाउन की मजबूरी भले हो, लेकिन भविष्य में यही मंथन के बाद निकलने वाला अमृत भी साबित हो सकता है।
बहुत मुमकिन है कि लाकडाउन के बाद स्कूलों में क्लास रूम के भीतर आपको ब्लैक या व्हाईट बोर्ड की जगह बड़ी सी एलईडी नज़र आये जहां हर पीरियड में अलग अलग टीचर का चेहरा उभरे और वह घर बैठे ही अपने सब्जेक्ट की क्लास ले। इससे स्कूलों को टीचर्स के लिए अलग से स्टाफ रूम,चाय बिस्किट, बाथरूम और ड्रेसिंग रूम का खर्च बचाने के साथ सैलरी भी कम देनी पड़ेगी। उधर टीचर एक ही समय में दो, चार या छह स्कूलों की क्लास एक साथ ऑनलाईन पढ़ाएगी तो एक स्कूल से कम सैलरी मिलने के बावजूद दो चार स्कूलों में एक साथ क्लास लेने से उसकी ग्रॉस सैलेरी बढ़ जाएगी।
मीडिया हाउज़ का स्वरूप भी बदल सकता है। इंटरनेट के इस दौर में खबरें लिखने से लेकर उस पर फ़ोटो या ग्रैफिक लगाने के अलावा उनकी साज सज्जा का सब काम मोबाइल और लैपटॉप पर संभव है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अब किसी के पास जाने की ज़रूरत नही। जिसकी बाईट चाहिए उसे फोन करिए। वह व्यक्ति खुद बाइट के साथ सपोर्टिव वीजुअल भी खुद ही भेज देगा। रिपोर्टर घर बैठे उस पर वीओ लगाए और भेज दे। कई सर्विस इंडस्ट्री ऐसी हैं जहां फ्रंट आफिस अनमैन्ड नहीं हो सकता लेकिन बैक आफिस में कम से कम सत्तर परसेंट स्टाफ होता है जो वर्क फ्रॉम होम कर सकता है। लेहाज़ा मुमकिन है कि यह लाकडाउन वर्क फ्रॉम होम की नई इबारत लिखे और शायद काम करने और काम कराने वाले, दोनों के लिए एक नया सवेरा लेकर आये।
SH Akhtar
sakhtaretv@gmail.com
मैं सफाई देता उससे पहले ही बॉस ने मुस्कुराते हुए कहा, तुम चाहे जहां रहो मुझे ब्रेकिंग और वीजुअल सबसे पहले चाहिए।
वह दिन था और नौकरी के आखिरी दिन तक नए किस्म का नेटवर्क खड़ा किया। बिना स्पॉट पर पहुंचे सबसे पहले वीजुअल देता रहा।
शायद यह वर्क फ्रॉम होम का बेनामी कांसेप्ट रहा हो।
इस घटना के चार साल बाद आज कोरोना महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही है।
कोरोना संक्रमण ने पूरी दुनिया को हिला डाला।विश्व की महाशक्तियां भी इस कोरोना संक्रमण से हिल गईं। किसी देश ने पहले तो किसी ने बाद में इस संक्रमण से जीतने का एक ही रास्ता चुना। वो है लाकडाउन।
लाकडाउन के दौरान भारत में मध्यम और उच्च वर्ग ने शुरुआती चार छह दिन तो हॉलिडे की तरह लिया लेकिन जल्द ही उसे भविष्य की चिंता सताने लगी।
निम्न वर्ग तो रोज़ कमाओ रोज़ खाओ की स्थिति में था ही लेहाज़ा उसने दाएं बाएं करके अपना काम धंधा दो चार दिन बाद ही शुरू कर दिया लेकिन नौकरी पेशा और कंपनी,फैक्ट्री मालिकों ने दूसरा ही रास्ता निकाला।
कंपनीज़ ने कर्मचारियों अधिकारियों को घर से ही काम करने का ऑफर दिया तो वह सहर्ष इस वजह से तैयार हो गए क्योंकि उनको भी लाकडाउन में अपनी नौकरी बचती नज़र आई। उधर सरकार ने भी अपने कर्मचारियों से घर पर रह कर ही काम का आदेश सुनाया। फिलहाल वर्क फ्रॉम होम लाकडाउन की मजबूरी भले हो, लेकिन भविष्य में यही मंथन के बाद निकलने वाला अमृत भी साबित हो सकता है।
बहुत मुमकिन है कि लाकडाउन के बाद स्कूलों में क्लास रूम के भीतर आपको ब्लैक या व्हाईट बोर्ड की जगह बड़ी सी एलईडी नज़र आये जहां हर पीरियड में अलग अलग टीचर का चेहरा उभरे और वह घर बैठे ही अपने सब्जेक्ट की क्लास ले। इससे स्कूलों को टीचर्स के लिए अलग से स्टाफ रूम,चाय बिस्किट, बाथरूम और ड्रेसिंग रूम का खर्च बचाने के साथ सैलरी भी कम देनी पड़ेगी। उधर टीचर एक ही समय में दो, चार या छह स्कूलों की क्लास एक साथ ऑनलाईन पढ़ाएगी तो एक स्कूल से कम सैलरी मिलने के बावजूद दो चार स्कूलों में एक साथ क्लास लेने से उसकी ग्रॉस सैलेरी बढ़ जाएगी।
मीडिया हाउज़ का स्वरूप भी बदल सकता है। इंटरनेट के इस दौर में खबरें लिखने से लेकर उस पर फ़ोटो या ग्रैफिक लगाने के अलावा उनकी साज सज्जा का सब काम मोबाइल और लैपटॉप पर संभव है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अब किसी के पास जाने की ज़रूरत नही। जिसकी बाईट चाहिए उसे फोन करिए। वह व्यक्ति खुद बाइट के साथ सपोर्टिव वीजुअल भी खुद ही भेज देगा। रिपोर्टर घर बैठे उस पर वीओ लगाए और भेज दे। कई सर्विस इंडस्ट्री ऐसी हैं जहां फ्रंट आफिस अनमैन्ड नहीं हो सकता लेकिन बैक आफिस में कम से कम सत्तर परसेंट स्टाफ होता है जो वर्क फ्रॉम होम कर सकता है। लेहाज़ा मुमकिन है कि यह लाकडाउन वर्क फ्रॉम होम की नई इबारत लिखे और शायद काम करने और काम कराने वाले, दोनों के लिए एक नया सवेरा लेकर आये।
सैय्यद हुसैन अख्तर
एक्स,,चीफ रिपोर्टर
ईटीवी/न्यूज़18
sakhtaretv@gmail.com
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