Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

9.6.20

ऑनलाइन शिक्षा कहीं किसी के पढ़ने के सपने को तो नहीं तोड़ रही!


राजू परिहार, बागेश्वर

सही है कि आनलाइन शिक्षा पद्धति को एक विकल्प के रूप में आजमाया जा सकता है। लेकिन क्या इसके पहले यह सुनिश्चित कर लिए जाने की जरूरत नहीं है कि नियमित स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों की पहुंच तकनीकी आधुनिक संसाधनों तक है या नहीं? इंटरनेट की उपलब्धता और गति, घर का माहौल और बहुत सारे बच्चों और उनके परिवारों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति आज भी ऐसी है कि इसे एकमात्र विकल्प बनाया जाना बड़ी तादाद में गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों, खासतौर पर लड़कियों को समूची शिक्षा व्यवस्था से बाहर कर देगा।

सरकारी आँकड़ो के आधार पर आज भी देश भर में चालीस फीसद से ज्यादा लोगों के पास कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन, टेबलेट, प्रिंटर, राउटर जैसी जरूरी चीजें नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों में तो एक चौथाई आबादी के पास इंटरनेट सुविधा भी नहीं है। ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि अगर ऑनलाइन शिक्षा को मुख्य विकल्प बनाया गया और नियमित स्कूली-विश्वविद्यालयी शिक्षा से दूरी बनाई गई तो कितनी बड़ी आबादी जरूरी शिक्षा से वंचित हो जाएगी! इसके अलावा, नियमित स्कूल-कॉलेजों की कक्षाओं में शिक्षक और विद्यार्थी के बीच सीधे संवाद के मनोविज्ञान का विकल्प तकनीकी संसाधन किस हद बन पाएंगे, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।

वैसे एक बात यहाँ पर और बड़ी गम्भीर हो जाती है जिसकी आज़ादी के बाद से आज तक हमारे जंप्रतिनिधियों व सरकारों ने सुध नही ली। ग्रामीण जीवन जीने वाले परिवारों का आधुनिकीकरण करने का, आज भी हम जैसे हज़ारों ग्रामीण परिवार आधुनिक भारत का हिस्सा नही बन पाए हैं अर्थात जो मूलभूत संचार सुविधा से वंचित हैं। तो कैसे हमारी सरकारों ने सोच लिया कि ये सम्भव हो पाएगा शिक्षा के क्षेत्र में क्या अब इस आबादी के लोगों से शिक्षा का अधिकार भी छीन लिया जायेगा? सोचनीय है।

♦️आपको जनवरी 2020 की एक घटना से अवगत कराना चाहता हूँ जिसने मुझे अंदर तक हिला दिया और मेरे पास कोई जवाब नही था —

आज जब ऑनलाईन शिक्षा के बारे में लिखने की सोच ही रहा था तो अचानक वो वाक्या याद आ गया पूरा दृश्य एक बार फिर आँखो के सामने चलने लगा और मन दुःखी हो उठा। बात गोगिना गाँव की है जहाँ जनवरी महीने में लबालब बर्फ की सफ़ेद चादर के बीच वो जगह किसी जन्नत से कम नही लग रही थी। वहाँ से बागेश्वर जिला मुख्यालय तक मोबाईल नेटवर्क की माँग को लेकर एक पदयात्रा का आयोजन होना था, जो 73 किमी के दुर्गम रास्तों होकर जिला मुख्यालय पहुचनी थी। एक अजब  सुकून  सन्नाटा था वातावरण में तब एक बच्ची की आवाज़ ने ध्यान अपनी ओर खींचा—

दादी, मेरे पापा कहा हैं? यह सवाल था एक नन्ही बच्ची का। चूंकि, उसे जिंदगी और सरकारी व्यवस्थाओं के मायने पता नहीं, इसलिये अपनी दादी से उसका यह सवाल बड़ा सामान्य और बाल सुलभ था। मासूम का सवाल अनुत्तरित रहा तो उसने घर का एक-एक कोना छान मारा। तब दादी ने कहा तेरे पापा दुकान गये है। तेरे लिये बिस्कुट लाने तो उसने ज़ोर से कहा मुझे नही चाहिए बिस्कुट हमें मोबाईल टावर चाहिए। जिसके लिये हम सब को मिलकर आंदोलन करना है गोगिना से बागेश्वर तक की पैदल पद यात्रा में जाना है। तभी तो मैं बड़े भाई से बात कर अपने लिए एक कम्प्यूटर मगाऊँगी, अच्छा वाला मोबाईल मंगाऊँगी, जिसमें नेट चलता है। जैसे टीवी में दिखाते है एक दूसरे से आमने-सामने जैसी बात करेंगे विडियो कॉल से.... मैं उसकी ये सब बातें सुन चौंका। एकटक उसे देखकर उसके मनोभाव सुनता रहा। उसकी ये सब बातें सुन में अपने अतीत में कहीं खो सा गया सोच रहा था जब मैं इसकी उम्र का रहा हुंगा क्या तब मुझे ये सब जानकारी रही होगी। उसके अंकल की आवाज़ ने मेरी तंद्रा तोड़ी, मैंने उसकी तरफ देखते हुए बोला हाँ क्या हुआ। उसने पूछा क्या हमारे यहाँ भी अब मोबाईल टावर लग जायेगा?

हम भी फ़ोन पर बात करेंगे दोस्तों से? आपके मोबाईल में नेट चलता है? कैमरा भी है? कितने का है? मैं भी मगाऊँगी। एक साथ कई सवाल और मैं चुप, मुझे कुछ नही सुझाया तो मैंने कहा हां अब आपके यहाँ भी जल्दी मोबाईल टावर लगेगा, आपके गाँव के सब लोग डीएम साहब को ज्ञापन देंगे तब शायद हो जायेगा। उसने कहा बड़े होकर मुझे भी डीएम बनना है फिर मैं भी सब जगह टावर लगवा दूंगी। मैंने बोला इसके लिए तो आपको बहुत पढ़ना पड़ेगा, आप अभी कौन सी क्लास में पढ़ते हो? ६ क्लास में। फिर बर्फ ज्यदा गिरने लगी तो उसकी माँ ने उसे बुला लिया और वह दौड़ के अंदर चली गई। तब तक दादी मेरे सामने बैठी थी तो मैंने पूछा आपकी नातिन का क्या नाम है? ( नातिनिक के नाम छू आमा)। आमा ने क्या बोला मुझे कुछ भी समझ नही आया और आमा भी आगे को बढ़ चली। मैं बड़ी देर तक इस बच्ची और उसकी सोच के बारे में सोचता रहा फिर मेरे मन ने मुझसे पूछा क्या मैंने इस बच्ची से सच बोला? खैर......

आज जब ऑनलाईन शिक्षा की बात हो रही है तो मुझे उस बच्ची का ख्याल आया जिसका नाम तक मैं नही जानता । वहाँ आज भी नेटवर्क की सुविधा नही है। तो ऑनलाइन शिक्षा उनके लिये किसी सपने से कम है क्या? क्या उस बच्ची को आधुनिक शिक्षा का कोई अधिकार नही है। क्या वह क्षेत्र हमारे भारत का हिस्सा नही है।

जहाँ पूर्णबंदी की वजह से उनकी रोजी-रोटी छिन गई थी और वे किसी तरह अपने परिवार का पेट भर पा रहे थे। ऐसे में अपनी बच्ची को ऑनलाइन कक्षा में शामिल होने की सुविधा वे नहीं मुहैया करा सके। जब बच्ची के सामने पढ़ाई-लिखाई छूट जाने का डर खड़ा होगा, तो वह पूरी तरह टूट जायेगी। जिस समाज में लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा आज भी मुश्किल बनी हुई है, उसमें यह स्थिति क्या एक लड़की के पढ़ने के सपने को भी नहीं तोड़ रही है? अपने विचार अवश्य साझा करें.

1 comment:

Anonymous said...

अब सब कुछ बाज़ार के हवाले है। भावनाएं दम तोड़ चुकी हैं। नन्हीं सोच को पर लगाने की चिंता किए है? समझौता किए हुए जीते जा रहे हैं सभी।
पुनीत शुक्ला, कानपुर