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5.6.20

लॉकडाउन ने पर्यावरण को नया जीवन दिया

अगर आप आँख के एक साइड से देखे तो आज एक तरफ  दुनिया विश्व पर्यावरण दिवस बना रही है तो वही दूसरी आँख से देखिये तो कोरोना वायरस से कराह रही है प्रकति हमारे साथ ऐसा कैसा खेल खेल रही है  जिसका हमे तनिक भी इल्म नही था हमारे जीवन में कोई भी घटना होती है तो उसके फायदे और नुकसान दोनों होते है ।

वैसे देखा जाये तो  कोरोना काल में जरूरी नही सभी चीजे गलत हो रही है अगर आप गौर से देखे तो कोरोना वायरस की वजह से दुनिया में जो  लॉकडाउन लगाया गया है उससे मानव जाति को लाभ तो मिला है साथ ही साथ पर्यावरण को नया जीवन मिल गया है शोधकर्ताओं का मानना था कि जिस तरह से दुनिया आबादी  और जरूरतों के लिहाज आगे बढ़ रही थी वह पर्यावरण के लिए खतरा साबित हो रही थी क्योकि  एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में धुंआ से जुडे कारखाने , इंडस्ट्रीस , बन्द पड़े थे जिसके प्रभाव पर्यावरण को साफ सुथरा बनाने में बखूबी महारत हासिल हुई , यही नही हवाई जहाज, ट्रेन और रोजमर्रा के वाहन भी करीब तीन महीनों से बन्द पड़े थे जो मानवजाति और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी साबित हुआ । आज दुनिया के सामने स्वच्छ  ऑक्सीजन बड़ी चुनौती बनी हुई है ।

हम एक ऐसे दोहराए पर खड़े है अभी भी की हो सकता है कि हमें आने वाले सालों में साफ़ हवा नसीब न हो पाए । जो एक खतरे का संकेत है । प्रदूषण ने ओजोन परत को हिलाकर रख दिया था । मगर कोरोना की वजह से लागू किये गए लॉकडाउन ने पर्यावरण के  जीवन संजीवनी का काम किया है ।  आज प्रदूषण में भारी कमी आयी है लॉकडाउन में जो पाबंदियां लगाई गई थी वह फैसला कारगर साबित हुआ और इन पाबंदियों का एक नतीजा ऐसा भी निकला है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.  आज देश का कोना कोना खुशनुमा है अगर  आप राजधानी दिल्ली से पड़ोसी शहर नोएडा के लिए निकलें, तो पूरा मंज़र बदला नज़र आता है. सुबह अक्सर नींद अलार्म से नहीं, परिंदों के शोर से खुलती है. जिनकी आवाज़ भी हम भूल चुके थे । सड़कें वीरान तो थी  मगर मंज़र साफ़ हो गया था  सड़क किनारे लगे पौधे एकदम साफ़ और फूलों से गुलज़ार. यमुना नदी तो इतनी साफ़ कि पूछिए ही मत  सरकार हज़ारों करोड़ ख़र्च करके भी जो काम नहीं कर पाई लॉकडाउन के 4 स्टेज ने इन  दिनों में वो कर दिखाया ।

यह प्रकृति के लिए वरदान ही तो है । सबसे अच्छी बात यह है कि पर्यावरण को नुकसान पहुचाने वाला लेकिन अच्छी बात ये है कि कार्बन उत्सर्जन रुक गया है । ऐसे समझिए कहाँ कितनी कमी आई है इसी तरह चीन में भी कार्बन उत्सर्जन में 25 फ़ीसद की कमी आई है. चीन के 6 बड़े पावर हाउस में 2019 के अंतिम महीनों से ही कोयले के इस्तेमाल में 40 फीसद की कमी आई है. पिछले साल इन्हीं दिनों की तुलना में चीन के 337 शहरों की हवा की गुणवत्ता में 11.4 फ़ीसद का सुधार हुआ. ये आंकड़े खुद चीन के पर्यावरण मंत्रालय ने जारी किए हैं. यूरोप की सैटेलाइट तस्वीरें ये बताती हैं कि उत्तरी इटली से नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन कम हो रहा है. ब्रिटेन और स्पेन की भी कुछ ऐसी ही कहानी है । एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का 23 फ़ीसद परिवहन से निकलता है. इनमें से भी निजी गाड़ियों और हवाई जहाज़ की वजह से दुनिया भर में 72 फीसद कार्बन उत्सर्जन होता है. अभी लोग घरों में बंद हैं. ऑफ़िस का काम भी घर से कर रहे हैं. अपने परिवार और दोस्तों को वक़्त दे पा रहे हैं।       

ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी महामारी के चलते कार्बनडाई ऑक्साइड का स्तर कम हुआ हो. इतिहास में इसके कई उदाहरण मिलते हैं. यहां तक कि औद्योगिक क्रांति से पहले भी ये बदलाव देखा गया था. जर्मनी की एक जानकार जूलिया पोंग्रात्स का कहना है कि यूरोप में चौदहवीं सदी में आई ब्लैक डेथ हो, या दक्षिण अमरीका में फैली छोटी चेचक । सभी महामारियों के बाद वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर कम दर्ज किया गया था. उस दौर में परिवहन के साधन भी बहुत सीमित थे. और जब महामारियों के चलते बहुत लोगों की मौत हो गई, तो खेती की ज़मीन भी खाली हो गई और वहां ऐसे जंगली पौधे और घास पैदा हो गए जिससे गुणवत्ता वाली कार्बन निकली । अगर हम भविष्य की ओर देखे तो क्या यह सम्भव है कि जिस तरह पूरी दुनिया 4 महीने बन्द रही अगर हम पर्यावरण को बचाना चाहते है तो साल में एक महीने पूरी दुनिया को बंद कर सकते है पर्यावरण के खातिर । जैसे हमने कोरोना संकट में वक्त गुजार लिया वैसे साल में एक महीने भी ऐसे ही वक्त गुजार सकते है क्या । ये वह सवाल है जो हमारे जीवन को एक नई दिशा दे सकते है ।

अगर स्वच्छ वातावरण होगा तो बीमारियां नही होगी । स्वच्छ ऑक्सीजन की प्राप्ति होगी । और जीवन को एक लंबी आयु मिलेगी । जिस तरह मौजूदा समय में जान बचाना लोगों की प्राथमिकता बना हुआ है वैसे ही लोगों को पर्यावरण के प्रति चिंतित कराया जाना ज़रुरी है । पर्यावरण को बचाने के लिए लोगों को अपनी आदतें बदलनी होंगी. अगर वो ख़ुद नहीं बदलते हैं, तो उन्हें जबरन बदलवाना पड़ेगा ।  यह करना कठिन जरूर है मगर जान लीजिए यह हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए सुखमय होगा । कोशिश इंसान को बदल देती । तो प्रयास कीजिये ।

ब्रजेश सैनी
स्वतंत्र पत्रकार
brajeshsaini000@gmail.com

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