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1.6.20

माँ सो गई! (लघुकथा)


पेट की भूख ने मां को अपने दो बच्चों के साथ शहर की चकाचौंध से भरी दुनिया में प्रवेश करवाया। 

अनजान शहर और अनजान लोगों से दूर मां ने बच्चों के साथ फुटपाथ पर अपना डेरा डाला।

भूख ने उन सब का नूर छीन लिया था, कुछ भोजन न मिलने पर मां अपने बच्चों के लिए मिट्टी के बने चाय के कुल्लड़,जो लोगों ने चाय पी कर सड़कों पर फेंक दिए थे, वह ढूंढ कर लाती और उनमें से जो नमी होती उसको चाटकर बच्चें अपनी भूख मिटाते।

कुछ समय बाद महामारी का प्रकोप फैल गया।

देश में कर्फ्यू लगने लगा अब इस मौके पर मां के पास बच्चों को खिलाने के लिए कुछ नहीं था।

सभी मजदूर घरों की ओर पलायन करने लगे अब उस माँ ने अपने बच्चों को साथ लेकर अपने गांव की तरफ रुख किया।

दो दिन से भूखी माँ ने कहीं से कुछ भोजन लाकर खुद भूखा रहकर अपने बच्चों को खिलाया,इसलिए ही तो माँ को सबसे बड़ा योद्धा कहा जाता है।

अब घर जाने के लिए ना तो उनके पास पैसे थे और ना कोई सहारा सिवाय पैदल चलने के।

पर सरकार ने आदेश निकाला कि वह सभी मजदूरों को उनके घर तक पहुँचाएँगे, तो अब मां भी सब लोगों के साथ अपने बच्चों को लेकर स्टेशन तक चली गई।

अब मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए भी राजनीति शुरू हो गई।

घंटों इंतजार के बाद थक कर चूर हुई माँ स्टेशन पर ही सो गई।

बच्चे माँ के आसपास खेलते रहे।

पर उन बच्चों को क्या पता कि मां हमेशा के लिए सो गई?


कवि दशरथ प्रजापत
पथमेड़ा, जालोर(राजस्थान)
Wh. No 8875577034

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