Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

23.6.21

तीसरा मोर्चा : क्या वाम मोर्चा का इतिहास दोहराएंगी ममता बनर्जी?

CHARAN SINGH RAJPUT-

एनसीपी नेता शरद पवार के दिल्ली स्थित आवास पर विपक्ष के नेताओं की बैठक हो रही है। राजनीतिज्ञ पंडित इसे तीसरा मोर्चा तैयार करने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं। भले ही प्रशांत किशोर इस कवायद में लगे हों पर पर यह प्रयास पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का माना जा रहा है। अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में होने वाले विधानसभा से ठीक पहले ममता बनर्जी का तीसरे मोर्चा बनाने का प्रयास क्या गुल खिलाएगा यह तो समय बताएगा पर इस कवायद से अलग-थलग पड़े विपक्ष को मजबूती जरूर मिल सकती है। देश की राजनीति की यह भी जमीनी हकीकत है जब भी राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे मोर्चा की कवायद शुरू हुई पं. बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी इसकी सूत्रधार रही। गैरकांग्रेसवाद का आधार मानकर वाम मोर्चा ने  ने एक बार नहीं दो बार तीसरे मोर्चा की सरकार बनवाई है। वह बात दूसरी है कि जो वाम मोर्चा गैर कांग्रेसवाद का आधार लेकर चल रहा था वही वाम मोर्चा बाद में कांग्रेस से सट गया और सरकार भी बनवाई। इस बार ममता तीसरे मोर्चा के गठन में ममता बनर्जी का आधार गैर भाजपावाद है।

22.6.21

काश 'रोटी दिवस' मनाया जाता!

 CHARAN SINGH RAJPUT-

कहावत है कि 'भूखे पेट भजन न होई गोपाला'। लोग अच्छी सेहत के लिए रोटी मांग रहे हैं और मोदी सरकार अच्छी सेहत के लिए योग करने को कह रही है। ये लोग यह समझने को तैयार नहीं कि जब भूखे पेट भजन नहीं हो सकता है तो योग कैसे होगा ? या फिर भूखे आदमी को योग से क्या फायदा होगा ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विफलता को छिपाने के लिए कोरोना महामारी में योग को उम्मीद की किरण बताने लगे। यदि योग ही सब कुछ होगा तो फिर देश में सरकारों की जरूरत ही क्या है ? वैसे भी योग की जरूरत तो उस व्यक्ति को पड़ती है जिसके पास खाने-पीने की कोई कमी न हो। कोरोना महामारी में मोदी सरकार के हर मोर्चे पर विफल होने पर आज देश में जो व्यक्ति है उसके अनुसार तो लोग दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं। 

भारत में राजनीतिक दल सांप्रदायिकता को सदैव उत्प्रेरक के रूप में इस्तेमाल करते हैं

- शैलेन्द्र चौहान

भारत में जब भी सांप्रदायिकता की बात चलती है तो उसका आशय हिन्दू मुस्लिम सम्बंधों में आपसी द्वेष एवं घृणा से ही लिया जाता है। यदि सांप्रदायिक समस्या के समाधान की भी बात की जाती है तो भी हिन्दू मुस्लिम विरोध को समाप्त करने का ही आशय होता है। असल में भारत में सम्प्रदाय का तात्पर्य हिन्दू ,मुस्लिम धर्म विभाजन से ही है जो 14-15 अगस्त 1947 के भारत-पाक विभाजन से प्रत्यक्षत: जुड़ा हुआ है। ध्यातव्य है कि 1914-15 के शहीदों ने धर्म को राजनीति से अलग कर दिया था। वे समझते थे कि धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है इसमें दूसरे का कोई दखल नहीं। इसे राजनीति में घुसाना न चाहिए क्योंकि यह समस्त भारतीय जनों को मिलकर एक जगह काम नहीं करने देता। इसलिए गदर पार्टी जैसे आन्दोलन एकजुट व एकजान रहे, जिसमें सिख बढ़-चढ़कर फाँसियों पर चढ़े और हिन्दू मुसलमान भी पीछे नहीं रहे। यदि धर्म को अलग कर दिया जाये तो राजनीति पर हम सभी इकट्ठे हो सकते है। धर्मों में हम चाहे अलग-अलग ही रहें। इतिहास के पन्नों में ऐसे अनगिनत मुस्लिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम दर्ज हैं जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दू स्वातंत्र्य योद्धाओं के साथ मिलकर अपना बहुमूल्य योगदान दिया। अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष में अनेकों मुस्लिम क्रांतिकारियों, कवियों और लेखकों का योगदान उल्लेखनीय है।

21.6.21

खुशवंत उवाच : हाय नि रब्बा ! ....... नाडा किथे खोला ?

सत्य पारीक-

उपरोक्त शब्द हैं जाने माने पत्रकार खुशवंत सिंह के जिन्होंने वर्षो पहले लगभग 1986 में जयपुर के बाजारों में स्कूटर पर रात्रि भृमण करते हुए कहे थे , मैं सौभाग्य से उनका दुपहिया वाहक था ,आज ये वाकिया मुझे अचानक ही विख्यात न्यूज पोर्टल भड़ास पर की गई एक महिला एंकर साक्षी जोशी की टिप्पणी देख कर स्मरण हो उठी , जिनके दो धारे कटाक्ष का शीर्षक था " ममता वॉशरूम कैसे जाती है " यानी साक्षी को कवरेज के दौरान वाशरूम की जरूरत हुई होगी , तभी उन्होंने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता पर ऐसी टिप्पणी कर शासन की कमी के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शौचालय निर्माण कार्यक्रम पर कटाक्ष किया , जो वाशरूम की जरूरत वाली महिला एंकर का दुख भी कहा जा सकता है , अब शौचालय प्रेमी मोदी इस समस्या पर कितना ध्यान देंगे ये समय बतायेगा

पत्रकार के परिवार पर भूमफिया ने करवाया अपने ही परिवार से जानलेवा हमला


सेवा में
श्रीमान थानाध्यक्ष
थाना करौदीकला, कादीपुर, सुलतानपुर, यूपी*

विषय : पत्रकार के परिवार की हत्या के प्रयास की प्राथमिकी दर्ज करने के संदर्भ में

-जनवरी से हत्या की दी जा रही धमकी, पत्नी का गला कस दिया, बेटे के हाथ को लाठी से तोड़ दिया

- इससे पहले भी तीन बार किया जा चुका हमला, पुलिस ने भूमफिया पर 107 तक की कार्रवाई नहीं की

-हमला हो जाने के बाद थानाध्यक्ष ने कहा, प्राथमिकी दर्ज करवाओ, कार्रवाई होगी

बड़ा बेदर्द है यह, तेल का खेल... शाइनिंग इंडिया या क्राइंग इंडिया

  संतोष गुप्ता-

राजा द्वारा कितना टैक्स लिया जाना चाहिए, नीति शास्त्र में इसका बड़े विस्तार से वर्णन किया गया है। पुराने राजे- महाराजे इस बात का विशेष ध्यान भी रखते थे। वे यह बात अच्छी तरह जानते थे कि अगर जनता का ज्यादा तेल निकाला गया तो वो बागी हो सकती है। जनता के बागी हो जाने पर निकाले गए तेल से कई गुना ज्यादा ऊर्जा उस बगावत को दबाने में नष्ट हो जाती है। अतः समझदार राजा देश की जनता पर जरूरत से ज्यादा टैक्स लगाने की नीति से अक्सर किनारा करने में ही अपनी भलाई समझता था। जब कभी जनता की बात ना सुनकर, उनकी परेशानी ना समझ कर राजा ने अपनी मनमानी की तो उसका राज ज्यादा समय तक ना तो कायम रह सका और ना उसकी जनता कभी उससे संतुष्ट रह सकी। इतिहास ऐसी घटनाओं से अटा पड़ा है।

भारत में मीडिया की दुर्गति

- शैलेन्द्र चौहान

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का काम यह होना चाहिए था कि वह लोगों को जागरूक करे किन्तु टीआरपी के चलते समाचार चैनल इन दिनों किसी भी खबर को सनसनी बनाकर पेश करने से नहीं चूक रहे। यह चिंताजनक स्थिति है। अगर हम भारतीय समाचार पत्रों तथा इलेक्ट्रानिक चैनलों पर प्रसारित होने वाले समाचारों को देखे तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि इस देश में अब सूचना माध्यमों के लिए एकमात्र प्रमुख चिंता है राजनीतिक उठापटक और चंद राजनीतिज्ञों की चमक दमक एवं शौहरत का प्रचार प्रसार। बाकी सब बेकार है कोरोना के अलावा। महामारी है तो समाचार देना अनिवार्य है। या फिर निकट अतीत में सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या। चुनावी मौसम में तो चैनलों की बल्ले बल्ले होती है। यह सब नहीं तो क्रिकेट। महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था अब समाचार नहीं बचे हैं या हाशिए के समाचार हैं।

सरकारी सिस्टम के आगे लाचार है नालंदा की एक बेटी

संजय कुमार-

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से  मांग रही इंसाफ

बिहारशरीफ। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार कि बेटियों को सभी क्षेत्र में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जी जान से लगे हुए हैं ।जिसका परिणाम यह निकला है कि बिहार कि बेटियां भी सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है। सरकारी सेवा में भी बिहार कि बेटियां  अपने मेहनत के बलबूते मुकाम हासिल कर रही है।

आस्था को कमाई का जरिया बनाकर अथाह संपत्ति के मालिक बने बैठे हैं मंदिराधीश

CHARAN SINGH RAJPUT -
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करा रही श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर भ्रष्टाचार के आरोप कोई नई बात नहीं है। देश में मंदिर कमाई का एक बड़ा जरिया बने हुए हैं। आस्था के नाम पर लोगों को ठगने का खेल लंबे से समय से चल रहा है। राम मंदिर भले ही सत्ता हथियाने का मुद्दा बना रहा हो पर देश में ऐसे कई मंदिर हैं जिनके पास अथाह संपत्ति है। राम मंदिर निर्माण के नाम पर हिन्दुओं की भावनाओं को भड़काकर एक बार नहीं बार-बार चंदा लिया गया है। इसका हिसाब न मांगा गया और न ही किसी ने दिया। हां यह बात दूसरी है कि राजनीतिक दल मंदिरों के नाम हो रहे भ्रष्टाचार को जनहित में कम उठाते हैं बल्कि राजनीतिक  लाभ के लिए ज्यादा उठाते हैं। आप नेता संजय सिंह ने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करा रही श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए आप नेता संजय सिंह ने उसकी जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। ये आरोप संजय सिंह ने बाकायदा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लगाये हैं। संजय सिंह आरोप है कि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने संस्था के सदस्य अनिल मिश्रा की मदद से दो करोड़ रुपए कीमत की जमीन 18 करोड़ रुपए में खरीदी। संजय सिंह ने इसे सीधे रूप से मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बताया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि देश में मंदिर आस्था और राजनीति तक ही सीमित हैं या फिर इसके पीछे खेल कुछ और भी है।

टी वी पत्रकार भूपेंद्र ‌द्विवेदी बने उत्तर प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के जिलाध्यक्ष

गोरखपुर। टीवी पत्रकार भूपेंद्र ‌‌द्विवेदी उत्तर प्रदेश व‌र्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष मनोनीत किए गए हैं। प्रदेश कार्यकारिणी ने उन्हें जिलाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपते हुए कार्यकारिणी के अन्य पदाधिकारी और सदस्यों के नाम का भी अनुमोदन किया है।

ऐसे निस्तेज हुए योगी

Krishan pal Singh-

उत्तर प्रदेश में हाल में सत्तारूढ़ पार्टी के अंदर चली उठा पटक में पहले सीएम योगी आदित्यनाथ ने तेवर दिखाये जिससे पार्टी की शीर्ष नेतृत्व बैकफुट पर जाते दिखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूत सेवा निवृत्त आईएएस अधिकारी अरविन्द शर्मा को मंत्री न बनाने से लेकर कई मामलों में सीएम योगी ने केन्द्रीय नेतृत्व की खुली अवज्ञा की। नौबत उनको मुख्यमंत्री पद से शिफ्ट करने तक की आ गयी लेकिन संघ उनके लिए ढ़ाल बन गया। इससे योगी का मनोबल और बुलंद हो गया था लेकिन अंततोगत्वा केन्द्रीय नेतृत्व ने ऐसे पैंतरे दिखाये कि योगी की हालत दयनीय बन गई। योगी मुख्यमंत्री पद पर तो बने रहेंगे लेकिन उनका वजूद पुतले से ज्यादा नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में विभिन्न पार्टियों के साथ गठबंधन करने से लेकर राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किये जाने वाले चेहरे तय करने तक के सारे अधिकार केन्द्रीय नेतृत्व ने अपने हाथ में ले लिये हैं। यहां तक कि उन्हें सुबह शाम पानी पी-पीकर गाली देने वाले ओमप्रकाश राजभर को भी दुबारा ससम्मान अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए तैयार रहने का निर्देश योगी के ऊपर पारित कर दिया गया है।

कहीं आत्महत्याओं की घटनाएं न ले लें महामारी का रूप

CHARAN SINGH RAJPUT-

देश में कोरोना की महामारी से अभी छुटकारा नहीं पाया जा सका है कि कोरोना कहर  और सरकारों की विफलता का लोगों की जिंदगी पर यह असर पड़ा है कि अब आत्महत्या महामारी का रूप लेती जा रही है। महानगरों में आत्महत्या करने की घटनाओं ने अचानक विकराल रूप ले लिया है। कोई आर्थिक तंगी तो कोई कोरोना के साइड इफेक्ट से तो कोई कर्जे की वजह से आत्महत्या कर ले रहा है। आर्थिक  रूप और मानसिक रूप से कोरोना महामारी का गांवों पर भले ही कम असर पड़ा हो पर महानगरों में हालात बद से बदतर हो रहे हैं। हर कोई अपना रोना रो रहा है। पैसे के लेने को लेकर विवादों ने अचानक बड़ा रूप ले लिया है। चाहे नौकरीपेशा आदमी हो, व्यापारी हो या फिर दूसरे पेशों को अपनाने वाला, हर कोई परेशान नजर आ रहा है। कोरोना की तीसरी लहर के अंदेशे ने लोगों को और निराशा में लाकर खड़ा कर दिया है।

आईएएस अफसर के आरोप स्थानांतरण की हताशा या ईमानदारी की पीड़ा!

सरकार पर किसी विपक्ष के नेता द्वारा लगाए बेईमानी के आरोपो को तो राजनीतिक दोषारोपण मानकर खारिज किया जा सकता है। किन्तु जब यह आरोप युवा आईएएस अफसर की ओर से लगे तो गम्भीर विषय बन जाते है इसे आसानी से खारिज नही किया जा सकता है। बेशक ईमानदारी सदैव पुरस्कार की पात्र होना चाहिए। जिस राज्य में ईमानदारी सजा ओर तिरस्कार की पात्र हो जाए वहाँ सबकुछ ठीक चलता नहीं माना जा सकता है।मध्यप्रदेश केडर के आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़ के आरोप कुछ इसी तरह की कहानी बयान कर रहें है।

पत्रिका डिजिटल के कर्मचारी परेशान हैं बिजनेस हेड से!

Patrika.com करीब तीन चार महीने पहले कई लाख के मासिक पैकेज में एक बिजनेस हैड शेखर सुमन को लेकर आई है लेकिन पत्रिका का ये निर्णय पहले से काम कर रही टीम के लिए बेहद खतरनाक साबित हुआ है। सुमन के अभद्र व्यवहार से नाराज होकर अब तक पांच कर्मचारी Patrika.com की नौकरी छोड़ चुके हैं और कई अन्य भी इसी राह पर आगे जा सकते हैं। शेखर सुमन के बारे में मशहूर है कि वे जिस संस्थान में जाते हैं, वहां की पुरानी टीम को नाकारा साबित करने में जुट जाते हैं और मैनेजमेंट को ये यकीन दिला देते हैं कि अगर पुरानी टीम रही तो टारगेट हासिल करना मुश्किल होगा।

पत्रकार ने लोकभवन से पुलिस कर्मी का उड़ा लिया हैलमेट, सीसी फुटेज में कैद हुआ, खूब भद्द पिटी

लखनऊ। अमर उजाला, स्वदेश जैसे अखवार में काम कर चुका यह पत्रकार तो हेलमेट चोर निकला। लोकभवन के स्टैण्ड से एक पुलिस कर्मी की गाड़ी से हैलमेट उठाते हुए सीसीटीवी में कैद हो गया। बाद में बड़ी फजीहत के बाद लौटाया। वर्तमान में यह पत्रकार खुद को एक अखबार का स्थानीय संपादक और मुख्यमंत्री की सोशल मीडिया सेल का कर्मचारी बताता है।

ABP News concludes another remarkable edition of ‘Yog Sammelan’

Noida, 21st June 2021: As International Yoga Day comes near, ABP News recently concluded the 6th edition of its ‘Yog Sammelan’. Much relevant for our times in a society still recovering from the numerous implications of the COVID-19 pandemic, the special conclave on Yoga, Ayurveda, and other aspects of healthy living was organized by the news channel to educate the viewers on mindfulness, achieving balance, coping with anxiety, and becoming mentally & physically resilient. 

सुलभ की पत्नी को एक करोड़ रुपये मुआवजा देने की मांग




संयुक्त मीडिया क्लब के बुंदेलखंड अध्यक्ष इरफान पठान व महोबा जिलाध्यक्ष भगवानदीन यादव के मार्गदर्शन में आज जनपद की तहसील कुलपहाड़ के अध्यक्ष बृजेंद्र द्विवेदी के नेतृत्व में प्रतापगढ़ के पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की संदिग्ध मौत के मामले में निष्पक्ष जांच कराकर आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही किए जाने की मां की.

GIJN offering three media outlets free, in-depth assessments of their organization

Global Investigative Journalism Network (GIJN) Advisory Services, under its Investigative Journalism Media Assessment Program (IJ-MAP) is offering three small-to-medium media outlets free, in-depth assessments of their organization, and follow-up with expert advice in priority areas.

19.6.21

ट्विटर पर लगाम, दिखेगा व्यापक प्रभाव

अजय कुमार, लखनऊ

उत्तर प्रदेश में धीरे-धीरे  चुनावी माहौल बनने लगा है। तमाम दलों के नेताओं की यूपी में सक्रियता बढ़ गई है, जो लोकतंत्र में स्वभाविक भी है, इसी से देश को मजबूती मिलती है, लेकिन चिंता तब बढ़ जाती है जब तमाम राजनैतिक दल और उनके नेता एवं समर्थक पर्दे के पीछे से चुनाव जीतने हराने के लिए साजिशें रचना शुरू कर देते हैंै। खुले तौर पर राजनैतिक दलों द्वारा यह साजिशें अपने पक्ष में वोटों के धु्रवीकरण के लिए रची जाती हैं। इसी लिए चुनावी वर्ष में किसी भी राज्य सरकार के लिए प्रदेश में अमन-चैन और सौहार्द बनाए रखना आसान नहीं होता है। चुनाव जीतने के लिए जो साजिशें रची जाती हैं, उसमें बेवजह नेताओं द्वारा उतेजक और भ्रामक बयानबाजी,विरोधी दलों के नेताओं की छवि पर कुठाराघात, साम्प्रदायिक माहौल खराब करने की कोशिशें, जातीय विद्वेष बढ़ाने के प्रयास जैसी घटनाएं शामिल रहती हैं तो चुनाव में विरोधियों को पटकनी देने के लिए ‘साम- दाम-दंड-भेद’ का भी सहारा लिया जाता है। यह सब ‘हरकतें’ इतने सुनियोजित तरीके से अंजाम तक पहुंचाई जाती हैं कि जनता के लिए भी इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि हकीकत क्या है। करीब-करीब सभी चुनावों के समय यह मंजर आम हो जाता है। नेताओं के इस तरह के झूठे और बेबुनियाद ओरोपों/चर्चाओं को अमली जामा पहनाने का काम सबसे अधिक कोई करता है तो निश्चित ही इसमें टिवटर जैसे सोशल नेटवर्क अव्वल हैं।अपनी इन्हीं हरकतों के चलते हिन्दुस्तान में ट्विटर विवादों में घिर गया है।

कोरोना वैक्सीन की एक डोज़ बनाने में कितना खर्च आता होगा?

Vishwa Deepak-
 
केला गणतंत्र या समाजवाद -- क्या चाहिए?

फार्मा सेक्टर में काम करने वाले एक मित्र से मैंने पूछा कि कोरोना वैक्सीन की एक डोज़ बनाने में अनुमानत: कितना खर्च आता होगा. उन्होंने कहा कि सब मिलाकर यानि स्टाफ की सैलरी, बिजली, मशीन और ट्रांसपोर्ट का 10-15 रुपये. इससे ज्यादा नहीं. इसे बढ़ाकर अगर डबल कर दें तो भी 30 रुपये से ज्यादा नहीं होगा.

हिंदी के सुपरिचित लेखक-कवि-संपादक सुरेश सलिल का आज जन्मदिन है

Urmilesh-
 
हमारे वरिष्ठ साथी और हिंदी के सुपरिचित लेखक-कवि-संपादक Suresh Salil का आज जन्मदिन है. उनका यह जन्मदिन इस बार खास है क्योंकि वह 79 पूरा कर अपने जीवन के 80 वें वर्ष में प्रवेश कर गये हैं. सुरेश जी से मेरी पहली मुलाकात कहां हुई, ये तो याद नहीं पर निश्चय ही वह सन् 1978-79 का वर्ष रहा होगा, जब मैंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एम.फिल्./पीएच.डी. के लिए दाखिला लिया था. 


18.6.21

अहद प्रकाश जी की स्मृति पर मातृभाषा ने घोषित किए दो पुरस्कार

इंदौर। प्रसिद्ध बाल साहित्यकार एवं ग़ज़लकार अहद प्रकाश जी की स्मृति में मातृभाषा उन्नयन संस्थान ने दो सम्मान, 'अहद प्रकाश बाल साहित्य गौरव सम्मान' एवं 'अहद प्रकाश ग़ज़ल रत्न सम्मान', घोषित किए, जो प्रतिवर्ष एक बाल साहित्यकार एवं एक ग़ज़लकार को दिए जाएँगे। इन पुरस्कारों के लिए देशभर से प्रविष्टियाँ आमंत्रित की जाएँगी एवं चयन मण्डल द्वारा सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति का चयन कर, उन्हें समारोह में सम्मानित किया जाएगा।

भाजपा के लिए आफत बनते जा रहे राकेश टिकैत

CHARAN SINGH RAJPUT-

तीन नये किसान कानूनों को वापस कराने के लिए दिल्ली बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत भाजपा के लिए लगातार आफत बनते जा रहे हैं। अब राकेश टिकैत ने 26 जून आपातकाल की वर्षगांठ को लोकतंत्र बचाओ किसान बचाव दिवस मनाने का ऐलान किया है। 26 जून को किसान देशभर के सभी राजभवनों का घेराव करेंगे। देश में अघोषित आपातकाल मानते हुए किसान 26 जून को मोदी सरकार के खिलाफ फिर से हुंकार भरेंगे। मतलब जहां भाजपा 26 जून को कांग्रेस को घेरने क कोशिश करेगी वहीं उसे किसानों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ेगा। राकेश टिकैत ने मोदी सरकार को खुली चेतावनी दे दी है कि अब सरकार से बिना शर्त बातचीत होगी।

अशोक गहलोत के वर्चस्व को चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं पायलट

कृष्णमोहन झा-

राजस्थान में कुछ माह पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के वर्चस्व को चुनौती देकर सचिन पायलट ने न केवल अपना उपमुख्यमंत्री पद गंवा दिया था बल्कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद की बागडोर भी उनके हाथ से निकल गई थी । उसके बाद से वे जिस तरह शांत दिखाई दे रहे थे उससे इन अनुमानों को बल मिल रहा था कि गहलोत के हाथों मिली शिकस्त ने उन्हें  हताश कर दिया है। इस बीच न तो उन्होंने फिर से गहलोत सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा उजागर की और न ही दुबारा  प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद  हासिल करने के लिए आलाकमान से गुहार लगाई।

17.6.21

राम मंदिर निर्माण में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी जा रहा है भाजपा के पक्ष में!


CHARAN SINGH RAJPUT-

विपक्ष को ही नहीं हर सेकुलर व्यक्ति को यह समझ लेना चाहिए कि जब हम भाजपा समर्थकों को अंधभक्ति की संज्ञा देते हैं तो किसी भी तरह के आरोप का उन पर कोई असर नहीं पडऩे वाला है। आज की तारीख में न ही विपक्ष के आरोपों को कोई जिम्मेदार तंत्र गंभीरता से ले रहा है। मोदी सरकार की गलत नीति के चलते बेरोजगार होने के बावजूद, कोरोना महामारी में सरकार की विफलता के चलते अपनों के खोने के बावजूद , पेट्रो पदार्थांे की बेहताशा वृद्धि के बावजूद, गैस सिलेंडर की सब्सिडी बिना बताये खत्म करने के बावजूद जो लोग मोदी और योगी सरकार के खिलाफ कुछ सुनने को तैयार नहीं उनके लिए कोई आरोप बेकार है।

16.6.21

उत्तर प्रदेश बंटवारे की खबरों के पीछे का खेल क्या है...

CHARAN SINGH RAJPUT
    
कहा जाता है कि बिना आग के धुंआ नहीं उठता है। यदि सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के बंटवारे की खबर वायरल हुई है तो इसके पीछे कुछ खेल तो जरूर है। दावा व्यक्त किया जा रहा है कि 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले पूर्वांचल और बुंदेलखंड को अलग कर दिया  जाएगा। मतलब उत्तर प्रदेश के तीन हिस्से। उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल। सूत्रों की मानें तो योगी आदित्यनाथ की दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लंबी वार्ता की वजह उत्तर प्रदेश का बंटवारा है। वैसे भी योगी आदित्यनाथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मिले हैं। कैबिनेट विस्तार में तो राष्ट्रपति से चर्चा का कोई मतलब नहीं होता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई मीटिंग विदर्भ को अलग राज्य बनाने को लेकर बताई जा रही है। विदर्भ की राजधानी नागपुर को बनाने की योजना है। वैसे भी नागपुर में भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस का मुख्यालय है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काम करने का यह अपना तरीका है कि वह किसी बात को लीक नहीं होने देते। चाहे नोटबंदी का मामला हो, जीएसटी का मामला हो या फिर धारा 370 हटाने का उन्होंने किसी को कानोंकान खबर नहीं लगने दी।

सोशलमीडिया की वर्चुअल मिक्सी में तथ्य ऐसे मथे जा रहे हैं कि...

-जयराम शुक्ल

सच के शीर्षासन पर झूँठ का झंडा... सोशलमीडिया की वर्चुअल मिक्सी में तथ्य ऐसे मथे जा रहे हैं कि सत्य को झूँठ से अलग करना दही से उसकी खट्टई अलग करने  जैसा है...

हमारे शहर में पुराने जमाने के खाँटी समाजवादी नेता हैं- दादा कौशल सिंह। खरी-खरी कहने में उनका कोई सानी नहीं। बात-बात में वे एक डायलॉग अक्सर दोहराते हैं - बड़ी अमसा-खमसी मची है, पतै नहीं चलि पावै कि का झूँठि आय, का फुरि। यानी कि सच और झूठ में ऐसा मिश्रण हो गया है कि समझना मुश्किल।

13.6.21

सचिन पायलट कांग्रेस में हैं भी या नहीं?

-निरंजन परिहार

सियासत के इस सत्य और उसके तथ्य को सचिन पायलट अच्छी तरह समझते हैं कि राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व है। समझदार नेता प्रतीकों के जरिए संदेश देते हैं। सो, इशारों को समझनेवाले इशारों – इशारों में पूछ रहे हैं कि पायलट कांग्रेस में हैं भी या नहीं? 


बिल्ली के भाग से छींका टूटने की रणनीति से तो फतह नहीं किया जा सकता उत्तर प्रदेश!

चरण सिंह राजपूत-

अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बिसात बिछनी शुरू हो गई है। भले ही चुनाव की घोषणा होने में अभी बहुत समय है पर राजनीतिक दलों ने चुनाव के लिए पूरी तरह से कमर कस ली है। वह बात दूसरी है कि विपक्ष से ज्यादा सत्तापक्ष ज्यादा सक्रिय नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता का फायदा उठाते हुए गोटी फिट करने का खेल शुरू कर दिया है। वह चुनाव को मजबूत करने के लिए न लखनऊ बल्कि दिल्ली में बैठे नेता नेताओं को भी साध रहे हंै।  विपक्ष भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने करीबी अरविंद शर्मा को उत्तर प्रदेश में भेजने के बाद उपजा योगी और मोदी विवाद विपक्ष के लिए राहतभरा महसूस हो रहा है पर इससे भी योगी मजबूत हुए हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने पं. बंगाल में ममता बनर्जी, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और बिहार में तेजस्वी यादव की तरह कौन ताल ठोकेगा ? योगी सरकार के खिलाफ बसपा की चुप्पी तो उसे भाजपा के खेमे में खड़ा कर रही है। प्रियंका गांधी लगातार सक्रियता के बावजूद कांग्रेस अभी भी उत्तर प्रदेश में कोई खास छाप नहीं छोड़ पाई है। आप का उत्तर प्रदेश में कुछ खास जनाधार नहीं है। असद्दुदीन आवैसी हर चुनाव में भाजपा के लिए काम कर रहे हंै। ऐसे में सपा ही मुख्य विपक्ष पार्टी मानी जा रही है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिल्ली के भाग से छींका टूटने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। न वह योगी सरकार के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर पाये हैं और न ही चुनावी समर में जाने के लिए उनके पास मजबूत संगठन है।

विख्यात धर्म प्रचारक धर्मा भगतजी पंचतत्व में विलीन

सुमेरपुर निवासी भगतजी ने देश को लाखों लोगों को धर्म का मार्ग दिखाया

जयपुर | 12 जून, 2021


श्रीमद्भगवतगीता के जीवन संदेश को लोगों के जीवन में उतारनेवाले प्रख्यात धर्म प्रचारक धर्मा भगतजी आज पंचत्व में विलीन हो गए। राजस्थान के पाली जिले के सुमेरपुर कस्बे में 11 जून की शाम उन्होंने अंतिम सांस ली। जवाई नदी के तट पर आज दोपहर मंत्रोच्चार के बीच परंपरागत धार्मिक विधान से उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। वे 83 वर्ष के थे। देश की राजधानी दिल्ली, सहित जोधपुर, अजमेर, ब्यावर एवं मारवाड़ - मेवाड़ इलाके में उनका खासा सम्मान था। राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत एवं नीरज डांगी सहित राजस्थान में विपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री व पाली के सांसद पीपी चौधरी, सुमेरपुर के विधायक जोराराम कुमावत व सिरोही के विधायक संयम लोढ़ा एवं विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़े कई प्रमुख लोगों धर्माभगतजी के निधन पर संवेदना व्यक्त की है।    

10.6.21

उत्तर प्रदेश भाजपा में अंदरूनी अदावत का खुला एक और मोर्चा

Krishan pal Singh-
    
उत्तर प्रदेश में भाजपा से जुड़ी सनसनी का अंत अभी भी नहीं हुआ है। अपने खिलाफ उबरे सभी अनिष्ट ग्रहों को शांत कर लेने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अंत फला सो सब भला की तर्ज पर टाइम्स आफ इंडिया को दिये इंटरव्यू में एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के प्रति वफादारी की कसमें खायी जिससे लगा कि उनकी दूरियां अब पट जायेगी लेकिन लगता है कि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने अभी उन्हें शह देने के खेल को विराम नहीं दिया है। कांग्रेस के दिग्गज युवा नेता जितिन प्रसाद को अचानक भाजपा में शामिल कर लिया गया। प्रकट तौर पर तो इसे कांग्रेस की रही सही नीव भी धसका देने का उपक्रम घोषित किया जा रहा है लेकिन सयाने यह कह रहे हैं कि इसके निहितार्थ कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना के बतौर समझे जाने चाहिए।

'मौत की प्रयोगशाला' बनकर रह गया कोरोना का इलाज

charan singh rajput-

आगरा पारस अस्पताल में कोराना के गंभीर मरीजों को मारने के लिए जो माकड्रिल किया गया उससे स्पष्ट हो चुका है कि कोरोना महामारी को डॉक्टरों ने एक प्रयोगशाला के रूप में लिया। कोरोना मरीजों के साथ लगातार प्रयोग किये गये। जगजाहिर है कि मॉकड्रिल किसी आने वाले संकट से निपटने के लिए किया जाता है। पारस अस्पताल में तो मरीजों क जान लेने के लिए यह मॉकड्रिल किया गया मतलब संकट को और बढ़ाने के लिए। मोदी सरकार और भाजपा शासित प्रदेश सरकारों ने अपने भोंपू मीडिया के माध्यम से देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि  इन राज में आंख, कान, दिमाग सब बंद रखो। बस जो बोला जाए उसको सुनो और उस पर अमल करो। यही वजह है कि पढ़े लिखे समाज में जो पेशा विज्ञान की देन है उस पेशे से जुड़ा डॉक्टर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में यह कहते हुए सुनाई पड़ रहा है कि 'दिमाग मत लगाओ और मॉकड्रिल कर दो। इससे हम समझ जाएगा कि कौन मरेगा और कौन नहीं। जिस मरीज को आक्सीजन की जरूरत पड़ी उसके लिए पांच मिनट आक्सीजन रोकने का मतलब पांच मिनट सांस रोकना है। वह भी तब जब मरीज को सांस लेने में दिक्कत महसूस हो री हो। मतलब गंभीर मरीजों की हत्या कर देना। जिस अस्पताल में मरीज जिंदगी मांगने गया उस अस्पताल ने उसे मौत दे दी। मॉकड्रिल के इस खेल में जिन 22 मरीजों ने छटपटाते हुए दम तोड़ा है। इनकी हत्या का जिम्मेदार न केवल अस्पताल प्रबंधन और उसके डॉक्टर हैं पर बल्कि शासन और प्रशासन भी है। आखिर एक निजी अस्पताल ने मरीजों की जान लेने का इतना बड़ा दुस्साहस कर लिया ?

आज की राजनीति के भस्मासुर बनते जा रहे हैं मोदी!

CHARAN SINGH RAJPUT-

अपनी अति महत्वाकांक्षा और जनता को धोखे में रखने की गलतफहमी पाले बैठे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश का तो बंटाधार कर ही दिया अब भाजपा के लिए भी भस्मासुर बनने जा रहे हैं। अपने सात साल के कार्यकाल में मोदी ने जो चाहा वह किया। मोदी ने औपचारिकता के लिए सलाह-मशविरा के लिए बैठकें जरूर की पर उनका हर निर्णय उनका अपना ही रहा। चाहे नोटबंदी, रही हो, जीएसटी रही हो, धारा 370 का हटाना हो, राम मंदिर निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट से फैसला दिलवाना हो, कोराना काल में वैक्सीन का विदेश भिजवाना हो सब मोदी के मनमानी के निर्णय रहे हैं। केंद्र सरकार या फिर भाजपा के संगठन में उन्होंने जो चाहा वह किया। भाजपा पर एकछत्र राज करने वाले नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को साइड लाइन करने के लिए अब भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस से पंगा ले लिया है, जो उन्हें भारी पडऩे वाला है। यह भी जमीनी हकीकत है कि नरेंद्र मोदी अपने स्वभाव के अनुकूल इतनी जल्दी हार नही मानने वाले हैं। ऐसे में आरएसएस और नरेंद्र मोदी की टीम का टकराव योगी आदित्यनाथ को मजबूती देगा या फिर भाजपा को पतन की ओर ले जाएगा ? वैसे भी भाजपा के समर्थक योगी आदित्यनाथ को मोदी का विकल्प मानने लगे हैं।

8.6.21

संघी नेतृत्व में भारत को आज फिर से गुलामी के दिनों की तरफ ढकेला जा रहा है!

Shyam Singh Rawat-

सन् 1857 की क्रांति आज भी प्रासंगिक है!

ब्रिटिश शासन काल में भारत की जैसी दुर्दशा बना दी गई थी, कमोवेश संघी नेतृत्व में आज भारत को बड़ी चतुराई से उसी राह पर धकेला जा रहा है। इसे एक ओर 1943-44 में संघी श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा बंगाल में खाद्यान्न का कृत्रिम अभाव पैदा कर उसे विदेश भेजने और उसके कारण वहां 30 लाख लोगों को भूख से तड़पते हुए जान गँवाने पर मजबूर कर देने की ऐतिहासिक घटना के संदर्भ में व्याख्यायित किया जा सकता है, तो दूसरी तरफ सरकारी आतंक के जरिए लोगों की आवाज दबाने की वर्तमान कुत्सित मानसिकता के माध्यम से सरलतापूर्वक समझा जा सकता है।  

अपने हठयोग में सफल रहे योगी!


कृष्णमोहन झा-

पश्चिम बंगाल  चुनावों में सत्ता हासिल करने का सुनहरा स्वप्न बिखर जाने के बाद भारतीय  जनता पार्टी ने अब अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए  अभी से कवायद शुरू कर दी है। यद्यपि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए अभी आठ माह का समय बाकी है परंतु भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को अभी से यह चिंता सताने लगी है कि  राज्य की योगी सरकार की कार्यप्रणाली से नाराज़  मंत्रियों और पार्टी विधायकों की अभी से मान मनौव्वल नहीं की गई तो आठ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में  उसे  2017 की  शानदार जीत का इतिहास दोहराने में मुश्किलों का सामना कर पड़ सकता है।  गत विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत के साथ दो दशकों के बाद राज्य की   सत्ता हासिल करने वाली भाजपा का अभी से चुनाव की तैयारियों में जुट जाना यही संकेत देता है कि उत्तर प्रदेश में सत्ता और संगठन के अंदर सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है।

7.6.21

अचीवर्स जंक्शन पर मनाया गया डॉ. प्रणयी जन्मशती समारोह

दुनिया के तमाम देशों के विभिन्न क्षेत्र में उपलब्धि प्राप्त करने वाली शख्सियत पर कार्यक्रम करने वाले चैनल अचीवर्स जंक्शन ने आज दिनांक 05 जून, 2021 को संस्कृत, प्राकृत, हिंदी और भोजपुरी के निष्णात आचार्य, कवि - लेखक, शिक्षाविद् , ' पिया के गाँव ' जैसी सुपर हिट फिल्म के गीतकार स्व. ( डॉ. ) रामनाथ पाठक  ' प्रणयी ' का जन्मशती समारोह मनाया। इस कार्यक्रम में देश के कोने-कोने के साहित्यकारों, फिल्मकारों, कलाकारों और डॉ. प्रणयी के परिजनों ने  भाग लिया।  चैनल के निदेशक मनोज भावुक ( दिल्ली ) के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में डॉ. ब्रज भूषण मिश्र ने डॉ. प्रणयी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि हिंदी-संस्कृत, भोजपुरी और पॉली भाषा में डॉ. प्रणयी की दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हैं। फिल्म समीक्षक मनोज भावुक ने उनके भोजपुरी फिल्मी दुनिया से जुड़ाव के बारे में बताया। भावुक ने बताया कि  ‘’ आँख से आँख मिलिके जे चार हो गइल, साँच मानऽ जिनिगिया हमार हो गइल ‘’, …‘ पहिले पहिल हम अइलीं गवनवाँ, देखली डीजल गाड़ी हो दिलवर जानी’ या ‘ जुग-जुग जीयसु ललनवाँ’ भवनवाँ के भाग जागल हो, ललना लाल होइहें कुलवा के दीपक मनवाँ में आस लागल हो’ और ए डाक्टर बाबू बताईं दवाईं... ये सारे गीत  सबने सुने हैं. लेकिन इन गीतों के गीतकार डॉ. प्रणयी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। 1985 की सुपर हिट भोजपुरी फिल्म ‘ पिया के गाँव’ के इन गीतों को संगीत दिया था चित्रगुप्त जी ने. प्रणयी जी ने फिल्म पिया निरमोहिया का भी टाइटल सांग लिखा था.

कोरोना काल में भी नहीं सुधर रहे अस्पतालों के संचालनकर्ता, वसूल रहे मनमानी फीस

देश में कोरोना की दूसरी लहर के बीच डॉक्टरों, पुलिसकर्मियों और फ्रंट लाइन वर्कर्स द्वारा दिया गया योगदान सराहनीय है. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बेहतरीन तालमेल के चलते देश ने काफी हद तक इस महामारी पर काबू पा लिया है. बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मन की बात के संस्करण में भी डॉक्टरों की उपलब्धि पर बात की गई. इस दौरान पीएम मोदी ने डॉक्टरों, नर्सों, मेडिकल स्टाफ के कार्यों की न सिर्फ तारीफ़ की, बल्कि उनके कार्यों को भी सराहा।

4.6.21

विपक्ष के तीखे तेवरों को ‘कुंद’ करने के लिए बीजेपी की आक्रमक नीति

स्वदेश कुमार,लखनऊ

     लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में पुनः वापसी के लिए ‘मिशन-2022’ पर काम शुरू कर दिया है। एक तरह से अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए केन्द्र ने कमान अपने हाथों में ले ली है। आलाकमान के  के कई बड़े नेता यूपी आकर संगठन और सरकार की ऊपर से नीचे तक नब्ज टटोल रहे हैं, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि नब्ज टटोलते समय सरकार या संगठन की कोई कमजोरी विरोधियों के हाथ नहीं लग जाए। जिससे जनता के बीच योगी सरकार को लेकर किसी तरह का गलत मैसेज जाए। इसी को ध्यान में रखकर बीजेपी आलाकमान संभवता योगी सरकार की कैबिनेट  में कोई बड़ा फेरबदल नहीं करेगी ? लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि सत्ता विरोधी लहर को थामने के लिए आलाकमान द्वारा कुछ किया ही नहीं जाएगा। आलाकमान ने जो रणनीति बनाई है उसके अनुसार विरोधी दलों के नेता जितनी तेजी से योगी सरकार के खिलाफ हमलावर होंगे उसकी दुगनी तेजी से उन्हें पार्टी और सरकारी स्तर से जबाव दिया जाएगा, मगर मर्यादा का भी ध्यान रखा जाएगा। विरोधियों के आरोपों को तर्कपूर्ण तरीके से ‘काटा’ जाएगा।

डाक्टर बनाओ ड्राकुला नहीं... मंजूर करो इस्तीफे

anand purohit-
    

मानवता और मानव धर्म को बचाओ, मंजूर करो इस्तीफें।.......
डाक्टर बनाओ ड्राकूला नहीं......

खबर ये है कि इंदौर के लगभग 480 डॉक्टर सहित प्रदेश के सभी जूनियर डॉक्टर्स ने सामूहिक इस्तीफा सौंपा..... *गर सरकार में गैरत है तो ऐसे बेगैरत और गैरजिम्मेदारों का इस्तीफा तुंरत मंजूर कर लेना चाहिए यही नहीं इनसे वसूली की जानी चाहिए जो इनकी इस उच्च व्यावसायिक शिक्षा पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी व्यय हुआ है......