सत्य पारीक-
उपरोक्त शब्द हैं जाने माने पत्रकार खुशवंत सिंह के जिन्होंने वर्षो पहले लगभग 1986 में जयपुर के बाजारों में स्कूटर पर रात्रि भृमण करते हुए कहे थे , मैं सौभाग्य से उनका दुपहिया वाहक था ,आज ये वाकिया मुझे अचानक ही विख्यात न्यूज पोर्टल भड़ास पर की गई एक महिला एंकर साक्षी जोशी की टिप्पणी देख कर स्मरण हो उठी , जिनके दो धारे कटाक्ष का शीर्षक था " ममता वॉशरूम कैसे जाती है " यानी साक्षी को कवरेज के दौरान वाशरूम की जरूरत हुई होगी , तभी उन्होंने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता पर ऐसी टिप्पणी कर शासन की कमी के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शौचालय निर्माण कार्यक्रम पर कटाक्ष किया , जो वाशरूम की जरूरत वाली महिला एंकर का दुख भी कहा जा सकता है , अब शौचालय प्रेमी मोदी इस समस्या पर कितना ध्यान देंगे ये समय बतायेगा
वैसे अपने अनुभव की बात बता देता हूं जो मैंने बंगाल में देखा है सिर पर बोझ उठाए महिला जहां " चाह वहां राह " के फार्मूले को अपनाते हुए लघु शंका की आवश्यकता होते ही बीच बाजार बैठ कर अपनी जरूरत पूरी कर लेती है , लघुशंका के मामले में पुरूष बहुत बदनाम है उसे जब जरूरत होती है तो वह किसी भी दीवार का या गन्दगी बिखरी देख अपनी पेंट की चेन खोल लेता है , प्रायः पूरे देश मे देखा जा सकता है , खासतौर से महिलाओं की बात करें तो लघुशंका के लिए अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग फार्मूले हो सकतें हैं , राजस्थान के गांवों में तो एक महिला आगे खड़ी हो जाती है दूसरी महिला अपनी आवश्यकता पूरी कर लेती है ये फार्मूला महिलाओं के लिए तभी संभव है जब उनकी वेशभूषा साड़ी या घाघरा है आजकल की आधुनिक जीन्स व सलवार सूट वाली महिलाओं के लिए लघुशंका का मसला हल करना दुर्लभ होता है ।
कृषि प्रधान , मजदूर प्रदान देश होने के कारण 75 प्रतिशत जनता गांवों खेतों से लेकर सड़क खलियान खदान इंट भटों पर निवास झोपड़ियों में निवास करती हैं जहां पर वाशरूम की बात तो मिलों दूर है महिलाओं की डिलीवरी भी चारों तरफ कपड़ा तान कर करा दी जाती है , खुले में सोना नहाना शौच जाने वाली इस जनता के बारे में कौन सोचता है , लघुशंका के अलग-अलग नाम है एक दफा गृह मंत्री रहे ज्ञानी जैल सिंह जयपुर के बाजार आए थे उन्हें जब आवश्यकता हुई तो बोले भई नाडा कित्थे खोले , उनके इर्द गिर्द वाले सारे लोग सोच में पड़ गये तभी उनके सहायक ने आयोजकों से कहा कि सरदार जी को पेशाब जाना है ।
इस जमाने में तो नगरों में सुलभ शौचालय बनाये जा चुके हैं भीड़ भरे बाजारों में भी शौचालय का निर्माण किया जा रहा है , पर्यटन स्थलों पर भी शौचालय बना दिये हैं लेकिन छोटे नगरों में ये सुविधाएं उपलब्ध नहीं है , जहां भी नेताओं की सभाएं होती हैं वहां अस्थायी शौचालय निर्माण किये जातें हैं तथा जनता के लिये चलते फिरते शौचालय की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं , मोदी शौचालयों की दशा बहुत बुरी है सार्वजनिक स्थान पर निर्मित इनमें पानी नहीं है स्थान स्थान पर शौचालयों के अंदर बाहर भद्दी भद्दी भाषा में गालियां व सन्देश लिखें देखें जातें हैं ।
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