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21.6.21

कहीं आत्महत्याओं की घटनाएं न ले लें महामारी का रूप

CHARAN SINGH RAJPUT-

देश में कोरोना की महामारी से अभी छुटकारा नहीं पाया जा सका है कि कोरोना कहर  और सरकारों की विफलता का लोगों की जिंदगी पर यह असर पड़ा है कि अब आत्महत्या महामारी का रूप लेती जा रही है। महानगरों में आत्महत्या करने की घटनाओं ने अचानक विकराल रूप ले लिया है। कोई आर्थिक तंगी तो कोई कोरोना के साइड इफेक्ट से तो कोई कर्जे की वजह से आत्महत्या कर ले रहा है। आर्थिक  रूप और मानसिक रूप से कोरोना महामारी का गांवों पर भले ही कम असर पड़ा हो पर महानगरों में हालात बद से बदतर हो रहे हैं। हर कोई अपना रोना रो रहा है। पैसे के लेने को लेकर विवादों ने अचानक बड़ा रूप ले लिया है। चाहे नौकरीपेशा आदमी हो, व्यापारी हो या फिर दूसरे पेशों को अपनाने वाला, हर कोई परेशान नजर आ रहा है। कोरोना की तीसरी लहर के अंदेशे ने लोगों को और निराशा में लाकर खड़ा कर दिया है।


महानगरों की स्थिति यह है कि देश की राजधानी के जिस ढाबे के मालिक ने सोशल मीडिया पर छाने के बाद रातों-रात न केवल प्रसिद्धि पाई बल्कि उसे आर्थिक मजबूती भी मिली। ऐसा क्या हो गया कि इस ढाबे के मालिक कांता प्रसाद ने आत्महत्या करने की कोशिश की। उत्तर पूर्वी दिल्ली के करावल नगर के एक शख्स ने ब्लेड से हमला कर अपनी पत्नी की निर्मम हत्या कर खुद फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली। करावल नगर में रहने वाला 56 वर्षीय राजवीर सब्जी बेचता था। पूर्वी दिल्ली के पांडव नगर थाने में तैनात सब इंस्पेक्टर ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली है।  उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के बीजानगर गांव में एक युवक ने धारदार हथियार से अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद खुद भी आत्महत्या कर ली। मध्य प्रदेश के भोपाल शाहपुरा इलाके में पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार के घर में 38 वर्षीय महिला ने फांसी लगा ली। महिला अंबाला की रहने वाली है। बरामद सुसाइड नोट में बताया गया है कि महिला जीवन में सेटल होना चाहती थी लेकिन न हो सकी।

वैसे भी भारत में आत्महत्या की घटनाओं के महामारी का रूप लेने की आशंका गत साल भी जताई जा चुकी है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2019 के दौरान देश में 1.39 लाख लोगों ने आत्महत्या कर ली।  इनमें से 67 प्रतिशत लोग 18 से 45 साल की उम्र के बीच थे। मतलब युवा। ऐसा भी नहीं है कि अनपढ़ और कम पढ़े लिखे लोग ही आत्महत्या जैसा कायाराना कदम उठा रहे हैं। जान देने वालों में अब पढ़े-लिखे लोगों की तादाद भी बढ़ रही है।
देश में कोरोना से मरने वाले लोगों के आंकड़ों को ध्यान में रखें तो आत्महत्या की घटनाएं कोरोना के मुकाबले ज्यादा गंभीर महामारी के तौर पर उभरी हैं। देश के महानगरों में तो परिस्थिति बहुत चिंताजनक है। केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से तमाम हेल्पलाइन नंबर जारी होने और जागरुकता अभियान चलाने के बावजूद हालात सुधरने की बजाय लगातार गंभीर होते जा रहे हैं। इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी अपनी एक रिपोर्ट में भारत को ऐसे शीर्ष 20 देशों की सूची में रखा था, जहां सबसे ज्यादा आत्महत्याएं जैसी घटनाएं होती हैं। विडंबना यह है कि भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति इसके मुकाबले बेहतर है। देश के पूर्वोत्तर इलाके में स्थित असम, त्रिपुरा और सिक्किम में भी आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़े हैं।

एनसीआरबी की ओर से हाल में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2019 में हर चार मिनट में किसी न किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। इनमें से 35 प्रतिशत ऐसे थे जो अपना कारोबार करते थे। इनमें 17 प्रतिशत लोगों ने मानसिक बीमारी झेलने की बजाय मौत का रास्ता चुनना बेहतर समझा। आंकड़ों से यह बात सामने आती है कि सेकेंडरी स्तर तक पढ़ाई करने वाले लोग ज्यादा आत्महत्या कर रहे हैं। युवाओं में आत्महत्या की दर वर्ष 2018 के मुकाबले चार प्रतिशत बढ़ गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश के प्रमुख महानगरों, चेन्नई, बंगलुरू, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता में ऐसे मामलों में वृद्धि हुई है। भारत में 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में केरल के कोल्लम में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा 43.1 प्रति लाख है। इसके बाद 37.8 व्यक्ति प्रति लाख के साथ पश्चिम बंगाल के आसनसोल का स्थान है। महानगरों में चेन्नई में सबसे ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की।

एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में पारिवारिक कलह आत्महत्या की प्रमुख वजहों में शामिल है। नशीली दवाओं और शराब के नशे की लत की वजह से भी ऐसे मामलों में तेजी आई है। वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार, आत्महत्या करने वालों में 15.4 प्रतिशत गृहिणियों के अलावा 9.1 प्रतिशत नौकरीपेशा लोग थे।

आत्महत्या के मामलों में पड़ोसी देशों के मुकाबले भारत की स्थिति बेहद खराब है।  भारत पहले दुनिया के शीर्ष 20 देशों में शुमार था और अब 21वें नंबर पर है। यहां से बेहतर स्थिति पड़ोसी देशों की है। डब्ल्यूएचओ की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या की दर में श्रीलंका 29वें, भूटान 57वें, नेपाल 81वें, म्यांमार 94वें, चीन 69वें, बांग्लादेश 120वें और पाकिस्तान 169वें पायदान पर हैं. नेपाल और बांग्लादेश की स्थिति जस की तस है।

एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2019 में देश में आत्महत्या करने वालों में से 74,629 यानी 53.6 प्रतिशत लोगों ने गले में फंदा डाल कर अपनी जान दे दी। इस रिपोर्ट से यह तथ्य भी सामने आया है कि बीते साल के दौरान दैनिक मजदूरी करने वाले 32,500 लोगों ने भी आत्महत्या कर ली। वह स्थिति तब थी जब कोरोना की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां नहीं गई थीं। ऐसे में वर्ष 2020 के आंकड़ों के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या आत्महत्या किसी परेशानी का हल है ? निश्चित रूप से कोरोना महामारी में लोग आर्थिक और मानसिक रूप से टूट चुके हैं। रोजी-रोटी का बड़ा संकट लोगों के सामने खड़ा हो गया है पर हर समस्या का हल होता है। देखने में आता है कि आत्महत्या से तो परेशानी और बढ़ जाती है, जिस परिवार का दारोमदार जिस व्यक्ति पर होता है यदि वही आत्महत्या कर ले तो उस परिवार पर तो परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ता है।

ऐसा भी नहीं है कि आत्महत्या के सभी मामले आर्थिक तंगी के चलते हुए हैं। ऐसे कितनी मामले हैं कि सब कुछ होते हुए भी लोग आत्महत्या कर ले रहे हैं। ऐसा लोगों की जिंदगी में क्या हो रहा है कि यह कायराना कदम उठाने को मजबूर हो जा रहे हैं। कहावत है कि संघर्ष ही जीवन है तो परेशानियों से लड़ो और अपने को मजबूत करो। अक्सर देखने में आता है कि समझौता करना लोगों के व्यवहार में तब्दील होता जा रहा है। जिंदगी में समझौते पर समझौते करने वाला आदमी अंदर से कमजोर होता जा रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि जरा सी परेशानी में आदमी टूट जा रहा है और गलत कदम उठा ले रहा है। स्वार्थ की जिंदगी ने भी लोगों को मानसिक रूप से कमजोर किया है। हमें यह समझना होगा कि गलत बात का विरोध आदमी को मजबूत और समझौता कमजोर बनाता है। आदमी की जिंदगी में आने वाले परेशानियां जीवटता प्रदान करती हैं। अंदर से मजबूत व्यक्ति एक से बढ़कर एक परेशानी से निपट लेता है। समझौते पर समझौते करने वाला व्यक्ति थोड़े से भी झटके को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं रह पाता है।

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