Urmilesh-
हमारे वरिष्ठ साथी और हिंदी के सुपरिचित लेखक-कवि-संपादक Suresh Salil का आज जन्मदिन है. उनका यह जन्मदिन इस बार खास है क्योंकि वह 79 पूरा कर अपने जीवन के 80 वें वर्ष में प्रवेश कर गये हैं. सुरेश जी से मेरी पहली मुलाकात कहां हुई, ये तो याद नहीं पर निश्चय ही वह सन् 1978-79 का वर्ष रहा होगा, जब मैंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एम.फिल्./पीएच.डी. के लिए दाखिला लिया था.
विश्वविद्यालय परिसर के बाहर भी दिल्ली में हम लोगों का एक 'छोटा सा संसार' था. इसमें बहुत सारे जनपक्षधर लेखकों, कवियों, बुद्धिजीवियों, नाट्यकर्मियों, अध्यापकों, पत्रकारों और कुछ ठेठ राजनीतिक कार्यकर्ताओं की मौजूदगी थी. ऐसे लोगों मिलने-जुलने के तीन चार अड्डे थे. इनमें जो किसी दफ़्तर में काम करते थे या किसी क्षेत्र विशेष के 'प्रोफेशनल्स' थे, वे तो अक्सर ही मिलते-जुलते रहते थे लेकिन हम जैसे छात्र सप्ताह या महीने में एक या दो बार ऐसे अड्डों पर चले आते थे. कभी किसी मीटिंग के लिए या कभी यूँ ही मेल-मुलाक़ात के लिए !
मुलाकात के कुछ प्रमुख अड्डे थे: मोहन सिंह प्लेस स्थित Indian Coffee House, मंडी हाउस में कोई जगह या फिर हेली रोड स्थित एक बहुमंजिला भवन के सामने की चाय दुकान. इस भवन के नीचे वाले हिस्से में एक विज्ञापन एजेंसी का दफ़्तर था, जहां हम लोगों के एक अन्य वरिष्ठ साथी आनंद स्वरुप वर्मा बैठा करते थे. कभी-कभी हम लोग जंतर-मंतर के पास भी मिल लेते थे. बाद के दिनों में सुरेश जी ने 'युवकधारा' नामक पत्रिका के संपादन का कार्यभार संभाला. उसका दफ़्तर था-वेलिंगटन क्रिसेन्ट के एक बंगले के पिछवाड़े. उस इलाक़े को अब मदर टेरेसा मार्ग या क्रिसेन्ट कहा जाता है. यहां भी हम सबका आना-जाना चलता रहा.
मैं साहित्य-समीक्षक नही हूं. समकालीन हिंदी कविता या कहानी आदि का नियमित पाठक भी नहीं हूं. ज्यादातर हिंदी समीक्षकों ने सुरेश जी की कविताओं और उनके अनुवादों की काफी प्रशंसा की है. दुनिया के अनेक महानतम कवियों की रचनाओं के उनके अनुवाद और कुछ कवियों पर उनके लंबे आलेखों को काफी पसंद किया गया. उनकी कुछ कविताएं मैने भी पढ़ी और पसंद की हैं.
पर मैने सुरेश जी को एक संपादक और शोधकर्ता के तौर पर ज्यादा जाना, देखा और पढ़ा है. वह एक सुयोग्य, समर्थ और बहुत मेहनती संपादक रहे हैं. कुछ साल पहले उन्होंने हिंदी के बड़े संपादक गणेशशंकर विद्यार्थी पर बहुत जरूरी काम किया. Anamika Publishers ने वह किताब छापी है. उस किताब को पढ़कर मैने 'जनसत्ता' के लिए उसकी एक संक्षिप्त समीक्षा भी लिखी थी. जहां तक याद आ रहा है, विद्यार्थी जी पर एक अन्य पुस्तक का उन्होंने संपादन भी किया है. अपने वरिष्ठ साथी सलिल जी को जन्मदिन की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं.
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