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31.7.18

मैं बिकाऊ मीडिया हूं...

-मयंक जोगी- 

आज मैं जिस जगह हूं वो वेश्याओं का कोठा तो नहीं है पर उस से कम भी नहीं है। मैं वेश्या तो नहीं पर उस से कम भी नहीं। मेरे प्यारे भाईयों,बहनों माताओं और पिता समान बुजुगों सभी को मेरा प्रणाम और प्यारे बच्चों को प्यार,.....मेरी आप से गुजारिश है.... आज तक मैंने आपसे कुछ नहीं मांगा....आज मैं आप सब से कुछ मांगना चाहती हूं .......मैं हर सुबह आपके घर आती हूं ....आपकी हर सुबह मुझी से शुरु होती है......हर सुबह मेरी सरहाना करते हो ....सुबह का नाश्ता करने के बाद आप जब ऑफिस जाते हैं....और दोपहर का खाना खाते समय जब आप अपने सहकर्मियों के साथ होते हो उस समय भी आप मेरे बारे में बातें करते हैं....अपने विचारों में मेरी प्रशंसा करते हैं.......तर्क –वितर्क करते हो और ऑफिस के काम से थक हार कर जब अपने घर आते हो....तो वहां भी मैं आपका इंतजार कर रही होती हूं......


आप अपने परिवार के साथ बैठ कर मेरी बातें करते हो....मेरी तारीफ करते हो....मुझे बहुत अच्छा लगता है........जिस सुबह मैं ना हूं वो सुबह आपको बेरंग सी लगती है ...एसा लगता है कि कुछ अधूरा है....कहीं कुछ कमी रह गई....और आगे ऑफिस में भी मैं हूं .....और दिमाग सन्न रह जाता है.....किसी काम मैं मन नहीं लगता आपका ....लगता हैं कहीं कुछ छूट गया ...और एसे ही जब शाम को मैं आपके घर भी ना मिलूं तो आपको लगता है कि जिंदगी अधूरी है ....मेरे बिना आपकी जिंदगी आपको अधूरी सी लगती है ....और आप बिना मैं भी अधूरी हूं मैं आपके परिवार कि एक सदस्य सी लगती हूं....जिस प्रकार परिवार का कोई सदस्य एक दिन ना दिखे तो आपका उस दिन किसी काम मैं दिल नहीं लगता ...उसी को याद करते रहते हैं ...एसे ही जिस दिन मैं ना हूं आप मुझे भी याद करते रहते हैं ....और मैं भी अपने आपको परिवार का सदस्य मानती हूं और इसी हक से आज आपसे कुछ मांगना चाहती हूं.....

अब आप ये सोच रहे होंगे कि मैं कौन हूं ..मैं मिडिया हूं ..आपकी मिडिया, आपके देश कि मिडिया, आपकी अपनी मिडिया ....आज मुझे आपकी जरुरत हैं....आप ने जब मुझे याद किया मैं वहां पहुंची ....खुशी के पल हो या गम कि घड़ी हमसे मिलकर एक साथ सांझा कि हर कदम आपके साथ रही हूं ....जहां खुशियों में आपके साथ मिलकर जश्न मनाया ...वहीं गम कि घड़ी में भी आपके साथ बैठ कर रोई....मैं मिडिया हूं ....मैं आजादी चाहती हूं इन गुलामी कि बेड़ियों से मुक्ति पाना चाहती हूं .....मैं आजादी की खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं ...कुछ लोग सरेआम मेरा सौदा करते हैं....मैं सरेबाजार बिकती हूं ...जिस के पास पैसे हैं वो हर आदमी मुझे पाना चाहता है .....बढ़ चढ़कर बोली लगती है मेरी .....किसी बंद कमरे में कभी नेता मेरा सौदा करते हैं ....

कभी मैं कारोबारियों के घर कि रौनक बनती हूं ....कुछ दलालों ने मुझे क्या से क्या बना दिया....हां मैं हूं मिडिया ....आपकी मिडिया ...आपके देश कि मिडिया ...अब मैं अपने बारे में आपको सब कुछ बताती हूं......समय कि मांग पर मेरा जन्म कुछ देश भक्तों के दिमाग से हुआ ...मैं बड़ी खुश थी जब मेरा जन्म हुआ ....मगर मेरी खुशी तब अधूरी रह गई ...जब मुझे पता चला कि मेरा देश गुलाम है....मैं भी गुलाम हूं ...मैं बिना किसी कि परवाह के देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी उस समय पूरा भारत देश में मेरे गिने चुने रक्षक थे ...उस समय मैंने हजारों बार लाठियां खाईं..गोलियों का शिकार बनीं मगर मेरे अंदर जो देश भक्ति थी ....वो कमजोर होने कि बजाए...गौरों कि लाठियों और बंदूकों से मैं और भी मजबूत हो गई...

मैं जलियावाला बाग हत्याकांड को देख मैं दहाड़े मार मार कर रोई...लाखों आजादी के दिवानों के खुन से अपनी धरती को लाल होते देखा .....मेरे आसूं थमने का नाम नहीं ले रहे थे ...मेरा कलेजा फटा जा रहा था ...मेरी हिम्मत को तोड़ने कि लाख कोशिश कि गई....मगर मेरा इरादा और पक्का होता चला गया .....जब मेरी भारत मां के 3 लालों को सरेआम फांसी दी गई....मेरा कलेजा मुंह को आ गया ....आँखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे ....मगर मैं ना थकी... ना हारी...और मैं दुखी आत्मा से अपना काम करती रही ..जब तक कि मेरा देश आजाद नहीं हो गया ....जब देश आजाद हुआ तब मैंने चैन कि सांस ली ...कि अब मैं आजाद हूं ..सब के साथ मैंने भी आजादी का जश्न मनाया ...मैं बहुत खुश थी ...सब ने मेरी बहुत तारीफ की ..मेरा मान सम्मान किया .....और मुझे देश का चौथा स्तंभ बना दिया....

अब मेरे उपर एक बड़ी जिम्मेवारी आ गई....अपने देश कि तरक्की करने कि ...मैं लग गई अपने काम में बिना किसी की परवाह किये। .. मगर उस समय मेरा कलेजा फट गया जब मुझे कहा गया की मुझे अब समाज या देश की सेवा नहीं करनी है बल्कि पैसा कामना है। मुझे कहा गया की भारत देश  की जनता तो पागल है ,बेवकूफ है वो नहीं समझेगी की तुम देश सेवा कर रही हो या हमारे लिए पैसा कमा रही हो। अब मै  क्या करती क्योकि मेरी डोर अब कुछ व्यपारियों के हाथ में थी। मै कुछ न कर सकी अपने देश के लोगो को ही आज भी बेवकूफ बनाती हु। मेरी कोख से इन व्यपारियों ने एक नाजायज बच्चे को जबरदस्ती जनम दिया गया और उसे नाम दिया गया पेड न्यूज़ का और यह बच्चा  हरामी है इस ने मेरी गरिमा को चकनाचूर कर दिया।

मेरे नाम का मतलब ही बिगाड़  कर रख दिया और जो मेरा सच्चा सिपाही मुझे बचाने की कोशिश करता है।उसे ये दलाल लोग या तो नोकरी से निकाल देते है या उसकी हत्या करवा देते है।   आज मेरे बहुत से दलाल है जो मेरी दलाली से लाखों  करोड़ कमा चुके है। पर फिर भी पता नहीं क्यों हर रोज, हर मिनट, हर सेकेण्ड मेरा सौदा  होता है। इन दलालो की पैसा कमाने की हवस काम होने की बजाये बढ़ती ही जा रही है। आज में जिस जगह हु वो वेश्याओ का कोठा तो नहीं है पर उस से कम भी नहीं है। मै वेश्या तो नहीं पर उस से कम भी नहीं।

लेखक मयंक जोगी कई मीडिया संस्थानों में उच्च पद पर कार्य कर चुके हैं.

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