कृष्णमोहन झा
लोकसभा में मोदी सरकार के विरुद्ध पेश अविश्वास प्रस्ताव भारी बहुमत से गिर गया। इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सदस्य राहुल गांधी ने फ़्रांस से हुए राफेल सौदे को लेकर सरकार पर तीखा हमला किया था। राहुल ने रक्षा मंत्री पर प्रधानमंत्री के दबाव में आकर सदन को गुमराह करने तक के आरोप लगाए। इसके जवाब में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि फ़्रांस के साथ संधि की शर्तों के कारण इस सौदे की ज्यादा जानकारी वह नहीं दे सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह संधि 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार के समय की गई थी, इसलिए कांग्रेस को सरकार पर आरोप लगाने का नैतिक अधिकार ही नहीं है। राहुल गांधी के आरोपों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गंभीरता से लेते हुए तीखे लहजे में कहा कि देश की सुरक्षा के मुद्दों पर ऐसा खेल ठीक नहीं है तथा बिना सबूत चिल्लाने की राजनीति देशहित में नहीं है।
राफेल सौदे के आरोपों को लेकर कांग्रेस अब भी अपने रुख पर कायम है। मतलब लोकसभा में भले ही अविश्वास प्रस्ताव गिर गया हो लेकिन कांग्रेस का अविश्वास सरकार पर अब भी कायम है। राहुल तो लंबे समय से राफेल सौदे पर सवाल खड़े कर रहे है। ऐसा लगता है कि जिस तरह बोफोर्स को लेकर राजीव के खिलाफ विपक्ष ने संदेह का वातावरण निर्मित किया था, ठीक उसी तरह का वातावरण कांग्रेस राफेल सौदे को लेकर मोदी सरकार के विरुद्ध निर्मित करने की तैयारी कर चुकी है। राहुल गांधी शायद इस वातावरण को आगामी लोकसभा चुनाव तक बनाए रखना चाहते है, ताकि इसे बोफोर्स की तरह बड़ा मुद्दा बनाया जा सके। यहां यह कहना भी सही होगा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर मोदी सरकार को असहज करने में जरूर सफल हुई है। वह इस मामले में तनिक भी पीछे हटने को तैयार नहीं है ,इसलिए भी यह मामला जल्दी ठंडा होते नहीं दिख रहा है।
इस मामले में सरकार का पक्ष मजबूती से रखने की जिम्मेदारी रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने संभाली है, इसलिए कांग्रेस की और से भी उनके नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के रक्षा मंत्री रहे एके एंटोनी ने भी मोर्चा संभाल लिया है। एंटोनी ने गत दिवस एक प्रेस कांफ्रेस में कहा कि निर्मला सीतारमण ने जिस समझौते की गोपनीयता का हवाला देते हुए राफेल की कीमत के बारे में सदन को जानकारी देने से इंकार किया है, ऐसी कोई बाध्यकारी शर्त है ही नहीं। एंटोनी का कहना है कि 2008 में फ़्रांस के साथ डील पर हस्ताक्षर हुए ही नहीं थे। राफेल तो 6 कंपनियों के साथ दावेदार था एवं 2012 में खुली निविदा के बाद ही इसे खरीदना तय हुआ था। एंटोनी ने यह भी कहा कि फ़्रांस ही नहीं रूस और अमेरिका के साथ भी ऐसे गोपनीय समझौते हस्ताक्षरित हुए थे परन्तु रक्षा मंत्री के रूप उन्होंने 2008 के बाद एडमिरल गोर्शकोव ,सुखोई जेट, कावेरी इंजन व मिराज विमानों की कीमत संसद को बताई थी। इसलिए सरकार इस सौदे के बारे में जितना छुपाने की कोशिश कर रही है इससे उतना ही संदेह गहराता जा रहा है। कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया है कि फ़्रांस ने राहुल गांधी के आरोपों का कोई खंडन किया ही नहीं है। इधर इस सौदे के बारे में सरकार का दावा है कि समझौते के कारण 58 हजार करोड़ के इस सौदे का ब्रेकअप नहीं बताया जा सकता है। हालांकि रक्षा राज्य मंत्री नवंबर 2016 में लोकसभा में एवं मार्च 2018 में इस विमान की कीमत 670 करोड़ रुपए पहले ही बता चुके है।
सौदे पर कांग्रेस के आरोपों पर वरिष्ठ मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि सभी आरोपों की सच्चाई का खुलासा संसद में हो चुका है इसलिए कांग्रेस अब इस मामले को जबरन तूल देने की कोशिश न करे । हालांकि सरकार कुछ भी कहे लेकिन मामला अब तूल पकड़ता नजर आ रहा है। भाजपा के चार सांसदों ने जहां सदन में दिए गए राहुल के बयांन को गुमराह करने वाला बताते हुए विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है वही इसके जवाब में कांग्रेस के आनंद शर्मा ने भी पीएम के विरुद्ध लोकसभा में विशेषाधिकार हनन के नोटिस की घोषणा कर दी है।
राफेल सौदे को लेकर धुंध का जो वातावरण कांग्रेस निर्मित कर रही है अब उसे साफ करने की जिम्मेदारी भी मोदी सरकार की है। कांग्रेस जिस तरह से इस मुद्दे पर आक्रामक है उससे यह तो तय है कि पार्टी इसे हाथ से जाने नहीं देना चाहती है। सरकार के लिए यहां राहत वाली बात हो सकती है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस जितनी आक्रामक है उतना आक्रामक कोई भी विरोधी दल नहीं दिख रहा है। इसलिए यह भी सवाल उठना भी लाजिमी है कि आखिर विरोधी दल इस मामले में कांग्रेस के साथ खड़े क्यों नहीं दिखाई दे रहे है। इन विरोधी दलों को अगर राफेल सौदे में शक की कोई गुंजाइस नजर आती तो वे भी सदन में सरकार के खिलाफ निशाना लगाने में पीछे नहीं हटते। इसलिए कांग्रेस इस मुद्दे को बोफोर्स की तरह इस्तेमाल करने की जो तैयारी कर रही है उसमे दूसरे दलों का साथ अभी तो उसे मिलता दिख नहीं रहा है।
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