नये दौर में नये सिरे से सामाजिक न्याय आंदोलन को आगे बढ़ाने हेतु 7 अक्टूबर को बिहार की राजधानी पटना में राज्य के दर्जनों जिले के सामाजिक न्याय के लिए संघर्षशील संगठनों के प्रतिनिधियों व बुद्धिजीवियों का राज्यस्तरीय सम्मेलन हुआ. सामाजिक न्याय के नाम पर चल रही समर्पणकारी राजनीति से इतर पहलकदमी की जरूरत महसूस करने वाले कार्यकर्ताओं- बुद्धिजीवियों व छात्र-नौजवानों के सम्मेलन चर्चित वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया मुख्य वक्ता के बतौर मौजूद थे.
नये दौर में नये सिरे से सामाजिक न्याय आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए बिहार में अब-सब मोर्चा, न्याय मंच, सोशलिस्ट युवजन सभा, वंचित समाज विकास मंच, जनसंसद, पीएसओ,सेवा स्तंभ,अतिपिछड़ा समन्वय समिति,अंबेडकर-बुद्ध जनकल्याण केन्द्र, सम सोसाईटी अॉफ इंडिया,नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट सहित अन्य संगठनों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं व सामाजिक न्याय पक्षधर बुद्धिजीवियों के इस साझा पहल को पूरे राज्य में काफी समर्थन मिल रहा है.इन संगठनों की पहल से अब तक पटना, भोजपुर, बिहपुर और नवगछिया (भागलपुर), खगड़िया, सीवान, हाजीपुर, गया, नालंदा, सासाराम, राजगीर सहित कई स्थानों पर सामाजिक न्याय सम्मेलन आयोजित हुआ है. इस कड़ी में सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष का समग्र एजेंडा सूत्रबद्ध करने की दृष्टि से यह काफी महत्वपूर्ण सम्मेलन था. पटना के श्रीकृष्ण चेतना परिषद हॉल, दारोगा राय पथ में आयोजित सम्मेलन में आगे के अभियान व कार्यक्रम पर भी चर्चा की गई.
बैठक को संबोधित करते हुए चर्चित बुद्धिजीवी अनिल चमड़िया ने कहा कि पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को जायज ठहराते हुए इसे खत्म नहीं किए जाने की बात की है. भागवत ने अपने वक्तब्य में यह भी कहा कि आरक्षण को खत्म करने की बात इसका लाभ लेने वाला तबका ही करेगा. भागवत के इस बयान के निहितार्थ को समझने की जरूरत है. जबकि सच्चाई यह है कि आरक्षण दलितों-वंचितों के हाथ से तेजी से बाहर जा रहा है. कुछ सरकारी संस्थानों का ही इस दृष्टि से अध्ययन कर लिया जाए तो इसकी पूरी तस्वीर सामने आ जाएगी कि उन संस्थानों में बहुजनों का कितना प्रतिनिधित्व है. उन्होंने कहा कि आरएसएस का उद्देश्य राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैन्यीकरण करना रहा है. आरएसएस ने राजनीति के हिंदूकरण में लगभग सफलता प्राप्त कर ली है. फिलहाल देश में कोई ऐसी पार्टी नहीं बची है, जो राममंदिर बनने का विरोध कर सकता है. महज दिखावे का विरोध नहीं, प्रभावकारी विरोध कर सकने की स्थिति में आज कोई राजनीतिक दल नहीं है. आगे उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने राजनीति के दलितीकरण पर जोर दिया था. वे तमाम शूद्र जातियों और दलितों को राजनीति के केंद्र में लाने के लिए प्रयत्नशील रहे. यह देश बहुजनों का है, किन्तु पूरी शासन व्यवस्था पर कुछ लोगों का वर्चस्व कायम है.
अनिल चमड़िया ने कहा कि आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, वह पुनर्गठन का दौर है. बहुजन विरोधी शक्तियां लगातार अपने आपको पुनर्गठित कर रही हैं. किंतु बहुजनों की बात करने वाली शक्तियां पुनर्गठन को लेकर सजग नहीं हैं. यही कारण है कि बहुजन तबके से जाने वाला प्रतिनिधि उसी सिस्टम का अंग बन जाता है.पिछले दो-तीन दशकों से सामाजिक न्याय की पूरी धारा केवल आरक्षण पर जुबानी जमा खर्ची तक सीमित हो गई है.बहुजनों के नाम पर राजनीति करने वालों ने सामाजिक न्याय का कोई ढांचा बनाने पर जोर नहीं दिया.आज सामाजिक न्याय व सामाजिक बदलाव के नेताओं को आरएसएस के साथ-साथ बहुजन धारा भी देवता बनाने के षड्यंत्र में लगी है.
अनिल चमड़िया ने जोर देते हुए कहा कि आज सामाजिक न्याय की पूरी लड़ाई को नये सिरे से पुनर्संगठित किये जाने की जरूरत है. यह महज आरक्षण तक सीमित रहेगा तो आरक्षण को भी हम नहीं बचा पाएंगे. महज भीड़ बनकर सामाजिक न्याय की लड़ाई दूर तक नहीं जा पाएगी.सामाजिक न्याय का ढांचा विकसित करने की जद्दोजहद चलाते हुए हमें सामाजिक न्याय का समग्र प्रारूप सामने लाना होगा.बाबा साहब समानता की बुनियाद पर एक नया भारत बनाना चाहते थे, जिसमें जाति, वर्ण, धर्म, रंग, लिंग आदि किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा. हमें आज भी इसी लक्ष्य को लेकर बढ़ना होगा.
सामाजिक न्याय के एजेंडे पर अपने रचनात्मक सुझाव रखते हुए उन्होंने कहा कि बिहार से यह आवाज उठाने की जरूरत है कि जो निजीकरण का समर्थक है, वह आरक्षण विरोधी है. कैपिटेशन शुल्क के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में होने वाले नामांकन का भी पुरजोर विरोध करने की वकालत की. उसी प्रकार शिक्षा-स्वास्थ्य का निजीकरण भी गरीब-दलित-आदिवासी- पिछड़ा- अति पिछड़ा-अल्पसंख्यक विरोधी है. सामाजिक न्याय का संघर्ष घर के भीतर-बाहर दोनों स्तरों पर चलाना होगा. स्त्रियों को गुलामी-शोषण से मुक्ति के लिए भी संघर्ष करना होगा. दलित-वंचिति तबके के भीतर सामाजिक न्याय से सम्बंधित साहित्य के प्रचार-प्रसार और चिंतन मन्थन की निरन्तर प्रक्रिया को चलाने पर जोर दिया ताकि इन तबकों के भीतर से गंभीर बुद्धिजीवी पैदा हो सकें. बहुजन शिक्षकों का बहुजन शिक्षक संघ बनाये जाने की जरूरत को भी रेखांकित किया. बहुजन शिक्षकों की सामाजिक न्याय की इस लड़ाई में अहम भूमिका हो सकती है. किसी एक नेता पर हमारी निर्भरता नहीं होगी. हमें ढेर सारे प्रखर बुद्धिजीवी और ईमानदार-संघर्षशील नेतृत्व पैदा करना होगा. अपनी जनता को प्रतिक्रियावादी तरीके से उकसाने के बजाय रचनात्मक भूमिका लेते हुए आगे बढ़ना होगा. अंत में उन्होंने यह उम्मीद जताई कि सामाजिक न्याय का समग्र ढांचा बनाते हुए ही हम एक नई समाज व्यवस्था कायम करने में कामयाब होंगे.
सम्मेलन की शुरुआत में हरिकेश्वर राम ने वक्तव्य रखा.संचालन रिंकु यादव ने किया,अध्यक्षता की विष्णुदेव मोची ने संबोधित किया- गौतम कुमार प्रीतम ,नवीन प्रजापति,विजय कुमार चौधरी,बाल्मिकी प्रसाद,अर्जुन शर्मा,केदार पासवान,रामानंद पासवान,मीरा यादव,अंजनी,जितेन्द्र ,आजाद,अमिश कुमार चंदन,जमशेद आलम सहित कई ने. अंत में रिंकु यादव ने बड़े अभियान से गुजरते हुए 26नवंबर-संविधान दिवस पर पटना में विशाल सामाजिक न्याय सम्मेलन करने की घोषणा की.
No comments:
Post a Comment