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1.9.18

मुख्यमंत्री न बन पाने की क़सक से बना 'समाजवादी सेक्युलर मोर्चा'!

इन से उम्मीद न रख हैं ये सियासत वाले
ये किसी से भी मोहब्बत नहीं करने वाले

जैसे-जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव नज़दीक आते जायेंगे, वैसे-वैसे 'राजनीति के तालाब' में पार्टियों की गहमा-गहमी शरू होने लगेगी. कांग्रेस और भाजपा अपनी-अपनी "डगन" से बड़ी मछली पकड़ने को छटपटाते दिखाई देंगे.
इसी तालाब की एक मछली, अपने ही परिवार से अलग होकर अपना अलग "राजनीतिक का तालाब" बनाकर तैरना चाहती है.और उस मछली को हम और आप शिवपाल सिंह यादव के नाम से जानते हैं. जिन्होंने ने " समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन कर लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है.

एक नज़र शिवपाल सिंह यादव के राजनैतिक जीवन पर.

मुलायम सिंह यादव का हाथ पकड़ कर राजनीति के तालाब में गोते लगाना सीखा.1988 में पहली बार इटावा के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए. तेज़ी के साथ आगे बढ़ने लगे.

1996 में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपनी जसवंतनगर की सीट छोटे भाई शिवपाल के लिए खाली कर दी . इसके बाद से ही शिवपाल का जसवंतनगर की विधानसभा सीट पर कब्जा बरकरार है.

6 अप्रैल 1955 को सैफई में जन्में शिवपाल सिंह यादव ने जब होश संभाला तो बड़े भाई मुलायम प्रदेश की राजनीति में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.

1974 में उन्होंने इंडरमीडिएट की परीक्षा पास की और 1977 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीपीएड किया. जब तक शिवपाल ने पढ़ाई पूरी कि बड़े भाई मुलायम राजनीति में पहचान बना चुके थे.

मुलायम सिंह अपनी राजनीति के चलते कभी दिल्ली तो कभी लखनऊ जाते रहते और शिवपाल क्षेत्र में लोगों के बीच क्षेत्र में घूमकर सोशलिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों में भाग लेते और भाई मुलायम का प्रचार करते.

चुनावों में पर्चें बांटने से लेकर बूथ-समन्वयक तक की जिम्मेदारी उन्होंने निभाई है. मधु लिमये, चौधरी चरण सिंह, जनेश्वर मिश्र जैसे बड़े नेताओं की सभाएं करवाने की जिम्मेदारी भी अक्सर मुलायम सिंह भाई शिवपाल को ही सौंप देते थे.

शिवपाल यादव सक्रिय राजनीति में आए 1988 में. 1988 से 1991 और फिर 1993 में वो जिला सहकारी बैंक (इटावा) के अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद 1995 से लेकर 1996 तक वे इटावा के जिला पंचायत अध्यक्ष रहे.

इसी बीच 1994 से 1998 के बीच शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के भी अध्यक्ष बने. 1996 में मुलायम सिंह ने जसवंतनगर विधानसभा से उन्हें से विधानसभा का चुनाव लड़ाया. उन्होंने बड़े अंतर से चुनाव जीता.वो 1996 से लगातार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

20 साल से विधानसभा के सदस्य शिवपाल समाजवादी पार्टी के संगठन को मजबूत करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं में शिवपाल अपने अच्छे बर्ताव के लिए भी मशहूर रहे हैं.

मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की सरकार में वो कई अहम मंत्रालयों के मंत्री रहे हैं. वो उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विपक्ष रहे हैं. शिवपाल लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं.

पिछले कुछ दिनों से पार्टी पर अखिलेश यादव की पकड़ मजबूत होने के बाद शिवपाल यादव किनारे कर दिए गए हैं.2017 के विधानसभा चुनाव उनको राजनीतिक करियर के लिहाज से काफी अहम माने जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री न बन पाने की क़सक शिवपाल के चेहरे पर आज भी नज़र आती है..

शिवपाल ने कहा, " समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन उन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए किया है. समाजवादी पार्टी के उपेक्षित, अपमानित और जो लोग हाशिए पर हैं, उन्हें एकजुट करके आगे की लड़ाई लड़ेंगे."

इतना लंबा समय पार्टी को देने के बाद भी शिवपाल को वो मुक़ाम नहीं मिला जो अखिलेश को बेहद कम समय में ही मिल गया. पार्टी पर मौजूदा वक़्त अखिलेश का दबदबा क़ायम है.

शिवपाल की सिमटती राजनीति को देखते हुए लगता था कि जब तक नेता जी हयात हैं तब तक ही शिवपाल की थोड़ी बहुत इज़्ज़त बची हुई है.

लेकिन अपनी अलग पार्टी का गठन कर उन्होंने ये बताने की कोशिश की है कि वो भी लंबी रेस के घोड़ें. देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या इस फ़ैसले से सपा की पारिवारिक कलह के साथ-साथ राजनैतिक कलह भी शरू हो चुकी है.

उधर दिल्ली की कुर्सी पर क़ाबिज़ भाजपा ने भी 2019 की तैयारियों को शरू कर दिया है.शिवपाल का ये क़दम भाजपा के लिए वरदान न साबित हो जाए.दिल्ली की सल्तनत का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही हो कर गुज़रता है.

शिवपाल ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर सपा की मुश्किलों को बढ़ा दिया है. भाजपा के लिए शिवपाल का ये क़दम फायदे मंद न साबित हो जाये.

या फ़िर ये समझा जाए की राजनीति के तालाब में भाजपा की डाली गयी डगन में शिवपाल फँस चुके हैं? या फ़िर मुख्यमंत्री न बन पाने की क़सक में अपनी मर्ज़ी से ही भाजपा की डगन के चारे को खा कर फँस गए..

यह लेख नेहाल रिज़वी ने लिखा है..

Nehal Rizvi 

nehalrizvikanpur@gmail.com

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