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29.1.11

आखिरी खत...


प्रिय मीनू,
हो सके तो मुझे माफ कर देना। मैंने कभी भी तुम्‍हारा दिल दुखाना नहीं चाहा था, लेकिन जो कुछ भी हुआ, उसका मुझे जरा सा भी अहसास नहीं था। हां यह जरूर सच है कि उस वाक्‍ये से तुम्‍हे तकलीफ हुई होगी और तुम्‍हारे दिल को ठेस लगी होगी। तुम मुझे बेवफा भी समझ रही होगी। कुछ हद तक यह सच भी है लेकिन वास्‍तविकता क्‍या है इसे सिर्फ और सिर्फ मैं ही जानता हूं।
मुझे याद है वह दिन, जब हम मिले थे। तुमसे पहले भी कई लडकियां मिलीं लेकिन उनसे सिर्फ दोस्‍ताना रहा। तुममे मुझे एक अलग ही कशिश दिखी। फिर क्‍या था, मैं तुम्‍हारी ओर आ‍कर्षित होता चला गया। हमारी मुलाकातें बढती चली गईं। दिल तो चाहता था कि तुमसे बहुत कुछ कहूं पर तुम्‍हारे सामने आने पर मानो जुबान पर ताले पड जाते। कहते हैं न कि जो बात मुहब्‍बत में जुबान नहीं कह पाती वह नजरें कह जाती हैं। यही हमारे साथ हुआ। समय गुजरता रहा। जुबां खामोश रही। नजरों से बात होती रही। और एक दिन...।

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