गण चुस्त और तंत्र निष्पक्ष हो विकास का संकल्प लें तभी सफल होगा गणतंत्र
समूचे भारत वर्ष में उल्लास के साथ आज गणतंत्र दिवस की 61 वीं सागिरह मनायी जा रही है। आज के दिन ही हमने अपने संविधान को स्वीकार किया था। इन 61 सालों में देश के विकास के बारे में यदि दृष्टि डाली जाये तो ना तो यह कहना सही होगा कि हमने कुछ भी हासिल नहीं किया है और ना ही यह कहना सही होगा कि हमने सब कुछ पा लिया है। हां विकास की गति पर जरूर मतभेद हो सकते है।
इन 61 सालों के प्रजातांत्रिक सफर में गण याने आम आदमी तो लगभग गौण हो चुका है। इसका स्थान गण के द्वारा चुने गये जन प्रतिनिधयों ने ले लिया जो कि उनका ध्यान पांच साल में सिर्फ एक बार एक महीने के लिये चुनाव के समय रखते हैं और फिर उन्हें आपने हाल पर छोड़ देते है। ये जन प्रतिनिधि ही केन्द्र और राज्यों में सरकार चलाते है। इन्हीं पर देश के विकास और आम आदमी के भले के लिये योजनायें बनाने और उन्हें सफलतापूर्वक लागू कराने का दायित्व भी रहता है।
हमारे गणतंत्र का दूसरा महत्वपूर्ण अंग तंत्र है। आज कल यह आम शिकायत सुनी जाती है कि तंत्र अनियंत्रित होते जा रहा है। उसे अपनी मनमानी करने से रोकने का दायित्व जिनका है कहीं कहीं तो वे खुद ही उनके पिछलग्गू बने दिखायी देते है। तंत्र के इस कथन की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आज के दौर में सत्ता दल का राजनैतिक हस्तक्षेप प्रशासनिक अमले पर इतना अधिक रहता हैं कि वे चाहकर भी निष्पक्ष और निर्भीक होकर भी काम नहीं कर सकते हंै। कोई भी जनप्रतिनिधि जब एक बार अपने राजनैतिक हित साधने के लिये तंत्र का उपयोग कर लेता हैं तो फिर उसे उसकी गलतियों की अन देखी तो करनी ही पड़ेगी। और शायद यही तंत्र के अनियंत्रित होने का मूल कारण है।
किसी भी समस्या को हल करने के लिये गण को तंत्र का साथ देने और तंत्र को त्वरित निराकरण के प्रयास करने आवश्यक होते हैं। आज महंगायी सबसे बड़ी समस्या हैं। हालांकि विश्व स्तरीय आर्थिक मंदी और अंर्तराष्ट्रीय बाजार की उथल पुथल ने दुनिया के साथ ही देश को भी हिला कर रख दिया है। लेकिन इतना कह देने मात्र से सरकार के कत्र्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती है। और ना ही केन्द्र और राज्य सरकार एक दूसरे पर दोषारोेपण़ करके बच सकतीं है। यह बात भी सही हैं कि देश में उपभोक्ता की क्रय शक्ति भी बढ़ी हैं लेकिन वह नाकाफी साबित हो रही है। ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकारें अपने अपने द्वारा वसूल किये जाने वाले टेक्सों के कितनी कमी करके लोगों को महंगायी से राहत दिला सकती है इस पर विचार किया जाना समय की मांग है।
गण चुस्त और दुरुस्त रहें तथा तंत्र पूरी मुस्तेदी से देश के विकास और आम आदमी की खुशहाली के लिये संकल्पित हो और देश को एक बार फिर अपने स्वर्णिम मुकाम पर पहुंचायें यही गणतंत्र दिवस की 61 वीं सालगिरह पर हमारी शुभकामनायें हैं।
आशुतोष वर्मा
मो. 09425174640
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