कश्मीर छीन रहा है, और हम गणतंत्र मना रहे है। ६० साल बाद कांग्रेस एक बार फिर देश को तोड़ रही है और हम हर राज्य में उसकी सरकार का सपना साजो रहे है। कभी आइने में अपने चहरे को देख मन करता है थूक दू उस पैर। २३ जनवरी को सुभाष जयंती याद नही रहती मगर बर्बादी की नीव पड़ने वाला गणतंत्र दिवस याद रहता है। जो मुल्क की आज़ादी के लिए कुर्बान हुए उनकी याद भले न अति हो मगर राहुल गाँधी, पी.चिदंबरम जैसे नाटकबाज लोगो को हम अपना आदर्ष बनाने को उतारू रहते है। हमारे लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा।
देश को तो हम इस कदरभूल गये कि चाहे कोई भी वारदात क्यों न हो जाये हम अपने मतलब से आगे कुछ नहीं देखते। हम जिस धन को नाजायज रूप से टैक्स के रूप में सरकार को देते हैं, कभी उसका हिसाब नही लेते। हमारे सामने ही देश ही हर तरीके से मटिया-पलीद की जा रही है और हमे उसकी कोई प्रवाह ही नहीं।
शाहरुख खान जैसा पकिस्तान परस्त को उम सद्भावना कि नीव मानते है। तभी तो हमे ठाकरे में आतंकवादी नजर आया। काश कि आज हममे भी देशभक्ति होती तो शायद हम संसद में बैठी भेड़ो को बाहर निकाल देते और अपने वतन को बचाने के लिए कोई कदम उठा पते। खैर भारतीय मुर्ख दिवस कि हार्दिक सुबह कामनाये।
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