राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
देश में महंगाई, बेकारी, भ्रष्टाचार की समस्या बढ़ रही है और दूसरी ओर चम्मचों के एक धड़े द्वारा एक नई विकासगाथा लिखने की दुहाई दी जा रही है। देखिए, छोटा-मोटा पद मिलने के बाद कोई भी बौरा जाता है, ऐसे में जब कोई प्रधानमंत्री जैसे पद ठुकराए तो यह जरूर बड़ी बात होती है। मगर एक अपरिपक्व व्यक्ति को प्रधानमंत्री का दावेदार बताया जाना कहां तक लाजिमी है, निश्चित ही ये तो चापलूसी की इंतहा ही है।
राहुल गांधी को कई बार प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश की गई है। हो सकता है, वे भावी प्रधानमंत्री हों, किन्तु जिस तरह उन्हें पंदोली देतु हुए कई नेताओं द्वारा चापलूसी भरे लहजे में प्रधानमंत्री के काबिल होने का दावे किए जाते हैं, उसे कहां तक सही ठहराया जा सकता है। जब खुद राहुल गांधी ही अनेक मर्तबा कह चुके हैं कि वे अभी प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते और फिलहाल देश की राजनीति और अवाम की मंशा को समझने का हवाला देते हैं। उनकी इच्छा को इस बात से भी जाना जा सकता है कि उन्होंने केन्द्रीय मंत्रीमंडल में भी कोई पद नहीं लिया है। उन्हें कोई विशेष मंत्री पद ग्रहण करने कहा भी गया है। यहां यह भी कहा जा सकता है, प्रधानमंत्री जैसे पद को ठुकराने वाली श्रीमती सोनिया गांधी का पुत्र राहुल गांधी, भला कैसे कोई मंत्री पद ले सकते हैं, बनना चाहेंगे तो प्रधानमंत्री बनेंगे ? हो सकता है, इसी मर्म को राहुल गांधी के चाटुकार समझ गए होंगे, तभी तो इस बात को हवा देते रहते हैं कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के काबिल हैं ?
हमारा यही कहना है कि जिन्हें प्रधानमंत्री बनना है, यदि वही अनिच्छा जता रहे हों और अभी किसी तरह से कोई ओहदे का बोझ न थामना चाहता हो, ऐसे में ओछी राजनीति का परिचय देते हुए चमचमाई करने वाले कुछ नेता, राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के हर गुण गिना डाले तो फिर इसे उन जैसे नेताओं की मानसिक फुसफुसाहट ही कही जा सकती है। इसमें कोई शक नहीं है कि राहुल में नेतृत्व के गुण हैं, क्योंकि वे एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिस परिवार के कई लोग प्रधानमंत्री बने हैं। इसी परिवार की श्रीमती सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद ठुकराकर दुनिया को चौंका चुकी हैं। ऐसी स्थिति में शायद राहुल गांधी आगा-पीछे हवा देने वाले उनके प्रधानमंत्री बनने की बात को हवा देने में लगे हों। अब इसमें राहुल गांधी के मन में कितना लड्डू फूट रहा है, ये तो वही बता सकते हैं, किन्तु इतना जरूर है कि चाटुकारों के दिलो-दिमाग में अभी से राहुल गांधी, प्रधानमंत्री के पदवी में बैठ चुके हैं।
जिस तरह से यूपीए-2 सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार, महंगाई की समस्या को लेकर कटघरे में खड़ी है और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निर्णय क्षमता तथा कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। ऐसे हालात में किसी न किसी को आगे आना तो पड़ेगा ही। इन बातों को भांपते हुए शायद चाटुकारों ने सही समय पर गरम लोहे पर हथौड़ा मारने का काम किया है, पर सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के लिए आतुर हैं ? उनके चाटुकारों द्वारा जिस तरह से प्रचारित किया जा रहा है, उससे तो कुछ ऐसा ही लगता है कि शायद गुजरते समय के साथ अब राहुल गांधी को भी लगने लगा है कि अब उन्हें देर नहीं करनी चाहिए और प्रधानमंत्री बनने किसी तरह का गुरेज नहीं करना चाहिए। एक बात तो है कि राजनीति के जानकार राहुल गांधी को फिलहाल प्रधानमंत्री के लिए अपरिपक्व मानते हैं, लेकिन यह बात भी सही है कि वे उस परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिस परिवार से अब तक सबसे अधिक प्रधानमंत्री बने हैं।
लगता है, राहुल गांधी ने चाटुकारों की बातों को ज्यादा तवज्जों नहीं दिए हैं, तभी तो उन्होंने इस मामले पर कुछ भी नहीं कहा है, मगर यह भी अच्छा नहीं है, क्योंकि कभी-कभी तो चाटुकारों की बातों को तरजीह देने पर विचार करना चाहिए ? इतना जोर देकर जब चाटुकार प्रधानमंत्री बनने का खुला माहौल बना रहे हैं तो फिर राहुल गांधी को भी पीछे नहीं हटना चाहिए। हम तो कहेंगे कि जब चाटुकारों की बात मानकर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो, राहुल जी आप एक पल भी देर न कीजिए ?
देश में महंगाई, बेकारी, भ्रष्टाचार की समस्या बढ़ रही है और दूसरी ओर चम्मचों के एक धड़े द्वारा एक नई विकासगाथा लिखने की दुहाई दी जा रही है। देखिए, छोटा-मोटा पद मिलने के बाद कोई भी बौरा जाता है, ऐसे में जब कोई प्रधानमंत्री जैसे पद ठुकराए तो यह जरूर बड़ी बात होती है। मगर एक अपरिपक्व व्यक्ति को प्रधानमंत्री का दावेदार बताया जाना कहां तक लाजिमी है, निश्चित ही ये तो चापलूसी की इंतहा ही है।
राहुल गांधी को कई बार प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश की गई है। हो सकता है, वे भावी प्रधानमंत्री हों, किन्तु जिस तरह उन्हें पंदोली देतु हुए कई नेताओं द्वारा चापलूसी भरे लहजे में प्रधानमंत्री के काबिल होने का दावे किए जाते हैं, उसे कहां तक सही ठहराया जा सकता है। जब खुद राहुल गांधी ही अनेक मर्तबा कह चुके हैं कि वे अभी प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते और फिलहाल देश की राजनीति और अवाम की मंशा को समझने का हवाला देते हैं। उनकी इच्छा को इस बात से भी जाना जा सकता है कि उन्होंने केन्द्रीय मंत्रीमंडल में भी कोई पद नहीं लिया है। उन्हें कोई विशेष मंत्री पद ग्रहण करने कहा भी गया है। यहां यह भी कहा जा सकता है, प्रधानमंत्री जैसे पद को ठुकराने वाली श्रीमती सोनिया गांधी का पुत्र राहुल गांधी, भला कैसे कोई मंत्री पद ले सकते हैं, बनना चाहेंगे तो प्रधानमंत्री बनेंगे ? हो सकता है, इसी मर्म को राहुल गांधी के चाटुकार समझ गए होंगे, तभी तो इस बात को हवा देते रहते हैं कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के काबिल हैं ?
हमारा यही कहना है कि जिन्हें प्रधानमंत्री बनना है, यदि वही अनिच्छा जता रहे हों और अभी किसी तरह से कोई ओहदे का बोझ न थामना चाहता हो, ऐसे में ओछी राजनीति का परिचय देते हुए चमचमाई करने वाले कुछ नेता, राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के हर गुण गिना डाले तो फिर इसे उन जैसे नेताओं की मानसिक फुसफुसाहट ही कही जा सकती है। इसमें कोई शक नहीं है कि राहुल में नेतृत्व के गुण हैं, क्योंकि वे एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिस परिवार के कई लोग प्रधानमंत्री बने हैं। इसी परिवार की श्रीमती सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद ठुकराकर दुनिया को चौंका चुकी हैं। ऐसी स्थिति में शायद राहुल गांधी आगा-पीछे हवा देने वाले उनके प्रधानमंत्री बनने की बात को हवा देने में लगे हों। अब इसमें राहुल गांधी के मन में कितना लड्डू फूट रहा है, ये तो वही बता सकते हैं, किन्तु इतना जरूर है कि चाटुकारों के दिलो-दिमाग में अभी से राहुल गांधी, प्रधानमंत्री के पदवी में बैठ चुके हैं।
जिस तरह से यूपीए-2 सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार, महंगाई की समस्या को लेकर कटघरे में खड़ी है और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निर्णय क्षमता तथा कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। ऐसे हालात में किसी न किसी को आगे आना तो पड़ेगा ही। इन बातों को भांपते हुए शायद चाटुकारों ने सही समय पर गरम लोहे पर हथौड़ा मारने का काम किया है, पर सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के लिए आतुर हैं ? उनके चाटुकारों द्वारा जिस तरह से प्रचारित किया जा रहा है, उससे तो कुछ ऐसा ही लगता है कि शायद गुजरते समय के साथ अब राहुल गांधी को भी लगने लगा है कि अब उन्हें देर नहीं करनी चाहिए और प्रधानमंत्री बनने किसी तरह का गुरेज नहीं करना चाहिए। एक बात तो है कि राजनीति के जानकार राहुल गांधी को फिलहाल प्रधानमंत्री के लिए अपरिपक्व मानते हैं, लेकिन यह बात भी सही है कि वे उस परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिस परिवार से अब तक सबसे अधिक प्रधानमंत्री बने हैं।
लगता है, राहुल गांधी ने चाटुकारों की बातों को ज्यादा तवज्जों नहीं दिए हैं, तभी तो उन्होंने इस मामले पर कुछ भी नहीं कहा है, मगर यह भी अच्छा नहीं है, क्योंकि कभी-कभी तो चाटुकारों की बातों को तरजीह देने पर विचार करना चाहिए ? इतना जोर देकर जब चाटुकार प्रधानमंत्री बनने का खुला माहौल बना रहे हैं तो फिर राहुल गांधी को भी पीछे नहीं हटना चाहिए। हम तो कहेंगे कि जब चाटुकारों की बात मानकर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो, राहुल जी आप एक पल भी देर न कीजिए ?
2 comments:
"इसी परिवार की श्रीमती सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद ठुकराकर दुनिया को चौंका चुकी हैं।"- ये कोई महान त्याग नहीं था,जिम्मेदारी से पलायन था..!! अगर वह प्रधानमंत्री बन जाती तो,देश के साथ पूरी कोंग्रेस पार्टी टूटने के कगार पर होती?
ऐसे तो, कुछ भी जिम्मेदारी का भार लिए बिना, मैं, आप या भारत का कोई भी नागरीक देश को बेकसीट ड्रायविंग का मज़ा लेकर चला सकता है, रही राहुलजी की बात, उनके पास पूरे कोंग्रेस पक्ष के गुप्त फंड की कूंजी है, इसीलिए पैसों की ख़ातिर यह चांपलूसी हो रही है?
आप का बलाँग मूझे आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
लिकं है www.sarapyar
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