नमस्कार ...
आप सबसे एक सवाल है ..बाबा - अन्ना तानाशाह तो गाँधी क्या थे ?
120 करोड़ लोगों को बेवकूफ बना रहे राजनीतिक दल से एक भारतीय का सवाल। बाबा-अन्ना यदि स्वघोषित जन-प्रतिनिधि है तो महात्मा गाँधी और अन्य राष्ट्रभक्त क्या थे? उन्होंने किस आधार पर देश की जनता का प्रतिनिधित्व किया ?
सादर
श्रवण शुक्ल
- Show quoted text -
श्रवण कुमार शुक्ल |
4 comments:
शुक्ल जी महाराज, बाबा व अन्ना की तुलना गांधी जी से करना है ही बेमानी, ऐसा करके आप गांधीजी जी का अपमान कर रहे हैं, हम देशवासियों की इतनी गंदी मानसिकता है कि जिन गांधी जी की आज चर्चा हो रही है, उनके बारे में आमतौर पर कोई भी बुड्ढा, टकला और कई अन्य गालीयुक्त उपमाएं दे कर गाली देते हैं, एक समय था जब भाजपाई गांधी जी की बात ही गाली से शुरू करते थे और आज हालत ये है कि वहीं वे ही राजनीति के कारण अपने मंचों पर लगाते हैं,
तीसरी आंख जी.. मै तुलना नहीं कर रहा.. मैने सिर्फ यह सवाल किया है कि अन्ना-बाबा जनता के प्रतिनिधि क्यों नहीं बन सकते? नही बन सकते तो क्या इसलिए कि उन्हें जनता ने वोट देकर नहीं चुना है .. ऐसा ही बयान कांग्रेस की तरफ से आया है कि अन्ना-बाबा से लोकतंत्र को खतरा है.. अगर ऐसा ही है तो गाँधी जी को किसने वोट देकर चुना था जो उन्होंने देश का नेतृत्व किया? मेरा सवाल बस यही है कि अगर अन्ना और बाबा स्व-घोषित जनप्रतिनिधि है तो स्वतंत्रता सेनानी भी तो यही थे... यही तो अंतर जानना चाहता हूँ मैं... आपके पास जवाब है तो अवश्य दें.. मै आपके जवाब का इन्तजार करूँगा.. आप मेरे ब्लॉग पर भी आ सकते हैं. आपका स्वागत है ..
मेरी मेल-shravan.kumar.shukla@gmail.com है.. आप वहाँ भी चर्चा के लिए आमंत्रित हैं ..
तीसरी आंख जी.. मै तुलना नहीं कर रहा.. मैने सिर्फ यह सवाल किया है कि अन्ना-बाबा जनता के प्रतिनिधि क्यों नहीं बन सकते? नही बन सकते तो क्या इसलिए कि उन्हें जनता ने वोट देकर नहीं चुना है .. ऐसा ही बयान कांग्रेस की तरफ से आया है कि अन्ना-बाबा से लोकतंत्र को खतरा है.. अगर ऐसा ही है तो गाँधी जी को किसने वोट देकर चुना था जो उन्होंने देश का नेतृत्व किया? मेरा सवाल बस यही है कि अगर अन्ना और बाबा स्व-घोषित जनप्रतिनिधि है तो स्वतंत्रता सेनानी भी तो यही थे... यही तो अंतर जानना चाहता हूँ मैं... आपके पास जवाब है तो अवश्य दें.. मै आपके जवाब का इन्तजार करूँगा.. आप मेरे ब्लॉग पर भी आ सकते हैं. आपका स्वागत है ..
मेरी मेल-shravan.kumar.shukla@gmail.com है.. आप वहाँ भी चर्चा के लिए आमंत्रित हैं ..
१. गांधी को पुलिस या अंग्रेज सरकार से बचने के लिए कभी साडी-सलवार में भागते देखा सुना हो तो ज़रूर बताएं?
२. महात्मा गाँधी ने कभी अपने लिए कोई पद नहीं माँगा.यहाँ तो देश को चलाने के लिए एक समानांतर उत्तरदायित्व रहित एजेंसी लोकपाल बनाने और उसके सर्वेसर्वा बनने की जद्दो-जहद चल रही है.
३. महात्मा गाँधी की नीतियाँ स्वनिर्मित और स्पष्ट थीं.यहाँ तो एक ७ वीं -८ वी फेल आदमी है,जो चंद तथाकथित सिविल समाज के लोगों का कहा मान लेता है और उनके लिखे हुए को पढ़ देता है,जहां बिठा देते हैं बैठ जाता है और उसने खुद से बस इतना बोलना सीखा है कि वो गोली खाने को तैयार है भले ही कोई मारे या न मारे.
तो ऐसे व्यक्तियों को गांधी तुल्य वही मानेगा जो इतिहास से या तो अनभिज्ञ हो या जान बूझकर इतिहास से मुंह मोड़कर बैठा हो.दूसरी बात जो मैं बार बार करता रहता हूँ और जिसे तुम समझने में असमर्थ रहते हो,वो ये कि 'कथनी और करनी' का अंतर गांधी को अन्य 'मीडिया जनित' महान हस्तियों से अत्यंत ऊंचा ठहराता है, अन्ना हजारे की क्षेत्रवादी मानसिकता और रामदेव का न्यूट्रलइज्म का ढोंग करते हुए भी साम्प्रदायिक तत्वों से गलबहियां करना कुछ ऐसी बातें हैं जो इन दोनों को गांधी की चरणों की धूल बनाने लायक भी नहीं छोड़ता.
भावनाओं में बहकर,प्रचार से प्रभावित होकर अगर हम नित्य ऐसे अनपढ़,अनगढ़,नीतिहीन हीरो चुनते रहे तो लोकतंत्र का ना सिर्फ ह्रास होगा बल्कि ऐसे ठस्स-बुद्धियों द्वारा जनित तानाशाही प्रवृत्ति को बढ़ावा ही मिलेगा.
Post a Comment