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30.6.11

चवन्नी : मेरे बचपन का पूँजीवाद

दोस्तों आज चवन्नी हम से विदा हो गयी। तुम लोग सोचोगे कि ये क्या 'मुंह्बाजी' है पर सच में पता नहीं क्यों मुझे इसके जाने का बहुत दुःख हुआ।
समय बदलता रहता है, हमारे बड़ों ने शायद 'आने'(वही एक आना,दो आना) को इस तरह याद किया होगा और शायद आज से बीस-पच्चीस साल बाद आने वाली पीढ़ी में से कोई 'हजार के नोट' की समाप्ति पर कुछ दुःख व्यक्त करे। पर मेरे बचपन की औकात तो चवन्नी तक ही सीमित थी,इसलिए मैं इसके सम्मान में कुछ शब्द कहूँगा।

मुझे पंजी,दस्सी और बीस पैसे के जाने का कभी उतना दुःख नहीं हुआ जितना इस छोटी सी गोल चवन्नी के विलुप्त होने का.........................

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