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18.6.11

भाषा विवाद

*  मैं भारत में भाषा विवाद  समाप्त करने के लिए संस्कृत को प्रतीक के तौर  पर राष्ट्रभाषा बनाने का पक्षधर हूँ | अब भी वह संकल्प डस्टबिन में नहीं फेंक रहा हूँ | पर कल के  में छपे एक समाचार से मुझे पर्याप्त धक्का लगा | खबर है :-
    " उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान में इस समय ज्योतिष एवं वास्तु प्रशिक्षण शिविर का संचालन किया जा रहा है --|--  संस्थान की निदेशक  सुनीता चतुर्वेदी ने बताया  कि इसमें सैकड़ों लोगों का भाग  लेना अच्छी खबर है | संस्कृत भाषा का मर्मज्ञ ही ज्योतिष एवं वास्तु का अच्छा जानकार हो डाकता है | --- "  जन सन्देश [लखनऊ]
           अब हम क्या मुँह लेकर  संस्कृत की वकालत करें ? कोई भी समझदार , तार्किक , सत्यान्वेषक , वैज्ञानिक बुद्धि का व्यक्ति , ऐसी दशा में संस्कृत क्यों पढना चाहेगा , जो उसे ज्योतिष और वास्तु में पारंगत बनाये , जिसकी कोई प्रासंगिकता न हो ? और यदि अपने इसी  दकियानूसी  अवगुण के नाते यह भाषा अधोगति को प्राप्त होते -होते  समाप्त हो जाने की कगार पर आ गयी है तो इसमें किसी का क्या दोष ? भाषा तो वही आगे बढ़ेगी जो उसके  पढ़ने - लिखने -बोलने वाले व्यक्ति को आधुनिक ज्ञान -विज्ञानं से लैस बनाये , न कि वह जो जनता को अंध विश्वास के कुएँ में डाले ||
           फिर भी इसे  केवल प्रतीक ,केवल नाम के लिए भारत  का हाथी का दाँत बनाने की समझदारी से  मैं अभी डिगा नहीं हूँ | ##          

2 comments:

Dr Om Prakash Pandey said...

kya andhvishwaas se bachne ka sarvottam tareeka yahee naheen hai ki vaigyannik tareeke se use padhkar dekh liya jaaye .

Dr Dwijendra vallabh sharma said...

apni hi kisi bhasha ko maatra andhvishwasi kah dena koi buddhimaani nahi , haan aapne kuchh upaay iske vistaar aur vikaas ke liye sujhaaye hote to swaagat hota . hum israaili jaise to himmati hain bhi nahi jo apni marti jaa rahi bhasha ko jinda karne ke liye kamar kas chuka hai.