खास बात ये है क़ि अधिकांश लोग करप्शन के मूल मुद्दे से भटक कर सरकार , बाबा रामदेव या फिर अन्ना हजारे समर्थल खेमों में साफ-साफ बाँट गए हैं , अगर किसी ने निष्पक्ष भाव से भी कुछ लिखा या कहा है , तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने के कारण ,लोग सम्बंधित लेखक या वक्ता के विरूद्ध आरोपों - प्रत्यारोपों की बौछार शुरू कर देतें हैं .
जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ क़ि अन्ना हजारे , बाबा रामदेव अथवा उनके समर्थक देश में व्याप्त भ्रस्टाचार से दुखी और छुब्ध हैं और उनकी मंशा यही है क़ि कुछ ऐसा किया जाये क़ि देश के लोगों द्वारा विदेशों में जमा धन , वापस देश लाया जाये . इस पर विवाद हो सकता है क़ि यह धन कितने हज़ार या लाख करोड़ का है , परन्तु इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए क़ि देश से बाहर गया धन , वापस लाया जाना ही देशहित में है
करप्शन के मुद्दे पर, जहाँ देश के लोगो में एकता पैदा होना चाहिए थी , पर हो उसका उल्टा रहा है . लोग एक दूसरे से जानी दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहे हैं , शालीनता तो जैसे ख़त्म हो गयी है , बोलचाल के साथ ही लेखन में भी गाली गलौज तथा अपशब्दों का इस्तेमाल बेलौस तरीके से किया जा रहा है , जो लोगों के बीच अनावश्यक रूप से आपस में वैमनस्यता को बढ़ावा दे रहा है .
सबसे ज्यादा दुख और अचरज की बात तो तो ये है क़ि सरकार और सिविल सोसईटी के ज़िम्मेदार लोग भी इस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं , जैसे वह लोग अपने देश की सरकार के प्रतिनिधिओं अथवा जनता के लोगों से बात ना कर दुश्मन देश के लोगों से बात कर रहे हैं ..दोनों पक्ष शब्द वाण छोड़ रहें हैं विष वमन कर रहे हैं , एक दूसरे को चुनौतिया दे रहे हैं . इस प्रकार की गतिविधिओं को कतई सभ्य समाज अपनी मान्यता नहीं दे सकता .
.मुझे लगता है ये सब ना तो जनहित में है और न ही देशहित में . देश के मौजूदा हालत और अधिक न बिगड़ने पायें , इसके लिए बहुत ज़रूरी है की सभी पक्ष सयंम और शालीनता का परिचय देते हुए युद्ध-कालीन भाषा का त्याग कर कुछ ऐसे भाषा का इस्तेमाल करे जो दोनों पक्षों के साथ साथ आम जनता को भी कर्णप्रिय लगे .
वैसे तो करप्शन के खिलाफ जंग / आन्दोलन की कमान संभाल रहे सभी लोग अपने अपने छेत्रों से मूर्धन्य लोग है , जिनकी क़ाबलियत पर शक नहीं किया जा सकता , साथ ही सरकार में बैठे लोग भी निर्वाचित प्रतिनिधि होने के बाद ही मंत्री पद पर हैं , ऎसी सूरत में उचित ये होगा की दोनों पक्ष मिल बैठ कर , हठधर्मिता त्याग देश हित और जनहित में काम करे , इसी में उनकी गरिमा मानी जाएगी क्यूंकि करप्शन का मुद्दा विदेशियों से जंग नहीं है .
1 comment:
यह स्थिति इस कारण है कि हम आज भी सरकार को उसी भाव से देखते हैं, जैसे ब्रिटिश सरकार को देखते थे, अन्ना हजारे ने तो कह ही दिया कि पहले गोरे अंग्रेज थे और अब काले अंग्रेज हैं, यानि हम आजादी के बाद भी अपनी सरकार को अपनी नही मानते, उसके खजाने को ऐसे लूटते हैं मानों वह किसी और की सरकार हो, जब तक हम अपनी सरकार को अपना नहीं मानेंगे, टैक्सों को पूरा नहीं चुकाएंगे, कानून की पालना ठीक से नहीं करेंगे, हालात नहीं सुधरने वाले हैं
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