आज के दिन
आज के दिन न मुझसे पूछो तुम
कितने अंधेरों ने बढ़ कर
मेरे दिन को सियह रातों में बदल दिया है|
मेरी खुशियों में पसर गए हैं कितने
दुःख भरे आंसू के बादल…….
आज के दिन छा रहे
घोर मायूसियों के सायों ने-
सितम के कितने नस्तरों से
मुस्कुराहटों का हक बींध लिया है|
आज के दिन पूर्णिमा को
ग्रहण के अंधेरों ने
बिन अपराध निगल लिया है|
न हो निराश, वादा है
मिटा कर इन अंधेरों को
चमकुंगा मैं फलक पर
और मिल जाऊंगा धरा से
पाकिजा चांदनी बन कर |
१५ जून को खींची थी कुछ तस्वीरें चाँद की.............
डॉ नूतन गैरोला
2 comments:
bahut sunder pic hai....
sundar!
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