जरूरत है मानसिकता में बदलाव की
पत्रकारों पर अत्याचार , उनकी हत्या करवा देना , या फिर मार पीट कर हाथ पैर तुडवा देना , धमकिया देना . फर्जी मुकदमा दर्ज करा कर उनका उत्पीडन करना भारत में एक सामान्य बात है . आये दिन कस्बाई पत्रकार इसका शिकार होते रहते है , पर इस तरह की घटनाओं की ओर ना पत्रकार बन्धु ध्यान देते है और ना ही सरकार व उनके अधिकारी . क़स्बा या जिला स्तर पर घट रही इस तरह की घटनाएँ स्थानीय स्तर पर ही दब कर रह जाती हैं .
परन्तु जब किसी महानगर के किसी पत्रकार पर कोई विपत्ति आती है ,तो भरी हंगामा मचता है , और धरना , प्रदर्शन होते हैं .क्या कोई ये बता पाने की स्थिति मे है क़ि कस्बाई और महानगरीय पत्रकारिता मेये फर्क क्यों किया जाता है महानगरो मे काम करने वाले पत्रकार भी कभी ना कभी छोटी जगहों मे काम कर चुके होते हैं .
आज ज़रूरत है इस बात क़ी , कि अखिल भारतीय स्तर पर एक ऐसा संगठन हो जो बिना भेदभाव के सभी पत्रकारों के हितों के लिए कार्य करे , न कि ये छोटा , ये बड़ा पत्रकार है , का भेद करे , जैसा कि आज के मौजूदा पत्रकार संगठन कर रहे हैं .पत्रकार कंही भी काम कर रहा हो , खतरा उसके चारो ओर मंडराता रहता है , और मौका पाते ही दबोच लेता है , जैसा क़ि मुंबई के " डे " की हत्या के रूप मे सामने आया. " .डे " की हत्या कोई आकस्मिक घटना नहीं थी , बल्कि उनकी हत्या काफी सोच समझ कर योजनाबद्ध रूप से की गयी .उनकी हत्या एक सामान्य हत्या भी नहीं थी जिसे किसी मवाली गुन्डे की हरकत मान लिया जाये .
मुंबई के मंत्री पाटिल जी ने तो हत्यारों को " ज्यादा चालाक " का प्रमाणपत्र दे कर अपनी और अपनी पुलिस की पोल खुद हो खोल दी है , अब उनसे किसी की तेरह की आशा करना व्यर्थ ही है .शायद इस मामले मे " सी बी आई " कुछ कर सके , इसलिए इसके पहले और देर ही जाये , सब को इस पर जोर देना होगा , क़ि " डे " हत्या कांड क़ि जाँच तत्काल " सी बी आई " को सौंप दी जाये .
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