भूख के कई रूप हैं...एक है पेट की भूख...जो इंसान को कुछ भी करने को मजबूर
कर देती है...कुछ लोग इस भूख को नजरअंदाज करने की कोशिश करते हैं लेकिन बार बार लौट
पर आने वाली भूख कई बार इंसान पर भारी पड़ती है और आखिर में इंसान को ही खा जाती
है...भारत में हर रोज भूख से होने वाली होने वाली करीब 5 हजार मौतें ये बताने के
लिए काफी है। भूख का एक और रूप है जो इंसान की जान तो नहीं लेता लेकिन जिस पर ये
भूख टूटती है वो एक जिंदा लाश बनकर रह जाती है। उसे अपना जीवन खुद पर बोझ लगने
लगता है...और कई बार हमने देखा है कि इस भूख की शिकार महिलाएं, युवतियां इस बोझ को
नहीं ढ़ो पाती और खुद मौत को गले लगा लेती हैं। भूख के इस दूसरे रूप को “हवस” के नाम से भी
जाना जाता है। दिल्ली रविवार रात चलती बस में जो हुआ वो भूख का ही दूसरा रूप था या
कहें कि एक वहशीपन था जिसे कोई शैतान ही अंजाम दे सकता है। पुलिस ने भले ही 6 में
से 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया हो...और माना इनको सजा भी हो जाएगी...क्योकि
इन्होंने जघन्य अपराध किया है...लेकिन जिस लड़की के साथ ये घटित हुई या होती आयी
है...उसे तो दोषियों से भी बड़ी सजा मिलती है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर कब
तक इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी और आखिर क्यों हर बार पुलिस और सरकार इन घटनाओं
के होने के बाद ही हरकत में आती हैं और इन घटनाओं को रोकने के लिए इस पर मंथन होता
है ? देश में पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं लेकिन
सवाल वहीं का वहीं है कि उसके बाद की जाने वाली बड़ी बड़ी बातें सिर्फ बातों तक ही
सीमित रह जाती हैं और उन पर अमल नहीं होता और इसका नतीजा ये होता है कि कुछ अंतराल
के बाद ऐसी ही घटनाओं की गूंज तन बदन को झकझोर कर रख देती है। राष्ट्रीय अपराध
रिकार्ड ब्यूरो के सिर्फ 2011 के आंकड़ों पर ही नजर डाल लें तो तस्वीर काफी हद तक
साफ हो जाती है कि आखिर महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार, शारीरिक
उत्पीड़न और छेड़छाड़ के साथ ही महिलाओं के अपहरण और घर में पति या रिश्तेदारों के
उत्पीड़न के मामलों की लिस्ट काफी लंबी है। साल 2011 में हर रोज 66 महिलाएं
बलात्कार की शिकार हुई। एनसीआरबी के अऩुसार 2011 में बलात्कार के 24 हजार 206
मामले दर्ज हुए जिनमें से सजा सिर्फ 26.4 फीसदी लोगों को ही हुई जबकि महिलाओं के
साथ बलात्कार के अलावा उनके शारीरिक उत्पीड़न, छेड़छाड़ के साथ ही उनके उत्पीड़न के
2 लाख 28 हजार 650 मामले दर्ज किए गए जिसमें से सजा सिर्फ 26.9 फीसदी लोगों को ही
हुई। ये वो आंकड़ें हैं जिनमें की हिम्मत करके पीड़ित ने दोषियों के खिलाफ पुलिस
में रिपोर्ट दर्ज कराई...इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि असल में ऐसी कितनी
घटनाएं घटित हुई होंगी क्योंकि आधे से ज्यादा मामलों में पीड़ित समाज में लोक लाज
या फिर दबंगों के डर से पुलिस में शिकायत ही नहीं करती या उन्हें पुलिस स्टेशन तक
पहुंचने ही नहीं दिया जाता है। सबसे बड़ी बात ये है कि आंकड़ें इस पर से पर्दा
हटाते हैं कि इन मामलों में कार्रवाई का प्रतिशत सिर्फ 25 है...यानि कि 75 फीसदी
मामले में या तो आरोपी बच निकले या फिर ये मामले सालों तक कोर्ट में लंबित पड़े
रहते हैं और आरोपी जमानत पर खुली हवा में सांस ले रहा होता है। शायद यही वजह है कि
इंसान के रूप में समाज में घूम रहे ऐसे वहशी दरिंदे कानून की इन खामियों का फायदा
उठाते हैं और सरेआम ऐसे जघन्य अपराध करने से भी नहीं चूकते क्योंकि वे उन्हें लगता
है कि आसानी से कानून की इन खामियों का फायदा उठाकर वे बच निकलेंगे। मैंने अपने आसपास
कुछ महिलाओं और लड़कियों से ऐसे अपराधियों को सजा देने पर उनकी राय जाननी चाही तो
उनके चेहरा जवाब देते वक्त गुस्से से लाल था और उनके मन से जो आवाज निकली वो थी कि
ऐसे अपराधियों का जिंदा रहना समाज के हित में नहीं है और इन्हें मौत की सजा की
सबने वकालत की। कोई चौराहे पर फांसी देने की बात कह रही थी तो कोई सरेआम गोलियों
से भून देने की बात कर रही थी। संसद में दिल्ली गैंगरेप के बाद ऐसे आरोपियों को
फांसी की सजा देने की बात उठी और गृहमंत्री ने भी सख्त से सख्त कार्रवाई का भरोसा
तो दिलाया है...लेकिन इसके बाद भी सच ये है कि महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं
कर पा रही हैं। जरूरत इस बात कि है कि दिल्ली की इस घटना के बाद जो बड़ी बड़ी
बातें की जा रही हैं...सरकार के साथ ही पुलिस भी उन पर अमल करे और इन घटनाओं को
रोकने के साथ ही महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार गंभीर कदम उठाने पर तत्काल फैसला
ले। इसके साथ ही बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा देने
के प्रावधान पर सरकार पूरी गंभीरता से विचार करे...एक ऐसी सजा जिसके बारे में
सोचने पर ही अपराध करने से पहले अपराधी हजार बार सोचे।
deepaktiwari555@gmail.com
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