एफडीआई का भूत
सरकार का पीछा छोड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। एफडीआई को लेकर पहले से ही सवालों में
घिरी सरकार अब वॉलमार्ट रिपोर्ट को लेकर कठघरे में आ गई है। सरकार पर एफडीआई लागू
करने को लेकर विदेशी ताकतों के दबाव में काम करने का आरोप लगा था...जैसे तैसे
सरकार ने बड़ी मुश्किल से सब कुछ मैनेज करके दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में एफडीआई
को मंजूरी दिलाकर एफडीआई लागू होने का रास्ता साफ किया ही था कि अमेरीकी सीनेट में
वॉलमार्ट की रिपोर्ट में भारत के बाजार में प्रवेश के लिए लॉबिंग के नाम पर 125
करोड़ रूपए खर्च करने की खबर ने एक बार फिर से सरकार की नींद हराम कर दी है। हालांकि
साढ़े चार हजार करोड़ डॉलर के सालाना टर्न ओर वाले कंपनी वॉलमार्ट को उम्मीद है कि
भारत का बाजार पांच हजार करोड़ डॉलर का है...ऐसे में अगर वॉलमार्ट 125 करोड़ रूपए
सिर्फ लॉबिंग पर खर्च करता है तो वॉलमार्ट के लिए ये कोई घाटे का सौदा नहीं है। वॉलमार्ट
भारत में इसी शर्त पर प्रवेश कर सकता है जब एफडीआई को भारत सरकार लागू करे। भारत
सरकार ने जिस तरह एफडीआई को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दिखाई थी...और संसद के दोनों
सदनों में इसे पारित करवाने में पूरी ताकत लगा दी थी...उससे ये सवाल भी खड़ा होता
है कि 125 करोड़ की जो राशि वॉलमार्ट ने खर्च की है...उसमें से कुछ राशि क्या सरकार
में शामिल किसी व्यक्ति या किसी भारतीय राजनेता को भी मिली है...जो भारत सरकार से
वालमार्ट के लिए लॉबिंग कर रहा था...और बिचौलिये की भूमिका में था और इसी को लेकर
सरकार पर एफडीआई को हर हाल में भारत में लागू करने का दबाव था..? ये सवाल इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि वॉलमार्ट
की रिपोर्ट के अनुसार 2008 से 2012 तक खर्च की गई 125 करोड़ की राशि में से सितंबर
2012 में खत्म हुई अंतिम तिमाही में भारत में निवेश के मुद्दे पर चर्चा के लिए
लॉबिंग पर 10 करोड़ रूपए खर्च किए गए…10 करोड़ रूपए किसे मिले इस पर भी सवाल
खड़ा होता है। माना कि वॉलमार्ट ने अमेरिकी कानून के मुताबिक लॉबिंग की और ये सही
है...औऱ वॉलमार्ट ने ये लॉबिंग अपने फायदे के लिए की...क्योंकि साढ़े चार हजार
करोड़ डॉलर के सालाना टर्नओवर वाली कंपनी को भारत जैसे बड़े बाजार में घुसना है
जहां का बाजार उसके मुताबिक 5 हजार करोड़ डॉलर का है तो वॉलमार्ट क्या कोई इस
बाजार में घुसने के लिए उतावला होगा और 125 करोड़ जैसे रकम उसके लिए मामूली होगी।
लेकिन सवाल यहां ये भी खड़ा होता है कि लॉबिंग भारत में गैर कानूनी है और अगर
वॉलमार्ट भारत में आता है तो वह शुरुआत में फिलहाल सिर्फ 18 शहरों में ही अपना
कारोबार कर पाएगा...लेकिन क्या वॉलमार्ट का सिर्फ 18 शहरों में कारोबार कर खुश
रहना चाहेगा...जाहिर है नहीं और ये निश्चित ही वॉलमार्ट के लिए घाटे का सौदा
होगा...क्योंकि वॉलमार्ट सिर्फ इन 18 शहरों में धंधा करने नहीं बल्कि 5000 करोड़
के भारतीय बाजार पर कब्जा जमाने की फिराक में है। ऐसे में क्या वॉलमार्ट भारत में
प्रवेश करने के बाद दूसरे शहरों और उन राज्यों में अपना व्यापार बढ़ाने के लिए उन राज्यों
की सरकारों से लॉबिंग का प्रयास नहीं करेगा। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश की अगर
बात करें जहां सपा की सरकार है और सपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में काबिज है...क्या
वॉलमार्ट नहीं चाहेगा कि उत्तर प्रदेश जहां आधा दर्जन से ज्यादा शहरों की आबादी 10
लाख से अधिक है वहां अपनी दुकानें सजाई जाएं...ऐसे में क्या वो सपा सरकार से
लॉबिंग की कोशिश नहीं करेगा और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के चरित्र से हर कोई
वाकिफ है कि वो कब कहां डोल जाएं कोई नहीं जानता...क्या गारंटी है कि वे वॉलमार्ट
के प्रलोभन में नहीं आएंगे...? वैसे भी मुलायम सिंह एफडीआई के विरोध का नाटक तो खूब कर रहे हैं लेकिन
संसद के दोनों सदनों में वॉक आउट कर सरकार का फायदा पहुंचा चुके हैं। इसी तरह अन्य
राज्य जो अभी एफडीआई का खुलकर विरोध कर रहे हैं...क्या गारंटी है कि वॉलमार्ट के
प्रलोभन में नहीं आएंगे...? इसका प्लस पाइंट राज्य सरकारों के लिए ये है कि इसका फैसला करने के लिए
वे स्वतंत्र हैं कि वॉलमार्ट जैसी कंपनियों को वे अपने राज्य में कारोबार करने की
अनुमति दें या न दें। खैर ये तो बाद की बातें हैं फिलहाल पहला सवाल तो वॉलमार्ट
रिपोर्ट के बाद सरकार पर उठ खड़ा हुआ है कि आखिर इस 125 करोड़ की लॉबिंग का पूरा
राज क्या है...?
क्या इसके तार भारत के किसी राजनेता या सरकार में शामिल किसी व्यक्ति से
जुड़े हुए हैं...जिसने इसमें बिचौलिए की भूमिका निभाई हो..? देर सबेर इस पर से
भी पर्दा हट ही जाएगा...फिलहाल तो विपक्ष ने इस पर होमवर्क शुरु कर सरकार की नींद हराम
करने का काम तो शुरु कर ही दिया है...जो साफ ईशारा कर रहा है कि संसद के शीतकालीन
सत्र का बचा हुआ वक्त भी हंगामे की भेंट चढ़ने के पूरे आसार हैं।
deepaktiwari555@gmail.com
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