बात आज सुबह की ही
है...एक तरफ दिल्ली में राजपथ पर गैंगरेप के विरोध में हजारों युवाओं का आक्रोश
अपने चरम पर था और पीड़ित को इंसाफ दिलाने के लिए युवा किसी भी हद को पार करने के
लिए तैयार थे...दूसरी तरफ एक वाक्या जो मेरे सामने घटित हुआ वो वाकई में सोचने पर
मजबूर कर देता है कि क्या इंसाफ की मांग को लेकर...आरोपियों की फांसी की मांग को
लेकर जो हजारों युवा किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं...उनका आक्रोश क्या दोबारा
ऐसी ही घटनाओं को होने से रोकने के लिए काफी है ? क्या वाकई में ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं
होंगी ? एक राष्ट्रीय
समाचार चैनल पर राजपाथ पर युवाओं का आक्रोश देखने के बाद कुछ देर के लिए घर के पास
ही एक बार्बर की शॉप पर मैं सेविंग करवाने पहुंचा। अपनी बारी का इंतजार कर रहा था इसी बीच वहीं
पहुंचे दो युवाओं की बातों ने अंदर तक झकझोर के रख दिया था। दोनों की जुबान पर भी
दिल्ली गैंगरेप की चर्चा थी...लेकिन सोच का फर्क साफ दिखाई दिया। घटना को याद करते
हुए उनमें से एक युवा दिल्ली गैंगरेप पीड़ित के बारे में अभद्र टिप्पणी करता है।
वो अपने साथी से कहता है कि यार वो लड़की ऐसी ही रही होगी...ऐसी लड़कियों के साथ
ऐसा ही होना चाहिए। मैंने इस पर आपत्ति जताई और उनसे कहा कि कैसे आप किसी के लिए
ऐसा सोच सकते हो वे उल्टा इस पर बहस करने लगे और अपनी बात को सही ठहराने लगे। इस
वाक्ये से कई सवाल जेहन में उठते हैं जिनका जवाब ढ़ूंढा जाना बेहद जरूरी है...मसलन
क्या सिर्फ कड़े कानून बनाए जाने से और आरोपियों को फांसी देने से देशभर में सड़कों
पर आक्रोश जताना इस बात की गारंटी होगी कि आगे कोई और लड़की इस तरह के वहशीपन का
शिकार नहीं होगी...या कोई और बलात्कार किसी लड़की के साथ नहीं होगा ? क्या इस सब से
इंसानों के बीच में समाज में रह रहे भेड़िए जो मौका मिलते ही इस वहशीपन को अंजाम
देते हैं उनकी सोच में उनकी मानसिकता में बदलाव आ पाएगा ? जाहिर है सिर्फ
कानून कड़े करने से...आरोपियों को सख्त से सख्त सजा देने से ऐसे अपराध नहीं
रूकेंगे और समय समय पर ऐसी घटनाएं जो कि दुर्भाग्यपूर्ण हैं आगे भी घटित होती
रहेंगी। जब तक लोगों की सोच में बदलाव नहीं आएगा...उनकी मानसिकता में बदलाव नहीं
आएगा ऐसे अपराधों को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। ये घटिया सोच नहीं तो और
क्या है कि जहां एक तरफ दिल्ली में लड़की के साथ हुए वहशीपन के खिलाफ देश सड़कों
पर उतरकर अपना आक्रोश जता रहा था तो दूसरी तरफ कुछ ऐसी सोच वाले लोग भी थे जो इस
वहशीपन के लिए भी पीड़ित को ही जिम्मेदार ठहरा रहे थे। जब तक ये सोच नहीं बदलेगी
हालात नहीं सुधरेंगे और आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर अंदर तक झकझोर देने वाले दिल्ली
गैंगरेप जैसे जघन्य कृत्य आगे हमें सुनने को मिलें...क्योंकि हमारे समाज में ऐसे
लोग मौजूद हैं जो लड़कियों/महिलाओं को सिर्फ और सिर्फ सेक्स की नजरों से देखते हैं और मनोरंजन का
सामान समझते हैं और ये वही लोग हैं जो कभी गुवाहाटी में तो कभी दिल्ली में न सिर्फ
महिलाओं की ईज्जत को तार – तार करते हैं बल्कि उनका जीवन नर्क बना देते हैं। ये
लोग इतना तक नहीं सोचते कि जिसने इनको जन्म दिया है वो भी एक महिला है औऱ इनके घर
में भी मां-बहनें हैं...काश ये चीजें इनको समझ में आती। आखिर मैं कहना चाहूंगा कि दिल्ली
गैंगरेप पीड़ित को जल्द से जल्द इंसाफ मिले और इस जघन्य कृत्य को अंजाम देने वाले
आरोपियों के लिए फांसी की सजा भी कम होगी क्योंकि फांसी से उन्हें तो एक बार में
मौत मिल जाएगी...लेकिन इन आरोपियों ने पीड़ित को जो जख्म दिए हैं वो शायद ही कभी
भर पाएंगे।
deepaktiwari555@gmail.com
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